Shakral ki Kahaani - 14 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | शकराल की कहानी - 14

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शकराल की कहानी - 14

(14)

“किस बात पर यह प्रशंसा कर रहे हो— मेरे उछलने कूदने प या लोटें लगाने पर या गाने पर ।"

"इनमें से किसी बात पर नहीं-" खुशहाल ने हंस कर कहा ।

"फिर ?"

"तुम्हारे गले से निकलने वाली आवाज पर खुशहाल ने हुये कहा, "कोई यह नहीं कह सकता कि तुम वनमानुष नहीं हो।'

"किसी की मजाल नहीं कि कह सके," राजेश ने कहा। ठीक उसी समय दोनों मौन हो गये थे । उन्होंने किसी का अट्टहास सुना था। आवाज कुछ दूर की थी ।

राजेश ने खुशहाल की ओर देखा । उसने खुशहाल की और देख उसके नेत्रों में भी चौकन्ने पन के लक्षण नजर आ रहे थे। उसने समझ लिया और विश्वास कर लिया कि उसके कानों ने धोखा नहीं खाया था वह किसी के अट्टहास ही की आवाज थी और उस आवाज को खुशहाल ने भी सुना था वर्ना उसके नेत्रों में चौकन्ने पन के लक्षण न नजर आते फिर भी उसने खुशाल से पूछा-

"तुमने कुछ सुना?"

“हां-—और बहुत साफ सुना—'' खुशहाल ने कहा ।

"क्या सुना?"

"किसी के जोर से हंसने की आवाज - क्या तुमने भी ?"

"हां-न सुने होता तो तुमसे क्यों पूछता ।'

"कौन हो सकता है—?"

राजेश कुछ कहने ही वाला था कि अट्टहास फिर सुनाई पड़ा ।

"मेरे साथ आओ- " राजेश ने कहा ।

फिर दोनों तेजी के साथ चट्टान के सिरे तक पहुंचे थे।

"आवाज मर्द की थी या औरत की?" राजेश ने पूछा।

"यह तो में नहीं समझ पाय था- किसकी थी?"

"औरत की — " राजेश ने कहा ।

"बाप रे बाप — औरत भी इतनी तेज हंसती है-" खुशहाल ने कहा।

"चीखती हैं तो इससे भी तेज आवाज होती है ।"

"मगर हैं कहां दिखाई नहीं दे रही हैं-"

“कई एक नहीं हैं—बस एक ही है-" राजेश ने कहा ।

"यह कैसे कह सकते हो — ?"

"यार बहस न करो बस जल्दी से कहीं जाओ “औरतों से डरते हो क्या सुरमा?" खुशहाल ने हंसी उड़ाने वाले भाव में कहा ।

"आज का हर आदमी औरतों से डरता है—फिर हम तो जानवर ठहरे—हमें भी डरना ही चाहिये-" राजेश ने कहा।

"वैसे इस समय मैं छिपने के लिये एक मसलहत से कह रहा हूँ।"

"वह मसलहत क्या है?"

“कहीं, वह हम दोनों को देख कर चीखे न मारने लगे और डर मारे बेहोश न हो जाये--"

"मगर वह है कहाँ दिखाई नहीं दे रही है-" खुशहाल ने कहा ।

"धीरज रखो - अगर है तो दिखाई भी दे जायेगी" राजेश ने कहा।

मगर अभी वह छिपने भी नहीं पाये थे कि सामने वाले वृक्षों के झुण्ड से अपने ही जैसे दो जानवर बरामद होते देखे। अभी इतना उजागर तो था ही कि उनकी रंगत भी सुझाई दे जाती । उनमें से एक जानवर सुनहरे गालों वाला था और दूसरा सफेद बालों वाला ।

"सूरमा -"

"सुन रहा हूँ-कहो-"

“कहीं—वह हमारे घोड़े न चुरा ले जायें- " खुशहाल ने कहा ।

"हो सकता है-" राजेश ने कहा ।

ठीक उसी समय घोड़े बहुत जोर से हिनहिनाये थे और उन दोनों ने तेजी से उस ढलान में उतरना आरम्भ कर दिया था जिसकी समाप्ति पर घोड़ों को बांध आये थे ।

उधर वह दोनों सुनहरे और सफेद जानवर भी घोड़ों के हिनहिनाने की आवाजें सुन कर ढलान ही की ओर चल पड़े थे ।

और फिर जैसे ही उनकी नजरें इन दोनों काले जानवरों पर पड़ी थी वह ठिठिक गये थे और चीखने लगे थे― चीखने लगे थे नहीं बल्कि चीखने लगी थीं क्योंकि आवाजों से दोनों ही मादायें लग रही थीं- सुनहरी और सफेद मादा--

अचानक राजेश ने जोरदार अट्टहास लगा कर कहा।

"ले यार अब बनी है बात-"

"क्या मतलब?" खुशहाल ने कुछ न समझते हुये कहा।

"घबड़ाओ नहीं— जल्द ही सब कुछ समझ में आ जायेगा।"

उधर एक-दूसरी से अंग्रेजी में कह रही थी । ''डरो नहीं...डरो नहीं....'यह भी हमारी ही तरह आदमी मालूम होते हैं ।"

"हां यह बात तो है।" दूसरी ने कहा।

"मेरा ख्याल यह है कि यह घोड़े भी इन्हीं के है।" पहली बोली ।

"हो सकता है मगर यह तो आवश्यक नहीं कि हम इन दोनों की भाषा समझ सकें-" दूसरी ने कहा ।

"परेशान होने की आवश्यकता नहीं है---" राजेश ने अंग्रेजी में कहा।

"तुम हमारी भाषा भले ही न बोल और न समझ सको मगर मैं तुम्हारी भाषा बोल और समझ सकता हूँ। मगर यह तो बताओ कि हम दोनों तुम्हें किधर से आदमी लग रहे हैं--?"

"वाह-वाह..." सुनहरी मादा हर्ष पूर्ण आवाज में चीखी फिर सफेद मादा से बोली "कितनी खुशी की बात है कि हमारी भाषा बोल और समझ सकता है।"

"इस जंगल में इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है-" सफेद मादा ने कहा ।

"यह घोड़े तुम्हारे हैं?" सुनहरी मादा ने पूछा।

"हां" राजेश मे कहा।

"तुम आये कहां से हो?" सुनहरी मादा ने कहा ।

"हम दोनों तो इसी जंगल के वासी हैं—मगर तुम दोनों इस जंगल की नहीं मालूम होती।

"तुम ठीक समझे हो— हम इस जंगल की रहने वालियां नहीं है--" सुनहरी मादा ने कहा फिर ठन्डी सांस खींच कर बोली, "मगर अब तो इसी जंगल ही में जीवन व्यतीत करना है--"

"तुम्हारे नर कहां हैं?” राजेश ने पूछा ।

"मैं नहीं समझी तुम क्या कहना चाहते हो?"

"मेरा मतलब है कि तुम दोनों के जोड़े कहां हैं—?"

“ओह समझी—'' सफेद मादा बोल उठी।

"हमारे जोड़े नहीं है- बस हम दोनों अकेले है।"

"वह तो मैं देख ही रहा हूँ—इसीलिये तो पूछ रहा हूँ कि तुम दोनों के नर कहां हैं।"

"हमें नहीं मालूम। "

"यह तो बड़ी विचित्र बात है कि तुम्हें अपने नरों के बारे में कुछ नहीं मालूम --" राजेश ने कहा ।

"तुम्हें हमारी स्थितियों का ज्ञान नहीं है इसलिये ऐसा कह रहे हो?"

"तो अपनी स्थितियां बताओ।"

"हम पन्द्रह दिनों से यहां भटक रहे हैं-जानवर बने हुये।"

"यहां तक पहुँची कैसे—?” राजेश ने पूछा।

"हमें यह भी नहीं मालूम कि हम यहां तक पहुँचे कैसे——।”

“तुम्हारी बातों पर विश्वात करने को दिल नहीं चाह रहा है ।"

"तुम्हारी, इच्छा – वैसे मैंने गलत नहीं कहा है—''

"अच्छा यह तो बताओ कि इन पन्द्रह दिनों में तुम्हें और कितने हमारे ही जैसे काले जानवर इस जंगल में मिले थे?" राजेश ने पूछा।

"कोई भी नहीं।" सुनहरी मादा ने कहा ।

“अर्थात सब से पहले हमीं दोनों यहां मिले हैं—?" राजेश ने पूछा वास्तव में इन प्रश्नों से राजेश- सरदार बहादुर के बारे में मालूम करना चाहता था। उसने सोचा था कि शायद सरदार बहादुर जानवर के रूप में इनसे मिला हो ।

"हां—पन्द्रह दिनों बाद तुम्हीं दोनों मिले हो।" सुनहरी मादा ने कहा।

"वह कुछ नहीं बोल रहा है-" सफेद मादा ने संकेत करके कहा । खुशहाल की ओर संकेत करते हुए कहा।

"वह केवल अपनी ही भाषा बोल और समझ सकता है-" राजेश ने कहा।

"अगर तुम्हारी भाषा बोल और समझ सकता होता तो अब तक यहां अट्टहास गूजते होते -।"

"तो तुमने हमारी भाषा कैसे सीखी - "

"तुम्हारी ही भाषा नहीं बल्कि जर्मन इटेलियन तथा कई भाषायें भी जानता हूँ और जो भाषा बोलता हूं वह फटाफट बोलता हूं-बस ऐसा ही लगता है जैसे मैं उसी भाषा के देश का रहने वाला हूं।

"यह तो बड़ी अच्छी बात है- सुनहरी मादा ने कहा फिर कराहती हुई बोली “क्या तुम लोगों के साथ कुछ खान को भी है—'

"क्या भूख लग रही है—?" राजेश ने हँसते हुये पूछा।

"लग रही है नहीं बल्कि लगी हुई है इतनी जोर की भूख कि चक्कर आ रहे हैं। अगर खाने को कुछ हो तो खिला दो ।"

"अब तक क्या खाती रही हो?"

"यह मत पूछो।" सुनहरी मादा ने कहा, "पिछली बातें याद आती हैं तो आंखों में आंसू आ जाते हैं-हम दोनों को संसार का हर सुख आत था-"

"मेरा मतलब यह था कि जब से जंगलों में आई हो तब से क्या खाती पीती रही हो?"

"यहीं की जंगली फल जिनमें कोई स्वाद नहीं और यहीं का नालियों में बहता हुआ पानी बस यही हमारी खुराक थी--"

"तब तो आदत पड़ गई होगी यही खाने पीने की—— " राजेश ने हंस कर कहा। वास्तव में वह उन दोनों के प्रति सन्देह में ग्रस्त था । सोच रहा था कि कहीं यह उन लोगों की कोई चाल न हो जो शकरालियों को आदमी से जानवर बना रहे थे— फिर उसने सोचा था कि अगर ऐसा ही है तो उसे खुद ही उन दोनों मादाओं को साथ रखना चाहिये-सम्भव है इसी प्रकार कोई सूत्र हाथ लग जाये ।

उधर सुनहरी मादा भरे कण्ठ से कह रही थी । "हमारी हंसी न उड़ाओ – अगर कुछ खाने को है तो खिला दो-" राजेश को उनकी दशा पर दया आ गई और उसने गम्भीरता से कहा--।

“हम तुम्हें सूखा हुआ गोश्त उबाल कर खिला सकते हैं।" दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा----बस अधरों पर जबान फेर कर रह गई ।

"चाहोगी तो चाय भी पिला दूँगा - "

"वाह-वाह---" दोनों एक साथ चहक पड़ीं फिर सफेद मादा ने कहा, "चाय हमारे शरीरों में एक नई जिन्दगी डाल देगी।"

"क्या इस नई जिन्दगी से पेट नहीं भरा जो फिर किसी नई जिन्दगी की इच्छा कर रही हो-? " राजेश ने हंस कर चुभते हुये स्वर में कहा।

"हमारे कहने का यह मतलब नहीं था मैं तो यह कह रही थी कि..."

"क्या सचमुच तुम लोगों के पास खाने को कुछ नहीं है—?" राजेश ने पूछा।

"नही।"

"अच्छा-- आओ हमारे साथ-राजेश चढ़ाई की ओर मुड़ता हुआ बोला।

मगर खुशहाल उससे पहले ही बन्दरों की तरह छलांग लगाता हुआ चढ़ाई पर दोड़ता चला गया था। उसने पीछे मुड़ कर देखा तक नहीं।

“उसे क्या हुआ?" सुनहरी मादा ने खुशहाल की ओर संकेत करते हुये पूछा ।

"मादाओं से भड़कता है-" राजेश ने हंस कर कहा । "वह क्यों ?"

"अभी उसका जोड़ा मिला नहीं—”

"और तुम्हारा?" सुनहरी मादा ने पूछा ।

"वह अभी पैदा ही नहीं हुआ-"

दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं फिर सफेद मादा ने कहा ।

"तुम इस प्रकार क्यों कह रहे हो क्या हम सचमुच जानवर हैं-"

"फिर क्या है--?" राजेश ने भी सवाल किया।

"एक महीने पहले तो मैं जानवर नहीं थी।"

"मैं भी नहीं थी।" सुनहरी मादा ने कहा ।

"फिर क्या थी?" राजेश ने पूछा । "

"एक लड़की थी!"

"मैं भी लड़की ही थी।" सफेद मादा ने कहा ।

"तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं-" राजेश ने कहा ।

"खूब समझ में आ रही हैं" सफेद मादा ने कहा “क्या तुम भी पहले आदमी नहीं थे- हमेशा से जानवर ही रहे हो?"

राजेश कुछ नहीं बोला । "जवाब दो-चुप क्यों हो गये?"

"मैं भी पहले आदमी ही था, बाद में जानवर बना" राजेश ने कहा।

"तुम्हें जानवर बने कितने दिन हुये -?"

"यह तो मुझे याद नहीं राजेश ने कहा फिर पूछा "और इन्हें-?"

"एक महीना हुआ-"

"मगर अभी तो तुमने पन्द्रह दिन कहा था-"

"वह तो इन जंगलों में भटकने के सिलसिले में कहा था-" सफेद मादा ने कहा।

“वर्ना जानवर बने सचमुच एक महीना ही हुआ -"

“चलो— मैंने तुम्हारी बात सच मान ली -"

"तुम किस प्रकार जानवर बने थे?" सुनहरी मादा ने पूछा ।

"हीरोशीमा पर पहला एटम बम फेंकने के बाद" राजेश ने कहा ।

"मुझ पर व्यंग न करो काले जानवर।" सुनहरी मादा ने बुरा मान कर कहा, "मैं अमरीकन नहीं बल्कि अंग्रेज हूँ।"

"तुम कैसे जानवर बनी थीं—?"

"इस सम्बन्ध में कुछ नहीं जानती –"

"यहां किस प्रकार पहुँची?"

"यह भी मुझे मालूम नहीं-"

"अच्छा-जो मालूम हो वही बताओ?" राजेय ने पूछा।

"मैं लंकाशायर के एक हास्पिटल में नर्स थी" सुनहरी मादा बताने लगी "इतना तो याद है कि मैं एक रात अपने कमरे में सोई थी—फिर कुछ याद नहीं कि क्या हुआ था— कैसे जानवर बनी थी और किस प्रकार इस जंगल में पहुँची थी— जब भी याद करने की कोशिश करती हूँ बस इतना ही याद आता है कि अपने कमरे में सोई थी— उसके बाद कुछ याद नहीं आता।"

“और तुम — ?” राजेश ने सफेद मादा को सम्बोधित करके पूछा ।

"मैं लन्दन की एक फर्म में टाइपिस्ट थी-" सफेद मादा ने कहा, “इतना याद है कि एक रात कुर्सी पर बैठे बैठे सो गई थी उसके बाद कुछ भी याद नहीं आता-"

राजेश ने सोचा कि सवाल करे कि सोने से पहले उसे किसी गंध का आभास तो नहीं मिला था मगर फिर न जाने क्या सोच कर मौन ही रहा । "तुम किस प्रकार जानवर बने थे?" सफेद मादा ने पूछा।