Shakral ki Kahaani - 13 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | शकराल की कहानी - 13

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शकराल की कहानी - 13

(13)

बहादुर की प्रतीक्षा में दोपहर हो गई मगर वह नहीं आया।

"क्या आज पूरा दिन उसके इन्तजार में यहीं गुजारना है?"

"नहीं—अगर उसे आना होता तो अब तक आ गया होता।" खुशहाल ने कहा ।

"तो फिर?"

"अब हम उसकी तलाश में चलेंगे।"

"मैं नहीं जाऊंगा।" खुशहाल एकदम से भड़क उठा।

"क्यों?"

"वह मुझे मुसीबत में छोड़ कर भागा था—फिर में उसके लिये क्यों मुसीबत उठाऊं?" खुशहाल ने बड़ी घृणा के साथ कहा। राजेश ने बड़ी बड़ी मुश्किलों से उसे समझा बुझा कर बहादुर की तलाश पर आमादा किया।

"तो उसकी तलाश में हम किधर चलेंगे?" खुशहाल ने पूछा “मेरे विचार से तलाश का काम वहीं से आरम्भ करना चाहिये जहां तुम जानवर बने थे." राजेश ने कुछ सोचते हुये कहा। "वहां तो हम पहले ही जा चुके हैं।"

"तुम समझे नहीं-"

"तुम्हारी बहुत सारी बातें बिना समझाये नहीं आतीं।" राजेंग हंस पड़ा फिर बोला ।

"बहादुर को मेरी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ था कि वह किसी आदमी की हरकत थी। वह यही कहता रहा था कि यह कोई आस्मानी 'बला है--"

"तो फिर?"

"वह वहां अवश्य गया होगा मगर उसे निराश होना पड़ा होगा ।"

"मैं समझा नहीं?"

"मतलब यह है कि अगर उसे आस्मानी बला मान भी लिया जाये को वह केवल आदमियों का पीछा करती है-जानवरों का नहीं ।"

"यह कैसे कह सकते हो—?" खुशहाल ने पूछा ।

"इसलिये कह सकता हूँ कि उसने हम लोगों पर हमला नहीं किया- इसलिये नहीं किया कि हम लोग जानवर हैं-"राजेश ने कहा।

"अगर हम लोग आदमी रहे होते तो अब तक न जाने कब का उसका शिकार हो गये होते -।"

"यह बात तो समझ में आने वाली है- " खुशहाल ने कहा, "मजा यह है कि अब हम उसकी तलाश में है मगर वह हमें नहीं मिल रही है-।"

"और नहीं मिलेगी क्योंकि हम जानवर बन चुके हैं।" राजेश ने कहा फिर बोला, "अगर हम आदमी रहे होते तो उसने खुद ही हमें तलाश कर लिया होता ।"

"ठीक कह रहे हो-"

"अच्छा अब चलने की तैयारी करो।" राजेश उठता हुआ बोला। "तुम्हारी बात मानने से इन्कार नहीं कर सकता वैसे दिल नहीं चाह रहा है।"

"पिछली बात को भूल जाओ।" राजेश ने कहा, "मुझे उस बात का ख्याल नहीं है सुरमा - " खुशहाल ने गम्भीरता के साथ कहा, "मुझे तो यह सोच कर गुस्सा आ रहा है कि अगर उसने तुम्हारी बात मान ली होती तो हम इस परेशानी में क्यों पड़ते ।”

"किस परेशानी में —?" राजेश ने पूछा ।

"जंगलों में इधर उधर भटकने की परेशानी में-।" राजेश हंस पड़ा फिर बोला।

"तुम यहीं समझ रहे हो कि आदमी ही हो।"

"था कभी आदमी — मगर अब तो जानवर है-"

"अगर अपने आपको जानवर समझते होते तो जंगलों में भटकने बाली बात ही न कहते।"

"वह क्यों ?"

"इसलिये कि जानवर जंगलों में भटका नहीं करते बल्कि घुमा फिरा करते हैं।"

"अच्छा दावा- तुम्हारी ही बात सच अब चलो भी--" खुशहाल ने उक्ता कर कहा।

"हां- चलो - काफी देर हो गई।" राजेश ने कहा जब कि उसने खुद ही इस आशा में देर की थी। शायद बहादुर आ जाये हालांकि उसे पूरा विश्वास था कि वह अपनी जिद के कारण जब तक जानवर बन गया होगा। दोनों घोड़ों के पास पहुँच कर अपने अपने घोड़ों पर जीनें करने लगे ।

"सर पद या दुल्की-?" खुशहाल ने पूछा-1

"जंगलों में घुसना है—दुल्की ही उचित होगी- ।" दोनों घोड़ों पर सवार हुये और घोड़े दुल्की चाल से चलने लगे।

कुछ दूर चलने के बाद अचानक खुशहाल ने कहा। "क्या बात करने पर पाबन्दी है—?"

राजेश की नजरें इधर उधर देखती जा रही थीं। दोनों ही खामोश थे।

"पूछो-"

"नहीं तो बोलते चलो-" राजेश ने कहा।

"तो फिर एक बात बताओ।"

"पूछना यह है कि क्या बिना औरत के जिन्दगी गुजारी नहीं जा सकती?"

"यह सवाल तो तुम्हें अपने बाप से करना चाहिये था। " खुशहाल हंस पड़ा फिर बोला ।

“भला इस तरह की बात कोई अपने बाप से पूछ सकता है?"

"तुम लोग शकराल से कभी बाहर नहीं निकले इसलिये भला यह कैसे जान सकते हो कि दुनिया कहां से कहां पहुँच गई है-" राजेश ने कहा।

“अरे ! अब तो लड़के अपने बापों से ऐसी ऐसी बातें पूछते हैं कि क्या बताऊं—”

"नहीं-बताओ- खुशहाल ने कहा।

"में नहीं बताऊंगा मुझे शर्म लग रही है!"

"अच्छा जाने दो-मगर मेरे सवाल का जवाब तो देना ही होगा ।"

"मैं उसका जवाब भी नहीं दे सकता क्योंकि अभी मैंने शादी नहीं की है—" राजेश ने फिर बोला।

"अगर मैंने शादी की होती तो- जरूर बता देता कि शादी के बिना जिन्दगी गुजारी जा सकती है या नहीं।"

“तो तुमने अब तक शादी क्यों नहीं की?"

और खुद तुमने अब तक क्यों नहीं की?" राजेश ने पूछा। "इसका जवाब तो मेरे मां बाप ही दे सकते हैं कि उन्होंने अब तक मेरी शादी क्यों नहीं की। इस मामले में मैं आजाद तो था नहीं कि अपने मन से शादी कर लेता ।"

"बस यही हालत मेरी भी है-" राजेश ने कहा।

"मेरे भी मां बाप ही इस सवाल का जवाब दे सकते हैं कि उन्होंने मेरी शादी क्यों नहीं की-।" खुशहाल कुछ नहीं बोला ।

"अच्छा तुम अब अपना ख्याल बताओ?" राजेश ने कहा।

"किस बारे में?"

"यही कि शादी के बिना जिन्दगी गुजारी जा सकती है या नहीं— ?"

"मेरा ख्याल तो यही था कि बिना शादी के जिन्दगी नहीं गुजारी जा सकती -" खुशहाल ने कहा फिर ठण्डी सांस खींच कर बोला, “मगर अब तो यह ख्याल एक सपना बन गया है।"

"वह क्यों?"

"जानवरों की शादी नहीं होती- "

“मगर वह अपने जोड़े जरूर रखते हैं-" राजेश ने कहा।

"तुम्हारा जोड़ा भी लग ही जायेगा। निराश होने की जरूरत नहीं है-"

"खैर छोड़ो कोई दूसरी बात करो -।"

"क्या बात करू --?" राजेश ने पूछा ।

"अपनी जिन्दगी की कोई अनोखी बात जो मुझे हंसा सके- खुशहाल ने कहा। राजेश कुछ देर तक सोचता रहा फिर बोला ।

"हंसने वाली बात तो नहीं है मगर है सच्ची बात कहो तो सुनाऊ- "

"चलो सुनाओ।" खुशहाल ने कहा।

"एक बार में इसी तरह जंगल में फंस गया था-" राजेश ने कहा।

"शिकार खेलने की गरज से जंगलों में घुस गया था— काफी दौड़ धूर करने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिल सका था । वापस लौटा तो रास्ता भूल गया । संध्या हो गई मगर ।"

"ठहरो – " खुशहाल बोल पड़ा ।

“क्यों- क्या हुआ?” राजेश ने पूछा ।

"रात को सुनाना कहानियां रात ही को अच्छी लगती हैं।"

"मगर यह कहा नहीं है— सच्ची बात है।"

"जो कुछ भी हो-रात ही में सुनूंगा - "

“तुम्हारी मर्जी।" 'राजेश ने कहा फिर बोला, "अब हमें घोड़ों की चालें कुछ तेज कर देनी चाहिये ।"

घोड़ों की चालें कुछ तेज हो गई । थोड़ी देर बाद खुशहाल ने कहा ।

"हम किस मुसीबत में पड़ गये हैं ।"

"मजा तो उस वक्त आयेगा जब इन बालों में जुए पड़ेंगी ।"

खुशहाल के बालों में जुए पड़ती या न पड़ती मगर जब सुखे चमड़े के नीचे राजेश के शरीर में खुजली उठती तो नाच कर रह जाता था। वश चलता तो पूरे शरीर को किसी पेड़ के तने से रगड़ कर रख देता-- मगर डर था कि बहरूप उतर जायेगा।

अब दिन ढलने लगा था मगर बहादुर का पता नहीं चल सका था।

"क्या रात में भी तलाश जारी रखी जायेगी?" खुशहाल ने पूछा।

"नहीं- अब हमें डेरा डालने के लिये जगह खोजनी चाहिये ।" और फिर थोड़ी ही देर की दौड़ घूप के बाद रात व्यतीत करने के लिये उन्हें एक उत्तम सा स्थान मिल गया। यह एक चिकनी और साफ सुथरी चट्टान थी जिसके आस पास फलदार वृक्ष भी थे और निकट ही पानी भी मौजूद था।

"क्या ख्याल है--?” राजेश ने पूछा ।

रात बिताने के लिये इस जंगल में इससे अच्छी जगह नहीं मिल सकती।" खुशहाल ने हर्षित होते हुये कहा ।

"तो फिर उतरो-"

दोनों घोड़ों से उत्तरे-घोड़ों को ढलान में ले जाकर बांधा और फिर वापस आकर चट्टान पर बैठ गये ।

"रात भूखे ही गुजारी जायेगी—?” खुशहाल ने पूछा।

"अरे यार । अभी सूरज डूबने में देर है—पूरी रात पड़ी हुई है— बस दम ले लिया जाये तो फिर खाना पकाने में हाथ लगाया जाये।" राजेश ने कहा-।

फिर दोनों ही उसी चट्टान पर लेट गये। दोनों ही खामोश थे। यह खामोशी थकावट के कारण थी या दोनों ही अपने अपने स्थान पर कुछ सोच रहे थे— इस सम्बन्ध में विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता था।

अब घूंधलका फैलने लगा था।

"अब हमें आग जलाने का प्रबन्ध करना चाहिये-"  राजेश ने लेटे लेटे कहा।"

“उठने को दिल नहीं चाह रहा है--'' खुशहाल ने कहा।

''अगर तुम नहीं उठे तो तुम्हें फिर से भूखा सोना पड़ेगा,'' राजेश ने धमकी दी।

"भूखे पेट नींद कहां आती है।" खुशहाल ने कहा फिर हंस कर बोला, "रात भर पेट कुल कुल करता रहेगा।"

"तो फिर उठो - लकड़ियां भी चुननी हैं--"

"उठता हूं-" खुशहाल ने कहा।

"उठ भी जाओ।" राजेश ने झल्ला कर कहा ।

"नाराज न हो बड़े भाई उठ रहा हूँ।" खुशहाल ने कहा मगर उठा नहीं । सचमुच थकावट के कारण उससे उठा नहीं जा रहा था। फिर राजेश उठने ही जा रहा था कि खुशहाल ने उसका हाथ पकड लिया।

"अब क्या है?" राजेश आंखें निकाल कर बोला । “मेरी एक बात सुनो-"

"क्या ?"

"यहां कोई और भी मौजूद है-" खुशहाल ने धीरे से कहा ।

"कहाँ-?" राजेश एकदम से चौंक पड़ा।

"ना.. नहीं-- मगर मुझे ऐसा ही महसूस हो रहा है।"

"परवाह मत करो।" राजेश कहता हुआ उठ बैठा ।

"क्या मतलब?" खुशहाल ने पूछा और खुद भी उठ कर बैठ गया। "मतलब यह कि अगर हमारे ही जैसा हुआ तो फिर इधर जरूर आयेगा।"

“और अगर कोई आदमी हुआ तो--?"

"देख कर हमें गोली मार देगा-"

"और में परवाह न करू' --।" खुशहाल ने आश्चर्य से कहा।

“नहीं—परवाह करने की बिल्कुल जरूरत नहीं है-" राजेश ने कहा, "वनमानुष बने रह कर जिन्दगी गुजारने से यह कहीं बहुत अच्छा है कि हम गोलियों का निशाना बन जायें।”

"यह तुम कैसी बातें करने लगे सूरमा भाई--" खुशाल ने कहा तुमने खुद ही एक बार यह कहा था कि आदमी को हर हाल में खुश रहना चाहिये और अब इस तरह की बात कह रहे हो ।

"मैंने आदमी के लिये कहा था- जानवर के लिये नहीं और अब हम आदमी नहीं बल्कि जानवर हैं। इसलिये अब जिन्दगी की परवाह मत करो।" राजेश ने कहा और बैठे ही बैठे लचकने लगा। फिर खड़ा होकर थिरकना आरम्भ कर दिया ।

"यह.... यह....तुम क्या कर रहे हो?" खुशहाल ने आश्चर्य से पूछा।

"कसरत---" कहता हुआ राजेश चट्टान से नीचे उतर गया । "यह कसरत है?" खुशहाल ने आश्चर्य के साथ पूछा ।

"हाँ---हमारी इसी प्रकार से कसरत की जाती है-" राजेश ने कहा। हाँलाकि यह सूखी खाल के नीचे खुजली उठने के कारण हो रहा था।

हा भी नीचे उतर आया और उसे आश्चर्य से देखने लगा । राजेश खुजली की ओर से ध्यान हटाने के लिये जोर जोर से गाने लगा ।

"कोई नहीं है हमारा... फिरते हैं बेसहारा...सुन ले कोई खुदारा....लूसी हो या कलारा"

"हांय....हांय..यह कौन सी जबान है?" खुशहाल ने कहा ।

"खुजली की — "

खुशहाल ने जोर से अट्टहास लगाया फिर उसकी ओर बढ़ता हुआ बोला।

"लाओ-मैं खुजला दूँ –"

"खुजाने से क्या लाभ होगा?"

"खुजली मिट जायेगी"

“ठोक है—” राजेश ने कहा फिर तत्काल ही पीछे हटते हुये बोला, "नहीं नहीं खुजाने की जरूरत नहीं है—"

“क्यों--अब क्या हुआ— अभी तो ठीक है।" कह कर तैयार हो गये थे।"

"तब सोचा नहीं था। " राजेश ने कहा। "क्या नहीं सोचा था ?"

"यही कि खुजाने से मेरे बाल उतझ जायेंगे -" राजेश ने कहा । वास्तव में "ठीक है" कहने के बाद अचानक उसे इस बात का ख्याल आया था कि अगर खुशहाल ने उसके शरीर पर हाथ रखा तो पेट खुल - जायेगा । वह समझ जायेगा कि मैंने बालों वाली खालों से तैयार किया हुआ वस्त्र पहन रखा था और अभी वह किसी मसलहत से खुशहाल पर वास्तविक्ता प्रकट नहीं करना चाहता था।

उधर खुशहाल कह रहा था ।

"मैं समझ गया।"

"क्या समझ गये--?"

"तुम्हारे बालों में जुए पड़ गई हैं वही काट रही हैं-"

"हां यार" राजेश ने कहा, "सच्ची बात यही है।"

"तो फिर मुझसे दूर ही रहना-" खुशहाल ने हंसकर कहा, राजेश थोड़ी देर तक उछलता कूदता और जमीन पर लोटें  रहा फिर उसके कन्ठ से वनमानुषों जैसी आवाजें निकलने लगीं। खुशहाल हँसता रहा। जब राजेश मौन हुआ तो उसने कहा। "कमाल है भाई सूरमा - "