Guldasta - 5 in Hindi Poems by Madhavi Marathe books and stories PDF | गुलदस्ता - 5

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गुलदस्ता - 5

 २४

जस्मिन के लता मंडप में

कितने फुल गिर गए

धरती पर गिरे बारिश पर

सजकर बैठ निखर रहे

पंख फडफडाते गुनगूनाते

चिडियाँ आती जाती

जस्मिन की खुशबू भरे पानी में

नहाकर उड़ जाती

हरे पत्तों के पिछे से जस्मिन के फूल

सफेद चाँदनियों जैसे चमकते है

कलियों का अंबर, अपना घुंघट सरकाते है

बिदाई लेकर कलियों के

फुल धरती पर गिर जाते है

कल अपना यही हाल होगा

कलियाँ यह जान लेती है

अधखिली पंखुडियाँ, धीरे से खोलते,

फूल खिलखिलाता है

खुद की सुगंध भरी जिंदगी में

आप ही खो जाता है

आसमान में खिले सितारे

नीचे जस्मिन के फूल

जैसे आकाश उतरा आँगन में

चाँदनीयों के बन गये फूल

...........................

२५

पारिजात के फूलों का

डंठल केसरिया रंग का

उन पर चढता है साज

मन्द पीला सफेद्सा

भोर के समय

ह्लकेसे खिल जाते है,

लुभाते मन्द गन्ध से

भवताल सुगंधित होता है

कुछ पल जीवन उसका,

डाली से फूल गिरते है

सुगंधी याद रख मन में

मिट्टी में घुल जाते है

.....................

२६

उन्मुक्तता से नीला अंबर देखकर

आसमान मे पंछी उडते है,

हलके से नीचे आकर

डालियों पर झुलने लगते है

पंछी बच्चों के पंख, नाजुक कोमल

आँखों में तो आसमान है और

उडान भरने को मचले दिल,

किलबिलाहट से पुकारते है

दूर दराज के नजारे  

डालियाँ पकडे हुए पैर ने

वही मन की उडान से गुजरे

नीले आसमान में

पर एक दिन आता है

पंख उडान भरने के लिए तयार

फिर क्या है बुलंदी उनकी

आसमान छुने के लिए बेकरार

अब आसमान उनका आँगन है

और डालियों पर मकान

उडते उडते थककर लौटे

सबका जीवन एकसमान

...........................

२७

धीरे धीरे बहती हवाँ

पत्तों को गुदगुदाने लगी

डालियों से लिपटकर

पेडों को रिझाने लगी

ठंडी हवाँ के झोकों से

पेड के अंग रोमांच उठे

पत्ते डालियाँ लगे झुमने

नाद आसमाँ में उठे

पंछी झुलने लगे मजे में

फुलों के गुलदस्ते से मधुरस ठिबकाए

मिट्टी की भीनी स्पर्श से

पेडों की जडों मे तृप्तता आए

हवाँ के संग संग

उस पेड का जीवनगान हुआ

मधुर मिलन का संदेश पाकर

आसमान नीले से लाल हुआ   

.. ...........................

२८

कितना अनोखा रास्ता है

संग संग चलनेवाले

मृत्यू का

बार बार जन्म मरण पाकर भी

अनजान है वह क्षण

मृत्यू का

कभी कभी लगता है ऐसे

मानव के मन में बैठा है डर

मृत्यू का

इसलिये जानकर भी है,

अनजान बन बैठा, वह पल

मृत्यू का

जब आएगा समीप तब पहचानेंगे,

अभी तो अजनबी है क्षण

मृत्यू का

.. ........................... 

२९

विचारों में जब एकसमान

खयाल आने लगते है

तो समझ लेना चाहिए

आप एक ही स्थिति से गुजर रहे है

जब अनुभवों में विविधता होगी

तो खयालों का चलना भी

अलग अलग दिशाओं से होगा

ऐसे में जीवन इंद्रधनुषी

रंगों में जीना सीख जाएगा 

.. .........................

३०

शब्दों की जाल से अब मैं

बाहर उडती चली जा रही हूँ

कितना सुकून महसुस हो रहा है,

वैसे तो शब्द भावनाओं का रूप होते है

और भावना शब्दों के प्रतिबिंब

जैसा भावना का स्वरूप वैसे शब्दों में

कोमलता या कठोरता दिखाई देती है

लेकिन जहाँ भावनाओं को दबाया जाता है

वहाँ शब्द भी जम जाते है, दबा हुआ स्त्रोत

एक दिन ज्वालामुखी बन के फट जाता है

रौद्ररूप धारण कर के शब्दों का महासागर,

प्रलय आता है, कभी जीवन के तप्त

ज्वालामुखी के लाव्हारस में

जलाकर भस्म कर देता है, या

महासागर के प्रलय में

बहा कर डूब जाता है

ऐसे तूफान के बाद, पिछे

रह जाती है एक सुनसान खामोशी

दर्दभरे वेदनओं के अंश,

कालांतरण के बाद फिर भावनाओं का

संभलकर चलना शुरु हो जाता है

ऐसे मंथन के बाद भावना शांत होती रहती है

और शब्द गंभीर रूप से निकलने लगते है

इसी को कहते है जीवन का

अनुभव आना, फिर जीवन में आती है

ईश्वरानुभती की अगम्य शांती जो सिर्फ

वही समझ सकता है, जिसने भावनाओं के

सब खेल, खेले है और उनकी व्यर्थता को जाना है  

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