Wajood - 12 in Hindi Fiction Stories by prashant sharma ashk books and stories PDF | वजूद - 12

Featured Books
  • నిరుపమ - 10

    నిరుపమ (కొన్నిరహస్యాలు ఎప్పటికీ రహస్యాలుగానే ఉండిపోతే మంచిది...

  • మనసిచ్చి చూడు - 9

                         మనసిచ్చి చూడు - 09 సమీరా ఉలిక్కిపడి చూస...

  • అరె ఏమైందీ? - 23

    అరె ఏమైందీ? హాట్ హాట్ రొమాంటిక్ థ్రిల్లర్ కొట్ర శివ రామ కృష్...

  • నిరుపమ - 9

    నిరుపమ (కొన్నిరహస్యాలు ఎప్పటికీ రహస్యాలుగానే ఉండిపోతే మంచిది...

  • మనసిచ్చి చూడు - 8

                     మనసిచ్చి చూడు - 08మీరు టెన్షన్ పడాల్సిన అవస...

Categories
Share

वजूद - 12

भाग 12

मैं शंकर हूं। वो पास के गांव में बाढ़ आई थी, मेरा पूरा घर बह गया।

हां, हां ठीक है यहां क्यों सो रहे हो। जाओ कहीं ओर जाओ।

शंकर वहां से उठा और चला गया। उसने सोचा एक बार फिर साहब से जाकर मिलता हूं और उन्हें समझाता हूं कि उसके पास कोई दस्तावेज नहीं है। वो उसे रूपए दे दे। कम से कम उसके पास रहने और खाने का कुछ ठिकाना हो जाएगा। यह सोचकर शंकर  फिर अपने गांव की ओर चल दिया। गांव पहुंचने के बाद वो सीधा कलेक्टर ऑफिस के लिए रवाना होता है। वहां काफी खोजबीन के बाद वो उस अधिकारी के सामने होता है जो उस दिन राशि बांटने के लिए आया था।

हां कहो क्या काम है ?

साहब मैं शंकर हूं। वो बाढ में गांव के बहने के बाद आप रूपए देने आए थे, उस वक्त मुझे नहीं मिले थे, मैं वहीं लेने के लिए आया हूं।

उस अधिकारी ने शंकर को देखा और फिर कहा- अच्छा हां याद आया वो तुम्हारे पास पहचान का कोई दस्तावेज नहीं था। चलो कोई बात नहीं लाओ दिखाओ।

क्या दिखाउं साहब।

वे कागज, जिससे साबित हो जाए कि तुम ही शंकर हो।

ऐसा कोई कागज मेरे पास नहीं है साहब। अब तो प्रधान जी भी पता नहीं कहां चले गए हैं। मेरे पास कोई कागज नहीं है पर हम अपनी भाभी की कसम खाकर कहते हैं कि हम ही शंकर है। आप हमें रूपए दे दीजिए साहब। हम अपनी नई जिंदगी शुरू कर लेंगे।

अरे भाई हम ऐसे ही रूपए नहीं दे सकते। जब तक तुम अपनी पहचान का कोई कागज नहीं दिखाओगे हम रूपए नहीं देंगे। जाओ कोई कागज लेकर आओ, जिस पर तुम्हारा नाम और तुम्हारे पिता का नाम हो और गांव का नाम हो।

पर साहब अब ऐसा कागज कहां मिलेगा हमारा तो पूरा गांव ही उस बाढ़ में बह गया था। मेरा पूरा घर बह गया है।

भाई में कुछ नहीं कर सकता हूं। जब तक कागज नहीं दिखाओगे हम रूपए नहीं दे सकते हैं। यही नियम है।

आप उस दिन कह रहे थे कि एफआईआर ले आओ। ये क्या होता है साहब ?

थाने गए हो कभी ?

नहीं साहब हम तो अपने गांव के बाहर ही पहली बार गए थे।

जब कोई व्यक्ति कोई अपराध करता है तो थाने में उसके खिलाफ एफआईआर होती है। उसमें उस व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, पता, सब कुछ होता है। तुम्हारे पास कोई कागज नहीं है तो कोई अपराध किया हो तो उस थाने उसे उस अपराध की एफआईआर ही ला दो। मैं तुम्हें रूपए दे दूंगा।

एफआईआर के लिए क्या करना होगा साहब ?

थाने में जाकर एफआईआर मांगना होगी, वो दे देंगे तुम मुझे दे देना और अपने रूपए ले जाना। अधिकारी ने शंकर को समझाते हुए कहा।

ये एफआईआर ना हो तो ?

तो फिर एक काम करो गांव के 10 लोगों से एक कागज पर लिखवा लो कि तुम ही शंकर हो। पर सबके साइन होने चाहिए ये बात का ध्यान रखना।

पर अब मेरे गांव में तो कोई बचा ही नहीं है। जो बचे थे वो भी पता नहीं कहां चले गए हैं। शंकर ने बेबसी जताते हुए कहा।

अब ये सब मैं नहीं जानता भाई। अब मुझे काम करने दो। तुम जाओ पहचान के लिए कोई कागज लेकर आओ और अपने रूपए ले जाओ।

शंकर उदास होकर वहां से चल देता है। एक बार फिर वो अपने घर की जगह आकर बैठ जाता है। अब उसे उसके भैया हरी और भाभी कुसुम की याद आ रही थी। उनका कहना था जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है और तू बहुत सीधा-सादा है। पता नहीं हमारे बाद तेरा क्या होगा। वहीं उसे कुसुम जब उसे प्यार से खाना खिलाती थी उसे वो बातें भी बहुत याद आ रही थी। कभी वो अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा था तो कभी अपने भैया भाभी को याद करके। काफी देर तक शंकर वहीं घर के पास बैठा रहा था। उसे अब फिर से भूख सताने लगी थी। गांव तो पूरी तरह से उजड़ चुका था, इस कारण उसे वहां से कुछ भी खाने के लिए मिलने की उम्मीद नहीं थी। इसलिए वह गांव की ओर आने वाली सड़क की ओर चल पड़ा था। चलते-चलते उसे पुलिस चौकी दिखाई देती है, जो गांव में प्रवेश करने के रास्ते से कुछ ही दूरी पर थी। पुलिस की चौकी देखकर उसे याद आता है कि साहब ने कहा था कि एफआईआर में नाम-पता सब होता है, यदि वो थाने से एफआईआर भी मिल जाए तो वह उसे रूपए दे देंगे। बस इतना सोचकर ही शंकर पुलिस चौकी में चला जाता है।

वहां देखता है कि तीन पुलिस वाले अलग-अलग टेबल पर बैठकर कुछ काम कर रहे हैं। वहीं एक ओर कमरा बना हुआ है, जहां एक अधिकारी जैसा व्यक्ति बैठा हुआ है। सहमा सा शंकर पुलिस चौकी में खड़े होकर इधर-उधर देख रहा था। तभी एक सिपाही की नजर उस पर पड़ी। वह उठकर शंकर के पास आया।

------------------------