सर्दी घने कोहरे में दिलीप बस अड्डे पर रात के 9:00 बजे से 11:00 बजे तक दुखी हो जाता है कि आज बस अड्डे पर कोई बस क्यों नहीं आ रही है, उसे यह भी डर सता रहा था कि कहीं पीछे ज्यादा मूसलधार आंधी तूफान के साथ बरसात होने की वजह से पहाड़ का रास्ता बंद तो नहीं हो गया है।
सब कुछ जानकार भी दिलीप बस का इंतजार करने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता था।
उसे घर पहुंचने की चिंता तो नहीं थी क्योंकि माता-पिता के निधन के बाद वह दुनिया में अकेला रह गया था।
इसलिए दिलीप सब कुछ बर्दाश्त कर सकता था लेकिन अकेलापन नहीं और उसे अंधेरी जाड़े की धूध की रात में सुनसान बस अड्डे पर बहुत अकेलापन महसूस हो रहा था।
उसी समय उसे सामने से एक खूबसूरत लड़की अपनी बुजुर्ग बीमार मां के साथ आती हुई, दिखाई देती है।
वह दोनों मां बेटी भी इस सर्दी की रात में फंस गए थे वह भी किसी भी तरह अपने घर पहुंचना चाहते थे लेकिन वहां बस के अलावा भी कोई गाड़ी मोटर इंसान दूर तक नहीं दिखाई दे रहा था।
दिलीप उस खूबसूरत लड़की और उसकी मां की भी समस्या दिलीप जैसी ही थी, इसलिए कुछ ही पलों में दिलीप कि उनसे बहुत अच्छे ढंग से बातचीत होने लगती है।
उस लड़की का नाम शशि कला था। शशि कला को देखकर दिलीप के मन में यह ख्याल आ रहा था कि मैं जीवन में जब भी शादी करूंगा तो ऐसी ही लड़की से करूंगा और जब शशि कला बस अड्डे के आसपास के घने जंगलों को देखकर बार-बार घबराती है, तो दिलीप उसकी हिम्मत बढ़ता है।
आधी रात होने की वजह से दिलीप भूख से बेचैन हो रहा था, शशि कला की मां दिलीप की भूख से बेचैनी को समझ कर शशि कला से कहती है "हम जो खाना घर से सफर में खाने के लिए लाए थे, उसे इसी बस अड्डे पर खा लेते हैं ना जाने क्या पता पीछे पहाड़ों का रास्ता बंद होने की वजह से बस पूरी रात ही यहां ना आए।"
खाने कि बात सुनकर दिलीप के चेहरे पर रौनक आ जाती है।
शशि कला भी समझ जाती है कि दिलीप भूख से बेचैन हो रहा है इसलिए वह जल्दी से खाना निकाल कर अपनी मां से पहले दिलीप को खाने के लिए देती है।
सबके खाना खाते खाते पीछे कहीं मूसलधार आंधी तूफान के साथ बरसात होने की वजह से वहां भी ठंडी ठंडी हवाएं चलने लगती है।
सर्दी का मौसम ऊपर से शीत लहर इस वजह से शशि कला की बीमार मां की तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगती है।
शशि कला की मां की जायदा हालत खराब होते देख दिलीप शशि कला से कहता है "मैं अभी बस दस मिनट में बस अड्डे के पास वाले जंगल से सुखी लड़कियां लाता हूं जिससे कि आपकी मां को इस ठंड में आग पर तपने से आराम मिले।"
दिलीप की यह बात सुनकर शशि कला की मां दिलीप की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखती है कि अगर दिलीप सुखी लड़कियां ले आया तो मुझे बहुत आराम मिलेगा लेकिन शशि कला दिलीप के प्रति अपनी हमदर्दी दिखाकर उसे न जाने का इशारा करती है लेकिन शशि कला की मां की तबीयत ज्यादा बिगड़ते देख दिलीप बस अड्डे के पास वाले जंगल में सुखी लड़कियां लेने चला जाता है।
और वहां चंदन की लकड़ी के तस्करों के साथ दिलीप को चंदन की लकड़ी का तस्कर समझा कर पुलिस गिरफ्तार कर लेती है।
अपने को बचाने के लिए दिलीप के पास कोई भी सबूत नहीं था ,इसलिए उसे भी चंदन कि लकड़ी की तस्करी के जुर्म में लंबी सजा हो जाती है।
और अपनी सजा पूरी काटने के बाद दिलीप एक बार उसी सुनसान बस अड्डे पर अंधेरी सर्दी की रात में फंस जाता है, जहां उसे पहले ही मुलाकात में शशि कला नाम की लड़की से प्रेम हो गया था, उस रात भी उसी रात तरह मौसम खराब था।
दिलीप उस रात को याद कर ही रहा था, तभी दिलीप के पास हाथ में लालटेन लिए एक वृद्ध व्यक्ति आता है और वह कहता है "मैं इस बस अड्डे का नया चौकीदार हूं, बाबूजी आप यहां अकेले मत बैठो मेरे साथ चलो क्योंकि इस बस अड्डे पर आज भी एक शशि कला नाम की लड़की की आत्मा किसी दिलीप नाम के लड़के का इंतजार कर रही है और बार-बार यही बात पूरी रात कहती रहती है कि मां चिंता मत करो दिलीप आने ही वाला है वह तुम्हें ठंड से मरने नहीं देगा और सुना है अपनी मां कि मौत के बाद वह लड़की भी उसी रात अकेले डर दहशत मां की मौत के सदमे से मर गई थी, लोगों को उसकी मां की आत्मा तो नहीं दिखाई देती लेकिन बहुत लोगों ने उस शशि कला नाम की लड़की की आत्मा को देखा है।"
उस बुजुर्ग चौकीदार की यह बात सुनकर दिलीप दूसरे दिन ही उस बस अड्डे पर शशि कला की आत्मा की शांति के लिए बहुत बड़ी पूजा करवाता है, और पूजा की अग्नि पर हाथ रखकर कसम खाता है कि "मैं शशि कला को अपनी पत्नी मानता हूं और जीवन में कभी शादी नहीं करूंगा।"
उसकी यह बात सुनते ही शशि कला की आत्मा वहां से खुश होकर चली जाती है।