fruit of one's actions in Hindi Motivational Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | कर्मों का फल

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कर्मों का फल

अमीर बनने का रास्ता मिलने के बाद वैकुंठ झा घर आने से पहले महादेव के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करता है, तो मंदिर के आगे अमीर गरीबों को खाना खिला रहे थे, कुछ अमीर गरीबों को कंबल बांट रहे थे इसी तरह अन्य स्त्री पुरुष मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद दान पुण्य के कार्य कर रहे थे, उसी समय वैकुंठ झा अपने मन में ठान ले लेता है कि यह सब अमीर सप्ताह में एक या दो बार दान पुण्य के कार्य करते हैं मैं रोज दान पुण्य के कार्य किया करूंगा।

और खुशी-खुशी मंदिर के पास वाली मिठाई की दुकान से मिठाई लेकर अपने बीवी बच्चों के पास पहुंच कर उन्हें बताता है कि "हमारे राज्य के मुख्यमंत्री ने मुझसे कहा है कि वैकुंठ झा आप दस साल से मेरी और पार्टी की सेवा कर रहे हो इसलिए इस बार मैं आने वाले चुनावों में आपको आपके क्षेत्र से ही पार्टी का उम्मीदवार नियुक्त करूंगा अभी चुनाव आने में एक वर्ष का समय बाकी है इस एक वर्ष में आपको अपने क्षेत्र में अपनी साफ सुथरी छवि बनानी होगी इस काम में जितना भी पैसा खर्च होगा पार्टी खर्च करेगी। अब तुम सब देखना हम पांच वर्षों में देश के नहीं तो राज्य के सबसे अमीर बन जाएंगे।"

"वह कैसे पिताजी।" बैकुंठ झा की बेटी ज्योति पूछती है

"एमएलए बनने के बाद अंधाधुंध कमाई के सैकड़ो रास्ते खुल जाते हैं और एमपी बनने के बाद हजारों रास्ते कमाई के खुल जाते हैं।" वैकुंठ झा कहताा है

"तो आप भ्रष्ट नेता बनोगे।" बेटा विपिन कहता है

"भ्रष्ट नेता नहीं अमीर नेता।" वैकुंठ झा कहता है

"पिताजी को परेशान मत करो सोमवार का दिन है, मैंने खीर पुरी आलू की सब्जी सीताफल पकाया है पिताजी को नहा धोकर आने दो फिर सब साथ मिलकर स्वादिष्ट भोजन खाएंगे।"

एक वर्ष के कड़े परिश्रम के बाद वैकुंठ झा अपने चुनाव क्षेत्र में अपनी इतनी साफ सुथरी छवि बना लेता है कि वह भारी बहुमत से चुनाव जीत जाता है। चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र के विकास के सारे पैसे खा जाता है और राज्य का सबसे अमीर आदमी बन जाता है।

चुनाव जीतने से पहले तो वह रोज मंदिर जाता था और मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद मंदिर के सामने दान पुण्य के कार्य करता था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद सप्ताह में दो बार मंदिर जाता है और धीरे-धीरे एक बार फिर अमीर होने के बाद बिल्कुल ही मंदिर जाना बंद कर देता है।

पांच वर्ष विधायक रहकर अंधा धुंध लूटपाट करने के बाद उसकी अपने चुनाव क्षेत्र में छवि इतनी खराब हो जाती है कि वह बुरी तरह चुनाव हार जाता है, और खराब छवि के कारण उसे राज्य का मुख्यमंत्री राजनीतिक पार्टी से निकाल देता है।

असफल और चारों तरफ से अपमानित होकर वैकुंठ झा जाड़े की रात में ड्राइवर के साथ अपनी गाड़ी से घर आ रहा था, तो रास्ते में अचानक मूसलधार बरसात होने लगती है, बरसात सड़क पर गहरे गड्ढे सड़क के चारों तरफ अंधेरा होने की वजह से उसकी गाड़ी का ट्रक से एक्सीडेंट हो जाता है और पीछे से बस भी उसकी गाड़ी को जोरदार टक्कर मार देती है।

इस बड़े एक्सीडेंट में वैकुंठ झा की गाड़ी आगे पीछे से चिपक जाती है किसी तरह ड्राइवर तो आगे पीछे से चिपकी गाड़ी से बाहर निकल आता है, लेकिन बुरी तरह घायल वैकुंठ झा गाड़ी में फंस जाता है वह गाड़ी में इस तरह फसता है कि उसके शरीर का एक भी अंग नहीं हिल पाता है।

वैकुंठ झा का ड्राइवर पुलिस को फोन करता है तो पुलिस दो घंटे के बाद घटनास्थल पर पहुंचती है और पुलिस के घटनास्थल के पहुंचने के बाद क्रेन ढाई घंटे बाद वहां पहुंचती है।

गाड़ी में फंसने के बाद घायल वैकुंठ झा जब ठंड से कांपने लगता है तो एक भिखारी दोनों तरफ से चिपकी गाड़ी की खिड़की से अपना गरम कंबल वैकुंड झा को उड़ा देता है। गरम कंबल ओढ़ने से वैकुंठ झा को ठंड से बहुत राहत मिलती है।

मदद के लिए वहां खड़े लोग आपस में बातें कर रहे थे कि "अगर क्षेत्र के पूर्व विधायक वैकुंठ झा जी सड़क के गहरे गड्ढे बंद करवा देते या बेशक सड़क नई-नहीं बनवाते सिर्फ मरम्मत करवा देते और सड़क के दोनों तरफ रोशनी के लिए बिजली के खंबे लगवा देता तो इतना भयानक एक्सीडेंट नहीं होता और पूर्व विधायक जी भी अपने घर सुरक्षित पहुंच जाते।"

"क्रेन वाला पुलिस वाले आपस में बातें कर रहे थे अगर सरकार क्षेत्र के पूर्व विधायक वैकुंठ झा हमें पूरी सुविधा देते तो हम बहुत जल्दी घायल वैकुंठ झा जी को गाड़ी से बाहर निकाल लेते।"

फिर भी किसी तरह मेहनत मशक्कत करके पुलिस वाले क्रेन वाला वैकुंठ झा को गाड़ी से बाहर निकाल कर अस्पताल पहुंचते हैं

अस्पताल में पहुंचने के बाद अस्पताल का बड़ा डॉक्टर कहता है "घायल पूर्व विधायक को शहर के बड़े अस्पताल भेजना पड़ेगा हमारे अस्पताल में कोई सुविधा नहीं है, राज्य में हमारा ही अकेला ऐसा अस्पताल है, जहां मरीजों के लिए कोई सुविधा नहीं है। हम पूर्व विधायक जी की जान नहीं बचा पाएंगे।"

एंबुलेंस से वैकुंठ झा को जब दूसरे अस्पताल भेजते हैं तो एंबुलेंस जाम में फंस जाती है और एंबुलेंस में जरूरी सुविधाएं भी नहीं थी इन सब बातों से वैकुंठ झा को जब मौत सामने दिखाई देने लगती है तो वह अपने मन में सोचता है "मैं अपनी मौत का खुद जिम्मेदार हूं, अगर मैं राज्य का विकास कर देता तो मेरी जान बच जाती मुझे मेरे कर्मों का फल मिल रहा है, मैंने कभी अच्छा कर्म किया था, गरीबों को गरम कंबल बांटकर तो मुझे गरम कंबल कड़ाके की ठंड में ओढ़ने के लिए मिला।"

यह सोचते सोचते वैकुंठ झा की दर्द से तड़प तड़प कर मौत हो जाती है।