Jivan @ Shutduwn - 2 in Hindi Fiction Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | जीवन @ शटडाऊन - 2

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जीवन @ शटडाऊन - 2

एपीसोड --2

कैसा समय देखने को लिखा था ?चीन के वुहान में चमगादड़ों के ऊपर शोध करने वाली वैज्ञानिक `लेडी बैटमेन `ली झिंगली इस ख़तरनाक वायरस का रहस्य बताकर एकदम गायब हो गई।इसका परिचय देने वाले दूसरे डॉक्टर ली वैनलिंग को मौत उड़ा कर ले गई ?मौत कैसी कोरोना से या ---कौन जाने ?

ग्लोबलाइज़्ड दुनियां में गूगल पर सर्च करते, सोशल साइट्स पर चैट करते, ब्रैंडेड कपड़े पहने गर्व से ऐंठते सोचते थे कि कैसा बैकवर्ड समय होगा, लोगों को विज्ञान का अधिक ज्ञान नहीं होगा जो बार बार महामारी की चपेट में आ जाते होंगे --पूअर गाइज़। वे सब सर्वश्रेष्ठ शहर में रहते हुये कैसे इतराते थे--पास के मुम्बई से हर तीसरे चौथे दिन फ़िल्म कलाकार या सिंगर चमकती स्टेज पर झूमती रोशनियों के बीच माइक पर ज़ोर से चिल्लाकर पूछता, "केम छो अहमदाबाद ?"

सामने बैठी भारी भीड़ उन्मत हो चिल्ला उठती थी, "मजा मा "

"फ़ाइन छे। "

पहले से ही स्मार्ट सिटी में और भी स्मार्ट होने की अदायें मतलब लम्बे फ़्लाई ओवर, इंटनेशनल कॉन्फ्रेंस हॉल्स, चमकते मॉल्स, मैट्रो ट्रेन डाले जा रहे थे लेकिन अकस्मात रोबोट होटल के ट्रे ले जाते रोबोट की तरह सारे शहर की ऑंखें फटी की फटी रह गईं --किसने रिमोट से उसे एकदम रोक दिया, घरों में कैद कर दिया। सड़कों को लहराकर चलने से रोक दिया। रात को बारह या एक बजे आइसक्रीम पार्लर व कोल्ड ड्रिंक स्टोर की भीड़ घरों में समा गई। उनकी टाऊनशिप में रात को देखकर लगता ही नहीं था कि ये वही जगह है, जहाँ शाम होते ही इसका कम्पाउंड बच्चों और बड़ों की रौनकों से भर जाता था। शाम को रंगबिरंगे झूलों पर बने मिकी माउस, सिंड्रैला, बनी, मंकी सब बिल्डिंग की तरफ़ देखते उदास हैं। अपने नन्हें दोस्तों का रोज़ इंतज़ार करते रह जाते हैं। झूलों के व स्लाइड्स के बदन मूर्ति से खड़े खड़े बेहद दर्द करने लगे हैं।

बालकनी से दिखाई देतीं दूर की बिल्डिंग्स का सूनापन या हाई वे पर गायब `जाम `को देखकर, सोशल डिस्टेंसिंग की तरह चलती दो चार कारों को देखकर, बस भरी हुई संज़ीदा आवाज़ का वह विज्ञापन याद आता है, "इस शहर को हुआ क्या है ?"

नाक में नली या ऑक्सीजन लगे मास्क लगाये बिस्तर के मरीज़ों से भरे अस्पताल के दृश्य सहमाते हैं, सफ़ेद या आसमानी पी पी ई पोशाक और एन-नाइंटी फ़ाइव मास्क पहने वाइरस से लड़ते मास्क लगाये डॉक्टर्स व पैरा मेडीकल स्टाफ़ ख़ुद दूसरी गृह के प्राणी नज़र आते हैं। इस या सभी शहरों, फ़ैक्ट्ररियों, ऑफ़िसों व स्कूल्स कॉलजेज़ का वक़्त जैसे ठहर गया है, हज़ारों मज़दूर अपना सामान उठाये मीलों दूरी लांघते अपने घर की तरफ़ निकल पड़े हैं।नंगे पैर ?--नहीं -- ठीक ठाक पोशाकों में, मतलब देश में पहले से कुछ तो मज़दूरों की हालत बदली है। सम्भ्रान्त लोग लॉकडाउन के उत्सव का पूरा फ़ायदा उठाते घर के अंदर बंद सुविधाओं में रोज़ नई डिश कभी मेवे भरा हलुआ, कभी पुडिंग खाते उबने लगे हैं । मोबाइल पर बहस के लिये तो समय ही समय है -"-पहले लॉकडाउन से पहले दो तीन दिन का समय सबको देना था जिससे जो लोग अपने घर से बाहर हैं वो लौट तो सकते।"

कुछ कहते हैं, "इतने करोड़ की आबादी वाले देश में क्या सरकार बस स्टैंड पर, रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर, एयरपोर्ट पर उमड़ती भीड़ को सम्भाल पाती ?क्या कोरोना संकम्रण के अधिक मौके नहीं दिये जाते ?"

" जो समय देने के पक्षधर हैं उन्हें वो हादसा क्यों नहीं याद आता जब कुम्भ के समय अपार भीड़ के कारण इलाहाबाद का रेलवे ब्रिज टूट गया था।भइया !अपना देश तो भीड़ भड़क्के का देश है। "

"हाँ, ये ज़रूर है सरकार को मज़दूरों को पहले ही लॉकडाउन के बाद घर भेजने की व्यवस्था करनी चाहिये थी लेकिन तब कोरोना केसेज़ के मुठ्ठी भर आंकड़ों का चश्मा चढ़ा हुआ था। "

"भैया ! सरकार कोई भगवान है जो भविष्य जान लेती ?"

"न, न सबका बाप कोरोना है जो निर्णय लेगा किसकी जान लेनी है। "

चीन, अमेरिका, इटली के आँकड़े डराने लगे --अस्पतालों के वॉर्ड्स में मृत शरीरों के ढेर के वीडियो जैसे कहते रहते हैं कि अब किसकी बारी है ? नीदरलैंड जैसे छोटे से देश में अब तक पांच हज़ार मौत हो चुकीं हैं। पचास हज़ार लोग गिरफ़्त में हैं। उधर कोरोना के नियमों को अनदेखा कर कोवि ईडियट्स अमेरिका के समुद्री तट पर पिकनिक मनाते सैलानियों या पार्टी करते लोगों को देख कर उनकी बुद्धि पर कैसा क्रोध आता है। कभी सोचा था कि वहां शिप्स को किनारे लाकर या भारत में स्कूल्स, स्टेडियम, ट्रेन्स को अस्पताल में बदल देना पड़ेगा ? या चिकित्सक या पुलिस विभाग या सफ़ाई कर्मचारियों पर सारा विश्व निर्भर हो उठेगा ? या हर धर्म के प्रार्थना गृह बंद हो जायेंगे ?या सबको इन तीनों में ही अपने भगवान नज़र आयेंगे ? या इस भयावह दौर में कुछ लोग गिटार लिये या ऐसे ही सोशल मीडिया में सुंदर सुंदर गीत गाकर, डांस करके या दिलचस्प वीडियो बनाकर करके इसके अवसाद को दूर करने की कोशिश करेंगे?

इंसानी जान बचाती, अपनी जान देती इंसानियत चरम पर है तो हैवानियत भी पुलिस व मेडीकल विभाग के लोगों पर पत्थर बरसाती पीछे कहाँ है ? सुशी के उस दिन आँसु निकल आये थे जिस दिन उसने एक सूरत की स्वीट सी डॉक्टर को रोते हुये टी वी पर देखा था। बिचारी अकेली रहती है। दस बारह घंटे मौत के पास ड्यूटी करके आती है। उसके बाद उसके पड़ौसी पति पत्नी उसे इतना तंग करते हैं कि उसे पुलिस में एफ़ आई आर करनी पड़ गई।

सुशी तो पहले कहती थी, " दिल्ली में रोज़ कोरोना मरीज़ों के आंकड़े बढ़ रहे हैं अहमदाबाद या गुजरात में कुछ अधिक नहीं सुनाई दे रहा जबकि हर चौथे घर का कोई व्यक्ति विदेशों से आता जाता रहता है। "

कोरोना महाशय गुजरात में देर आये दुरुस्त आये टाइप नहीं आये बल्कि सबको पस्त करते चले आये। रही सही कसर जमातियों ने मुस्लिम बहुल इलाकों जमालपुर, कालूपुर और सरखेज जैसे अपने अपने घरों में जाकर पूरी कर दी।

तभी इंटरकॉम की घंटी टनटना उठती है। नीता झपटकर फ़ोन उठा लेती है। बात करके फ़ोन रखने के बाद कहती है, "वो वॉचमेन कह रहा है मैं दसवें माले पर गया था। सब दरवाज़े बंद थे। उस ने एक फ़्लैट के दरवाज़े की कॉलबेल बजाई। उन लोगों ने दरवाज़ा खोलकर बताया, कि यहाँ तो ऐसी कोई बात नहीं है। कोई नहीं मरने वाला। मैंने उससे पूछा की बाकी चार फ़्लैट्स में पता किया तो बोला उनके दरवाज़े बंद हैं, वहां तो कुछ गड़बड़ नहीं लग रही थी। "

"हाँ, जैसे कोई स्युसाइड दरवाज़ा खोलकर करेगा। बिचारा जितनी अक्ल है वैसे ही करेगा लेकिन कम से कम चिंता करके भागकर रोज़विला गया तो सही। "

नीता एक बार और शनाया से बात करने की कोशिश करती है, मोबाइल अभी भी व्यस्त है।वह उस लड़की पर खीजकर आटा मलने लगती है. सुशी गोभी काटते हुए उप्स को आवाज़ देतीं हैं, "कोरोंटाइन पतीले में से दो प्याज़ दे जाना."

उन्होंने एक बड़ा पतीला एक कोने में रख दिया है जिसमें बिल्डिंग में नीचे बैठने वाले सब्ज़ीवाले से लाकर आलू सब्ज़ी व प्याज़ भर दी जाती है.जिसका एक दिन कोरोंटाइन पीरियड कर दिया है। उप्स के उन्हें आलू देते ही किन्नी अपनी छोटी सी पानी की बोतल लेकर उसके पास आ जाती है, "भैया !तीस सेकेंड्स तक हैंड वॉश करिये। "

नीता हंस पड़ती है, "मेरी सभी सहेलियां वॉट्स एप ग्रुप में कहतीं हैं कि इस नन्हीं पीढ़ी को कहीं हाथ धोने का फ़ोबिया न हो जाये।इसने अब बार बार होटल चलने की डिनर लेने की ज़िद छोड़ दी है। अब कहती भी नहीं है कि सायकिल चलाने नीचे जाना है। "

सुशी उसे छेड़ती है, "किन्नी ! नीचे सायकल चलाने जाना है ?"

वह इठलाकर कहती है, `ओ नो, नीचे कोरोना वाइरस आ जायेगा। "

"देखो ये समय क्या क्या सिखाकर, क्या क्या छीनकर जाता है ? "

सब्ज़ी काटती सुशी सोचतीं हैं --वैसे ही चरमराती अर्थव्यवस्था में छोटे मोटे धंधों वालों की तो बात ही क्या है ---करोड़ों लोगों की बेरोज़गारी में कॉर्पोरेट जगत में पहले से ही कब किसकी नौकरी जा रही है --पता नहीं। ये कोरोना काल किस किसकी जान, नौकरी छीनेगा ?--अभी कोई सोच ही नहीं सकता। इस दूसरे सीज़न में प्राइवेट नौकरियों वालों की तनख़्वाह की कटौती की ख़बर तो दी ही जा रही हैं। बहुत से लोग नौकरी से निकाल दिये हैं --तो उस लड़की को भी नौकरी से --क्या पता ?लेकिन इसके लिये मरने की कौन सी बात है ?लॉकडाउन के बाद वह अपने घर जा सकती है।लड़कियों को सुविधा भी है कि नौकरी नहीं है तो क्या ?शादी कर लो।

नीता के मोबाइल पर कोई मैसेज आने की` टुन `आवाज़ होती है। वह पढ़कर बताती है, "एम ब्लॉक के फ़्लैट नंबर चार सौ पांच में से किसी ने मैसेज किया है कि - अभी थोड़ी देर में एम्बुलेंस आयेगी कोई पेनिक न हो क्योंकि उन्हें अपनी मदर को कैसे चैस्ट पेन के कारण हॉस्पिटल ले जाना है। "

सुशी के के मुंह से निकल जाता है, "कितने तमीज़दार लोग हैं वर्ना सब ही एम्बुलेंस का सायरन सुनते ही अपने बाल्कनियों में निकल आते और डर जाते कि कोरोना डोर स्टैप आ गया है। "

वह सब्ज़ी बनाने में लग जाती है। नीता रोटी बना रही है.उस लड़की का क्या हुआ होगा ? थोड़ी देर बाद जैसे उत्तर देता अनुभा का फोन आ जाता है, वह तुर्श आवाज़ में कहती है, "आंटी !नीता को फ़ोन दीजिये। "

वह मोबाइल उसे थमा देती है। नीता फिर उससे बातचीत करती बाल्कनी में चली जाती है पहले से ही चिढ़ी हुई अनुभा का फ़ोन बॉम्ब नीता के मोबाइल पर फूट पड़ा, "नीता ! मैं तुमसे कह रही थी कि ये अफ़वाह भी हो सकती है। शनाया ने कितने लोगों को बेवकूफ बना दिया। " फिर वह संक्षेप में सारी घटना उसे बताने लगी।

"यदि कोई लड़की वहाँ सच ही आत्महत्या कर लेती तो क्या आप या मैं अपने को माफ़ कर पाते ?"

"लोग तो रोज़ मरते रहते हैं तो हम क्या करें ?अब तुम मुझे शनाया का फ़ोन नंबर दो उसकी ख़बर लेतीं हूँ."

नंबर देकर मोबाइल स्विच ऑफ़ करके नीता बोली, `मम्मी जी !ये कैसी हैं। कह रहीं थीं रोज़ कोई न कोई मरता रहता है तो हम क्या करें ?"

"छी --सब तरह के लोग दुनियां में होते हैं। "लौटकर जब आती है तो उसके चेहरे पर एक राहत है, हल्की मुस्कराहट, "बाप रे! अनुभा जी क्या हैं ?मुझसे नाराज़ हो रहीं थीं कि जैसे ही उन्होंने अपनी बिल्डिंग के वॉट्स एप ग्रुप में इस लड़की के बारे में डाला तो उनके पास लगातार फ़ोन आ रहे हैं ।उन्हें परवाह नहीं कोई मर रहा हो तो मरता रहे. उन्होंने उस शनाया का मोबाइल नंबर माँगा है। "

जो उसने बताया सुशी को लगा सब तस्वीर वो देख पा रहीं हैं। अनुभा के ग्रुप में लड़की की आत्महत्या की बात जानकार किन्ही मेहता ने प्रेसीडेंट को ख़बर कर दी, उन्होंने सचिव को, और कुछ लोग अपने अपने मास्क लगाये रोज़विला की बी नाम की बिल्डिंग के सामने थोड़ी थोड़ी दूरी पर खड़े हो गये।

"दसवें माले पर कौन से नंबर का फ़्लैट है ?"

"एक सौ चार है, वहाँ कोई अकेली लड़की रहती है ?"

" शायद दो लड़कियां रहतीं हैं। एक लॉकडाउन से पहले अपने घर चली गई थी। उसी ने शोर मचाया है कि मेरी रूम मेट स्युसाइड करने वाली है। "

"अजी अब किसको क्या पता किस फ़्लैट में कौन रहता है। "

तभी करोड़े ने शोर मचाया, "ऊपर देखिये टेंथ फ़्लोर पर कोई बालकनी से नीचे झुका जा रहा है। "

"अरे !ये अफ़वाह नहीं थी वो लड़की सच ही आत्महत्या करने वाली है। "

सबने ऊपर सिर उठाकर ऊपर देखा --- इस बिल्डिंग के सामने का लेम्प पोस्ट की ट्यूबलाइट आज ही फ़्यूज़ होनी थी। प्रेसीडेंट सहित दो तीन लोग हाथ के इशारे से चिल्लाते हुये कहने लगे, "पीछे हटिये --पीछे हटिये। "

दो तीन युवा बी बिल्डिंग के बिल्कुल पास आ गये, "अगर वह गिरती है तो हम नीचे उसे हाथों में लेने की कोशिश करेंगे, आप लोग ऊपर जाइये उसे समझाइये। "

बाकी सब लोग बी बिल्डिंग के अंदर झपट लिये। दोनों लिफ़्ट के बटन दबाकर धड़ धड़ करते दिल से प्रार्थना करते रहे कि वह बालकनी पर झुकती काली परछाईं उनके पहुँचने से पहले आत्महत्या न कर ले।

वे सब उस फ़्लैट के सामने खड़े थे. कॉल बैल बजाकर थोड़ा आश्चर्य हो रहा था कि जिस फ़्लैट में कोई आत्महत्या करने वाला है, उस फ़्लैट से बाहर वेनीला एसेंस व पकवानों के तले जाने की तेल की गमक क्यों आ रही है?

दरवाज़ा खोलने वाला एक वैल ड्रेस्ड युवा था, जो सबको अपने फ़्लैट के सामने पाकर चौंक गया, `जी कहिये? "

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail –kneeli@rediffmail.com