नंदिनी की कहानी भी अजीबो- गरीब थी। उसका रिश्ता बहुत छोटी सी उम्र में किसी परिजन के माध्यम से एक अपरिचित परिवार में तय कर दिया गया था। ये परिवार सुदूर छोर के एक पहाड़ी गांव में बसा हुआ था और अब अपने पैतृक ठिकाने से वर्षों से संपर्क में नहीं था।
बताया गया कि लड़का किसी कंपनी में इंटर्नशिप करते हुए विदेश में रहता है और कुछ वर्षों के बाद ही लौट कर आएगा। इसीलिए नंदिनी के घर वालों की यह बात भी मान ली गई थी कि लड़की तीन - चार साल यहीं अपने पीहर में रहते हुए अपनी पढ़ाई कर ले और उसके बाद जब लड़का वापस लौट कर आए तब दोनों का विवाह कर दिया जाए।
संयोग से नंदिनी के पिता के अलावा किसी ने भी लड़के को देखा नहीं था और पिता ने भी उसे मात्र एक फ़ोटो में ही देखा था। लेकिन अपने एक दूर के रिश्ते के भाई के भरोसा देने पर रिश्ता स्वीकार कर लिया था।
नंदिनी के पिता को अब भी उस यात्रा की धुंधली सी याद थी जब वो लगभग सोलह घंटे का रेल का सफ़र करके लड़के को देखने गए थे। रेल के बाद डेढ़ घंटे का सफ़र उन्होंने बस में किया था। लेकिन तमाम कठिनाइयों को पार कर के जब वह उस छोटे निर्जन से गांव में पहुंचे तो उनकी तबीयत खुश हो गई। बेहद हरा- भरा इलाका था। पहाड़ी ढलानों पर छितराए हुए खेत थे। उनकी दूर के रिश्ते की बुआ का लड़का चीमा सिंह वर्षों से यहीं बस गया था। उसने अपना व्यापार अच्छा जमा लिया था। यद्यपि इस गांव के चारों ओर चाय के बागान भी बहुतायत से थे पर चीमू ने अपने एक मित्र के साथ मिल कर वहां होने वाले एक खास पौधे की जड़ को सुखा कर, पीस कर उसके चूर्ण को एक्सपोर्ट करने का कारोबार डाला था। यह कारोबार बहुत सफ़ल था। इस उत्पाद की बहुत मांग थी क्योंकि इसका इस्तेमाल कुछ औषधियों के साथ - साथ भवन निर्माण में भी बड़े पैमाने पर होता था।
चीमा सिंह जिसे बचपन से ही नंदिनी के पिता चीमू कहते थे इसी कारोबार के चलते बहुत मालदार हो गया था। चीमा सिंह ने अपने इसी बिजनस पार्टनर के बेटे से नंदिनी का रिश्ता करवाया था जो स्कूली पढ़ाई करने के बाद से विदेश में था और एक कंपनी में काम कर रहा था।
लेकिन होनी को ये सीधी - सादी पारिवारिक कहानी जैसे मंज़ूर नहीं थी।
अब नंदिनी के पिता के बार - बार शादी और सगाई के लिए याद दिलाने पर जब चीमा सिंह के मित्र ने अपने बेटे को वापस बुलाना चाहा तो पहले तो कुछ महीनों तक वह टालमटोल करता रहा लेकिन फिर उसने इस विवाह के लिए अपनी अनिच्छा जताते हुए एक तरह से इंकार ही कर दिया।
लेकिन लड़का यह भी जानता था कि एकाएक उसके शादी से इंकार कर देने के दूरगामी परिणाम होंगे जो उसके पिता और उनके व्यापार को बहुत भारी पड़ेंगे। इसलिए उसने अपने बॉस को सारी जानकारी देकर उनकी मदद ली और बॉस ने अपने भारत में रहने वाले एक मित्र पर दबाव डाल कर नंदिनी से शादी के लिए एक अन्य लड़के को तैयार कर लिया।
यह लड़का एक निर्धन परिवार से था और आर्थिक तंगी के चलते अपने घर परिवार को बचाने के उद्देश्य से इस विवाह के मोहरे के रूप में एक भुगतान प्राप्त दूल्हा बनने को तैयार हो गया।
ओह! इतनी पेचीदा कहानी थी बिजली के राजा की!
तभी तो राजा बिजली को लगातार कसमें खाकर समझाता रहा कि वह शादी नहीं कर रहा है बल्कि एक विदेश से वापस लौटने वाले दूल्हे की वापसी तक उसका हमसाया बन कर एक करार कर रहा है। जिसके लिए उसे भारी आर्थिक सहायता मिली है और उसका करार है कि वह लड़की से दिल का कोई रिश्ता नहीं रखेगा।
राजा जिस दुकान में काम करता था उसके मालिक का दोस्त ही उस लड़के का विदेश में रहने वाला वह बॉस था जिसकी शादी नंदिनी से तय की गई थी।
और अपने इसी कर्तव्य निर्वाह में बेचारा राजा एक मोहरा बन कर नंदिनी से सगाई का नाटक करने के लिए अचानक नमूदार हुआ था।
हद हो गई। रिश्ते न हुए... रिश्तों के गुंजलक हो गए!