Maa Santoshi Vrat - 2 in Hindi Short Stories by Anita Sinha books and stories PDF | मां संतोषी व्रत - 2

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मां संतोषी व्रत - 2



मां संतोषी ईपिसोड टू।

आदरणीय पाठकों जैसा कि हमने संतोषी माता व्रत के पहले ईपिसोड में लिखा है कि विद्यार्थी जीवन
से शुरुआत हुई इस पूजा की। जो मेरे लिए जीवन में
महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मां संतोषी जी की
जितनी भी वर्णना की जाए वो कम ही होगा।


जय जय मां शारदे लिखने की शक्ति दे ।

*संतोषी माता ईपिसोड टू*।

संतोषी माता का व्रत करते हुए समय बीतते गए।
यह बात सच है कि समय का पहिया चलता रहता है
वो किसी के लिए नहीं रूकता है और ना कभी भी
रूकेगा यह सच है।

एक तो कालेज लाइफ और जीवन में भक्ति ही अपना सर्वोच्च स्थान रखती हो तो फिर वक्त को भी
पंख लग जाता है और वो कल्पनाओं की दुनिया में विचरण करते हुए जीवन में भक्ति का भंडार भरता है। ठीक ऐसा ही मेरे साथ हुआं। जितना मैं अपने
मन में संतोषी माता जी का ध्यान करती उतना ही
वो जाग्रत हो जाता और मैं पहले से कहीं और ज्यादा
भाव भक्ति में विभोर होकर व्रत पूजन करने लग
जाती थी। सुबह होते ही याद आता कि आज
*संतोषी माता का वार शुक्रवार है*।

फिर क्या था मेरे मन में जागृत होती भाव भक्ति
मां संतोषी जी की , सबेरे सबेरे पूजा करने की
सोचती थी। तभी ख्याल आता कि अरे ! अभी तो
संयोग बना नहीं है मकान लेने का। तो हमें अपनी
सखि के यहां पर पूजा करना होगा। उसकी दिनचर्या के हिसाब से। जब तक पूजा कर नहीं लेती थी
तब तक पानी भी नहीं पीना चाहिए। वो हमने मां की
कृपा से किया। मां की पूजा के सामने मेरी भूख प्यास
न जाने कहां खो जाती थी।

यह तो अब मालूम होता है कि वो मैं ही थी जो
मां संतोषी जी के लिए मां की कृपा से आत्मसमर्पित
थी। वो भी इतनी कम उम्र में। इसे हम भावनाओं
का जुड़ाव ही समझेंगे। इस तरह पूजा करते हुए
समय का एक बड़ा हिस्सा बीत गया। मैं स्कूल लाईफ
से ही ट्यूशन करती थी। व्यस्त जिंदगी मुझे सोचने
पर कभी मजबूर नहीं किया करती थी।

धीरे-धीरे मेरा आत्मविश्वास और आत्म बल
बढ़ कर दुगुना हो गया था। हमें एक ही इच्छा होती
कि बस कब सखि आकर कहे * आ जो अनितवा,
चल पूजा नय करमी का * वो पटना शहर की रहने
वाली थी।* मगही* बोली मुझे बड़ी मीठी लगती थी।
हरदम उसके यहां पूजा करती थी। दो घर एक आंगन
था। इसलिए परिवार में किसी को भी दिक्कत नहीं होती थी।

घर में आना जाना था। सुखी परिवार था।
हम जहां रहते थे वो लोकलिटी बेहद बेहतरीन थी।
मतलब कि पढ़ने लिखने वाले लोग ज्यादा थे ।
उस घर में कष्ट नहीं था। बस एक कमरा और चाहिए था जहां पर मै निश्चित होकर पूजा कर सकती।
बस यही मुझे चाहिए था। जो मुझे मिला। लेकिन
थोड़ी देर बाद। जब किसी किराएदार ने खाली किया तो हमें मिल गया।

जब तक घर मिल नहीं गया था
तब तक हम अपनी सखि के यहां पर
संतोषी माता की पूजा करते रहे। इस तरह एक दौर
बीत गया जो वास्तव में बेहद खास अहसास लिए
थी वो कया ? तो मां संतोषी जी की पूजा ।
आज मां की कृपा हुई तो हम लिख रहे हैं।


* यह रचना बिल्कुल काल्पनिक है इसका किसी से भी लेना देना नहीं है। यदि भूल से भी मेल मिलाप हो जाता है तो लेखक जिम्मेदार नहीं हैं।*

सादर धन्यवाद।