एपीसोड --3
अपने फ़्लैट का दरवाज़ा खोलने वाला एक वैल ड्रेस्ड युवा को देखकर प्रेसीडेंट को असमंजस में एक ही प्रश्न सूझा, "आपके घर में कितने मेंबर हैं ?"
"मैं व मेरी वाइफ़ व दो छोटे बच्चे। `
"आजकल लॉकडाउन है, आप कहीं जा रहे हैं ?"
वह भरपूर मुस्करा दिया, "नहीं जी, आजकल कौन निकल सकता है ?वो बच्चे होटल जाने की ज़िद कर रहे थे इसलिये वाइफ़ ने आइडिया दिया कि घर में होटल- होटल खेलकर उनकी पसंद की चीज़ें बनाई जायें। हम लोग जैसे ही खाने बैठे वे ज़िद करने लगे कि होटल में कोई गंदे कपड़ों में जाता है ?इसलिये ड्रेस बदलनी पड़ी। "
इनके पीछे से सुंदर गाऊन में सेंट महकाती, लम्बे झुमके हिलाती इनकी पत्नी बाहर झाँकी व उन्होंने सबसे नमस्ते की । ऐसे समय में वे प्रेसीडेंट से ये भी नहीं कह सकतीं थीं, "प्लीज़ ! अंदर आइये। "
प्रेसीडेंट को अपनी ग़लती का अहसास हुआ, "ओ सॉरी !आपको डिस्टर्ब किया।हमें घबराहट में ध्यान ही नहीं रहा फ़्लैट नंबर १०४ तो पीछे की तरफ़ पूल साइड होना चाहिये। "
"जी वह डायगनल वाला फ़्लैट है लेकिन जब मैं बालकनी की हवा में फ़्रेश होने निकला तो आप लोग मुझे बालकनी में देखकर ज़ोर ज़ोर से क्या चीख रहे थे.हाथ से भी कुछ इशारा कर रहे थे। "
प्रेसीडेंट हड़बड़ाते से बोले, "एक फ़ोन किसी को मिला है कि इस फ़्लोर के फ़्लैट नंबर १०४ में कोई लड़की स्युसाइड करने वाली है।हम सब इतने घबराये हुये थे कि आपको बालकनी में देखकर ये भी दिमाग़ नहीं लगाया कि एक सौ चार नंबर तो पीछे की तरफ़ है। "
ये बात सुनकर वे भी हड़बड़ा उठे, "जल्दी चलिये। "
उन्होंने ही फ़्लैट नंबर १०४ की कॉलबेल बजाई। दो मिनट तक बार बार बजाते ही रहे ---सबके दिल भर आये थे, कहीं देर तो नहीं हो गई। जब कहीं कोई उत्तर नहीं मिला तो किसी ने बाहर का जालीदार दरवाज़ा हटाया, दरवाज़े पर सबको मुंह चिढ़ाता ताला लटक रहा था।
सब ज़ोर से हंस पड़े, अफ़वाह से बेवकूफ़ बने तो क्या ?कम से कम इस नई टाऊनशिप की इस बिल्डिंग में किसी ने आत्महत्या तो नहीं की.
थोड़ी देर बाद अनुभा का फिर दूसरा फ़ोन बॉम्ब फूटा। नीता बालकनी में जाकर उससे बात करती रही फिर मोबाइल बंद कर सबके पास आकर ज़ोर से कुछ क्षण हंसती रही ।
"क्या हुआ ? "
" अनुभा जी ने शनाया को फ़ोन पर ख़ूब क्रॉस किया तो उसने सच बताया। वह स्युसाइड करने वाला कोई लड़की नहीं लड़का था। "
" वॉट ?"
वह हँसते हुये बताने लगी, " शनाया उस फ़्लैट में एक लड़के के साथ लिव- इन में रहती है। लॉकडाउन सीज़न वन से एक सप्ताह पहले शनाया के पेरेंट्स वहां आने वाले थे इसलिए वह शहर में दूसरा फ़्लेट किराये पर लेकर रहने लगा। शनाया के पेरेंट्स आ तो गये लेकिन जब कोरोना के केस बढ़ने लगे तो वे उसे लेकर आनंद चले गये। उधर उस लड़के ने सोचा किराया दे ही दिया है तो वहीं रहे लेकिन वह डिप्रेस होने लगा। लॉकडाउन के दो महीने पहले ही नौकरी चली गई थी। अपने भविष्य को लेकर वह बहुत परेशान रहने लगा था. शनाया को दो बार धमकी दे चुका था कि वह उसके फ़्लैट की बालकनी से कूदकर स्युसाइड करेगा। शनाया अपनी चाबी एक सौ तीन नंबर फ़्लैट में छोड़ आई थी। दो दिन पहले उसने उन लोगों से पूछा था कि उसके फ़्लैट की चाबी तो किसी ने नहीं माँगी।"
"तो आज वह मरने के लिये अड़ गया होगा। "
"ऐसा ही लगता है मुझे पता होता कि ये इश्क का मामला है तो मैं उसे हेल्प नहीं करती। "
"अरे क्यों इश्क करने वालों को बचाना ज़रूरी नहीं है ?"
"बात वो नहीं है। मैंने हॉस्टल में देखा है इनके बीच नौटंकी बहुत चलती है। "
"मामला तो गंभीर होगा। अकेले फंसे लोग इस लॉकडाउन में कितने डिप्रेस हो जाते होंगे । मुझे तो उस लड़के पर तरस आ रहा है। उस पर नौकरी कब मिलेगी वह डर --नौकरी नहीं मिली तो शनाया का साथ रहे या न रहे ये डर ---बिचारा। अगर शनाया पहले बता देती थी कि वह किसी लड़के साथ लिव -इन में रहती है तो तुम जैसे लोग नौटंकी समझ उसे बचाने की बात टाल जाते। तुम उस लड़की की होशियारी देखो उसने तुम्हें फ़ोन करके उसे लड़की बताकर शोर मचवा दिया कि रोज़विला के लोग अलर्ट हो जायेंगे।एक अकेली बिचारी लड़की के नाम पर शोर अधिक मचेगा। वह उसके फ़्लैट में जा ही नहीं पायेगा। तुमने एक बात नोट की तुम्हें कॉल करने के बाद उसका मोबाईल पंद्रह बीस मिनट तक इंगेज रहा था मतलब वह उस लड़के को अपनी लच्छेदार बातों में लगाये रही, उसे जीने के लिये प्रेरणा देती रही होगी। इधर उसे उसने अपनी बिल्डिंग रोज़विला में बचाने का इंतज़ाम कर लिया। "
" भई वाह !"
सुशी को कल्पना में गुम होना उस की सुरंग में चलते जाना लॉकडाउन के खाली समय में कितना भला लग रहा है ---अचानक आनंद में शनाया के पास उस लड़के का वीडियो कॉल आया होगा, जब वो ऐसे ही टी वी पर कोई नेटफ़्लिक्स का क्राइम थ्रिलर देख रही होगी, ख़ालिस देसी गालियां सुन रही होगी "देख शनाया ! आज मैं सच ही स्युसाइड करने वाला हूँ। मुझे कोई नहीं रोक सकता। "
"हर तीसरे दिन क्यों बोर करता है कि मैं मरने वाला हूँ। परसों तो मैं इतनी घबरा गई थी कि रोज़विला की एक सौ तीन नंबर फ़्लैट की मुखर्जी आंटी से पूछा भी था कि कहीं तू उनसे अपने फ़्लैट की चाबी मांगने तो नहीं आया था। "
"तू मुझे इस तरह धोखा देगी मैंने सोचा भी नहीं था। "
"कितनी बार समझा चुकीं हूँ मोदी जी ने बाइस तारीख को सबसे घर पर रहने की अपील की थी इसलिए मम्मी पापा इक्कीस तारीख को समझ गये थे कुछ गंभीर होने वाला है। कोरोना के कारण मुझे अपने साथ ले आये थे। लॉकडाउन किस चिड़िया का नाम है, क्या हम जानते थे ? न ही ये पता था मैं आनंद में फंस जाउंगी। "
"देख मुझे पता है तू मुझसे पीछा छुड़ा रही है। "
"अगर लॉकडाउन नहीं होता तो मैं अभी आकर तुझसे शादी कर लेती। "
"तू तो वहाँ मज़े में अपनी मम्मी के घर हैं। मुझे देख खिचड़ी, चावल, ब्रैड खा खा कर दिमाग़ खराब हो गया है। साली एक कप चाय भी खुद बनाओ।मुझसे नहीं सहा नहीं जाता आज तो मैं रोज़विला जाकर मर ही जाऊंगा। "
वीडियो कॉल पर उसकी चढ़ी हुई लाल आँखें, उतरा हुआ दुबला चेहरा, बढ़ी हुई काली दाढ़ी, बार बार तेज़ चलती सांस देखकर शनाया मन ही मन बहुत घबरा गई होगी लेकिन संयत होकर कहा होगा, "मैं कॉल काट रहीं हूँ। पप्पा से बात करतीं हूँ किसी फ़ार्मास्युटिकल कम्पनी की गाड़ी में मुझे कल अहमदाबाद भिजवा सकते हैं।` `
"ठीक है मुझे अभी जवाब चाहिये नहीं तो दस बजे तक तू मेरे मरने की ख़बर सुन लेगी। "
शनाया टीवी बंद कर कुछ देर सोचती बैठी रही होगी --क्या करे ---क्या करे --अचनाक उसे नीता की याद आ गई होगी। नीता से एक डेढ़ मिनट बात करके फिर उस लड़के को कॉल किया होगा, " उम्मीद तो है कल गाड़ी मिल जायेगी। "
"तू बेवकूफ़ मत बना, मैं बस घर से निकल रहा हूँ।"
" डो`न्ट बी सिली बेबी ! यू आर माई लव। "
"लव होता तो मम्मी पापा के कारण क्या मुझे घर से निकल जाने को कह देती। "
शनाया समझ रही होगी कि बिना तर्क के ऊल जलूल बात कर रहा है, उससे बहस बेकार है। इसे कम से कम बीस पच्चीस मिनट तक बातों में उलझाना है। उसे पूरा विश्वास है नीता मैडम स्मार्ट है किसी लड़की के आत्महत्या करने की बात की बात सुनकर कुछ न कुछ रास्ता निकालेंगी. उसने बात बदल दी, "अच्छा रो बहुत लिया, ये बता आज क्या खाया था ?"
"जली हुई ब्रैड। तवे पर ब्रैड सेकते हुए मेरे हाथ काँप रहे थे। मुझे लग रहा है मुझे पार्किंसन हो रहा है। "
"चुप कर, इतनी कम उम्र में ये बीमारी होती है? मेरे साथ छ; महीने से रह रहा था तुझसे कितना कहा था कुकिंग सीख ले तो कैसे अकड़ता था. क्या होटल, रेस्टोरेंट, स्विगी या ज़ोमैटो मर गए हैं जो मैं लड़का होकर खाना बनाना सीखूं ?"
"सही तो कहता था। कौन जानता था कि भगवान इस ग्लोबलाईज़्ड वर्ल्ड को उसकी औकात बताने के चुपके से प्लेनिंग कर रहा है। `
"`ये तो अच्छा हुआ तेरे फ़्लैट में गैस पाइप लाइन थी, ज़बरदस्ती मैं कुछ बर्तन ख़रीद कर रख आई थी। नहीं तो बिल्कुल भूखा मरता। "
"तो तू क्या मुझे ज़िंदा समझ रही है ? मैं नहीं ये मेरा भूत बोल रहा है। "
शनाया को एक पल लगा कि कहीं वह एकदम तो नहीं पगला गया। फिर वह चिढ़ाते हुए बोली, "तो भूत साहब ! आपने अपनी मम्मी से भी खाना बनाना क्यों नहीं सीखा?"
"मैं दो बहिनों के पैदा होने के सात वर्ष बाद पैदा हुआ था मेरी मम्मी कहती थी कि रसोड़े का काम करने के लिये घर में बहिनें तो हैं, बाद में तेरी बीवी आ जाएगी । तू बता तू ने क्या खाया ? "
शनाया ने बात टाली यदि इसे बता दिया कि उसने रिंगन [बैंगन ]का भुर्ता, बाजरा का रोटला व वासुंधी खाई है तो फिर वह मरने चल देगा। उसने बुरा सा मुंह बनाते हुये कहा, "मम्मी तो आज बर्तन धोते धोते थक गई थी इसलिये मैंने खिचड़ी बना दी। और ये बता कि तेरे यहाँ भी बर्तन बच्चे दे रहे हैं ?कितना मलकर रक्खो और पैदा हो जाते हैं। "
"तू पूछ रही है या वॉट्स एप का मैसेज वाइरल कर रही है। "
"उफ़ वायरस का नाम मत ले।मुझे कोरोना याद आ जाता है। "
"मैंने कब लिया ?"
ऐसी ही बेसिर की बातों से शनाया ने वो पंद्रह बीस मिनट निकाले होंगे और जैसे ही अनुभा की कॉल पहुँची होगी, उसने उस लड़के की कॉल के साथ उसे कॉन्फ़्रेंस कॉल में लेकर अपनी विजय पताका लहरा दी होगी।
सुशी ने अनुभा को एक वॉट्स एप पर मैसेज किया -`मेरे मन में कितना संतोष है कि हम सबने मिलकर एक व्यक्ति को मरने से बचा लिया। "
उत्तर मिला -" शनाया ने नीता को यूज़ कितना किया। "
"उससे क्या ? मैं मान गई उस लड़की की होशियारी को। वह शहर से बाहर थी, किसी को तो दूर बैठे यूज़ करती।"
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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ
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