Prem Ratan Dhan Payo - 46 in Hindi Fiction Stories by Anjali Jha books and stories PDF | Prem Ratan Dhan Payo - 46

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Prem Ratan Dhan Payo - 46






आज कुंदन का जन्मदिन था । हवेली के अंदर कोई शोर शराबा न हो इसलिए पार्टी हवेली के पिछले हिस्से में रखी गयी थी । रागिनी और उसके साथ नाचने गाने वाली लड़कियों का ग्रू्प आया हुआ था । सब लोग शराब के साथ उनका डांस देखने के लिए उत्तेजित थे । गायत्री को तो इस वक्त भी कोई राहत नही मिली थी । कभी उनके लिए पानी लेकर जाओ , तो कभी उनके आगे शराब परोसकर आओ । न चाहते हुए भी उसे ये सब काम करना पड रहा था ।

कुंदन और गिरिराज सामने सोफे पर बैठे हुए थे । दोनों के ही हाथों में शराब से भरा गिलास था । वही रागिनी और बाकी सब तैयार खडी थी । गाना भी बजने लगा और उसकी ताल पर सबने थिरकना शुरू किया । ......

पिला दे साक़ी मिला के हमको

शराब आधी गुलाब आधा

मिलेगा रोज़-ए-हशर तुझे भी

अज़ाब आधा सबाब आधा

( रागिनी आधे चेहरे को दुपट्टे से ढककर बीच में खडी थी और उसके साथ चार से पांच लडकिया उनके इर्द गिर्द घेरा बनाकर खडी थी । सब नृत्य की मुद्रा में थी । सबसे हटकर बात ये थी की रागिनी के साथ आज एक नयी लडकी भी आई हुई थी , जिसे देखकर साफ पता चल रहा था की पहली बार वो इस तरह कही महफ़िल सजाने गयी हो । )

{मारा ठुमका बदल गई चाल मितवा

देखो-देखो रे हमरा कमाल मितवा

मारा ठुमका बदल गई… }2

( रागिनी उस लडकी के इर्द गिर्द घूमते हुए बोली " सकीना इस तरह खडे रहने के पैसे नही मिलते हमें । कमर भी मटकाना पडेगा और पैरों को भी थिरकाना पडेगा । ये सब करने से मोच नही आएगी । अगर नही करोगी तो जरूर बल पड जाएगा । छोटे ठाकुर का जन्मदिन हैं कुछ भी गडबड नही होनी चाहिए । जाओ जाकर उन्हें शराब परोसो । " रागिनी ने बात इस तरीके से कही ताकी किसी को पता न चले । सकीना डरते हुए कुंदन के पास चली आई । उसने कापते हाथों से शराब गिलास में उडेली और कुंदन को देने लगी । कुंदन की नज़र उसपर पड़ी तो उसने उसकी कलाई पकड ली । ऐसा होते ही सकीना घबरा गयी । इससे पहले उसके हाथों से गिलास छूटता कुंदन ने दूसरा हाथ बढ़ाकर गिलास थाम लिया । सकीना अपना हाथ छुडाने की कोशिश करने लगी । कुन्दन ने जाम का गिलास उसके होंठों की ओर बढाया , तो उसने अपना चेहरा फेर लिया । उसका आधा चेहरा अभी भी घूंघट से ढका हुआ था जो सिर्फ उसके नाक तक था । कुंदन मुस्कराया और शराब का गिलास अपने होंठों से लगा लिया । उसके हाथों की पकड़ ढीली होते ही सकीना वहां से भाग गयी । )

मैं चिड़ी रे चिड़ी, देख मैं तो उड़ी

अपने बाबुल की हूँ मैं तो अकेली कुड़ी

आशियाना बना ले, मुझे घर में बसा ले

मेरा क्या है मैं जा के मुड़ी ना मुड़ी

मार डालूँगी, ख़ुद को सम्भाल मितवा

देखो-देखो रे हमरा…

( कुंदन गिरिराज से बोला " हमको ई वाली चाहिए भैया । आज रात तो यही हमारे कमरे में जाएगी । "

' शोख से ले जाओ तुम्हरे लिए ही तो मंगवाए हैं । " गिरिराज बेशर्मी से मुस्कुराते हुए बोला ।

रागिनी सकीना के आगे खडी होकर बोली " पागल हैं पूरी की पूरी । ऐसे कोई भागता हैं क्या ? " सकीना सिर झुकाए खडी रही लेकिन कुछ न बोली । रागिनी बाकी लड़कियों के साथ नाचती रही । )

कोई आए भी ना, कोई जाए भी ना

आज से अपना नाटक शुरू हो गया

पहले लैला मरेगी, फिर मजनूँ मरेगा

फिर दोनों को ज़िन्दा किया जाएगा

नीला अम्बर मैं कर दूँगी लाल मितवा

देखो-देखो रे हमरा…

कुंदन काफी शराब पी चुका था । वो उठकर रागिनी के पास चला आया और उसके पास खडी सकीना का हाथ पकड़ लिया । सकीना ने खबराकर रागिनी की ओर देखा । रागिनी मुस्कुराते हुए बोली " जन्मदिन मुबारक हो छोटे ठाकुर । हमको उम्मीद हैं तोहफा पसंद आएगा । "

" पहले देख तो ले तोहफा है कैसा ? ये बोल कुंदन ने सकीना का घूंघट हटा दिया ।‌। गोल मटोल चेहरा , छोटी आखे , चेहरे पर डर औल मासुमियत के भाव । उम्र भी कच्ची थी । मानों बच्ची को सजा धजाकर वहां खडा कर दिया गया हो । कुंदन मुस्कुराते हुए बोला " हमको तो बहुत पसंद आयी । " ये बोल उसने सकीना को अपने कंधे पर उठा लिया । वो रोते हुए उसके पीठ पर मुक्के बरसाने लगी । " नही ... छोड दो मुझे ... नीचे उतारो .... दीदी रोको इन्हें .... सकीना आवाज देती रही लेकिन किसी ने नही सुना ‌‌। कुंदन उसे जबरदस्ती वहां से ले गया । रागिनी ने पलटकर देखा तो गिरिराज सोफे पर बैठा शराब पी रहा था । रागिनी उसके सामने जाकर बैठ गयी । गिरिराज मुस्कुराते हुए बोला " का इरादा हैं तुम्हरा ? "

" कत्ल करने का इरादा है ।‌" रागिनी ने बडी ही नाजुकता से कहा । उसकी इस बात पर गिरिराज हसने लगा ।

वही दूसरी तरफ कुंदन सकीना को अपने रूम में ले आया । सकीना ने रोते हुए न जाने कितने ही मुक्के उसकी पीठ पर बरसा दिए थे । कुंदन ने लाकर उसे बेड पर पटक दिया । " दिमाग खराब हो गया हैं तेरा । बहुत ज्यादा तेरे हाथ पांव चलने लगे हैं । रूक अभी बताता हु । " ये बोल कुंदन दरवाजा बंद करने के लिए बढ गया । सकीना भी घबराकर बिस्तर से उठ खडी हुई । कुंदन दरवाजा बंद कर पीछे की ओर पलटा , तो सकीना ने टेबल पर रखे फ्रूट बाउल से चाकू उठा लिया और कुंदन के तरफ करते हुए बोली " मेरे पास मत आना वरना मैं जान निकाल लूंगी । "

" अच्छा हमरी जान निकालोगी .... आओ निकालो ... ये कहते हुए कुन्दन उसकी ओर बढने लगा । सकीना घबराहट में अपने कदम पीछे लेते हुए बोली " रूक जाओ वही , मेरे पास मत आओ । मैं सचमुच मार दूगी । " सकीना बस घबराहट में अपने कदम पीछे लिए जा रही थी । तभी टेबल से उसका पैर टकराया और वो लड़खड़ाई । उसके हाथ से चाकु छूटकर जमीन पर गिर गया । सकीना उसे उठाने के लिए जैसें ही झुकी कुन्दन ने पैर मारकर उस चाकू को दूर खिसका दिया । उसने सकीना के बाल पकड़कर जबरदस्ती उठाया और बेड पर लाकर पटक दिया । " बस यही खराब आदत हैं तुम सबमे । बस नखरे दिखाती हु । " ये बोलते हुए कुंदन अपने शर्ट के बटन खोल रहा था ।‌ सकीना फिर से भागने लगी , लेकिन इस बार कुन्दन ने उसे दबोच लिया जैसे चीते के मूंह में खरगोश फंस जाता हैं । उसके बाद बचती हैं सिर्फ और सिर्फ चीखे ।

वही दूसरी तरफ गिरिराज शराब के घूंट भरे जा रहा था । रागिनी उसका हाथ रोकते हुए बोली " बस कीजिए ठाकुर साहब अब और कितना पियेंगे । हम पहली बार हवेली में आए हैं ।‌ कम से कम वही दिखा दीजिए । "

गिरिराज उठते हुए बोला " हवेली काहे हम तुमको पहले अपना कमरा दिखाते हैं । "

रागिनी उठते हुए बोली" संभलकर ठाकुर साहब कही आपकी बीवी नाराज न हो जाए । '

" तो हो जाने दो हमको कौन सा घंटा फर्क पडता हैं । तुम आओ हमरे साथ । " ये बोल गिरिराज उसका हाथ पकड अपने साथ ले जाने लगा । वे उसे अपने कमरे में लेकर आया । दरवाजा अंदर से बंद था । गिरिराज ने दरवाजा पीटा तो गायत्री ने आकर दरवाज़ा खोला । गिरिराज के साथ रागिनी को यहां देखकर गायत्री को बहुत गुस्सा आया ।‌‌ आज ये औरत हवेली के साथ साथ उसके कमरे में जो प्रवेश कर चुकी थी ‌‌। गिरिराज उसे साइड करता हुआ रागिनी का हाथ थामें उसे अंदर ले आया । " लो देखो ई हैं हमारा कमरा , कैसा लगा ? "

रागिनी चारो ओर नजरें घुमाकर देखने लगी । कमरा काफी बडा था और साथ की कीमती चीजों से सुसज्जित था । रागिनी मुस्कुराते हुए बोली ' ठाकुर साहब आप भी लाजवाब है और आपका कमरा भी ।‌‌ 'गिरिराज उसके कमर में हाथ डाल अपने करीब खींचकर बोला " फिर तो आज हमको रसमलाई खाने को मिलेगी । " ये कहते हुए गिरिराज उसके चेहरे की ओर झुकने लगा , तो रागिनी उसके सीने पर हाथ रख उसे खुद से दूर करते हुए बोली " ठाकुर साहब इस तरह सबके सामने ....

रागिनी के ये कहते ही गिरिराज का ध्यान गायत्री पर गया जो की दरवाज़े के पास ही खडी थी । गिरिराज के देखते ही उसने सिर झुका लिया । गिरिराज उसे घूरते हुए बोला " अब क्या सारी रात यही खडे रहने का इरादा है । बाहर जाओ ....

गायत्री ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप वही खडी रही । गिरिराज थोडा गुस्से से बोला " सुना नही मैंने क्या कहा ? जा यहां से ....

गायत्री अंदर तक कौंध उठी । सवाल पूछने की क्षमता नही थी उसमें । वो धीमे कदमों के साथ दरवाजे से बाहर चली गई ।

गिरिराज फिर से रागिनी के करीब जाने लगा तो वो रोकते हुए बोली " ठाकुर साहब दरवाजा तो बंद कर लीजिए । " गिरिराज ने उसे छोडा और जाकर दरवाजा बंद किया । दरवाजा बंद करने की आवाज गायत्री के कानों में पड़ी । वो धीमें कदमों से चली जा रही थीं । आंखों से अब आसू भी बहने लगे थे । वो वही पिलर से टिककर खडी हो गयी । इस वक्त अपने मूंह पर हाथ रख रोने के सिवा वो और कुछ नही कर पा रही थी । तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा । गायत्री ने अपने आसु पोंछे और पीछे की ओर पलटी । इस वक्त उसके सामने दिशा खडी थी ।

" दिशा तुम अभी तक सोई नही । "

" नींद तो आंखों से ओझल हो चुकी हैं भाभी फिर कैसे सोती । इतनी रात गए आप यहा खडी आंसू क्यों बहा रही हैं ‌‌ ? " दिशा ने पूछा तो गायत्री अपने आंसू छुपाते हुए बोली " बस नींद नही आ रही थी तो यहां चली आई । "

दिशा को गायत्री के कमरे हैं किसी लडकी के हंसने की आवाजे आ रही थीं । गायत्री जानती थी ये आवाजें रागिनी की है । दिशा हैरानी से बोली " भाभी आपके कमरे से किसी लडकी के हंसने की आवाजे आ रही हैं । कौन हैं अंदर ? "

" को .... कोई नही हैं दिशा .... तुम अपने कमरे में जाओ । ," गायत्री ने घबराते हुए कहा । वो नही चाहतीं थी की दिशा इसके बारे में कुछ भी जाने ।

दिशा थोडा गुस्से से बोली " बस भाभी और कितना छुपाएगी आप मुझसे ‌‌। ये नाचने वालीया पहले हवेली में और अब कमरे तक भी चली आई । मैं नही रहने दूगी इन्हें यहां । मैं बताती हु अभी इन्हें ..... दिशा ये बोल आगे बढने लगी , तो गायत्री ने उसे रोक लिया । " नही दिशा तुम वहां नही जाओगी । पागल मत बनो दिशा वरना तुम्हें अपने भाइयों के गुस्से का सामना करना पडेगा । "

" भाभी आप किस मिट्टी की बनी हैं । आपकी नजरों के सामने वो औरत आपके पती के साथ ...... छी ...... और आप हैं की खुशी खुशी अपने कमरे से बाहर चली आई । मत सहिए भाभी इतना की सब कुछ खत्म हो जाए ‌‌। " दिशा के ये कहते ही गायत्री उसके सामने अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई । उसे रोते देख दिशा ने उसे गले से लगा लिया । वो उसे संभालते हुए बोली " बस भाभी मत बहाइए इन आंसुओं को । आप मेरे कमरे में चलिए । " दिशा उसे संभालकर अपने कमरे में ले गयी । इस काली रात में कितनों ने आसु बहाए थे इसकी गिनती नहीं थी । गायत्री देर रात तक आसु बहाती रही । दिशा ने उसे संभालने की बहुत कोशिश की , लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था ।

दिशा हारकर मूंह फेरकर लेट गयी और गायत्री को उसके हाल पर छोड़ दिया । बस उसे गायत्री की सिसकियां सुनाई दे रही थी । जिस कारण दिशा की आंखों से भी आसु बह रहे थे ।

आंसुओं की कीमत तो तब पता चलती है ,

जब अपनी आंखों से गिरे ,

दूसरों की आंखों से गिरा हुआ आंसू ,

तो पानी ही नजर आता है ।




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गिरिराज और कुंदन दोनों ही अपनी आदतों से मजबूर हैं लेकिन इनके साथ गायत्री भी जुर्म सहकर एक पाप कर रही हैं । उसने खुद को इन सब चीजों का आदी बना लिया है । दिशा खुद ऐसी स्थिति में नही हैं की वो गायत्री की मदद कर सके ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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