Jahan Chah Ho Raah Mil Hi Jaati Hai - Part - 6 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 6

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जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 6

हीरा लाल से उस खंडहर जैसी इमारत का काला सच जानने के बाद नीलू ने कहा, "अंकल फिर हमें क्या करना चाहिए अब इन लड़कियों को बचाने के लिए?"

"बेटा जो काम को चला रहा है, मैं तुम्हें उसका नाम बताना चाहता हूँ लेकिन उसके लिए तुम्हें अपने मन मस्तिष्क को शांत रखना होगा।"

"हाँ अंकल कौन है वह? आप मुझ से ऐसा क्यों कह रहे हैं लेकिन इतना तो तय है अंकल कि वह चाहे जो भी हो मैं डरूंगी नहीं। हर हालत में मैं आपका साथ दूंगी।"

इतना कह कर नीलू उस नाम को सुनने का इंतज़ार करने लगी। हीरा लाल समझ नहीं पा रहे थे कि वह किस तरह नीलू को उसके ही पिता का नाम बताएँ।

तभी अचानक नीलू ने हीरा लाल से पूछ लिया, "बताइए ना अंकल आप चुप क्यों हैं?"

"ठीक है बेटा, वह इंसान और कोई नहीं तुम्हारे पिता शक्ति सिंह ही हैं।"

"क्या… ये क्या कह रहे हैं अंकल आप? ऐसा नहीं हो सकता अंकल, आपको ज़रुर कोई गलतफहमी हुई है। मेरे पापा कभी भी ऐसा काम नहीं कर सकते। यह झूठ है अंकल, मेरे पापा ने मुझे इतने अच्छे संस्कार दिए हैं वह ऐसा काम क्यों करेंगे?"

नीलू की आँखों में विश्वास के साथ डर का सैलाब उमड़ रहा था। वह चिंतित हो रही थी, उसे अपने पिता पर अगर विश्वास था तो सेठ हीरा लाल के कथन पर शक होना भी मुश्किल-सा लग रहा था।

तभी हीरा लाल ने उससे कहा, “बेटा यही सच है। वह उसके पिता से मिलकर इस विषय में बात कर चुके हैं और शक्ति सिंह ने साफ-साफ इनकार कर दिया है।”

नीलू की आँखों से टप-टप आँसू गिर रहे थे, उसे हीरा लाल की आँखों में सच्चाई और दर्द दिखाई दे रहा था। फिर भी नीलू अपने को रोक न पाई और पूछ ही लिया, "अंकल क्या यह सचमुच ही सच्चाई है?"

"हाँ बेटा, मैं तुमसे झूठ क्यों बोलूँगा? बेटा अब हमें मिलकर इस मसले को हल करना है, उन लड़कियों को बचाना है। तुम्हारे पिता को भी इस पाप के दलदल से निकालना है। शहर की और लड़कियों को इस माहौल से दूर रखना है, बस हमें यह सोचना है कि यह कैसे होगा।"

"अंकल आप ने कुछ सोचा है क्या? मैं हर हाल में इस काम में, आपकी, इस समाज की तथा अपने पिता की मदद करना चाहती हूँ।"

"हाँ बेटा, मैं चाहता हूँ तुम अपने पिता को समझाओ। मेरे समझाने से तो वह नहीं माने, शायद तुम्हारी बात मान जाएँ।"

"ठीक है अंकल, मुझे सोचने के लिए कल तक का समय दीजिए।"

नीलू के सर पर प्यार से हाथ रखकर हीरा लाल ने उसे सांत्वना दी और कहा, "बेटा सब ठीक हो जाएगा, आपके पिता ग़लत राह पर चल रहे हैं और अब एक बेटी का फर्ज़ है कि अपने भटके पिता को सही राह पर लेकर आए।"

नीलू भारी पैरों से चल कर अपने घर की तरफ़ आ गई, उसके दिमाग़ में ना जाने कितने सवाल आ रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह अपने पिता से प्यार करे या नफ़रत। वह शाम होने के पहले अपने घर पहुँच गई, बुझी-बुझी-सी नीलू अपने कमरे में जाकर पलंग पर मानो गिर ही पड़ी और वह फूट-फूट कर रोने लगी। कमरे का दरवाज़ा बंद कर रखा था, कुछ देर में उसकी माँ ने उसे खाने पर बुलाया। वह गई ज़रूर किंतु कुछ खा ना पाई।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः