कौत्रेय को उदास देखकर कालवाची को कुछ अच्छा नहीं लगा और वो कौत्रेय से बोली....
"तुम्हें उदास होने की आवश्यकता नहीं है कौत्रेय! बहुत ही शीघ्र मैं तुम सभी को भी वहाँ ले चलूँगी,क्योंकि मैं और अचलराज इस कार्य को अकेले नहीं कर सकते,मैं चाहती हूँ कि कुछ समय हम दोनों वहाँ रहकर सभी के भेद ज्ञात कर लें,इसके पश्चात ही तुम सभी को हम वहाँ ले जाएँ",
"मुझे भी ले चलोगी ना!",त्रिलोचना ने पूछा...
"हाँ...हाँ...तुम्हें भी ले चलूँगी और तुम्हारे भ्राता भूतेश्वर को भी",कालवाची बोली...
"किन्तु! मैं वहाँ जाकर क्या करूँगा"?,भूतेश्वर ने पूछा...
"तुम भी हम सभी की सहायता करना",कालवाची बोली....
तब सेनापति व्योमकेश ने कालवाची, अचलराज और वत्सला से पूछा...
"एक बात और पूछनी थी मुझे तुम सभी से",
"कौन सी बात पिताश्री"?,अचलराज ने पूछा....
तब सेनापति व्योमकेश बोले....
"यही कि तुमने गिरिराज के विषय में सब बताया,उसके पुत्र सारन्ध के विषय में बताया,यहाँ तक कि सेनापति बालभद्र के विषय में भी बताया किन्तु गिरिराज की पत्नी यानि कि उस राज्य की महारानी के विषय में कुछ नहीं कहा,वो जीवित है या नहीं,ये सब तुम लोगों ने ज्ञात किया या नहीं",
"ये बात तो हम दोनों के मस्तिष्क में आई ही नहीं,इस विषय में तो आपको वत्सला ही कुछ बता सकती है", अचलराज बोला....
तब वत्सला बोली....
"ये तो मुझे भी ज्ञात नहीं है,क्योंकि राजमहल में किसी ने भी उस राज्य की रानी के विषय में कोई भी चर्चा नहीं की,ना ही मेरा कभी इस बात पर ध्यान गया,यदि रानी जीवित नहीं हैं तो ये बात तो समूचे राजमहल को ज्ञात होनी चाहिए थी,किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि वें जीवित हैं एवं गिरिराज के संग नहीं रहतीं,इस विषय में तो हमें गिरिराज की माता ही बता सकतीं हैं जो कि अब राजमहल में नहीं रहतीं,वें अपने पुत्र के घृणित कार्यों से रुष्ट होकर अरण्य वन में वें किसी महात्मा के आश्रम में चलीं गईं हैं,कदाचित गिरिराज की माता का नाम चन्द्रकला है,ये बात मुझे एक बार महल की किसी दासी ने बताई थी"
"ओह...तो ये बात है, किन्तु अब हमें ये ज्ञात करना ही होगा कि गिरिराज की रानी है कहाँ"?, अचलराज बोला....
"किन्तु इसके लिए तो हमें गिरिराज की माता के पास जाना होगा",सेनापति व्योमकेश बोलें....
"किन्तु! वहाँ जाएगा कौन"?,कालवाची ने पूछा....
"ये कार्य आप मुझे सौंप सकते हैं सेनापति व्योमकेश",भूतेश्वर बोला....
"कदाचित! यही उचित रहेगा",सेनापति व्योमकेश बोले....
"तो मुझे भी भूतेश्वर के साथ जाने की अनुमति दे दीजिए,वो अकेला कहाँ कहाँ भटकता फिरेगा?",कौत्रेय बोला....
"तो मैं भी भ्राता के संग जाऊँगीं",त्रिलोचना बोली.....
तब कालवाची बोली.....
"ऐसा करते हैं,हम सभी चलते हैं क्योंकि गिरिराज अपने पुत्र के संग आखेट के लिए वन गया है,वो दो दिवस के पश्चात ही लौटेगा,तो हम सभी इसी समय वहाँ चलने का विचार बना सकते हैं",
"किन्तु! यदि तुम तीनों वहाँ से शीघ्रता से ना लौट सकें तो तुम सभी पर संकट आ सकता है,गिरिराज तुम सभी को खोजने लग जाएगा",रानी कुमुदिनी बोलीं....
तब कालवाची बोली....
"मैं तुम सभी को भी पंक्षी रुप में बदल सकती हूँ,तब हम सरलता से अरण्य वन पहुँच जाऐगें",
"हाँ! ये हो सकता है और कदाचित यही उचित रहेगा",सेनापति व्योमकेश बोले....
"तो हमें इस कार्य हेतु और अधिक बिलम्ब नहीं करना चाहिए",भूतेश्वर बोला....
इसके पश्चात कालवाची ने सभी को पंक्षी रूप में परिवर्तित कर दिया और सभी अरण्य वन की ओर उड़ चले,अरण्य वन की दिशा का ज्ञान भूतेश्वर ने अपनी शक्तियों द्वारा ज्ञात कर लिया,वें सभी वहाँ भोर के समय पहुँच चुके थे,किन्तु उस आश्रम में बहुत सी वृद्ध महिलाएं थीं एवं उनमें से गिरिराज की माता का पता लगाना एक कठिन कार्य था,क्योंकि वहाँ कोई भी किसी को उनके नाम से नहीं पुकार रहा था,तब व्योमकेश जी को एक विचार सूझा और वें सभी से बोलें....
"मेरे विचार से रानी कुमुदिनी को उन वृद्ध महिलाओं के मध्य सम्मिलित हो जाना चाहिए,आप आश्रम में जाकर उन महात्मा से विनती करें कि आप भी उनके आश्रम में रहना चाहतीं हैं,इन सभी वृद्ध महिलाओं के संग भक्तिभाव में लीन होना चाहतीं हैं,जब आप उन सभी के मध्य पहुँच जाएगी तो आप चन्द्रकला देवी से वार्तालाप करके सभी जानकारियांँ सरलता से प्राप्त कर सकतीं हैं",
"ये बहुत ही अच्छा उपाय है",कालवाची बोली...
"हाँ! ये ही उचित रहेगा,मैं इसके लिए तत्पर हूँ,कालवाची! तुम अभी इसी समय मुझे मेरे पूर्व रूप में परिवर्तित कर दो", रानी कुमुदिनी बोली...
"जी! लीजिए! रानी कुमुदिनी",
और ऐसा कहकर कालवाची ने रानी कुमुदिनी को उनके पूर्व रुप में परिवर्तित कर दिया और वें सभी उस वन से कुछ दूर चले गए,इधर रानी कुमुदिनी आश्रम में पहुँची और महात्मा से उन्हें वहाँ रहने की विनती की तो महात्मा ने शीघ्र ही रानी कुमुदिनी को वहाँ रहने की अनुमति दे दी, इसके पश्चात रानी कुमुदिनी उन सभी वृद्ध महिलाओं के मध्य पहुँचकर चन्द्रकला देवी को खोजने लगी,किन्तु अत्यधिक परिश्रम के पश्चात उन्हें चन्द्रकला देवी के दर्शन ना हुए,अब रानी कुमुदिनी का मन इस संशय से भर गया कि कहीं ऐसा तो नहीं अत्यधिक वृद्धावस्था प्राप्त करने के पश्चात चन्द्रकला देवी ने अपने प्राण त्याग दिए हों....
वें ये सबकुछ सोच ही रहीं थीं कि तभी एक वृद्ध महिला उनके समीप आकर बोली...
"पुत्री! आज के पहले तो मैनें तुम्हें यहाँ नहीं देखा"
"जी! मैं आज ही यहाँ आई हूँ",रानी कुमुदिनी बोली....
"नाम क्या है तुम्हारा"?,वृद्ध महिला ने पूछा...
"जी! कुमुदिनी नाम है मेरा",रानी कुमुदिनी बोली....
"इतनी कम आयु में ही तुम्हारा इस संसार से मन उचट गया",वृद्ध महिला ने पूछा...
"हाँ! माता! परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसीं हो गईं कि मुझे संसार का त्याग करना पड़ा",रानी कुमुदिनी बोली....
तब वो वृद्ध महिला बोली....
"हाँ! पुत्री! कभी कभी अपने ही मन को इतनी पीड़ा पहुँचा देते हैं कि हम इस संसार को छोड़ने के लिए विवश हो जाते हैं,अब मुझे ही देख लो,मेरा पुत्र एक विशाल राज्य का राजा है और मैं उसका त्याग करके यहाँ चली आई"
"आपके पुत्र और राजा! तो आप उन्हें त्यागकर यहाँ क्यों चलीं आईं माता?,कोई तो कारण होगा उन्हें त्यागने का,क्योंकि बिना कारण कोई इस प्रकार अपने पुत्र का त्याग नहीं करता",रानी कुमुदिनी बोलीं....
तब वो वृद्ध महिला बोली....
"सच कहा तुमने पुत्री! मुझे नहीं ज्ञात था कि मेरा पुत्र इतना क्रूर और निर्दयी निकलेगा,नहीं तो बाल्यकाल में ही मैं उसका त्याग कर देती,उसके इसी कर्मों के कारण ही उसके पिता शीघ्र ही स्वर्ग सिधार गए और उसकी पत्नी ना जाने अब कहाँ होगी,इतनी आदर्श पत्नी पाकर भी उसने अपने कुकृत्यों को नहीं छोड़ा और बेचारी धंसिका को भी उसने अपने जीवन से निकाल दिया,मुझे अब ज्ञात भी नहीं कि मेरी पुत्रवधू धंसिका जीवित है भी या नहीं"
"आपके पुत्र का नाम क्या है माता",?,कुमुदिनी ने पूछा...
"उस दुष्ट का नाम गिरिराज है और उसके पुत्र का नाम सारन्ध है,उसने अपने पुत्र को भी स्वयं की भाँति बना दिया है",वृद्ध महिला बोलीं....
ये सुनकर रानी कुमुदिनी को ज्ञात हो गया कि यही वृद्ध महिला ही गिरिराज की माता चन्द्रकला देवी हैं.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....