शाम का धुंधलका सा था। बिजली छत के एक कौने में मुंडेर पर सिमटी- सिकुड़ी बैठी थी कि चहकती हुई चमकी ऊपर आई।
आते ही शुरू हो गई, बोली - तू अपनी साइकिल में ढंग से साफ - सफाई क्यों नहीं रखती? कभी तो तेल- ग्रीस कुछ लगाया कर। चेन जाम हुई पड़ी है। जंग खाई।
- क्या हुआ? बिजली ने उसके इतने सारे उलाहने सुने तो धीमे से बोल पड़ी।
चमकी बोली - अरे बीच सड़क पर एकदम से रुक गई साइकिल। मैंने ज़ोर से धकेल कर आगे बढ़ाने की कोशिश की पर टस से मस नहीं हुई, बल्कि चेन और उतर गई।
- फ़िर?
- फिर क्या, दस मिनट तक मैं उसके पीछे पड़ी रही लेकिन चेन चढ़ कर ही नहीं दी। सूखी पड़ी है बिल्कुल।
- फिर?
- फिर क्या, मैं तो उसमें ताला लगाकर वहीं एक पेड़ के नीचे छोड़ कर आ जाती मगर तभी सामने से एक लड़का आया और उसने चेन चढ़ा दी।
- ऐसा क्यों होता है रे ?
- कैसा? चमकी ने आश्चर्य से पूछा। फिर खुद ही बोल पड़ी - कह तो रही हूं कभी- कभी ऑयल भी तो डाला कर। ऐसे ही घसीटती रहती है। ऐसा तो होगा ही।
- मैं पूछ रही हूं... ऐसा क्यों होता है कि चेन हमसे नहीं चढ़ती पर लड़के चढ़ा देते हैं?
चमकी ने उसकी ओर देखा और हंसती हुई बोली - अगली बार मिलेगा तो पूछ लूंगी। कह कर चमकी धड़धड़ाती हुई नीचे चली गई। बिजली उसकी ओर देखती ही रह गई।
कई महीने बीत जाने पर भी बिजली को कभी - कभी राजा की याद आ जाती थी। उसे कभी राजा पर प्यार आता, कभी गुस्सा। वह समझ नहीं पाती थी कि आख़िर राजा ने उसे इस तरह धोखा क्यों दिया?
और क्या, ये धोखा ही देना तो हुआ। चाहे जबान से कहता रहा कि वो बिजली से प्यार करता है, वो उसकी जान है...पर पल्ला झाड़ कर उससे दूर भी चला गया। जो भी हो, कम से कम कारण तो बताता कि वो बिजली से क्यों नहीं मिलना चाहता।
और तब बिजली के मन में एक शैतानी भरा ख्याल आता। वो अक्सर कहा करता था न कि उसे अब तक लड़की मिली नहीं। काश, बिजली उसकी बात मान ही लेती। एक दिन उसे मिल ही जाती। इस ख्याल से बिजली अकेले में भी शरमा कर रह जाती।
साथ घूमते- घूमते राजा उसके कंधों पर अपना वजन बढ़ाता जाता था और कोशिश करता कि बिजली झुक कर ज़मीन पर बैठ ही जाए। बगीचे की हरी घास में बैठने के बाद बिजली को मुश्किल से राजा के हाथों को संभाले रखना पड़ता।
कभी बिजली के दिल में आता कि एकाएक राजा की दुकान पर पहुंच जाए और तमाशा खड़ा करे। चिल्ला- चिल्ला कर उससे पूछे कि उसने बिजली से प्यार क्यों किया? वह उससे अलग होने के बाद एक बार भी वहां गई नहीं थी। लेकिन वह राजा को कभी भूल नहीं पाई।
बिजली जब ज़्यादा सोचती तो एक बात उसके ध्यान में आती। उसे मैडम ने बताया था कि औरत और आदमी के उपजाऊ होने की कोई उम्र नहीं होती। कभी भी उपजाऊ हो सकते हैं, कभी भी बंजर।
छी! ये क्या बात हुई? बाइस- चौबीस साल का तंदुरुस्त अच्छा- भला लड़का एकाएक बंजर क्यों हो जायेगा? कैसे हो जायेगा? कोई कारण भी तो हो।
मैडम की तो बातें ही निराली। उनकी महिमा अपरंपार! कहती थी जवान लड़के या लड़की के दिल में कोई दीया होता है। उसे बहुत जतन से उकसा कर जलाना पड़ता है, तब कहीं जाकर उजास देता है। ये किसी राज मिस्त्री या शिल्पी कारीगर के छैनी - हथौड़े सा काम नहीं है कि ठोक पीट कर मूरत बना लो और सामने रख लो।
कभी बिजली को लगता मैडम ठीक कहती हैं तभी तो शादी के लिए लड़का लड़की देखने मां, बाप, ताऊ, चाचा, भाई, बहन, दोस्त, बुजुर्ग, बच्चे... सारा का सारा कुनबा जाता है।
हे भगवान। बिजली ये सब क्या जाने! दुनिया भर में हज़ारों लड़के लड़कियां रोज़ मिलते हैं, प्यार करते हैं, जीवन डोर से बंधते हैं... राजा अनोखा या बिजली अनोखी?