कछुआ भी डरते हुए कहता है – "कहीं मेरी गैर हाजरी मैं तुम दोनो ने वो दरवाजा खोल तो नहीं दिया?"
युग और अभिमन्यु कछुए की बात का कुछ जवाब नहीं दे रहे थे। वह दोनों एक दूसरे की तरफ घूर घूर के देख रहे थे।
कछुआ डरते हुए कहता है – "क्या हुआ तुम ये एक दूसरे की सूरत क्यों देख रहे हो, मेरी बात का कुछ जवाब क्यों नहीं दे रहे हो, बताओ ना कहीं तुमने यक्षिणी जिस कमरे में कैद है उसे खोल तो नहीं दिया?"
अभिमन्यु हिचकिचाते हुए कहता है – "यार कछुए बात यह है कि गलती से वो दरवाजा हम दोनो से खुल गया।"
जैसे ही अभिमन्यु यह बात बोलता है कछुआ हकलाते हुए कहता है – "कककक्या कहा गलती से! इसे तुम गलती कहते हो, तुम्हे पता था ना कि उस कमरे में यक्षिणी कैद है फिर भी तुमने उस कमरे को खोल दिया आखिर क्यों?"
युग पहले कछुए के चेहरे का डर देखता है फिर अभिमन्यु को देखकर हँसने लग जाता है। अभिमन्यु भी युग को देखकर हँसने लग जाता है।
कछुआ हैरानी के साथ कहता है – "क्या हुआ, तुम दोनो हँस क्यों रहे हो यहाँ हम इतनी बड़ी मुसिबत में है और तुम दोनों हँस रहे हो?"
युग हँसते हुए कहता है – "हँसे नहीं तो क्या करे, ये अभिमन्यु तुझे बेवकुफ बना रहा था और तु बेवकूफ बन गया।"
कछुआ मुँह फाड़ते हुए कहता है – "मतलब?"
"मतलब यह कि दरवाजा खटखटाने की आवाज ऊपर वाले कमरे से नहीं बल्की सामने वाले दरवाजे से आ रही है वो देख।" युग ने अपने हाथ से दरवाजे की ओर इशारा करते हुए कहा।
कछुआ सामने वाले दरवाजे को देखते हुए कहता है – "तुमने तो मुझे डरा ही दिया था यार, ऐसा भला कोई मजाक करता है क्या, मेरी तो जान ही निकल गयी थी।"
अभिमन्यु हँसते हुए कहता है – "जान तो तेरी कछुए तब निकलेगी जब यक्षिणी हक्कित में बाहर आएगी, चल अब जल्दी जा और दरवाजा खोल।"
"ना बाबा ना, मैं तो दरवाजा नहीं खोलने वाला, पता नहीं कौन आया होगा इतनी रात में ऊपर ये लाईट भी नहीं है।"
अभिमन्यु अपनी जगह से उठते हुए कहता है – "तु ना डरपोक का डरपोक ही रहेगा, लगता है मुझे ही दरवाजा खोलना पड़ेगा।"
अभिमन्यु दरवाजे के पास जाता है और झट से दरवाजा खोल देता है। जब दरवाजा खुलता है तो वो देखता है कि दरवाजे के बाहर कायर खड़ा हुआ था जो पूरी तरह पानी से भीग चुका था, उसके हाथ में एक पॉलीथीन थी जिसमें कुछ रखा हुआ था।
कायर गुस्सा करते हुए कहता है – "ये क्या, तुने इतना टाईम क्यों लगा दिया दरवाजा खोलने में, मैं कब से बाहर खड़ा होकर दरवाजा खटखटा रहा हूँ?"
अभिमन्यु कायर को कोठी के अंदर लेते हुए वापस से दरवाजा लगाते हुए कहता है – "यार कुछ नहीं ये सब बस कछुए के कारण हुआ है।"
कछुआ कायर को देखकर खुश हो जाता है और कहता है – "कायर तु आ गया, मुझे तो लगा था तु नहीं आने वाला।"
"अरे ऐसे कैसे नहीं आऊँगा आखिर कायर को कोई बारिश रोक सकती है क्या, वो क्या शेर था हाँ याद आया
"है ख्वाहिश की अब कोई ख्वाहिश नहीं, रूला दे मुझे अब ऐसी कोई बारिश नहीं
अब उसके अंगने में ऐसे बरसना बादल, किसी के साथ करे वो कोई रंजिश नहीं।"
अभिमन्यु दाद देते हुए कहता है – "वाह वाह।"
युग कायर को देखते हुए कहता है – "अरे तेरे कपड़े तो पूरी तरह भीग गये है अगर ऐसी ही हालत में रहा तो तुझे सर्दी हो जाएगी, एक काम कर मेरे बैग में कपड़े पड़े है उसे पहन ले।"
"अरे नहीं युग कुछ नहीं होता, मैं घर पर जाकर चेंज कर लूँगा।"
"घर पर जाकर कैसे करेगा आज तुम तीनो में से कोई कहीं नहीं जाएगा सब यहीं पर रूकेंगे, इतने दिनो बाद मिले है यार बचपन कि बाते करेंगे, यादे ताजा करेंगे।"
अभिमन्यु युग का साथ देते हुए कहता है – "हाँ युग ठीक कह रहा है, आज रात यहीं पर रूकते है।"
कायर खुश होते हुए कहता है – "मुझे तो पहले ही पता था कि ऐसा कुछ हो सकता है इसलिए मैं पहले ही सारा इंतजाम करके आया था।"
अभिमन्यु हैरानी के साथ कहता है – "सारा इंतजाम करके आया हूँ मतलब?"
कायर अपने हाथ की पॉलिथीन अभिमन्यु को देते हुए कहता है – "ये देख।"
जब अभिमन्यु उस पॉलिथीन को खोलता है तो देखता है कि उस पालीथीन के अंदर खाने के चार-पाँच पैकेट थे और दो व्हिस्की, दो बिस्लेरी पानी की बॉटल भी थी।
अभिमन्यु कहता है – "ये कहाँ से लाया?"
कायर अभिमन्यु के सवाल का जवाब देते हुए कहता है – "अरे इसके ही कारण तो आने में देर हो गयी, वैसे खाना बिन्दू के हाथ का है उसने युग के लिए भेजा है, तुम्हे तो पता ही है बचपन से ही बिन्दु युग की कितनी फिक्र करती है।"
कछुआ उदास होते हुए कहता है – "यार क्या बिन्दु ने बस युग के लिए ही खाना भेजा है हमारे लिए नहीं भेजा?"
"अरे कछुए बिन्दु को पता था हम तीनों भी उसके साथ है इसलिए उसने हमारे लिए भी खाना भेजा है फिर मैंने सोचा यदि सिर्फ खाना ही खाऐंगे तो मजा नहीं आएगा इसलिए फिर मैंने गला गिला करने का सामान भी खरीद लिया।"
युग हैरानी के साथ पूछता है –"गला गिला करने का सामान मतलब?"
"मतलब व्हिस्की यार।"
युग मना करते हुए कहता है – "यार मैं व्हिस्की नहीं पीता।"
कायर बड़ी-बड़ी आँखें करते हुए कहता है – "क्या बात कर रहा है, शहर में रहकर तु नहीं पीता।"
"नहीं यार जरूरी थोड़ी है जो शहर में रहता होगा वो पीता ही होगा सिर्फ व्हिस्की क्या मैं कुछ नहीं पीता और ना ही सिगरेट, पान गुटका कुछ खाता हूँ, इससे सेहत को असर पड़ता है।"
कछुआ बीच में ही युग को टोकते हुए कहता है – "ओ ज्ञानी बाबा, तु नहीं पीता तो मत पी हमे ज्ञान मत दे समझा, हमे पता है हमारी सेहत के लिए क्या अच्छा है, तेरे हिस्से की मैं पी लूँगा ठीक उस तरह जिस तरह मैंने कायर के हिस्से की झाडू लगाई है।"
कछुए की बात सुनकर सब हँसने लगते है।
अभिमन्यु कायर से कहता है – "कायर जा जाकर तू चेंज कर, ले लाईट तो पता नहीं कब तक आएगी, उसके आने का इंतजार नहीं कर सकते।"
कायर अभिमन्यु के सवाल का जवाब देते हुए कहता है – "यार लाईट आज शायद ही आए, गाँव में बहुत बड़ा शॉर्ट-सर्किट हुआ है और सुनने में आया है आज रात तुफान आने वाला है जोरो से बारिश होगी, ऐसी बारिश जो सालो से नहीं हो।"
कछुआ हैरानी के साथ कहता है – "क्या बात कर रहा है यार।"
"हाँ यार सच।"
कुछआ डरते हुए कहता है – "युग और अभिमन्यु तुम दोनो ग्रेव्यार्ड कोठी के सारे खिड़की दरवाजे बंद कर दो पता नहीं कब क्या हो जाए, इतनी मेहनत से सफाई की है अगर कचरा अंदर आ गया तो फिर से सफाई करनी पड़ेगी।"
अभिमन्यु कछुए को ताना मारते हुए कहता है – "हाँ हम दोनो सारे खिड़की दरवाजे बंद कर दे और तु यहाँ मजे से आराम फरमा है ना।"
"अरे नहीं यार, तुम्हे तो पता ही है अंधेरे से मुझे कितना डर लगता है अगर तुम काम कर लोगे तो क्या हो जाएगा।"
युग अपनी जगह से उठते हुए कहता है – "अभिमन्यु हम दोनो को ही सब खिड़की दरवाजे बंद करना पड़ेगा, तुझे तो पता ही है इसकी आदत इससे कुछ नहीं होने वाला।"
रात के दस बज रहे थे और बाहर जोरों से बारिश हो रही थी। लाईट अभी तक नहीं आई थी पर लैम्प वाले झुमर को उसकी जगह पर लगा दिया गया था। झुमर के अंदर के सारे लैम्प को जला दिया गया था जिस कारण कोठी में हल्की-हल्की पीली रोशनी चारो तरफ फैली हुई थी। उसी लैम्प वाले झुमर के नीचे युग, अभिमन्यु, कछुआ और कायर खाने और पीने का सामान लेकर बैठे हुए थे। कायर ने कपड़े चेंज कर लिये थे।
कछुआ खाने की पॉलिथीन देखते हुए कहता है – "जल्दी ओपन कर भाई अब सब्र नहीं होता, बहुत तेज भूख लगी है।"
कायर खाने के डब्बे पॉलिथीन के अंदर से निकालते हुए कहता है – "निकाल रहा हूँ यार सब्र तो कर थोड़ा।"
कायर पॉलीथीन के अंदर से खाने के चार-पाँच डब्बे निकालता है जैसे ही कायर पहले डब्बे पर से ढक्कन उठाता है खाने की महक चारो तरफ फैल जाती है।
युग खाने की खुश्बू सूँघते हुए कहता है – "वाह यार खुश्बू तो बहुत अच्छी आ रही है।"
कायर कहता है – "अच्छी क्यों नहीं आएगी आखिर मेरी बिन्दू ने जो बनाया है।"
"वैसे ये है क्या, बैंगलोर में तो ऐसा खाना नहीं मिलता।"
"बैंगलोर में ये कैसे मिलेगा ये तो मेघालय की फेमस डिस है ना इसे जाधो कहते है।"
"जाधो मतलब?"
"जाधो जो होता है ना ये एक प्रकार से लाल चावल होता है जो पोर्क, चिकन या मछली के साथ पकाया जाता है बिन्दु ने इसे चिकन के साथ पकाया है। इसे बनाने के लिए पहले हरी मिर्च, प्याज, अदरक, हल्दी, काली मिर्च और तेज पत्तो का पेस्ट बनाया जाता है जिसके बाद माँस के छोटे-छोटे टुकड़ो के साथ तला जाता है बाद में इसमें लाल चावल यानी जाधो मिलाकर पकाया जाता है।"
कायर की सारी बात सुनने के बाद कछुआ हँसते हुए कहता है – "देख रहा है ना युग बिन्दु के साथ रहने का असर बन्दे को यह तक पता चल गया कि जाधो बनाया कैसे जाता है, वैसे शादी के बाद एक दम परफेक्ट पति बनेगा तु, तु ना शायर से बावर्ची बन जा सही रहेगा तेरे लिए।"
कायर कछुए की बात का कुछ जवाब नहीं देता क्योंकि उसे पता था जवाब देना बेकार है। कायर दूसरे डब्बे में से ढक्कन हटाते हुए कहता है – "ये दोह-नेईओंग है दरअसल यह सुअर के मांस की करी है, जिसे बहुत ही लाजवाब तरीके से पकाया जाता है इसमे फ्राईड पोर्क को चावल और गाढ़ी ग्रेवी साथ बनाया जाता है और जो के साथ परोसा जाता है, काला तिल इस डिस की जान होती है जो इसमें अनूठा स्वाद देता है।"
कायर जैसे ही तीसरा डब्बा खोलता है युग उसे टोकते हुए कहता है – "ये नखमबितची है ये एक स्पेशल सूप है जिसे भोजन से पहले लिया जाता है। अक्सर इसे मेहमानो को परोसा जाता है नखम सूखी मछली होती है जिसे सूरज की धूप में सूखाया जाता है। सूप बनाने के लिए इसे पहले तलकर और फिर पानी में उबाला जाता है। सूखी मछली को उबालने के बाद इसे टेस्टी बनाने के लिए इसे बहुत सारी मिर्च और काली मिर्च के साथ पकाया जाता है।
कायर खुश होते हुए कहता है – "हाँ बिल्कुल सही कहा तुने पर तुझे कैसे पता इस डिस के बारे में, पहले कभी खाई है क्या?"
युग गुस्से से कहता है – "बचपन में माँ अक्सर यही डिस मुझे खिलाया करती थी।"
कायर युग के कंधो पर हाथ रखते हुए कहता है – "तो यार इतने गुस्से से क्यों बोल रहा है जरा प्यार से बोल मछली का काटा फस गया क्या।"
इतना कहकर कायर हँसने लग जाता है। जब कायर सभी खाने के डिब्बो पर के ढक्कन हटा देता है तो अभिमन्यु हैरानी के साथ कहता है – "ये क्या तु तो सब कुछ नोनवेज लाया है।"
"हाँ तो क्या हुआ तू नोनवेज नहीं खाता क्या पर बचपन में तो बड़े शौक से खाया करता था?"
"यार बात वो नहीं है, बात यह है कि मैंने पढ़ा है कि जिस जगह शैतानी आत्मा का वास होता है वहाँ पर माँस नहीं खाना चाहिए वरना वहाँ की आत्मा की भूख बढ़ जाती है वो आवाजे लगाने लग जाते है और तुझे पता है ना ऊपर वाले कमरे में यक्षिणी कैद है।"
कायर चिढते हुए कहता है "यार अभिमन्यु तू फिर शुरू हो गया, माना तू पैरानॉर्मल एक्सपर्ट है पर तेरी ये पैरानॉर्मल एक्टीवीटी हर जगह मत लाया कर समझा।"
"यार मैं मजाक नहीं कर रहा सच में।"
कछुआ कायर और अभिमन्यु को बीच में ही टोकते हुए कहता है – "बस करो यार, तुम दोनों मुझे चैन से खाना तो खाने दो और खाने के वक्त यक्षिणी की बाते मत करो समझे।"
कछुआ व्हिस्की की बॉटल अपने हाथ में लेते हुए कहता है – "बस एक बार ये विस्की मेरे अंदर उतरने दो फिर देखना अंदर का सारा डर बाहर होगा।"
सब लोग खाना खाना शुरू कर देते है। कछुआ खाना खाने के साथ व्हिस्की के पैग भी पीते जा रहा था और अभिमन्यु खाना कम, पी ज्यादा रहा था। उसके एक हाथ में व्हिस्की का गिलास था तो दूसरे हाथ में सिगरेट जिसके वो लम्बे–लम्बे कश लगाये जा रहा था।
रात के तीन बज रहे थे। ज्यादा शराब पीने की वजह से अभिमन्यु कछुआ और कायर जमीन पर ही सो गये थे। युग भी उनके पास ही रखे सोफे के ऊपर सो रहा था। युग सो ही रहा था कि तभी उसे एक सपना आता है। उस सपने में वो देखता है कि उसके पापा और वो बैंगलोर के एक्सीलेंश बॉडींग स्कूल के दरवाजे के सामने खड़े हुए थे। ये वहीं दिन था जब युग ने आखिरी बार अपने पिता को देखा था। इस वक्त युग छठवी क्लाश में था और युग के पिता उसे बॉर्डींग स्कूल में छोड़ने आऐ थे। युग के पिता की आँखो में नमी साफ दिख रही थी।
युग के पिता पैरों के बल बैठते हुए युग से कहते है – "बेटा मुझे पता है अभी तुम्हारी उम्र बहुत कम है पर मेरे पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है, तुम मुझे कभी गलत मत समझना, ये फैसला मेरा नहीं तुम्हारी माँ का है और बेटा तुम तो जानते होना कि तुम्हारी माँ के आगे किसी की नहीं चलती वह कितनी जिद्दी है अपनी बात मना कर ही मानती है।"
युग रोते हुए कहता है – "पापा, मम्मी ऐसा क्यों कर रही है वो मुझे आपसे दूर क्यों कर रही है, मैं आपके साथ रहना चाहता हूँ पापा।"
"रहना तो मैं भी तुम्हारे साथ चाहता हूँ बेटा पर मैं अपने हालातो के आगे मजबूर हूँ पता नहीं तुम्हारी माँ तुम्हे बॉर्डींग स्कूल क्यों भेज रही है, मेरे तो समझ नहीं आता कि एक माँ इतनी निर्दयी कैसे हो सकती है, तुम्हारी माँ के अंदर जरा सी भी ममता नहीं है; बेटा मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी जो मैंने तुम्हारी माँ से शादी करी।"
"पर पापा मम्मी तो मुझसे बहुत प्यार करती है ना।"
"अगर बेटा तुम्हारी माँ तुमसे प्यार करती तो वो तुम्हें यहाँ पर नहीं भेजती, वो बस दिखावा करती है तुम्हारे सामने अच्छे बनने का पर असल में वो ऐसी औरत नहीं है।"
इतना कहकर युग के पिता अपनी जगह पर खड़े हो जाते है।
युग फिर रोते हुए कहता है – "पापा मुझे अकेले छोड़ के मत जाईए मैं यहाँ पर नहीं रह पाऊँगा।"
"अब यही तुम्हारी दुनिया है बेटा और तुम घबराओ मत वार्डन को मैंने अपना नम्बर दे दिया है तुम्हे जब भी मेरी याद आए तो उन्हे कॉल लगाने बोल दिया करना।"
"नहीं पापा आप मत जाईए, रूक जाईए मुझे डर लग रहा है।"
"डरो मत बेटा, यहाँ पर तुम्हे नये दोस्त मिलेंगे यहाँ से तुम्हारा एक नया सफर शुरू होगा।"
युग अपने पिता की उंगली पकड़ते हुए कहता है – "नहीं पापा मैं आपके और मम्मी के बिना नहीं रह पाऊँगा, मुझे भी अपने साथ ले जाईए, मैं अब मस्ती भी नहीं करूँगा आपकी और मम्मी की सारी बात मानूँगा, पक्का, प्रामिश।"
युग के पिता युग के हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहते है – "तुम्हे अकेले रहना सिखना पड़ेगा बेटा, हो सके तो मुझे माफ कर देना बेटा मैं तुम्हे अपने से दूर होने से नहीं रोक पाया, मैं तुम्हारी माँ की ज़िद के सामने हार गया मैं अच्छा पिता नहीं हूँ।"
"नहीं पापा, आप बहुत अच्छे पापा है बस माँ ही खराब है मैं उन्हे कभी माफ नहीं करूँगा।"
युग के पिता अपने आँखो के आँसू पोंछते हुए कहते है – "ट्रेन के लिए देर हो रही है बेटा, अब मुझे जाना पड़ेगा।"
युग दहाड़े मार-मार के रोने लग जाता है और कहता है – "नहीं पापा, आप मत जाईए, रूक जाईए।"
युग के बार-बार कहने पर भी उसके पिता नहीं रूकते है और बॉर्डींग स्कूल के दरवाजे के बाहर निकल जाते है।
युग उन्हे अपने से दूर होते हुए देख रहा था और बार-बार रोते हुए बस एक ही बात दोहराए जा रहा था – "रूक जाईए पापा मत जाईए......रूक जाईए पापा मत जाईए।"
रूक जाईए पापा मत जाईए रूक जाईए कहते हुए ही युग अपने सपने में से बाहर आ जाता और उसकी नींद खुल जाती है। जब वो अपनी आँखे खोलता है तो देखता है कि कायर, कछुआ और अभिमन्यु अभी भी घोड़े बेचकर सो रहे थे। प्यास के कारण युग का गला सूख गया था। युग जमीन पर रखी बिस्लेरी की बॉटल उठाता है और पानी पीने लग जाता है।
अभी युग ने बस एक घूँट ही पानी पिया था कि तभी उसे एक आदमी की आवाज सुनाई देती है – "युग बेटा, ओ युग बेटा।"
युग यह आवाज सुनकर शौक्ड हो जाता है और सोचने लगता है – "ये आवाज किसकी है, हवेली में तो हम बस चार ही लोग है और ये तीनो तो सो रहे है, फिर ये आवाज किसकी थी, कहीं मेरे कान तो नहीं बज रहे।"
फिर आदमी की आवाज सुनाई देती है – "युग बेटा, ओ युग बेटा।"
युग खुद से कहता है – "नहीं...नहीं मेरे कान नहीं बज रहे सच में आवाज आ रही है और ये आवाज तो कुछ जानी पहचानी लग रही है....हाँ ये आवाज तो पापा की है, मेरे पापा की!"