समीक्षा
हांडी भरी यातना
राजनारायण बोहरे
‘हांडी भरी यातना’ डॉ . शोभनाथ शुक्ला का कहानी संग्रह है जिसमें उनकी आठ कहानियां शामिल है ।यह समस्त कहानियां अपने लिखे जाने के दिनों में हिंदी की चर्चित पत्रिका बहुवचन, सोच विचार, कथाक्रम, परिकथा, पाखी, हिंदी चेतना आदि में यथा समय प्रकाशित होकर काफी चर्चित रही है। शोभनाथ शुक्ला आठवें दशक से लेखन आरंभ करने वाले ऐसे मस्त मौला कहानीकार हैं जिन्होंने संग्रह के प्रकाशन में कभी हड़बड़ी नहीं की इसलिए उनके अपेक्षाकृत कम संग्रह आए हैं ।
इस संग्रह की अधिकांश कहानियां लंबी कहानियां है, क्योंकि शोभनाथ जी अपनी बात बहुत तसल्ली के साथ कहते हैं और उनके चरित्र अपने संवाद बड़े धीरज और तल्लीनता से व्यक्त करते हैं। दृश्य निर्माण के साथ-साथ मूल मुद्दे की तरफ कहानी को ले जाने की कला में शोभनाथ जी माहिर है ।यह कला उनकी पत्रिका कथा समवेत के संपादन के सिलसिले में प्राप्त असंख्य कहानियों के अध्ययन के बाद प्राप्त हुई अथवा उन्होंने अपने परिश्रम से अर्जित की है,इस मुद्दे विचार करने पर हम पाते हैं कि ‘दूसरे की कहानी पढ़ते समय कोई लेखक अपना मुहावरा विकसित नहीं कर पाता, लेखक अपनी सर्जना के लिए निजी मुहावरे को विकसित करने के सिलसिले में तभी कोई उपलब्धि प्राप्त कर पाता है , जब वह अपनी रचना में डूब के बार बार लिखता है’, तो सिद्ध होता है कि शुक्ल जी की मेहनत साफ झलकती है।
हांडी भरी यातना
इस संग्रह की शीर्षक कहानी ‘हांडी भरी यातना’ पिता और पुत्र की कहानी है। पिता रमाकांत के तीन पुत्र हैं - राहुल कांत, जो डिग्री कॉलेज में लिपिक हैं। देवकांत, जो कानपुर की एक फैक्ट्री में प्राइवेट नौकरी करते हैं और तीसरा राधाकांत है जो पढ़ा लिखा है पर पिता ने उसे घर में ही रोक लिया है, वह खेती देखता है। रमाकांत उसी के पास रहते हैं। बड़े दोनों बेटे और बहू आधुनिक दुनिया से जुड़े हैं, नौकरी की दुनिया से जुड़े हैं, भौतिक दुनिया से जुड़े हैं ! इसलिए उन्हें रिश्तो-संबंधों और खेती-किसानी की चीजों से कोई मोह नहीं है ।वे अपने हक और अधिकार पर ज्यादा ध्यान देते हैं,इसलिए बंटवारा चाहते हैं । रमाकान्त के बेटों में घर की जमीन व खेती का आपसी बंटवारा बड़े झगड़े के बाद होता है । राधाकांत जो कृषक है वह अपने हिस्से में आई जमीन पर पूरी मेहनत से खेती करता है और बढिया फसल लेकर अच्छी स्थिति में रहता है। जबकि उतने ही क्षेत्रफल की जमीन पर खेती कराने के अलावा नौकरी भी करने वाले दोनों बड़े भाई उतने सरसब्ज़ नहीं रहते और अपनी पत्नियों के कहने पर पिता से बार-बार पूछते हैं कि जमीन के अलावा घर का सोना चांदी कहां रखा है? क्या आपने सारा सोना चांदी राधाकांत को दे दिया है? तो पिता रमाकांत कहते हैं कि’ नहीं है,इस घर में कोई सोना चांदी नहीं है। पिता द्वारा जब-जब ऐसा जवाब दिया जाता है, तो दोनों भाई यह मानते हैं कि पिता बने बरगला रहे हैं और अंततः पिता को यातना देकर सच उगलवाने के लिए दोनों मिलकर ऐसा कदम उठाते हैं कि सारा गांव उनसे नफरत करने लगता है और गांव ही नहीं पाठक भी ऐसे बेटों की हरकत पर थू थू ही करता है। राहुल कांत और देवकांत एक हंडिया में सुलगते हुए उपले भरकर ढेर सारे लोबान का चूर्ण बुरक कर ले आते हैं और पिता को बलपूर्वक खटिया पर ओंधा लिटा देते हैं । खटिया के नीचे रखी हंडिया में से निकलते धुंए से उनका डीएम घुटने लगता है जबकि पिता की गरदन पर दबाब देते हुए दोनों बेटे उनसे बार-बार पूछते हैं कि ‘बताओ कहां है सोना चांदी ?बताओ कितना है सोना चांदी ?’ आखिर खेत पर गये राधाकांत को इस थर्ड डिग्री प्रक्रिया की खबर लगती है तो वह आकर पिता को बचाने का प्रयास करता है और जब दोनों भाई नहीं समझते हैं तो वह गांव वालों को टेर लगा कर बुलाता है ।फिर गांव वालों के आने के बाद उन सबके दबाब में दोनों भाई वहां से हट जाते हैं। शिल्प के नजरिये से यह कहानी बेटों के हट जाने के बाद ही शुरू हुई है। फ्लैशबैक सिस्टम से लिखी इस कहानी में सारा विवरण रमाकांत की स्मृति में शोभनाथ की अधिकांश कहानियां फ्लैशबैक को साधना बड़ा कठिन काम है, जिसमें शुक्ल जी माहिर है।
इस कहानी में रमाकांत और उनके बेटे राधाकांत, राहुलकांत और देवकांत तथा राधाकांत की पत्नी प्रमुख पात्रों में हैं । कहानी की शुरुआत में काका रामदेव उपस्थित होते हैं जो रमाकांत मिश्र के बेटों को गालियां दे रहे हैं और वही कहानी की पूर्व पीठिका सजाते हैं । रमाकांत जहां मन ही मन घुटते रहते हैं, वहीं काका रामदेव स्पष्ट वादी हैं, लेकिन राहुल कांत और देवकांत ऐसे कमजोर क्षेत्र के व्यक्ति हैं, जो पत्नियों के बहकावे में अपने पिता के प्रति निर्ममता बरतने में कोताही नहीं करते। ऐसे दुष्ट चरित्र समाज में यहां-वहां प्रायः देखने को मिल जाते हैं। इस तरह इस कहानी के सभी चरित्र विश्वसनीय चरित्र हैं।
इस कहानी में कहावतों और मुहावरों का बहुत ही सही व सजग उपयोग हुआ है। इसी कारण अनायास ही यह कहानी भाषाई नजरिये से बहुत प्रभावशाली रूप में सामने आती है- धन भी कूट रहे हैं ककरी भी डांट रहे हैं, सूअर की औलाद, नाक ना हो तो कुमोत सब खाते हो, रिश्ते पर ही ठोक दिया, बिच्छू की औलाद, जन्म से ही काल लील गया, जैसी कहावतें न केवल भाषाई ताकत को प्रकट करती हैं बल्कि कथ्य के अनुकूल भी है। यद्यपि इस कहानी की मूल संवेदना रमाकांत की पीड़ा है, फिर भी रमाकांत के विवाह के बाद की पहली रात का वर्णन कहानी के अनुकूल नहीं लगता है ।
पीक
संग्रह की एक कहानी ‘पीक’ भारतीय गांवों में चुनाव के दिनों में बढ़ते आपसी झगड़े रंजिश षड्यंत्र और नेताओं की कहानी । गांव में चुनाव आ गए हैं ।सदा की तरह बाबू साहब फिर से ग्राम प्रधान के लिए ताल ठोक रहे हैं। उनके मुकाबले पर जनप्रिय कार्यकर्ता जगेसर भाई खड़े हो रहे हैं विनाशक प्रचार के ही उनको समर्थन मिलता चला जा रहा है, शराब मुर्गा पैसा साड़ी बिछड़ी चूड़ी मरने के बाद भी बाबू साहब के पक्ष में मामला नहीं संभल रहा है। अचानक गांव वाले सुनते हैं कि स्कूल से लौटते बाबू साहब के को शेर किशोर बेटे पर किसी ने गोली चला दी है ,पूरी दीवार पर लगी और कुछ अरे बच्चे के पांव में लग गए। गांव में सन्नाटा व्याप्त हो गया। सब मिलने आए जगेसर भी आए, जिनसे बाबू साहब कहते हैं कि गांव भर के आशीर्वाद से हमारा जवान बेटा बच गया चुनाव ना हो तो बात कीजिए। पुलिस का डिप्टी सुपरडेंट भी आता है तो बाबू साहब एक सामान्य आवेदन देकर उससे सुरक्षा मांगते हैं। उधर पुलिस इस घटना के जांच के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है। ऐसे माहौल में चुनाव संपन्न होते हैं और बाबू साहब जी चाहते हैं। पत्रकार वार्ता करते बाबू साहब भीतर ही भीतर मुस्कुरा रहे हैं, बे मुंह में हाय तंबाकू की एक बड़ी सी पी पंचायत बनके दीवार पर थूक देते हैं अजीब सा निशान बनाते हुए नीचे बहने लगती है। पाठक को लगता है कि लोकतंत्र की गई है की गई है, लोकतंत्र के मुंह पर तू की गई है ,हम बताता को वोट ना डालते आने की वंदना और पंचायत चुनाव के छल क्षेत्र साजिश और चारों को बताती यह कहानी बड़ी सशक्त कहानी है।
इस कहानी में बाबू साहब जागेश्वर और बुरा भौजी तीन चरित्र उभर कर आते हैंv नुगरा भौजी पति भी स्त्री है जो जुबान की कड़क है, बे पंचायत की वार्ड मेंबर के लिए प्रत्याशी चुनी गई हैं। बाबू साहब ने भीतर ही भीतर समर्थन देते हैं । जगेसर सीधा-साधा कर्मठ कार्यकर्ता है, जनसेवक है। लेकिन बाबू साहब एक घाग नेता है, जो हर तरह का षड्यंत्र और साजिश कर देने में सक्षम है ।इस कहानी में आंचलिक भाषा का वैभव पूरी ताकत के साथ आता है। आंचलिक होने के बाद भी इस भाषा को लेखक ने बहुत सरल अंदाज में लिखा है और उन्होंने भी सदस्य हैं ,जो हिंदी की शब्दावली से मेल खाते हैं। इसके संवाद बड़े जबरदस्त है ,देखिए “डीएसपी साहब बाकी जान तब बच गए मुला खतरा टला नाही बाटे हमका लागत बाय की हमहू निशाने पर आई बाटी ही चुनाव में कुछ लोग अराजकता पर उतर आए हैं !"( पेज 89 )
आया ऊंट पहाड़ के नीचे’
‘आया ऊंट पहाड़ के नीचे’ 29 पेज की लंबी कहानी है । कहावत को कहानी का शीर्षक बनाकर शुक्ल जी ने फिर गांव की राजनीति सरकारी और निजी स्कूलों की दुर्दशा इत्यादि को लेकर एक सशक्त कहानी लिखी है ।मास्टर आए भोजी गांव के स्कूल में अनुकंपा नियुक्त अध्यापिका है ,पर वे कभी पढ़ाने नहीं जाती, जो भी उन्हें नियमित करने की सोचता है वे अपने दम पर और अपने जेठ लक्ष्मण तिवारी की चालों के दम पर अपने हेड मास्टर को परेशान करती है ।उनके स्कूल में अचानक ही सरोजिनी बाला नाम की निडर प्राचार्य आती है ,जो मास्टर के नाम के आगे कट लगा देती है। उन्हें लेटर भी जारी किया जाता है। इस बात से परेशान मास्टर हम अपनी इज्जत लक्ष्मण तिवारी से कहती हैं , लक्ष्मण तिवारी ब्लॉक शिक्षा अधिकारी सहित स्कूली विभाग के तमाम कार्यालयों में शिकायत हम आशा करते हैं । एक निजी स्कूल में अध्यापक हैं, बड़े चतुर दलाल हैं, रखने वाले व्यक्ति हैं और स्कूल के लिए लाभदायक नकल कराने की माहिती। जो भी उनकी बात नहीं मानता उसके नाम अलार्म शिकायत कराते हैं और जब शिकायत का आरोपी उनकी शरण में आता है तो उसे रफा-दफा कराने में उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना चाहते हैं ।सरोजिनी बाला 1 मीटर प्राचार्य है लिखा पढ़ी और प्रशासन में बहुत होशियार है, उसे पुराने प्राचार्य की दुर्दशा का पता है ,इसलिए बाय बहुत संभलकर मास्टर एंड भोजी के मामले में पत्रकार करती है ।एक दिन वह सोते समय मास्टर आए अपनी प्राचार्य पर हाथ उठा देती है ,तो प्राचार्य सरोजिनी बाला तुरंती थाने में रिपोर्ट दर्ज कराती है ।लक्ष्मण तिवारी के तमाम प्रयास निरर्थक होते हैं ।की सरोजिनी बाला उस स्कूल के प्रबंध कारिणी के प्रमुख व्यक्ति को ब्लॉक होकर चुनाव लड़ने हेतु प्रोत्साहित करती है जिसमें लक्ष्मण तिवारी अध्यापक है, अब स्कूल मालिक के चुनाव लड़ने की घोषणा कर देने के बाद लक्ष्मण तिवारी हतप्रभ हैं, वे विरोध में जाते हैं तो नौकरी होना पड़ेगा और अगर चुप रहते हैं तो अपना भी प्रभाव खत्म होगा, और मास्टर जी का भी असर कम होगा। वे निराश से घर लौटते हैं तो देखते हैं कि उनके घर पुलिस बैठी हुई है जो सरोजिनी बाला द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट के सिलसिले में गिरफ्तार करने के लिए मास्टर एंड भौजी का इंतजार कर रही है। अंत में मास्टर जी को पुलिस ले जाती है और लक्ष्मण तिवारी हर तरफ से घर में खड़े-खड़े बेहोश होकर जाते हैं।
इस कहानी के प्रमुख पात्र लक्ष्मण तिवारी, सरोजिनी वाला, मास्टरमाइंड खोज की स्कूल का बदतमीज जून रामजस और स्कूल के संचालक हैं तथा प्रधानाचार्य भी राधे-राधे भी हैं, जिन्हें मास्टरमाइंड ने गलत आरोप लगाकर जेल में बंद कराया था।
इस कहानी की भाषा परिनिष्ठित हिंदी है। कहानी में स्कूल की कार्यवाही या प्रक्रिया छल क्षेत्र चाल वादियां नकल की सुविधाएं आदि को बहुत ही सहज तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जो ना तो जटिल हुई हैं और ना ही उनमें पाठक की दिलचस्पी कम होती है ।
इस कहानी मैं संवाद बहुत सहज और प्रभावशाली एक संवाद देखिए, "चापलूसी नाकारा लोगों से भरा है दालान धर्म जाति की जड़ों में खाद डाला जा रहा है बालों की खजूरी बज रही है!( पृष्ठ 57)
शोभनाथ जी ने इस कहानी की भाषा में स्थान स्थान पर हास्य बोध भी उत्पन्न किया है एक अनुज देखिए "वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों में शिक्षा के क्षेत्र में इतना अधिक योगदान किया है कि गांव खेड़ा में खेती किसानी करते बाल बच्चे पैदा करते पंचायत चुनाव लड़ते लड़की लड़कियां बुजुर्ग महिला पुरुष सब बीए की उपाधि बतौर बोनस बात कर लेते हैं !"(पृष्ठ 54)
इस कहानी में भी जरूरत अनुसार अनेक मुहावरे आए हैं, जिनमें अकेला चना नब्ज पकड़ने की कला(53) करेला नीम चढ़ा (5 पर प्रयोग किए गए हैं जो बड़े सहज योग से आए । अनुजवधु के लिए एक नया शब्द भएहू इस कहानी में । यह कहानी संग्रह की सबसे लंबी कहानी है इसका उपन्यास विस्तार है। कहानी को पढ़ते समय जगह-जगह है। यह कहानी राग दरबारी की परंपरा की नई कहानी प्रतीत होती है तो स्कूल के वर्णन में हरे प्रकाश उपाध्याय के उपन्यास ‘बखेड़ा पुर ‘ की याद दिलाती है लेखक ने किया है।
ना मरने का जादू
इस कहानी संग्रह की एक कहानी ना मरने का जादू यथार्थवादी शेख चिल्ली की कहानी ।इस कहानी में रामबरन को तेज आते पूरे शरीर में कमजोरी बहुत थी तो मोहल्ले वालों ने पहले प्राइवेट डॉक्टर बाद में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जिला अस्पताल कराया ,सब भक्तों ने कहा शरीर तो स्वस्थ है, पर इनके मन पर कोई चोट है। विवाहिता को देखने बेटी सुधा भी आती है, शिवा भी करती है, फिर ना ना करते हुए भी पत्नी अपने बेटे बलरामपुर बल्लू एग्जीक्यूटिव इंजीनियर है ।बेटा आ भी जाता है ,लेकिन पा से लिखवाने के वास्ते वसीयत के कागज में लाता है जिसमें बेटे के नाम संपत्ति लिख देना दीवारों की। मां से बेटा कहता है कि ताजी के दस्तखत करवा दो या उठा लगवा दो और पिताजी आपको सब कुछ दे दोगे। मां वसीयत लिखने पर सहमत नहीं है, बहन सुधा से भी भाई झगड़ा कर लेता है, पिता की हालत शुद्ध की जा रही है। बेटा गुस्सा है कि हर बार में छुट्टी लेकर आता है लेकिन पिता ठीक हो जाते हैं ।सब के सब कहते हैं कि पिता के वाहनों से बलराम छुट्टी लेता है। प्रियंका से पत्नी बनी अंजलि भी यही कहती है। इस बार बल्लू वसीयत कराने पर आमादा है ।कहां विदाउट भी ना पा रहे थे और कमजोर होते जा रहे थे ।तो बल्लू यह समझ कर आया था कि। अब सबको चौका से हुए चौक आते हुए पिता उठते हैं बल्लू से वसीयत के कागज लेते हैं और नेपाल कर फेंक देते हैं। अपने हाथ में लगी गलियां को सेट कर दे अपने पलंग से उत्तर घर को चल पड़ा ।सब लोग और साथ ही मरीज उन्हें चौंका चौक ते हुए देखते हैं। दरअसल एक बार पता कर दो जमा कराने की याद दिलाने शहर गए थे जो बहू ने बेटे को कि आपकी एजुकेशन के लिए वह जमा करने की जवाबदारी पिताजी की है, यह तो बारगेनिंग हो गई तो 4002 पूरा करिश्मा मत करना। पिता ने यह बात यही बात उनके मन पर छोड़ कर गई थी, जिसके कारण बेबी मार्केट
कक्षा के चरित्र रामबरन बीमार है। आए हैं, बिस्तर पर लेटे हैं, प्रेम विवाह करने और एजुकेशन लोन लौट आने की दे देते सेना। अंत में जादुई यथार्थवाद पद्धति में असहाय लेता यह चरित्र चमत्कारी ढंग से है बेटे पर गुस्सा होता है और घर के लिए चल पड़ता है। इस कहानी का दूसरा बलराम आज के स्वार्थी प्रो का प्रतिनिधि चरित्र है जिस को पढ़ाने के लिए पिता ने ऋण लिया पर जॉब मिल जाने के बाद बेटे ने ना तो छुपाया और ना ही पिता की याद दिलाने पर कोई आपत्ति जी, उसने ताकि मर्जी के खिलाफ प्रेम विवाह किया , पिता के बीमा बहुत यह सोच कर आता है कि अबे मर ही जाएंगे उनके ना मरने पर बहुत गुस्सा है, यदि खिलाया है ताकि बहन को संपत्ति ना मिले, चाहे वह कहानी के टीचर असहाय और कमजोर चाहे, बलमा हो या बाहर कंपनी में दफ्तरों का माहौल ,अस्पताल का वातावरण, झोलाछाप डॉक्टर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल का वातावरण तथा रिया का विस्तृत चित्रण है ।
इस कहानी के संवाद आंचलिक एक अंश देखिए ‘हरे बहाने घोड़ा तड़पता हुआ अभी तक तुम्हारे दिन भर के घूम के या बहुरिया मुंह का कल रहता है करेगा ना करेगा पसेरी पर हाय के खटिया तोड़ रहे दिन भर (95 )
केशव परसों इस कहानी में बोलचाल के शब्द मैं देहाती पर किया कहें तद्भव शब्द लाजवाब परभणी हुआ गिनती । डॉक्टर गवर्नर अंग्रेजी के एचसी शॉप केयर कोमा बॉस सीरियल ला जिस पर प्लान प्लान रिवर रिक्वेस्ट बारगेनिंग 19 इग्नोर एग्जीक्यूटिव इंजीनियर वगैरह शब्द आए हैं ।
शनिचरी सायरा बानो और सजा’
इस इस कहानी संग्रह की एक चर्चित कहानी ‘शनिचरी सायरा बानो और सजा’ तो पूछती है, जिसमें राम सजीवन रोहित नाम का शोधार्थी अपने जनपद के ग्रामीण अंचलों के समाजशास्त्रीय अध्ययन के क्रम में विभिन्न जातियों का देश के आर्थिक विकास में योगदान विषय पर शोध कार्य और अध्ययन करने के लिए दी है। छतरपुर गांव जाते हैं उन्हें वहां अग्रवाल नामक एक ऐसा व्यक्ति मिलता है जिसके पास राशन कार्ड खोजें पर उसमें अलग नामों से उसके घर के लोगों के नाम हैं। उसकी किशोरी बेटी शनिचरी अपने मौसा जी के पास शहर में रहकर इन्हीं बाबू साहब के यहां चौका बर्तन करती है। राम सजीवन लौटते हैं तो किसी किशोरी की चिंता में पड़ जाते हैं की राशन कार्ड पर राशन नहीं मिलता, इसलिए बच्ची पड़ती नहीं, झाड़ू बर्तन करने की मशीन की है, यह बात सुन सकती है फर्जी है, कार की है। कई अखबारों के दफ्तर में जाते हैं लेकिन शनि से संबंधित आलेख सपने की कोई जुगाड़ नहीं होती, तो 1 अकड़ पत्रकार अर्जुन भंडारी के साप्ताहिक अखबार नई बस्ती में अपना आलेख दे देते हैं ।इसके बाद शनिचरी का नाम चर्चा में आ जाता है। से ना किसी ने देखा है और ना किसी के पास उसका फोटो है, शहर के कई अखबार और परसों में शनिचरी का कल्पित फोटो ही छप जाता है। एक दिन हिंदू मुस्लिम और विचारक अलग-अलग नाम लिखकर उस किशोरी की अपने धर्म में वापसी बताने का आयोजन कर डालते हैं। राम सजीवन चकित है कि हिंदू उसे सभी चरी सलमान सायरा बानो और खुशियां सूजापुर कुश्ती क्रिस्चियन तू जा तो किट्टी बताकर धर्म परिवर्तन करने के पंपलेट छपा चुके हैं और आज तो यह कि अचरज तो यह कि तीनों धर्मों के परिवर्तन कार्यक्रम में चीफ गेस्ट राम सजीवन पुरोहित बताए गए हैं । यह कहानी भारत के गुड़गांव के सबसे नीचे वर्ग में रहने वाले सर्वहारा वर्ग की कहानी है ।
रघु, शनिचरी लगभग हर गांव में मिल जाते हैं ,तो तीनों धर्मों के प्रचारक सहित हनी नहीं पाए ।बक्सर अर्जुन भंडारी सहित तमाम हर जगह दिखते हैं इस तरह यह विश्वसनीय सी लगती है।
कंडक्टर रामलाल’
संग्रह की कहानी ‘कंडक्टर रामलाल’ अपने समय की चर्चित कहांनी है। तथा कुछ यूं है कि कंडक्टर वाली बस लखनऊ के लिए तो वह वीरे है। ड्राइवर कभी चाय पीने होता है, कभी तंबाकू ,कभी टिकट काटने या सवारी को चेक करने के लिए कसरत आता है कंडक्टर बस रुकता है। पता लगा है कि कोई चेक करता हुआ है इसलिए बिना टिकट दो सवारी की जानकारी मिलते ही कंडक्टर उतर जाता है ।
कंडक्टर का है m.a. पास युवक है, जिसमें सफाई कर्मचारी से लेकर हर नौकरी के लिए कोशिश की पर नौकरी नहीं मिली संविदा पर कंडक्टर की नौकरी पा गया है। सुकन्या इस कहानी में सवारियों की और बादशाह रबारियों के रूप में बैठे-बैठे प्रोफेसर की वकील युवा नेता किलर रेनू मियां घरेलू महिलाएं और व्यापारी शामिल हैं जिनके अपने अपने चार है। पिक्चर मी 4 कंडक्टर की भाषा सांवली तथा होटल वाले हरी बाबू की भाषा उनके है ।संग्रह मैं पेशाब देशों के हिसाब से चिंतन है।।
संग्रह के बारे में विचार करते हुए डॉक्टर हरे राम पाठक लिखते है -“सचमुच इस संग्रह की पूरी कहानियां यात्रा यात्रा की प्रमुखता है। सभी कहानियां एक पात्र ऐसा जरूर है जो कठोर यात्रा से होकर गुजरता है लेकिन वही यात्रा उसके जीवन को निखारती और समाप्ति हुई है । ऑडियो प्रिया कुमार का रमाकांत डॉ रामलाल मनी में रामलाल, शनिचरी सायरा बानो शनिचरी, गंगा पानी में नरेश चंदवानी और विनय भैया, मानसिक यातना की सीमा से गुजर रहे हो इसे देख यही लगता है इन सारी यातना की अंतर धारा समान रूप से प्रभावित है।“