(8)
"आदिल आपे से बाहर हो गया। खुशहाल का बाप जो पास ही में खड़ा था गिड़गिड़ाने लगा ।
"वह पागल हो गया है उस पर रहम करो क्या तुम नहीं जानते कि वह सरदार बहादुर के जांनिसारों में सब से आगे था ।"
"तो फिर जो कुछ पूछ रहा हूँ वह बताता क्यों नहीं-" आदिल नर्म पड़ता हुआ बोला ।
"अच्छा अब तुम चुप रहो- " राजेश ने आदिल से कहा फिर बूढ़े से बोला, "रजवान के ग्यारह आदमी एक साथ पागल हो गये हैं- "
"तुमने सुना होगा ।"
"हां.....हां....सुना है भाई।" बूढ़े ने कहा।
"तो फिर हमें मालूम होना चाहिये कि वह क्यों पागल हो गये हैं। ताकि बचाव का कोई उपाय किया जा सके वर्ना पूरे शकराल के लोग बारी बारी इसी तरह पागल हो जायेंगे ।"
"मेरी समझ में कुछ नहीं आता।" बूढ़े ने कहा और दोनों हाथों से कमर थाम कर बैठ गया। कुछ क्षणों तक खामोशी छाई रही फिर राजेश ने ऊंची आवाज में कहा। "ओ खुशहाल ! मैं तेरी शादी एक परी से करना चाहता हूँ बाहर निकल ।"
"भाग जाओ हरामी की औलाद— मेरी हंसी मत उड़ाओ– " अन्दर से आवाज आई फिर पूछा गया। "तू है कौन?"
"इतनी जल्दी मुझे तू भूल गया?" राजेश ने कहा। "मैं वही हूँ जिस ने पिछले साल तेरा कर्ज अदा करके तेरी जान छुड़ाई थी। वर्ना वह महाजन तुझे उल्टा लटका देता।"
"ओ भूठे तु हैं कौन मैंने तो किसी महाजन से कर्ज नहीं लिया था।"
"क्या यह ठीक कह रहा है?" राजेश ने धीरे से बूढ़े से पूछा । "हां इसने किसी से कर्ज नहीं लिया है—"बूढ़े ने कहा।
"और तुम इसे पागल कह रहे हो―" राजेश तेज आवाज में बोला " इसने पूरे होशहवास के साथ सरदार बहादुर का अपमान किया है।"
"मेरी समझ में कुछ नहीं आता भाई।" बूढ़े ने कहा।
"हम दरवाजा तोड़ देंगे।" राजेश दहाड़ा |
"तुम्हारे सीने छलनी हो जायेंगे। मेरे हाथ में तमंचा है और उस में छः गोलियां मौजूद हैं-" अन्दर से कहा गया। आदिल झल्ला कर दरवाजे में टक्कर मारने ही जा रहा था कि राजेश ने उसे रोकते हुये कहा।
"ठहर जाओ - वह जो कुछ कह रहा है—कर गुजरेगा ।"
"क्या तुमने सुना नहीं कि वह सरदार बहादुर को भगोड़ा कह रहा है-" आदिल दांत पीस कर बोला।
"सुनो आदिल--" राजेश ने गम्भीरता के साथ कहा "अगर तुम ने मुझे इस मामले में डाला है तो फिर वही करो जो मैं कह रहा हूँ।" आदिल कुछ नहीं बोला ।
"यहां से भीड़ हटा दो -" राजेश ने धीरे से कहा ।
“दो ही तीन मिनिट के अन्दर वहां सन्नाटा छा गया। केवल खुशहाल के मां बाप और यह दोनों वहां रह गये थे ।
अचानक राजेश ने ऊंची आवाज में कहा
"अच्छा खुशहाल | हम जा रहे हैं । तुम्हें तीन घन्टे का समय दिया जा रहा है । उसके बाद भी अगर तुम बाहर न निकले तो फिर हम तुम्हें जवरदस्ती बाहर निकालने पर मजबूर हो जायेंगे ।"
"आसमान वाले के लिये मेरा पीछा छोड़ दो -" अन्दर से भर हुई आवाज आई ।
"हम जा रहे हैं मगर समय तीन घन्टे का है इसे याद रखना-" राजेश ने कहा और आदिल के साथ बाहर निकला फिर आदिल से कहा, "मैं बड़ी आसानी से कोठरी की छत में इतना बड़ा सुराख कर सकता हूँ कि उसे देख सकूं।"
"मैं समझा नहीं?" आदिल ने कहा ।
"आखिर वह सामने क्यों नहीं आना चाहता?" राजेश ने पूछा।
"मैं क्या बताऊं कुछ समझ में नहीं आता -।",
"यही जानने और समझने के लिये मैं उसे एक नजर देखना चाहता हूँ-"
"बूढ़े से बात कर लो ।"
“वह कभी इस पर तैयार न होगा । उसे यकीन है कि वह गोलियां बरसाने लगेगा-अगर उसे इस बात का यकीन न होता तो उसने खुद 'दरवाजा तोड़ दिया होता ।"
"तुम्हें भी यकीन है कि वह फायरिंग आरम्भ कर देगा—?” राजेह ने पूछा ।
"हां—मुझे यकीन है—उसका लेहजा पहचानता हूँ—''
"तब तो छत में सुराख करना खतरनाक ही होगा" राजेश ने चिन्ताजनक स्वर में कहा ।
"फिर-?"
"आओ चलें कुछ और सोचेंगे।"
"वह सुअर तो यह भी बताने पर तैयार नहीं कि सरदार बहादुर का साथ कहीं से छूटा था।" राजेश कुछ नहीं बोला। वह किसी सोच में गर्क था वह थोड़ी ही दूर गये होंगे कि उन्हें घोड़ों को टापों की 'आवाजें सुनाई दीं। तुफानी गति से दौड़ने वाले घोड़े निकट होते जा रहे थे। राजेश और आदिल रुक गये। राजेश के चेहरे पर रेडीमेड मेकअप मौजूद था।
शीघ्र ही छः सवार सामने आ गये । सबसे आगे सरदार बहादुर था । आदिल ने दोनों हाथ उठा कर हिलाये थे। "मेरे बारे में अभी कुछ न बताना - " राजेश ने आदिल से कहा। निकट पहुँच कर सरदार बहादुर ने घोड़ा, रोका और आदिल से पूछा।
"क्या वह वापस आ गया है?"
"कौन ?” आदिल ने भी सवाल ही किया । "खुशहाल...!"
"हां-वापस आ गया है और कोठरी में बन्द हो गया है। कहता है कि अगर दरवाजा तोड़ा गया तो वह गोलियां बरसाना शुरू कर दिगा- "
"उसे मत छेड़ो - हर एक से कह दो कि उसे उसके हाल पर छोड़ दे—आस्मान वाले की यही मर्जी है-" सरदार बहादुर ने दुख भरे स्वर में कहा।
आदिल ने उसे आश्चर्य से देखा मगर कुछ बोला नहीं।
सरदार बहादुर के पांचों लड़ाके भी घोड़ों से उतर आये थे। उनके चेहरे सुते हुये थे और नेत्रों में आतंक की गहरी छाप भी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई भयानक सपना देखकर अचानक जाग गये हों।
सरदार बड़ादुर घोड़े की लगान पकड़े हुये अपने घर की ओर मुड़ गया । उसने राजेश की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया था । आदिल और राजेश उसके बराबर चल रहे थे और पांचों लड़ाके उनके पीछे थे।
"वह तुम्हें बुरा भला और भगोड़ा कह रहा था-" आदिल ने कहा ।
"जरूर कह रहा होगा " सरदार बहादुर ने कहा ।
"आदिल चलते चलते रुक गया। उसके नेत्र आश्चर्य से विस्फारित हो उठे थे। वह सरदार बहादुर को इस प्रकार देख रहा था जैसे उसके पूछ निकल आई हो।
“चलते रहो—' सरदार बहादुर ने कहा “सच्ची बातों पर मुझे गुस्सा नहीं आता।"
"हो क्या तुन सचमुच उसे छोड़ भागे थे--?” आदिल ने पूछा।
"हां यह सच है।" आदिल कुछ बोला तो नहीं मगर उसका चेहरा क्रोधवश लाल हो गया था।
घर पहुँच कर सरदार बहादुर ने अपने पांचों लड़ाकों से कहा ।
"अब तुम लोग भी अपने घरों को जाओ-मगर इतना याद रखना कि तुम्हारी जबानों से खुशहाल के बारे में कुछ भी न निकलने पाये।" लड़ाकों के जाने के बाद सरदार बहादुर की नजर राजेश पर पड़ी और उसने उसे घूरते हुये आदिल से पूछा ।
"यह कौन है—?"
"मेहमान--" आदिल ने कहा ।
"क्या तुम इसे जानते हो?"
"बहुत अच्छी तरह।"
"मगर मैंने तो इसे पहले कभी नहीं देखा।"
"पहले तुम अन्दर चलो—' आदिल ने कहा ।
सरदार बहादुर के नेत्रों में सन्देह की झलकियां थीं । राजेश अब उन -दोनों के पीछे पीछे चल रहा था ।
एक बड़े कमरे में पहुँच कर सरदार बहादुर ने राजेश की ओर गर्दन मोडी और आदिल से बोला ।
"हां अब बताओ कि यह कौन है?"
"इसे आसमान वाले ने भेजा है" आदिल ने कहा । "आदिल ।" सरदार बहादुर ने कठोर स्वर में कहा "यह मजाक का वक्त नहीं है-में बहुत ही परेशान हूँ।"
“तुम क्यों परेशान हो सरदार बद्दादुर—?" इस बार राजेश बोला था।
सरदार बहादुर चौंक कर उसे घूरने लगा था — फिर बड़बड़ाया ।
“आवाज तो कुछ जानी पहचानी सी लगती है—।”
राजेश ने नाक पर से रेडीमेड मेकअप हटा दिया ।
“सूरमा--" सरदार बहादुर उछल पड़ा फिर इस बुरी प्रकार राजेश चिम्टा थी कि उसका दम घुटने लगा ।
"सचमुच तुझे आस्मान वाले ने भेजा है मेरे भाई मेरे दोस्त... मेरे प्यारे-" सरदार बहादुर कह रहा था “अब में बहुत खुश हूँ-अब तनिक भी परेशानी नहीं है— सुन रहा है आदिल — अब सब कुछ ठीक हो जायेगा. अगर आस्मान वाला हमें मुसीबत में डालता है तो
उसे दूर करने के लिये सूरमा को भी भेज देता है-" "अपनी सांस ठीक करो अपने को संभालो बातें बाद में होंगी-" राजेश ने कहा ।
"अच्छा:'अच्छा' "मगर तुम कब आये--१४ "बस आ गया—तुम्हारी परेशानी खींच लाई ।"
“क्या तुम जानते हो?"
"किसी हद तक आदिल से मुलाकात के बाद ही कुछ मालूम हुआ
“कुछ भी हो — अब मुझे यकीन है कि सब ठीक हो जायेगा—” सरदार बहादुर की विचित्र दशा थी। थोड़ी थोड़ी देर बाद राजेश
से लिपट जाता था । “देखो दोस्त ! कहीं अब मुझे शर्म न आने लगे- " राजेश ने
सचमुच शर्मीले स्वर में कहा और सरदार बहादुर उसके कन्धे पर हाथ मार कर बोला ।
"बिल्कुल नहीं बदले हो-"
"अब तुम्हारी हालत पहले से अच्छी है इसलिये अब कहानी सुनी
जासूसी दुनिया
जा सकती है— राजेश ने कहा "कहानी का प्रारम्भिक भाग आदित सुन चुका हूँ-
"मैं रजबान तक पहुँच ही नहीं सका था-" सरदार बहादुर ने चिन्ता जनक स्वर में कहा "मैंने उस औरत की तलाश से काम आरम्भ किया था । सारी गुफायें देख डालों—इसी बीच मैंने मीरान घाटी का एक नया रास्ता भी खोज निकाला ।" वह मौन होकर आदिल की ओर देखने लगा फिर आदिल ही ने बोला |
"उन्हीं गुफाओं में से एक में वह रास्ता छिपा हुआ है—मगर में उसे किसी को बताना नहीं चाहता।"
"क्या तुम्हारे लड़ाकों को भी उस रास्ते का पता नहीं चल सका ।" आदिल ने पूछा ।
“नहीं—मैंने उन्हें भी नहीं बताया—पुराने रास्ते से ही उन्हें मीरान घाटी ले गया था।"
"उन्हें मीरान घाटी क्यों ले गये थे?" आदिल ने पूछा।
“उसी औरत की तलाश में।" सरदार बहादुर ने कहा "जब वह उन गुफाओं में नहीं मिली थी— और वह छिपा हुआ रास्ता मुझे न आया था उसी वक्त मुझे यकीन हो गया था कि वह उसी रास्ते से आई गई थी, और वह रास्ता मीरान घाटी ही जाता है-"
"यह मीरान घाटी है कहाँ ?" राजेश ने पूछा ।
" गुलत रंग के आगे-बड़ी सुहानी घाटी है-"
"तो तुम उसी औरत की तलाश में मीरान घाटी गये थे-?"
"मगर यहां भी उसका सुराग न मिल सका—ऐसे मुझे यह नहीं कहना चाहिये कि उसका सुराग नहीं मिल सका ।"
"कह भी रहे हो और नहीं भी आखिर यह क्या बात हुई---?' राजेश ने कहा !
"यह इसलिये कह रहा हूँ कि घाटी के एक हिस्से में मैंने उसे तलाश किया था ।"
"आगे क्यों नहीं बढ़े थे--?” "वही बताने जा रहा हूँ-
"नहीं- -" राजेश ने कहा, "पहले यह बताओ कि तुमने रजवान जा कर उसके बयान की तस्दीक करने की कोशिश क्यों नहीं की?"
"अगर मीरान घाटी जाने वाला वह रास्ता न दिखाई दिया होता तो मैं रजवान ही जाता - मैंने सोचा कि पहले उस औरत ही को तलाश किया जाये जो रजवानी सरदार लाहुल की बीवी नहीं थी—"
"मैंने तस्दीक कर ली है—" आदिल ने सरदार, बहादुर से कहा
"वह लोग खुशहाल ही की तरह कोठरियों में बन्द हो गये हैं । "
"जरूर हो पाये होंगे - अगर मुझ पर भी वही बीती होती तो मैं भी किसी को अपनी शक्ल न दिखाता- अब तुम खामोश रह कर यह कहानी सुनो -" सरदार बहादुर ने कहा फिर राजेश की ओर मुंह करके कहने लग) हाँ---तो मीरान घाटी पहुँच कर हमने एक जगह डेरा डाल दिया होगा। एक एक करके अलग अलग रास्तों पर हो लेते और उसे तलाश करते रहते फिर शाम होते ही डेरे पर वापस आ जाते। एक दिन जब खुशहाल वापस आया तो उसे तेज बुखार था । पूरी रात वह बुखार में भुनता रहा था और फिर जब सूरज निकला तो वह जोर जोर से चीखने लगा | हम सब चौंक कर उसकी ओर देखने लगे । उसका बदन ऐठ रहा था और.... 'और ....'क्या बताऊं उसके शरीर के रोंगटे जादुई तौर पर बढ़ रहे थे। एक घन्टे के अन्दर अन्दर वह आदमी से बनमानुष बन गया । एक एक फिट लम्बे बाल और आँखों को छोड़ कर पूरा चेहरा भी बालों से ढक गया। बदन में ऐंठन होते समय उसने कपड़े तो फाड़ ही डाले थे- बिल्कुल नंगा हो गया था---- ओ सूरमा ! मुझे इस तरह न देखो हम शकराली पहाड़ों से भी टकराने की हिम्मत रखते हैं मगर आस्मानी बलाओं से बहुत डरते हैं। मेरी जगह अगर वह होता तो वह मी मुझे उसी हाल में छोड़ कर भाग खड़ा होता ।"