Shakral ki Kahaani - 16 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | शकराल की कहानी - 16

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शकराल की कहानी - 16

(16)

अचानक खुशहाल ने राजेश को सम्बोधित किया और शकराली भाषा में कहा ।

"पता नहीं सरदार बहादुर किस हाल में और कहां ह?"

राजेश कुछ कहने ही जा रहा था कि सुनहरी मादा उसकी ओर झुकी और धीरे से पूछा। "क्या कह रहा है?"

"पूछ रहा था कि क्या मैं पादरी की तलाश में जाऊं--?"

“तुम दोनों ही मूर्ख मालूम होते हो" सुनहरी मादा ने कहा, फिर सफेद मादा को सम्बोधित करके कहा, "क्या मैं गलत कह रही है संलविया -?"

"जो कुछ भी हो मगर एक बात तो बताओ।" सफेद मादा अर्थात सलविया ने कहा ।

"क्या -?"

सलविया ने राजेश की ओर हाथ उठा कर कहा। “आखिर में इसके लिये वही सब कुछ महसूस नहीं कर रही हूँ जो तुम उस दूसरे के लिये महसूस कर रही हो—?"

“इसका कारण मैं बताता हूँ।" राजेश ने कहा। "अस्ल में बात यह है कि मुझे महात्माओं का आर्शीवाद प्राप्त है इसलिये किसी मादा को मुझ में कुछ नजर ही नहीं आता ---"

मगर सलविया ने उसकी बात की नोटिस नही किया।

मादा खुशहाल की ओर संकेत करके बोली ।

"मैं जो कुछ महसूस कर रही हूँ — इसी के लिये कर रही हूँ-"

"तुमको यह बात नहीं कहनी चाहिये सलविया -" सुनहरी मादा ने कहा। "तुम जानती हो कि मैं उसके लिये कैसी भावना रखती हूँ ।"

"अरे ! मैंने तो ऐसे ही कह दिया था। " सलविया ने हंसकर कहा। "लो बेटा अब दोनों को संभालो" राजेश ने खुशहाल से शकराली भाषा में कहा ।

"क्यों-क्या!" खुशहाल ने आश्चर्य से पूछा । "दोनों को तुम्हारे ही शरीर से महक फुटती हुई महसूस हो रही है-"

"हें। " राजेश ने हंसकर कहा ।

"और तुम?"

"खुजली-" राजेश ने कहा और जमीन पर गिर कर पहले ही के समान लोटें लगाने लगा।

दोनों मादाये बौखला कर खड़ी हो गई फिर दोनों ने एक साथ पूछा। "क्या हुआ तुम्हें?"

"कुछ नहीं" लोटें लगा रहा हूँ।" राजेश ने कहा "आदमी तो हूँ नहीं कि कम्पनी में सभ्यता और शिष्टा के साथ बैठूं -।"

"मगर हमें तो लोटें लगाने की इच्छा नहीं होती।" सलविया ने कहा।

"अभी तुम्हारे बालों में जुए नहीं पड़ी होंगी-"

"अरे ! तो क्या जुएं भी पड़ जाती हैं।" दोनों ने एक साथ पूछा।

"जब शम्पू से नहीं स्नान करोगी और बालों में कंधा नहीं करोगी तो अवश्य पड़ेंगी---"

"ओह गाड- हम क्या करें?"

"बस दुआ करती रहो कि जुएं न पड़ने पायें-" राजेश ने कहा । "

वह दोनों कुछ नहीं बोलीं । राजेश भी उठ कर खड़ा हो गया। उसकी खुजली लोटें लगाने के कारण बहुत हद तक कम हो गयी थीं। उधर खुशहाल ने सूखे गोश्त के टुकड़े बर्तन में डाल दिये थे—वर्तन को आग पर रखते हुये उसने राजेश से धीरे से पूछा।

"क्या यह मेरे बारे में कुछ कह रही हैं?"

“आवाज दबा कर क्यों बोलते हो?" राजेश ने कहा। "जिस तरह तुम इनकी भाषा नहीं समझ रहे हो उसी तरह यह भी तुम्हारी जबान नहीं समझ रही हैं—इसलिये अपनी पूरी आवाज में बोला करो ।"

"अच्छा-अच्छा।" खुशहाल ने कहा और फिर अपना सवाल दुहराया। "हां-तुम्हारे ही बारे में कह रही थीं मुझे तो काठ का उल्लू समझ रही हैं-"

खुशहाल हंस पड़ा फिर गम्भीरता के साथ बोला । "भाई सूरमा - आखिर हैं तो मादायें ही और सुनो—अब मैं न आदमी हूँ और न यह औरतें-"

"क्या बात हुई मैं समझा नहीं?" राजेश ने कहा । "तुम्हारी बात मेरी समझ में आ गई है सूरमा भाई ।" "कौन सी बात?"

“यही कि कायदा कानून और दूसरी बातें तो आदमियों के लिये हैं—और अब हम आदमी नहीं बल्कि जानवर भला जानवरों को किसी बात की क्या परवाह हो सकती है।"

“शाबाश—" राजेश चहक कर बोला "तुम भी उबला हुआ गोश्त खाओ और आस्मान वाले का शुक्र अदा करो कि उसने तुम्हें जानवर बनने का मौका दिया।"

"तुम भी कुछ कहो- "

"मैंने तो फैसला कर लिया है-"

“मौत की तरह अटल फैसला।" राजेश ठन्डी सांस लेकर बोला।

जानवरों की खान्दानी मन्सूबा बन्दी नहीं हो सकती——”

"क्या यह तुम्हारा साथी मेरे बारे में कुछ कह रहा है-?" मादा ने उत्सुकता के साथ राजेश से पूछा— सुनहरी मादाने उत्सुकता के साथ पूछा।

"हां" राजेश ने फिर ठन्डी सांस खींची।

"क्या कह रहा है-?"

अब यह मेरी तरह रोमन कैथोलिक नहीं रहा। बालों की नकली पैदावार ने इसे भी थिंकर बना दिया है इसलिये अब पादरी की आवश्यकता नहीं रही- "

"हम दोनों में से इसे कौन पसन्द आया है?"

"तुम दोनों को ही-"

"यह क्या बात हुई?" सुनहरी मादा ने पूछा।

"ठहरो-पूछ कर बताता हूँ।" राजेश ने कहा फिर खुशहाल ने बोला।

"सुनहरी मादा का ख्याल है कि वह तुमसे निर्वाह कर लेगी- अब तुम अपना ख्याल बताओ ।"

"उससे कह दो कि मैं भी उसे पसन्द करता हूँ।" खुशहाल ने कहा।

"सुनो में ज्यादा देर तक यह काम न कर सकूंगा।"

"कैसा काम—?” खुशहाल ने कुछ न समझते हुये पूछा।

"यही कि तुम जो कहो वह में उसको उसकी जबान में बताऊं और वह जो कहे उसकी जबान में तुमको बताऊं यह काम मेरे बस से बाहर

“अच्छा-अच्छा मगर इतना तो कह ही दो।" खुशहाल ने कहा। उसके कहने का भाव बिनती करने जैसा था ।

"कह दूँगा-मगर बर्तन का भी ध्यान रखना - " राजेश ने कहा।

"कहीं ऐसा न हो कि बातों की धुन में गोश्त जल जाये।”

दूसरे दिन सवेरे जब राजेश की आंखें खुली तो वह अकेला था । न दोनों मादाये नही दिखाई दी और न खुशहाल। केवल राजेश ही का सामान वहां मौजूद था। खुशहाल का सारा सामान भी गायब था ।

वह कुछ देर तक सोचता रहा फिर झटके के साथ उठ कर उस दलान की और दौड़ लगाई जिधर उनके घोड़े बंधे हुये थे ।

खुशहाल का घोड़ा भी गायब था — मगर फिर भी उसने सन्तोष की सांस ली क्योंकि उसका घोड़ा मौजूद था और थोड़े ही फासिले पर सफेद मादा पडडी सो रही थी।

"आखिर वह क्या चक्कर है" वह सोचता हुआ बड़बड़ाया फिर वहीं खड़ा खड़ा जोर जोर से आवाजें देने लगा। "सलविया ! सलविया !" मगर सलविया जागी नहीं— उसी प्रकार पड़ी सोती रही ।

राजेश चिन्तित भाव में उसकी ओर बढ़ा उसके निकट पहुँच कर घुटनों के बल बैठा और दोनों हाथों से उसे झंझोड़ने लगा। साथ ही साथ आवाजें भी देता जा रहा था मगर नतीजा कुछ नहीं निकला। वह जागी नहीं । सांस स्वाभाविक तौर से चल रही थी। वह उठ कर खड़ा हो गया । वह इस निष्कर्ष पर पहुँच चुका था कि सलविया बेहोश है। वह "उसी की ओर देखता रहा ।

फिर कदाचित पांच मिनिट बाद सलविया के शरीर में गति उत्पन्न हुई और राजेश जोर जोर से उसे आवाजें देने लगा । "सलविया ! सलविया -।"

वह बौखला कर उठ बैठी और कुछ कहने ही जा रही थी कि राजेश बोल पड़ा।

"आखिर तुम एक घोड़ा खा ही गई।"

"उस...उस...कुतिया... ने उसे उड़ा दिया।" साल्विया रुक रुक कर कहा ।

"क्या बक रही हो कौन कुतिया?”

"मारथा"

"यह मारथा कौन है--?" राजेश ने पूछा।

"वही सुनहरे बालो वाली कुतिया - उसका नाम मारथा है-"

"अच्छा तो फिर?"

“वही तुम्हारे साथी को उड़ा ले गई— सलविया बताने लगी “

"दोनों इस हरकत से बाज रखने की कोशिश की थी। मारया से की हुई यहां तक आई थी। आखिर मारथा ने मेरे सिर पर डन्डा मारा और मैं बेहोश हो गई।

मगर तुम्हारे सिर पर मुझे न तो चोट का निशान नजर आ रहा..." राजेश ने घूरते हुये कहा ।

“विश्वास करो - मैं गलत नहीं कह रही हूँ।"

"तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं था—?".

"बस गलती हो गई।"

"इसी से पता चल रहा है कि तुम किस हद तक सच बोल रही हो। " राजेश ने तीखे स्वर में कहा ।

"क्या मतलब?”

"मतलब यह है स्वीटी कि तुम खुला झूठ बोल रही हो - " राजेश ने कहा फिर हंसकर बोला।

"सच्ची बात यह है कि तुम दोनों ने मिलकर मेरे साथी को उड़ा ले जाना चाहा था मगर वास्तव में मारथा तुमसे पीछा छुड़ाना चाहती थी और अन्त में वह तुम्हें जुल दे गई―"

"जो चाहो समझो मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है-"

"इसके अतिरिक्त अब और कह ही क्या सकती हो" राजेश ने कहा फिर बोला "अब मैं तुमको यहीं अकेला छोड़ जाऊंगा-"

"तुम ऐसा न कर सकोगे।"

"मुझे कौन रोकेगा?"

"मैं रोकूंगी--" सलविया चीख पड़ी।

"तुम मुझे क्या समझते हो ?"

"जादूगरनी —तुम ही हमारी इस मुसीबत की जिम्मेदार हो।"

"बस खामोश रहो — मैं लड़ाई झगड़ा नहीं पसन्द करती - "

"चलो जानवर बनने से यह तो लाभ हुआ" राजेश ने हंस कर कहा।

"क्या मतलब कैसा लाभ ?"

"औरत रहीं होंगी तो काफी चिड़चिड़ी रही होगी और अब जानवर बनने से बिल्कुल सीधी साधी हो गई हो -" राजेश ने कहा

"बकवास न करो - मुझे भूख लग रही है-"

"किस पेड़ के पत्ते पसन्द करोगी?" राजेश चारों ओर देखता हुआ बोला ।

"यह सुखा गोश्त है तुम्हारे पास ?"

"पता नहीं— मुझे विश्वास है कि वह सुनहरी मादा- क्या नाम बताया था तुमने उसका -?"

"मारथा-"

"हां तो मैं यह कह रहा था कि मारथा ने उसे थैले में न छोड़ा होगा ।"

"कहां है तुम्हारा थेला--?" सलविया ने पूछा । "जहां हम सोये थे- आओ चलें देखें-"

फिर दोनों वापसी के लिये मुड़ गये ।

राजेश का विचार गलत साबित हुआ था। उसके थैले से कोई भी वस्तु गायब नहीं हुई थी।

"तो फिर तुम्हारा साथी बहुत ही शरीफ मालूम होता है-" सलविया ने कहा। "मारथा तो बहुत ही नीच साबित हुई है- "

"तुम सिर पर क्यों चढ़ी जा रही हो दूर रह कर बात करो-" राजेश ने कहा ।

"कदाचित तुम किसी उन्नतिप्राप्त जाति से सम्बन्ध नहीं रख्नते हो -"

"यह तुमने कैसे कह दिया-?"

"इसलिये कि तुम्हें यह मालूम ही नहीं कि औरतों से कैसे बातें की जाती है-"

"मेरी जुएं भी समुन्नत नहीं हैं-" राजेश ने कहा "सफेद खाल उन्हें बहुते पसन्द आयेगी। काली खाल में रहते रहते वह उब गई होंगी--।"

“ज....ज...जुएँ—” सलविया हकलाई और पीछे हट गई । राजेश हंसने लगा ।

नाश्ते के बाद वहां से खानगी की ठहरी थी और सुलविया ने कहा था।

“मैं तुम्हारे साथ घोड़े पर नहीं बैठूंगी"

"ठीक है—तुम पैदल चलो वर्ना जुएं !"

"तुम मुझे पैदल चलाओगे और खुद घोड़े पर बैठोगे—?”

"जब तुम घोड़े पर नहीं बैठोगी तो यही होगा।" राजेश ने कहा ।

"तुम्हें शर्म नहीं आयेगी—?"

"इसमें शर्म की क्या बात होगी ।"

"तुम मर्द होकर घोड़े पर चलो और मैं औरत होकर पैदल चलू - यह शर्म की बात नहीं है-?"

"बिल्कुल नहीं" राजेश ने कहा फिर हंस कर बोला "औरत पैदल ही अच्छी लगती है। घोड़े की चाल कौन देखता है-"

"तो क्या मैं अब भी चलती हुई अच्छी लगती हूँ?"

"बहुत अधिक।" राजेश ने कहा, "इसीलिये मैं चाहता हूँ कि तुम घोड़े के आगे आगे चलो ।”

“मुझे मूर्ख न बनाओ - " सलविया ने कहा “मुझे घोड़े पर बैठाओ और खुद लगाम पकड़ कर पैदल चलो !"

"मारथा को मेरा साथी ले गया है और तुम्हें मेरा यह घोड़ा भगा ले जायेगा ।"

"अच्छा- तो फिर दोनों पैदल ही चलें-"

"ठीक है-" राजेश ने सिर हिला कर कहा, "यहां आदमी तो हैं नहीं कि हम दोनों को घोड़े की मौजूदगी में भी पैदल चलते देख कर अट्टहास लगायेंगे ।"

कुछ दूर चलने के बाद सलविया ने कहा। "क्या तुम अपने हाल पर सन्तुष्ट हो-?".

"बहुत अधिक इतना अधिक इत्मीनान तो पहले कभी प्राप्त ही नहीं हुआ था । इत्मीनान तो सोशल पोजीशन को स्थिर रखने के सिलसिले में नहीं प्राप्त होता ।"

"तुम ठीक कहते हो - आज कल मुझे बड़ी गहरी नींद लगती है-" सलविया ने कहा फिर एकदम से रुक गई।

"क्यों रुक क्यों गई?" राजेश ने पूछा।

"आखिर हम जा कहां रहे हैं?"

"मुझे अपने एक और साथी की तलाश है---" राजेश ने कहा 'वह' तीन चार दिन पहले अचानक हमसे बिछड़ गया था-"

"हमारे ही जैसा है" सलविया ने पूछा ।

"हां मेरा साथी मेरे जैसा है- "

"इंग्लिश समझ सकता है-?"

"नहीं।"