बिजली तीन दिन से घर से बाहर नहीं निकली थी। घर में भी वो या तो चुपचाप एक कौने में गुमसुम उदास बैठी रहती या फिर तंग सीढ़ियों के सहारे छत पर पहुंच कर रोती रहती। चमकी ने दो- एक बार उसे इस तरह परेशान हाल देख कर कुछ पूछना भी चाहा पर बिजली टाल गई। जब उसने कुछ नहीं बताया तो चमकी ने भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। सोच लिया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं होगी। और अपने काम में लग गई।
मां को ज़रूर कुछ खड़का सा हुआ कि लड़की काम पर क्यों नहीं जा रही है! लेकिन पूछने पर बिजली ने कोई जवाब नहीं दिया। बस, मुंह फेर कर नज़र से ओझल हो जाती।
अब बिजली किसको क्या बताए? मां बेचारी क्या जाने कि कौन राजा, किसका राजा..!
इस राजा ने तो उसे कहीं का न छोड़ा।
राजा उसका है ही कौन कि उसकी शिकायत करे? और किससे करे? क्या कह कर करे?
असल में खुद उसे अभी तक राजा की बात पर यकीन नहीं हो रहा था। सच पूछो तो उसे राजा की बात ही समझ में नहीं आई।
बिजली ने एक बार सोचा कि किसी तरह हिम्मत करके चमकी को बता दे सारी बात। लेकिन अगले ही पल वो घबरा गई। चमकी कहीं बात का बतंगड़ बना कर और कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे। फांदेबाज जो ठहरी।
बिजली को ये भी तो मालूम था कि इस चमकी ने एक बार उसे राजा से मिलने को मना किया था। अब झट से कह देगी कि तूने मेरी बात मानी क्यों नहीं? अब भुगत! ये सोच कर बिजली ने उससे कुछ भी नहीं कहा।
पर अकेले में बैठ कर बिजली जब सारी बात पर सोचती तो उसे कुछ भी समझ में नहीं आता था। सारी बात किसी रहस्य भरी पहेली की तरह लगती थी।
राजा ने उसे कोई धोखा नहीं दिया था। उससे अकेले में कोई ऐसी छेड़छाड़ भी नहीं की थी कि बिजली बिदक जाए। उसने तो जो कुछ कहा था उसे अपनी मजबूरी ही बताया था।
फिर राजा ने किया क्या? क्या कहा था ऐसा कि बिजली तीन दिन से इस क़दर परेशान हो कर घर में बैठी थी।
यहां तक कि बेचारे राजा ने तो उसके सिर पर हाथ रखकर अपनी मां की कसम खाई थी और कसम खाकर कहता था कि वो ज़िंदगी में बिजली के सिवा किसी भी लड़की से शादी करने की बात सोच भी नहीं सकता...
तब..? तब परेशानी क्या थी?
परेशानी की बात ये थी कि इतना सब कह देने के बाद भी राजा ने बिजली से कहा था कि वो अब राजा से न मिले। तो क्या कसम खाना उसका कोई नाटक था? क्या उसने बिजली के सिर पर हाथ रखकर झूठी कसम खाई?
बस, मुझसे मिलना मत।
क्यों?
पता नहीं!
तेरे घर वालों ने मना किया है?
नहीं!
फिर क्या तुझे कोई और लड़की भा गई?
नहीं।
क्या तेरी नौकरी छूट गई, जो लड़की और शादी की बात से बिदक रहा है?
नहीं तो!
फिर क्या बिजली से कोई शिकायत है तुझे?
नहीं, बिजली तो मेरी जान है।
तब? अपनी जान की जान लेने पर क्यों तुला है?
पता नहीं।
अरे क्या संन्यास लेगा? बाबाजी बनेगा?? कहीं डूब मरने चला है???
और बस, बिजली रोती - बिलखती उसके सामने से चली आई। वो किसी पत्थर के बुत की तरह खड़ा रहा।
बिजली का मन किया था कि थोड़ी देर के लिए हया- शर्म सब छोड़ कर उसे झिंझोड़ डाले और उससे पूछे - क्या औरत के काबिल नहीं है तू? नामर्द है क्या?
लेकिन बिजली ऐसी बात सोच भी कैसे सकती है। राजा के साथ कितने ही अंधेरे - उजाले घूमती तो फिरी है। केवल सुहागरात ही तो सब कुछ नहीं होती!!