Wajood - 27 in Hindi Fiction Stories by prashant sharma ashk books and stories PDF | वजूद - 27

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वजूद - 27

भाग 27

एक बार अविनाश को किसी केस के कारण पास के एक शहर में जाना पड़ा था। उसके साथ उसका एक अधिकारी भी था। इस कारण उन दोनों के बीच काम को लेकर ही बात चल रही थी। वे दोनों एक जीप में सवार होकर कहीं जा रहे थे, तभी अविनाश की नजर बाहर बाजार की ओर गई। वहां उसे ऐसा लगा जैसे उसने शंकर को देखा है, क्योंकि वो उन्हीं कपड़ों में था जो अविनाश उसके लिए लाया था। जरूरी काम और अधिकारी के साथ होने के कारण अविनाश जीप को रूकवाकर उतर नहीं सका। हालांकि वो बार-बार पीछे मुढ़कर शंकर को देख रहा था। कई बार देखने के बाद उसे यह यकीन हो गया था कि उसने जिसे देखा है वो शंकर ही है। हालांकि उसकी हालत बहुत खराब था। बाल और दाड़ी बढ़ चुकी थी। कपड़े बहुत ही मैले और कई जगह से फटे हुए थे। कई दिनों से भरपेट खाना ना मिल पाने के कारण शंकर बहुत कमजोर भी नजर आ रहा था। वो लगड़ाकर चल रहा था, जैसे कि उसके पैर में चोट लगी है। उसकी हालत देखकर कोई भी उसे मिखारी ही समझता था। कभी कोई उसे खाने को दे देता था तो कभी कोई पैसे दे दिया करता था। शंकर को जहां जगह मिलती थी वो वहीं सो जाया करता था।

अविनाश चाह रहा था कि वो जीप रूकवाकर शंकर से मिले पर वो चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाया। खैर वो अपने अधिकारी के साथ उस जगह पहुंच गया, जहां उसे जाना था। हालांकि वो उस जगह सिर्फ शरीर से पहुंचा था क्योंकि उसका मन और दिमाग शंकर में लगा हुआ था। वो चाह रहा था कि जितनी जल्दी हो सके यहां का काम खत्म हो और वो उस जगह पहुंच जाए जहां उसने कुछ देर पहले शंकर को देखा था। पर अविनाश की यह चाह इतनी जल्दी पूरी नहीं होने वाली थी। जिस काम के लिए वो और उसका अधिकारी आए थे उसका काम को खत्म होने में दो घंटे से भी अधिक का समय लग गया। काम खत्म होने के बाद एक बार फिर वो और उसका अधिकारी जीप में रवाना हो गए। जीप जैसे ही उस जगह पहुंची जहां अविनाश ने शंकर को देखा उसने अपने अधिकारी से कह कर जीप रूकवा ली। अधिकारी ने उससे पूछा कि वो यहां क्यों उतर रहा है तो अविनाश ने कहा कि उसे कुछ काम है और वो जल्द ही उनसे होटल में मिलेगा। अधिकारी ने भी अविनाश को वहीं छोड़ दिया और फिर जीप लेकर होटल की ओर चला गया।

अधिकारी के जाते ही अविनाश ने इधर-उधर शंकर को तलाशना शुरू कर दिया। उसने कई दुकानदारों से भी शंकर के हुलिए को बताकर पूछा परंतु कोई भी अविनाश को शंकर का पता नहीं बता पाया। फिर उसने भोजनालय और नाश्ते की दुकानों पर शंकर के बारे पता किया। एक दुकानदार ने बताया कि अविनाश जिस प्रकार के हुलिए वाले आदमी के बारे मेंबता रहा है वो कभी-कभी उसकी दुकान पर आ जाता है। कभी वो उसे खाने के लिए पैसे देता है और कभी खड़े होकर खाने को देखता रहता है। तरस खाकर वो दुकानदार उस आदमी को कुछ खाने को दे देता है और फिर वो चला जाता है। उस दुकानदार ने अविनाश को यह भी बताया कि कहीं भी अगर उसे खाने को नहीं मिलता है तो वो खाने का सामान चुराकर भी भाग जाता है। कई बार पकड़ा जाता है और लोग उसकी जमकर पिटाई कर देते हैं पर फिर भी नहीं मानता है।

शंकर के बारे में इतनी बातें सुनने के बाद अविनाश बहुत भावुक हो गया था। उसने दुकानदार से पूछा- क्या उसे पता है कि वो आदमी कहां रहता है ? दुकानदार ने अविनाश से कहा कि ऐसे लोगों का कहां कोई ठिकाना होता है साहब। आज यहां तो कल वहां। जहां उन्हें खाने को मिलता रहे ये लोग तो वहीं रह जाते हैं। उसकी दुकान पर भी वो कभी-कभी ही आता है। इसलिए वो कौन है, कहां रहता है, कहां से आता है उसे कुछ पता नहीं है। दुकानदार ने अविनाश से पूछा क्या वो कोई अपराधी है जो फरार है? अविनाश ने कहा, नहीं भाई वो कोई अपराधी नहीं है बल्कि वक्त का मारा हुआ इंसान है। उसने जो कुछ सहा है वो कोई और ना सहे मैं तो बस सही दुआ करता हूं। अविनाश ने दुकानदार को अपना नंबर दिया और उससे कहा कि अब अगर वो आदमी उसकी दुकान पर आए तो वो उसे रोक ले और उसे कॉल कर दें। दुकानदार ने भी इस बार पर सहमति जता दी। इसके बाद अविनाश होटल की ओर रवाना हो गया। होटल पहुंचने के बाद अविनाश को बस उस दुकानदार के कॉल का बेसब्री से इंतजार था। पूरा दिन और पूरी शाम गुजर गई थी पर उस दुकानदार का कॉल नहीं आया था। अगले दिन अविनाश और उसके अधिकारी को वापस जाना था। दोनों सुबह ही होटल से बाहर निकलकर रेलवे स्टेशन पहुंच गए थे। ट््रेन आई और दोनों उसमें सवार हो गए। तभी अविनाश के फोन की घंटी बज गई। सामने से आवाज आई- साहब में नाश्ते की दुकान से बोल रहा हूं। जिस आदमी की आप तलाश कर रहे थे वो इस समय मेरी दुकान पर ही बैठा है। मैंने उसे खाने के लिए समोसे दिए हैं आप जल्दी से आ जाइए।

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