और कोई दिन होता तो शायद राजा इस तरह बिजली को यहां आते देख कर उस पर गुस्सा हो जाता कि वो यहां क्यों चली आई।
लेकिन आज उसे बिजली के आने से बड़ी राहत महसूस हुई। बिजली भी खाली दुकान में समय ख़त्म हो जाने के बाद भी राजा को चौकीदार की तरह यहां अकेले बैठे देख कर कुछ - कुछ माजरा तो समझ ही गई और कुछ उसे जल्दी- जल्दी राजा ने बता दिया।
राजा गिफ्ट को मेज की दराज में रख कर बिजली से छिपाए रहा।
तोहफ़ा कोई ऐसे थोड़े ही दिया जाता है कि पाने वाला सामने आ गया तो उसे पकड़ा दिया। तोहफ़ा देने का तो एक अच्छा खासा प्लान था राजा के दिमाग़ में। राजा जानता था कि बिजली ये सुंदर गिफ्ट पाकर बेतहाशा खुश ज़रूर होगी, और उसकी भरपूर खुशी के इस लम्हे को राजा ऐसे ही जाने थोड़े ही देता। उस लम्हे के ऐवज में तो राजा को अपने लिए भी खुशी वसूलनी थी। और कुछ नहीं तो कम से कम एक प्रेम सना चुंबन तो लेना ही था।
यहां यह संभव नहीं था। एक तो दरवाज़ा कांच का था जिसके आर- पार सब दिखता था। दूसरे मैनेजर के किसी भी पल आ धमकने का अंदेशा था।
बिजली राजा की प्रेमिका ही सही लेकिन थी तो अभी अविवाहित ही। अपनी रोज़ी- रोटी की जगह पर उससे इस तरह की छेड़छाड़ राजा करना नहीं चाहता था। और जब कुछ करना ही नहीं तो बैठे - बैठे बेकार में उसे तोहफ़ा दे देना भी राजा के शरारती मन को मंजूर नहीं था।
बिजली तो मैनेजर साहब से पहले ही चिढ़ी हुई थी। ये ही तो थे जिन्होंने राजा से कभी कहा था कि वो बिजली से न मिला करे।
लड़की ऐसा अपमान कभी नहीं भूलती। वह उसे छेड़ने वाले सड़कछाप मजनुओं और शोहदों को चाहे पल भर में माफ़ कर दे लेकिन अपने प्रेमी से मिलने से रोकने वाले को तो कभी माफ़ नहीं करती। इस बात पर तो लड़कियां अपने पिता और भाई तक से दुश्मनी मोल लेने पर आमादा हो जाती हैं। यही कारण है कि समाज ने शादी के बाद लड़की के लिए घर छोड़ने की परंपरा बनाई, लड़के के लिए नहीं। लड़की पर जब प्रेम का जादू छाता है तो वह अपना- पराया नहीं देख पाती।
इसका भी एक कारण है।
लड़की अच्छी तरह जानती है कि घरवाले यदि एक प्रेमी से छुड़ा कर वापस घर ले जा रहे हैं तो वो ज़िंदगी भर घर पर रखने के लिए नहीं ले जा रहे। घर जाते ही दूसरे की तलाश करेंगे और हाथ पीले करके गंगा नहाएंगे। और ये कतई ज़रूरी नहीं कि ये दूसरा पहले से बेहतर ही हो। इसलिए लड़की उनके दिमाग़ पर भरोसा न करके अपने दिल पर ज़्यादा भरोसा करती है।
कुछ भी हो, बिजली का बस चलता तो वो मैनेजर साहब को खरी- खोटी ज़रूर सुनाती।
लेकिन अभी तो बात ही दूसरी थी। वो आएं तो सही। और बिजली बिना कुछ कहे - सुने अपने राजा की बांह पकड़ कर जल्दी से यहां से भाग छूटे।
उसे ये सब अपने जन्मदिन के कत्ल सरीखा लग रहा था। ज़ोर से भूख भी लग आई थी।
शायद उसकी भूख राजा ने भांप ली।
"अभी आया" कह कर बाहर निकल लिया। हतप्रभ बिजली उसे रोकती ही रह गई। राजा ने ये भी न सोचा कि अभी अगर मैनेजर साहब लौट आए तो वहां अकेले बिजली को बैठे देख कर क्या सोचेंगे? उसके निकल जाने के बाद बिजली ये सोच कर बैठी रह गई कि शायद लघुशंका के लिए मॉल के वाशरूम में गया हो।
राजा लौटा तो उसके हाथों में कागज़ की बड़ी सी प्लेट में दही बड़े थे। बगल में एक थैली में गरम पकौड़े भी लाया था।
लो, मन गया बिजली का जन्मदिन!