Wo Maya he - 38 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 38

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वो माया है.... - 38



(38)

चेतन की लाश का पोस्टमार्टम हो चुका था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसकी गर्दन पर भी वार करने के का निशान था। छाती पर पंजेनुमा धारदार हथियार से वार किया गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार चेतन के शरीर पर पिटाई के भी निशान थे। चेतन के शव का सरकारी खर्चे पर दाह संस्कार कर दिया गया था।
खबर रोज़ाना में छपी रिपोर्ट में दोनों हत्याओं के बीच समानता की बात करते हुए सवाल उठाया गया था कि उन दोनों हत्याओं को आपस में जोड़ने वाला सूत्र क्या हो सकता है ? लोगों में अब पुष्कर की हत्या के साथ साथ चेतन की हत्या के बारे में जानने की भी दिलचस्पी पैदा हो गई थी। ताबीज़ वाली बात के ज़िक्र ने लोगों को तरह तरह की अटकलें लगाने। का मौका दे दिया था। खबर रोज़ाना इस समय उस क्षेत्र के लोगों की पहली पसंद बन गया था।
सूरज की मोटरसाइकिल पुलिस स्टेशन के कंपाउंड में दाखिल हुई। वह बहुत परेशान था। सोच रहा था कि ना जाने क्या बात है कि इंस्पेक्टर हरीश ने उसे पुलिस स्टेशन आने को कहा था। मोटरसाइकिल को खड़ा करके वह थाने के अंदर चला गया।
इंस्पेक्टर हरीश पुलिस स्टेशन में बैठा सूरज के आने की प्रतीक्षा कर रहा था। उसके मन में कई सवाल थे। इसलिए उसने सूरज को खबर भिजवाई थी कि वह पुलिस स्टेशन आकर मिले। सूरज उसके पास गया। उसे नमस्कार करके बोला,
"आपने मिलने बुलाया था। कोई खास बात है क्या ?"
इंस्पेक्टर हरीश ने उसे बैठने का इशारा किया। उसके बाद बोला,
"तुमसे कुछ ज़रूरी सवाल करने हैं।"
सूरज कुर्सी पर बैठ गया। उसने कहा,
"अभी भी सवाल बाकी हैं इंस्पेक्टर साहब। हमने तो अपने बयान में सब बता दिया था। उस दिन ढाबा बंद होने के बाद चेतन ने बाहर जाने की इजाजत मांगी। हमने दे दी। अब वह उस जगह कैसे पहुँच गया ? उसे किसने मारा ? यह सारी बातें तो आप लोगों को पता करनी हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश ने उसे घूरकर देखा। उसके बाद सख्त लहज़े में बोला,
"हमको क्या करना है यह तुमसे सीखने की ज़रूरत नहीं है।"
इंस्पेक्टर हरीश के इस लहज़े से सूरज डर गया। उसने कहा,
"हम आपको क्या सिखा सकते हैं भला। आप लोग तो अपना काम जानते हैं। हमारे कहने का मतलब......"
"यह बात छोड़ो। मैं जो पूछूँगा उसका सही सही जवाब देना।"
सूरज की बात काटते हुए इंस्पेक्टर हरीश ने उसी लहज़े में कहा। सूरज‌ चुप हो गया। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"चेतन ने उस दिन करीब साढ़े ग्यारह बजे मुझे मैसेज भेजा था कि आपसे बात करनी है। उसकी हत्या पुलिस स्टेशन से कोई तीन सौ मीटर पहले हुई। इसका मतलब है कि वह पुलिस स्टेशन आ रहा था। अब मुझे बताओ कि उसे क्या बात करनी थी‌ ?"
"हमको क्या पता है कि उसे आपसे क्या बात करनी थी। हमें तो यह भी नहीं पता कि उसने आपको कोई मैसेज भेजा था। हमने बताया कि ढाबा बंद होने के बाद वह ढाबे से चला गया था। उसके बाद वह कहाँ गया ? उसने आपको क्या मैसेज किया ? क्यों किया ? हमको कुछ नहीं पता है।"
इंस्पेक्टर हरीश अपनी कुर्सी से उठकर सूरज के पास आया। उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर उसे दबाते हुए बोला,
"सच सच बताओ.... नहीं तो पुलिस जानती है कि सच कैसे निकलवाना है।"
यह कहते हुए इंस्पेक्टर हरीश ने कंधे पर दबाव बढ़ा दिया। सूरज को तकलीफ होने लगी। लेकिन वह अपनी बात पर कायम रहते हुए बोला,
"हमने तो सब सही बताया है। अब हमको कुछ भी नहीं पता।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कड़क कर कहा,
"चेतन के शरीर पर पीटे जाने के निशान थे। यह पिटाई उसके हत्यारे ने नहीं की थी। इसका मतलब है कि तुमने उसे पीटा था। उसके पास कोई आवश्यक जानकारी थी। जो तुम नहीं चाहते थे कि हम तक पहुँचे।‌ इसलिए तुमने उसकी पिटाई की थी।"
सूरज शुरू में कुछ डरा था पर अब उसने खुद को संभाल लिया था। उसने कहा,
"हमें नहीं पता कि उसकी पिटाई किसने की। सोचकर देखिए कि अगर हम ना चाहते कि वह आपको कुछ बताए।‌ हमने उसकी पिटाई की होती तो वह आपको मैसेज कैसे कर पाता‌ ? हम उसे ढाबे के बाहर क्यों जाने देते ?"
सूरज की बात में प्वाइंट था। इंस्पेक्टर हरीश अपनी जगह पर वापस जाकर बैठ गया। इससे सूरज की हिम्मत और बढ़ी। उसने कहा,
"हमने जैसा बताया था कि वह ढाबा बंद होने के बाद कहीं चला गया था। हो सकता है कोई उससे मिला हो। उससे कोई बात हुई हो। हो सकता है झगड़ा हुआ हो। मारपीट हुई हो। उसके बाद चेतन ने आपको मैसेज किया हो। वह पुलिस स्टेशन आ रहा होगा। तब उसकी हत्या हो गई हो।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है कि चेतन दस बजे के आसपास ढाबे से निकला था। तुम्हारे ढाबे पर लगा सीसीटीवी कैमरा तुमने खराब कर दिया है। यही सोचकर कि हम सही बात ना जान सकें।"
"हमने कैमरा खराब नहीं किया है। ना जाने कैसे उसने काम करना बंद कर दिया। हम रोज़ रोज़ फुटेज चेक भी नहीं करते हैं कि पता चल जाता।"
इंस्पेक्टर हरीश ने पूछा,
"चेतन कितने वक्त से तुम्हारे पास रह रहा था ?"
"दो साल होने वाले थे।"
"उसने बाहर जाना कबसे शुरू किया था ?"
सूरज ने याद करने का नाटक करते हुए कहा,
"पाँच छह महीने हो गए थे।"
"तुमने इतने दिनों में यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह कहाँ जाता है।"
"हमने पूछा था तो वह पर्सनल मैटर कहकर टाल गया।"
इंस्पेक्टर हरीश ने उसे घूरा। उसके बाद बोला,
"चेतन से मैं जितनी बार मिला मुझे वह डरा और सहमा सा लगा। किसी भी बात का जवाब देने से पहले तुम्हारी तरफ देखता था। ऐसा लगता तो नहीं कि उसने पर्सनल मैटर कहकर टाला हो और तुम मान गए हो।"
"इंस्पेक्टर साहब पुलिस जब पूछताछ करती है तो कोई भी सहम जाता है। आप एक मर्डर केस में पूछताछ कर रहे थे इसलिए डरा हुआ था। हो सकता है कि डर के कारण वह हमारी तरफ देख रहा हो। इसका मतलब यह तो नहीं है कि हमने उसे धमकाया होगा। हमारे सामने वह सामान्य रहता था। हमारे पूछने पर कि वह कहाँ जाता है उसने टाल दिया था। हमने भी दोबारा नहीं पूछा था।"
इंस्पेक्टर हरीश कुछ देर सोचता रहा। उसके बाद उसने सूरज को जाने के लिए कह दिया। सूरज जब अपनी मोटरसाइकिल लेकर कंपाउंड से बाहर निकल रहा था उसी समय कांस्टेबल शिवचरन पुलिस स्टेशन के अंदर दाखिल हो रहा था। शिवचरन सीधा इंस्पेक्टर हरीश के पास गया। उसने पूछा,
"सर सूरज से कुछ पता चला ?"
इंस्पेक्टर हरीश ने शिवचरन को सूरज के साथ हुई सारी बातचीत के बारे में बता दिया। शिवचरन ने कहा,
"सर मुझे तो लगता है कि सूरज ने ही चेतन की हत्या की है। उसने चेतन की पिटाई की होगी। वह पुलिस स्टेशन आ रहा होगा। सूरज ने उसकी हत्या कर दी। बाद में यह सब कहानी बना दी। गुनाह पकड़ा ना जाए इसलिए अपने ढाबे के सीसीटीवी कैमरे को खराब कर दिया।"
"नहीं शिवचरन.... उसने चेतन की पिटाई की होगी। लेकिन हत्या नहीं की है। हत्या का तरीका पुष्कर की हत्या से मिलता जुलता है।"
"सर यह भी हो सकता है कि पुलिस को गुमराह करने के लिए उसी तरह से हत्या की हो।"
इंस्पेक्टर हरीश ने शिवचरन की बात पर गौर किया। उसने कहा,
"यह तभी संभव था जब उसने पहले से प्लान किया होता। अगर उसने प्लान किया होता तो चेतन को कहीं और ले जाकर मारता। उसने हत्या नहीं की है। पर एक बात है। पुष्कर की हत्या से संबंधित कुछ ऐसा है जो चेतन को पता था और वह हमें बताना चाहता था। सूरज नहीं चाहता था कि बात हम तक पहुँचे।"
"सर फिर उसे थाने में रोककर अच्छी तरह से पूछताछ करनी चाहिए थी। वह बता देता।"
"अभी हमारे पास उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था शिवचरन। पर हम लोग उसे ऐसे ही नहीं छोड़ेंगे। ऐसा करो तुम सब इंस्पेक्टर कमाल के साथ सूरज के ढाबे में काम करने वाले दूसरे लोगों से मिलो। इसके अलावा ढाबे से थाने के बीच अगर कोई सीसीटीवी कैमरा हो तो उसकी फुटेज निकलवाओ।"
इंस्पेक्टर हरीश ने सब इंस्पेक्टर कमाल को बुलाया। उससे कहा कि वह शिवचरन के साथ सूरज के ढाबे पर जाए और वहाँ काम करने वालों से चेतन के बारे में पूछताछ करे। साथ में थाने और ढाबे के बीच पड़ने वाले सीसीटीवी की उस रात दस बजे के बाद की फुटेज लाने को कहा। सब इंस्पेक्टर कमाल और शिवचरन ढाबे के लिए निकल गया।
ढाबे और पुलिस स्टेशन के बीच का रास्ता एकदम सीधा था। सब इंस्पेक्टर कमाल रास्ते में पड़ने वाले सीसीटीवी कैमरे पर ध्यान दे रहा था। हत्या वाली जगह से कोई दो सौ मीटर पहले एक गोदाम था। उसके गेट पर सीसीटीवी कैमरा लगा था।‌ सब इंस्पेक्टर कमाल और शिवचरन पहले सीसीटीवी कैमरे की फुटेज चेक करने के लिए रुक गए।
सब इंस्पेक्टर कमाल बड़े ध्यान से रात दस बजे के बाद की सीसीटीवी फुटेज देख रहा था। उस रात घना कोहरा था। फुटेज बहुत साफ नहीं थी। बारह बजकर सत्ताइस मिनट पर सब इंस्पेक्टर कमाल को एक आदमी गोदाम के सामने से सड़क पर गुज़रते हुए दिखाई पड़ा। सब इंस्पेक्टर कमाल ने शिवचरन को दिखाया। उसने ध्यान से देखा। तस्वीर साफ नहीं थी पर उसे यकीन था कि वह चेतन ही है।
चेतन के गुज़रने के आठ मिनट बाद एक मोटरसाइकिल गोदाम के सामने से गुज़री।