Prem Ratan Dhan Payo - 43 in Hindi Fiction Stories by Anjali Jha books and stories PDF | Prem Ratan Dhan Payo - 43

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Prem Ratan Dhan Payo - 43







अमित के ये पूछने पर की बच्ची का नाम क्या रखा जाएगा करूणा चुप रही । राघव बच्ची को देखते हुए बोला " वही जो भैया ने सोचा था ' परी ' ...... पूर्विका सिंह रघुवंशी । "

करूणा के आसु भी झलक गये । अमित ने बच्ची को अपनी गोद में ले लिया । राघव तुरंत पलट गया और अपने आसु छुपाने की कोशिश करने लगा । करूणा इस बात को भली भांति समझ रही थी ।

इस वीराने में एक कली खिली थी । उसके आने के बाद मानो खुशिया भी पंख पसारे वहां आने लगी थी । करूणा के पास अपने प्यार की निशानी थी । राघव को भी जीने का मकसद मिल चुका था । परी उसकी दुनियां बन चुकी थी । हफ्ता भर बीत चुका था । राघव के ज़ख्म नही भरे थे , लेकिन पहले से उसकी हालत ठीक थी । इन सबके बीच वीरेंद्र को वो भूल चुका था । भला पांच गोलियां लगने के बाद कोई इंसान कैसे बच सकता था । इसी बीच राघव के पास एक दिन संदेशा आया ।

राघव इस वक्त गार्डन में बैठा अखबार पड रहा था । " गुड मॉर्निंग सर "

राघव ने अखबार से नजरें हटाकर सामने की ओर देखा तो पाया सामने असलम खडा था । राघव अखबार फोल्ड कर टेबल पर रखते हुए बोला " कहो असलम क्या बात हैं ? "

" सर एक बुरी खबर हैं । ठाकुर वीरेन्द्र सिंह अभी जिंदा हैं । इस वक्त वो तिहाड़ जेल में बंद हैं । " असलम के मूंह से ये सब सुनकर राघव चौंकते हुए उठ खडा हुआ ।

" पुलिस उस तक पहुंची कैसे ? "

" सर इस सवाल का जवाब तो कमिश्नर साहब ही देंगे । " असलम ने कहा ।

' असलम फौरन गाडी निकालो । " राघव के इतना कहते ही असलम चला गया । आधे घंटे बाद राघव की गाडी पुलिस स्टेशन के बाहर आकर रूकी ‌‌। राघव गाडी से बाहर आया और सीधा कमिश्नर साहब के कैबिन में चला गया । न हाय न हल्लो कोई फारमेलिटि नही राघव सीधा जाकर कमिश्नर साहब के सामने वाली चेयर पर बैठ गया ‌।

कमिश्नर साहब इस बात को भली-भांति समझ रहे थे , आखिर राघव यहां किस कारण से आया होगा । राघव बिना कोई सवाल किए बस उनकी तरफ देख रहा था । कमिश्नर साहब ने एक ठंडी सांस भरी और राघव से बोले " हमारे ऊपर आगे से प्रेशर था इसलिए हमने आप पर नज़र रखी हुई थी । आपने वीरेंद्र को ढूंढ निकाला । आपके ही जरिए हम उस तक पहुंचे ‌‌। जिस वक्त आपको हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया , ठीक उसी वक्त वीरेंद्र को भी एडमिट करवाया गया । उसकी अच्छी किस्मत ही कहिए की पांच गोलिया खाने के बाद भी वो जिंदा बच गया । आपको वो नुकसान न पहुंचा सके , इसलिए हमने उसे अपनी हिरासत में ले लिया । उसपर काफी स्ट्रोंग केस बना हैं । सच पूछिए तो जिन लोगों ने उसे बचाया हैं उन्हीं लोगों ने उसे जेल भेजने में पुलिस की मदद की हैं । बडे नेताओं तक उसकी पहुंच हैं । वही उसे जेल भेजने की साजिशें बुन रहे थे , क्योंकि वीरेंद्र की मौत से उन्हें कोई फायदा नही होगा । हां लेकिन वो बाहर रहा तो उनके लिए खतरा पैदा कर सकता हैं । इसलिए उसके केस की सुनवाई बेहद जल्दी हुई और उसे तिहाड जेल शिफ्ट कर दिया गया । केस अभी चल ही रहा हैं फैसला आना बाकी हैं । जब तक जेल में उसका ट्रीटमेंट चलेगा , तब तक उसे सजा नही मिल सकती । "

" अगर में उसे सजा मिलने से पहले ही खत्म कर दू तो । " राघव के ये कहते ही कमिश्नर साहब उसे हैरानी से देखने लगे । कमिश्नर थोडा सोचते हुए बोले " ये काम इतना आसान नही होगा । हां लेकिन उसे सजा हो गयी उसके बाद आप कुछ नही कर सकते । "

राघव उठते हुए बोला " कर तो मैं बहुत कुछ सकता हैं , लेकिन फिलहाल मेरा मूड उसे जिंदा रखने का बिल्कुल नही हैं ‌‌। " इतना कहकर राघव वहां से चला गया । कमिश्नर साहब अपना रूमाल निकालकर माथे का पसीना पोंछने लगे ।

राघव घर लौटा तो देखा अमित भी आया हुआ था ।‌‌‌‌‌‌‌। अमित की नज़र उसपर पडी तो उसने पूछा " कहां से आ रहा हैं राघव ? "

" राघव सोफे पर बैठते हुए बोला " पुलिस स्टेशन गया था । वीरेंद्र अभी भी जिंदा है ।‌"

" क्या .... ? " राघव की बात सुनकर अमित शॉक्ड होते हुए बोला । राघव ने उसे कमिश्नर साहब की कही सारी बाते बताई ।

" बडी लंबी उम्र हैं कमिने की । " अमित ने कहा ।

" कोई बात नही पहली मौत से बच गया तो क्या हुआ । दूसरी मौत उससे भी ज्यादा भयंकर होगी ।‌ " राघव ने इतना कहा ही था की तभी उसके सामने परी आ गयी । राघव ने चेहरा उठाया तो देखा करूणा उसके आगे परी को ले आई थी । वो नासमझी से करूणा की ओर देखने लगा ।

" देख क्या रहे हैं देवर जी पहले इसे खत्म कीजिए , फिर मुझे उसके बाद दुश्मनी की मशाल जलाइएगा । "

" ये आप क्या कह रही हैं भाभी मां ? "

" वही जो आप सुन रहे हैं । " ये कहते हुए करूणा ने परी को वही सोफे पर लिटा दिया और रोते हुए बोली " अब खोने के लिए बचा ही क्या हैं मेरे पास ? सुहाग उजड गया । मां बाप का साया छूट गया । आप भी दुश्मनी की राह पर चल पडे हैं । मौत के मूंह से बाहर निकलकर आए हैं । उसके बाद भी आप इस दुश्मनी को कायम रखना चाहते हैं । "

" तो आप ही बताइए भाभी मां मैं क्या करूं ? जिंदा छोड दू उस हैवान को जिसने मुझसे मेरी खुशिया छीन ली । हमारी परी से उसका पिता छीन लिया , वो भी उस वक्त जब वो इस दुनिया में आई भी नही थी । कैसे भूल जाऊ भाभी मां इन्हीं हाथों हे अपनों की अस्थियां सरयू नदी में विसर्जित की हैं । " ये कहते हुए राघव का गला रूंध हो चुका था ।

करूणा रोते हुए बोली " हम कुछ नही जानते । हम बस इतना जानते हैं की अब और कुछ खोने की हमारी हिम्मत नही । हम आपको सही सलामत देखना चाहते हैं । छोड दीजिए इस दुश्मनी को । " करूणा राघव का हाथ पकड़ उसे परी के पास ले आई और उसका हाथ परी के सिर पर रखकर बोली " आपको इसकी कसम भुला दीजिए दुश्मनी । " राघव ने फौरन अपना हाथ परी के सिर से हटा लिया । परी भी अब रोने लगी थी । अमित चुपचाप खडा ये सब देख रहा था । एक तरफ परी की रोने की आवाजें और करूणा के आंसू थे , तो वही दूसरी तरफ अपने परिवार की चिता पर खाई हुई कसम थी । राघव ने अपने हाथों की मुट्ठियां कस ली और कसकर अपनी आंखें मींच ली । उसने टूटे हृदय से कहा " आपका कहा नही टाल सकता भाभी मां और न ही मैं आपको कोई वचन दूगा । बस इतना कहुगा मैं कभी पहल नही करूगा , लेकिन अब किसी ने मेरे परिवार को आंख उठाकर के भी देखने की कोशिश की , तो मैं उसकी सांसें छीन लूगा । सिर्फ आपके लिए मैं उस वीरेंद्र को जाने दे रहा हूं लेकिन तब तक जब तक वो जेल में रहेगा । जिस दिन लो जेल से बाहर आया वो उसकी जिंदगी का आखिरी दिन होगा । " इतना कहकर राघव अपने कमरे की ओर बढ गया । करूणा ने भागकर परी को अपने सीने से लगा लिया ।

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फ़्लैश बैक एंड , प्रेसेट टाइम




जानकी और करूणा दोनों इस वक्त गार्डन में थे । करूणा के साथ साथ जानकी की भी आंखें छलक गयी थी । मानों ये सब बुरा ख़्वाब उसने करूणा के कहे शब्दों में महसूस कर लिया हो । करूणा का दर्द वो पूरी तरह से नही समझ सकती थी , लेकिन महसूस जरूर कर सकती थी । जानकी ने करूणा के पास आकर उसे गले से लगा लिया । जानकी रोते हुए बोली " आई एम सॉरी भाभी मां आज मेरी वजह से आपके ज़ख्म फिर से हरे हो गये । नही जानती थी इन दीवारों के अंदर जो सांसें चल रही हैं वो इतनी घुटन भरी है । मुझे माफ़ कर दीजिए ....... माफ़ कर दीजिए भाभी मां । "

करूणा ने खुद को संभाला और जानकी से अलग होकर बोली " तुम्हें माफ़ी मांगने की कोई जरूरत नहीं है । तुम्हारी कोई गलती ही नही तो फिर माफ़ी किस बात की । मैं तो बस तुम्हें ये बता रही थी देवर जी कोई बुरे इंसान नही हैं ।‌ जिंदगी ने जो भद्दा मज़ाक हमारे साथ किया उसके बाद से देवर जी ऐसे हो गये । जानू मुस्कुराहट जिस इंसान के चेहरे से कभी गायब नही होती थी , अब उसने मुस्कुराना ही छोड दिया है । वो सांसें ले रहे हैं सिर्फ हमारे लिए लेकिन जी नही रहे हैं । उनकी गलती के लिए मैं माफ़ी मांगती हूं । " ये कहते हुए करूणा ने जानकी के आगे हाथ जोड़े , तो जानकी ने तुरंत उनके हाथों को थाम लिया । " ये सब करके मुझे शर्मिंदा मत कीजिए भाभी मां । मैंने उन्हें माफ़ किया वैसे भी उन्होंने कुछ गलत नही किया । मेरे भले के लिए ही तो डांटा । हां उस वक्त बुरा जरूर लगा लेकिन अब जाकर अपनी गलतियों का भी एहसास हो रहा हैं । मुझे तो उन्हें थैंक्यू कहना चाहिए । मैं कोई खास सदस्य नही हूं इस घर की , फिर भी उन्होंने मेरे लिए उस आदमी को सजा दी । " करूणा भी जानकी की बातें सुनकर थोडी नोर्मल हुई । कुछ देर तक दोनों वहां साथ बैठी बाते करती रही । उसके बाद अपने अपने कमरे में सोने चली गई ।

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सुबह का वक्त , रघुवंशी मेंशन




आज जानकी के चेहरे पर मुस्कराहट थी । मन में कोई उदासी नही । पूर्ण मन से उसने पूजा की । आरती के मधुर आवाजें पूरे घर में गूंज रही थी । जानकी उठकर खडी हुई , तो देखा पीछे घर के सभी नौकर मंत्रमुग्ध होकर उसका भजन सुन रहे थे । जानकी ने जाकर सबसे पहले करूणा को आरती दी । करूणा उसके सिर पर हाथ फेरकर बोली " तुमपर ये मुस्कुराहट जंचती हैं जानू । हमेशा ऐसे ही मुसकुराती रहा करो । "

" एक मिनट भाभी मां " ये बोल जानकी ने अपने पास खडी औरत को आरती की थाल पकडाई और अपने दुपट्टे के सिरे को गांठ लगाने लगी । "

" ये क्या कर रही हो जानु " ।

" आपकी बातों को गांठ बांध रही हु भाभी मां । " जानकी के ये कहते ही करूणा की हंसी तेज हो गयी । जानकी वापस से पूजा की थाल अपने हाथों में लेकर बोली " आप पर भी जंचती हैं ये इस्माइल भाभी मां । इसे कैद करके रख लीजिए । " ये बोलते हुए जानकी आगे बढ गयी । उसने सबको आरती दी । वो आरती की थाल लेकर परी के कमरे की ओर बढ गयी । इसी बीच राघव अपने कमरे से बाहर निकला । जानकी उसे देखकर रूक गयी । राघव उसकी साइड से जाने लगा तो जानकी ने हिम्मत करके उसे टोका " जरा ठहरिए राघव जी । '

क्या जादू था इस आवाज में पहली बार जानकी ने उसे सामने से पुकारा था । राघव के कदम रूक गए । जानकी पलटी और उसके सामने चली आई । उसने आरती की थाल राघव के आगे बढा दी । राघव ने अपनी आंखें छोटी की तो जानकी बोली ' आरती " । चलो इस एक शब्द ने राघव को उसका मतलब समझा दिया । राघव आरती लेकर जाने लगा , तो जानकी फिर से टोकते हुए बोली ' एक मिनट रूकिए । " राघव सवालिए नजरों से उसे देखने लगा ।

जानकी अपनी नजरें नीची कर थोडा हकलाते हुए बोली " वो .... वो .... हमे.....

" व्हाट वो ...... तुम्हारा वो बहुत लेट है । जल्दी कहो जो कहना हैं मुझे लेट हो रहा हैं ।‌‌ " राघव ने कहा ।

इस बार जानवी बिना आखे खोले जल्दी से अपना सेंटेश खत्म करते हुए बोली "' वो हमे आपसे थैंक्यू कहना था , कल जो भी आपने हमारे लिए किया उसके लिए । " ये कहकर जानकी जल्दी से परी के कमरे में भाग गयी ।

राघव ने उसे ऐसे भागते हुए देखा तो खुद में ही बड़बड़ाते हुए निकल गया " सिली गर्ल .... '

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क्या जानकी अब राघव को समझने की कोशिश करेगी ? क्या बदलेगा इनके रिश्ते के बीच कुछ

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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