Shakunpankhi - 2 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | शाकुनपाॅंखी - 2 - फिर वही सान्ध्य भाषा

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शाकुनपाॅंखी - 2 - फिर वही सान्ध्य भाषा


3. फिर वही सान्ध्य भाषा

प्रातराश एवं विश्राम के बाद संयुक्ता ने पुनः कारु से अपनी बात स्पष्ट करने के लिए कहा।
" मैंने इस शरीर को नष्ट करने का मन बना लिया था, रानी जू। आपके स्नेह ने ही मुझे जीवन दान दिया है। मुझे पुनर्जन्म मिला है, रानी जू ।' 'मेरा स्नेह भी किसी के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है यह आज जाना। पर यह तो बता कि तू अपना शरीर क्यों नष्ट करना चाहती थी? इतना सुन्दर कान्तिमय शरीर क्या नष्ट करने के लिए बना है?"
"ग्लानिवश, रानी जू ।'
'फिर वही सान्ध्य भाषा। मैं कहती हूँ, तू स्पष्ट कह ।'
'गुरुतर अपराध कर बैठी थी मैं?"
"कैसा अपराध कारु?"
'काम की शक्ति का वह अनुभव शायद आचार्य कोक और वात्स्यायन को भी न हुआ होगा?"
'ऐ ! तू स्पष्ट क्यों नहीं कहती ?"
"क्या करूँ, स्वामिनी ? मैंने अनुभव किया है पर कह नहीं सकती।'
'आर्या कहती हैं कि भावनाओं को दबाने से अन्दर एक ग्रन्थि बन जाती है।'
‘नहीं स्वामिनी, मैं समझ नहीं पा रहीं हूँ कि क्या कहूँ? सृजन का अनुभव कोई नारी कहाँ बता पाती है?.......
मैं अपने अनुभव को शब्दों में बता नहीं पा रही हूँ, स्वामिनी !..... क्षमा करें। महाराज साम्भरी नाथ ने मुझे इतना विश्वास दिया था..... ।' 'और उन्हीं ने कठोर दण्ड भी......?'
"अपराध मेरा था स्वामिनी.....। विश्वास करने वाला अविश्वास सहन नहीं कर पाता ।
मैं स्वयं उनके सामने नहीं जा सकती थी। इसलिए वेष बदलकर......। उन जैसा स्वामी.... और मैंने....।' कहकर कारु सिसक उठी ।
संयुक्ता कारु के मुखमण्डल पर चढ़ते उतरते भावों को पढ़ती रही। कारु जब शान्त हुई तो राजपुत्री ने पूछ लिया, 'वह कौन सा अपराध था जिसके लिए ? तुमने अब तक नहीं बताया। साम्भरीनाथ को अब तक मैं एक कठोर व्यक्ति के रूप में जानती थी। लेकिन तेरा मुखमण्डल कुछ दूसरी कहानी कहता प्रतीत होता है।' एक मुग्धा की भाँति वह कारु को देखती रही।
"उन जैसा नाथ सभी को मिले, रानी जू ।'
"कुछ बता तो....... उनमें मानवीयता भी है?"
'रानी जू, उन जैसा संवेदनशील महाराज मैंने नहीं देखा है।' कहते हुए कारु अचानक चौंक पड़ी। उसने अनुभव किया कि एक की प्रशंसा दूसरे की निन्दा प्रतीत होती है । 'कहो कहो कारु, मैं तुम्हारे नाथ के बारे में जानना चाहती हूँ । संकोच मत करो।' 'उनकी भुजाओं में अपार शक्ति है । धनुर्विद्या में उनका सामना करने की शक्ति .....उनका श्येनपात....। शब्द वेधी वाण चलाते मैंने उन्हें देखा है, रानी जू ।'
‘उन्होंने अनेक राजाओं को दाँतों तले तृण दबाने के लिए विवश किया है यह मैं सुन चुकी हूँ पर क्या उनके हृदय में कभी प्रेम, दया जैसे भाव भी जगते हैं?”
'वे कामदेव के अवतार हैं, रानी जू । वैसा सौन्दर्य.... । वे बात के धनी, सत्यवादी हैं। कोई उनके पास से खाली हाथ नहीं लौटता, स्वामिनी ।' 'मानती हूँ कि तुम्हारे नाथ सैन्यबल के साथ जब चलते हैं तो धरती कांप उठती है। प्रेम का प्रतिदान भी देते हैं पर यह तो बता कि उन्होंने कुछ लिखा पढ़ा भी है?"
'स्वामिनी, महाराज संस्कृत, अपभ्रंश, प्राकृत, पैशाची, मागधी, शौरसेनी सभी में पारंगत हैं। अनेक बार उन्होंने आचार्यों के शास्त्रार्थ की मध्यस्थता की है। धर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास, गणित, आयुर्वेद का उन्होंने गहन अध्ययन किया है।'
'संगीत और कला का क ख भी नहीं आता न?"
‘स्वामिनी, संगीत, नृत्य, कला उनके प्रिय विषय हैं। उनकी त्रिभंगी मुद्रा देखकर मुरलीधर का भ्रम हो जाता है। संगीत उनकी चर्या का अभिन्न अंग है । अनेक नर्तक, संगीतकार उनकी सभा के सदस्य हैं। उनके सखा चन्द के छन्द तो मन को झकझोर देते हैं ।'
'सुना गया है कि चन्द उन्हें अत्यन्त प्रिय हैं ।'
'सच है, स्वामिनी । महाराज और चन्द समवयस्क ही नहीं, बचपन के साथी भी हैं। महाकवि का परामर्श अत्यन्त उपयोगी होता है। जयानक, विश्वरूप, कृष्ण, आशधर जैसे वाणी के उपासक महाराज की सभा में विराजमान रहते हैं। संस्कृत और देशभाषा दोनों की निर्झरिणी उनकी सभा में बहती रहती है ।'
‘पर तूलिका महाराज से कोसों दूर भागती है ।'
‘क्षमा करें स्वामिनी, महाराज सायंकाल चित्रशाला में बैठते हैं तो निकलने का नाम नहीं लेते । चित्रशाला देवी देवताओं के चित्रों से भरी है।'
‘नर-नारी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों के चित्र उनमें कोई संवेदना नहीं जगा पाते न?"
'नहीं रानी जू, चित्रशाला में नर नारी के साथ ही प्रकृति के अनमोल दृश्य अंकित हैं । सब के बारे में मैं नहीं बता सकती। एक बार विद्योत्तमा का चित्र देखकर महाराज आविष्ट हो गए थे। महाकवि के बार बार संकेत करने पर ही वे सामान्य हो पाए । ' संयुक्ता भी किन्ही विचारों में खो गई। पलकें बन्द करके जैसे वह मन के बिम्ब को बाँध लेना चाहती है। कारु चुप एक टक उन्हें निहारती रही । पलकें खुलने पर संयुक्ता कुछ लज्जित सी बोल पड़ी, 'यह तो बता, किसी विद्योत्तमा के लिए वहाँ पूजा पाठ का कोई स्थान है या...।'
"पूजा स्थल तो अपनी संस्कृति के हृदय हैं, स्वामिनी । प्रातः सायं अर्चना के स्वर किस नगरी में नहीं सुनाई पड़ते ? हर घर में इष्ट देव विराजमान हैं। अजयमेरु का सरस्वती मंदिर तथा दिल्लिका की मिहिरपल्ली जैसा परिसर मैंने अन्यत्र नहीं देखा, रानी जू । क्षमा करें स्वामिनी, मैं अतिशयोक्ति नहीं..... ।'
" तूने इतना कुछ कहा है, क्षमा तो करना ही पड़ेगा,' कहकर संयुक्ता हँस पड़ी ।
'पर कान्यकुब्ज सी सुरसरि जलधारा चाहमान के भाग्य से कहाँ ? सूखी धरती, जल के लिए कलपते लोग। जिधर देखो रेत की विशाल राशि । तलवार चलाने के अतिरिक्त अन्य कोई काम भी तो नहीं है?"
'स्वामिनी, जल का अभाव वहाँ भी नहीं है। अजय मेरु का आना सागर, विशाल सर जलापूर्ति के लिए तैयार किए गए हैं। छोटे-छोटे सरोवरों को बनाकर जनसमूह अपने लिए जल की व्यवस्था करता है। किसी घर में आपके पग पड़ने पर तुरन्त जल उपलब्ध कराया जाता है। जल पिलाना एक पुण्य कार्य माना जाता है, स्वामिनी । दिल्लिका तो कालिन्दी तट पर ही बसी है सुरसरि के समान ही अगाध जलराशि वाली ।'
'सुनती हूँ नारियों को दूर दूर से जल लाना पड़ता है।'
‘इसीलिए मरुभूमि की नारियाँ अत्यन्त सबल होती हैं। उधर एक कथा प्रचलित है, स्वामिनी ।'
"कैसी कथा?"
'सुनाती हूँ ।.... एक प्रातः मुँह अधेरे ही एक महिला जल का घड़ा उठाकर पानी लाने के लिए निकली। इक्का दुक्का छोड़कर अभी लोग गाँव में जगे नहीं थे। गाँव के बाहर निकलते ही एक रीछ ने महिला पर झपटने के लिए जैसे अपने अगले दो पैरों को उठाया, महिला ने शीघ्रता से उसके दोनों पैरों को अपने हाथों से पकड़ लिया। थोड़ी देर वह रीछ के दो पैरों को पकड़े खड़ी रही। दोनों में जोर आजमाइश होती रही । धीरे-धीरे प्रयास करके वह रीछ को निकट के एक पेड़ के पास ले गई। अपनी कुशलता और शक्ति से उसने पेड़ को अपने और रीछ के बीच कर लिया। उसके अगले दोनों पैरों को अपने हाथों से पकड़ कर खड़ी हो गई। अब रीछ का दबाव कम हो गया था। महिला ने राहत की सांस ली। थोड़ी देर में एक व्यक्ति लाठी लिए उसी रास्ते गुज़रा। महिला ने उसे पुकारा। रीछ पर लाठी से प्रहार करने के लिए कहा। उस व्यक्ति ने कहा, 'प्रहार करने पर रीछ मुझ पर झपट पड़ेगा। मैं प्रहार न करूँगा ।' महिला ने कहा, 'तुम रीछ को पकड़ कर खड़े हो जाओ। मैं प्रहार करती हूँ ।' व्यक्ति मान गया। वह रीछ के दोनों पैरों को पकड़ कर खड़ा हो गया। महिला ने लाठी ले ली पर रीछ को मारा नहीं । व्यक्ति ने पूछा, 'प्रहार क्यों नहीं करती?' महिला ने उत्तर दिया, 'मैं तुम्हारी ताकत देखना चाहती हूँ। जितनी देर में इसे पकड़े खड़ी रही, उतनी देर खड़े रहो, तब प्रहार करूँगी ।'
'तुमने एक अद्भुत महिला का चित्र खींचा। भयंकर स्थितियों का सामना करने के लिए शक्ति, साहस, धैर्य और बुद्धि सभी की आवश्यकता होती है। संयुक्ता कुरुल पकड़ कर सहलाती रही। 'तू तो कथा कहने में भी निष्णात है।'
'आपकी कृपा' वाक्यांश निकलते ही कारु सजग हो उठी और संयुक्ता कुरुल झटकाकर हँस पड़ी।