(6)
फिर वह खेमे में आये थे। आदिल के आठ साथियों को दूसरे खेमों में भिजवा दिया गया था। शेष दो आदमी इसी बस्ती के रहने वाले थे।
“ओ सूरमा---'मेरे बड़े भाई।" आदिल कह रहा था। "आस्मान वाला हम पर मेहरबान है कि उसने फिर तुम्हें भेज दिया।"
“कोई खास बात———?” राजेश ने पूछा|
"बहुत ही खास, मगर यहां नहीं बताऊंगा। तुम्हें मेरे साथ चलना।
"सरदार बहादुर तो ठीक हैं—?"
"हां"
राजेश समझ गया कि आदिल यहां किस कराल की कहानी चाहता उसने कहा।
"मेरे साथ तीन आदमी और है---"
"मैं सब सुन चुका हूँ और जो कुछ भी हुआ उसके लिये अफसोस भी है— मगर जो भी हुआ वह अनजाने तौर पर हुआ। अपने साथियों से कह दो कि तैयार हो जायें। हम अभी वापस जायेंगे।"
"कम से कम सूरमा को तीन दिन तक इस बस्ती में रहने देते।" बस्ती के सरदार ने कहा।
"नहीं दोस्त—बाद में तुम्हारी यह ख्वाहिश जरूर पूरी की जायेगी -" आदिल ने कहा।
"मुझसे जो कहा गया है वही कर रहा हूँ।"
"कम से कम उसे तो रहने दो जिसको हमसे दुःख पहुँचा है-"
"इसका फैसला सूरमा को करना होगा।" आदिल ने मुस्कुरा कर कहा।
"मैं भी यही चाहता हूँ— मेरे उस साथी को आराम की जरूरत है--" राजेश ने कहा।
“वैसे उससे भी जरा पूछ लू।"
फिर वह उन लोगों को छोड़ कर शहबाज के खेमे में आया था।
"लोग चले ही आ रहे हैं तुम्हारे दर्शन को-" खानम मुस्कुराई।
"बड़ी मुसीबत में पड़ गया हूँ खानम-" राजेश ने कहा।
"अब वह मुझे शकराल की विचली आबादी में ले जा रहे हैं। तुम लोग चाहो तो मेरे साथ चल सकते हो और नहीं तो यहां भी पड़े रह सकते हो।"
"हम भी साथ चलेंगे --" खानम ने कहा।
"नहीं..." शहबाज ने कहा।
"हम यहीं रुके रहेंगे-"
"मेरा भी यही ख्याल है-" राजेश ने कहा ।
"हुआ करे मैं तो यहां नहीं रहेंगी।"
"जो कुछ कह रहा हूँ वहीं ठीक है।" शहवाज ने कहा।“और फिर मेरी जो हालत है वह देख रही हो इस हालत में कैसे सफर कर सकता हूँ।"
"तुमको शहबाज की बात मान लेनी चाहिये–" राजेश ने खानम से समझाने वाले भाव कहा।
"क्या प्रोफेसर दारा भी तुम्हारे साथ जायेंगे?" खानम ने पूछा।
"कैसे जागेगा वह बेचारा भी तो जख्मी है—" राजेश ने कहा।
"तो बना तुम अकेले जा रहे हो?"
"हां...!" राजेश ने कहा। "तुम लोगों को यहां सारे सुख मिलेंगे यह लोग नौकरों की तरह तुम्हारी खिदमत करते रहेंगे।”
"तुम्हारी बापसी कब होगी-?"
“इसका जवाब तो ऊपर वाला ही दे सकता है---"
“यह क्या बात हुई—'' खानम ने उसे घूरते हुये कहा।
“मैं सच कह रहा हूँ खानम—" राजेश ने कहा।
"खान शहवाज के इस बस्ती का रुख करके मुझे बहुत बड़ी परेशानी में डाल दिया है—"
फिर जब राजेश ने प्रोफ़ेसर दारा को स्कीम बताई तो दारा ने बुरा सा मुंह बना कर कहा।
"मुझे तो शकराली भी नहीं आती- पागल होकर रह जाऊंगा ।"
"शहवाज को आती है और फिर खानम भी रहेगी इसलिये तु पागल नहीं हो सकते ।"
"मुझे भी अपने साथ ले चलिये।" दारा ने कहा।
"तुम्हारी डयुटी समाप्त हो चुकी है प्रोफेसर और तुम छुट्टी पर हो—' राजेश ने कहा।
“ रह गया मैं तो मेरी बात यह है कि जोरू जांता नहीं है इसलिये मेरे ऊपर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं जब जहां चाहूँ रहूँ-
“आप मेरे साथ अन्याय कर रहे हैं―" दारा बिसूर कर बोला । राजेश ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और स्नेह युक्त स्वर में बोला।
“देखो दोस्त मैं नहीं जानता कि वह लोग मुझे क्यों ले जा रहे है। वैसे मेरा अनुमान है कि शकराल की मध्यवर्ती बस्ती में कुछ गड़बड़ है- मैं तुम लोगों को परेशानी में नहीं डालना चाहता- "
"अच्छी बात है—' दारा लम्बी सांस खींच कर बोला।
“निश्चिन्त रह कर मेरी वापसी की प्रतिक्षा करना — शकराली 'अब तुम्हारे मित्र है।"
"प्रश्न तो यह है कि मैं कब तक आपकी वापसी की प्रतीक्षा करता रहूँगा?"
"यह भी ठीक है—'" राजेश ने कहा।
“अच्छा — मैं इसका भी प्रबन्ध करा देता हूँ कि जब तुम चाहो यह लोग तुम्हें सीमा पार करा दें- खानम और शहनाज मेरी प्रतीक्षा करेंगे।".
"यह अधिक उचित मालूम होता है-"
"ठीक है-" राजेश ने कहा और दोनों हाथ उसकी ओर बढ़ा दिये।
घोड़ों की गति काफी तीव्र थी। अंधेरे में भी अपने जाने पहचाने मार्ग पर सरपट दौड़े जा रहे थे ।
यह मात्रा रात भर के लिये स्थगित की जा सकती जी मगर आदिल को जल्दी भी और उसने अभी तक इस जल्दी का कारण नहीं बताया था। राजेश भी ऐसा बन गया था जैसे कुछ जानने की इच्छा ही न रखता हो।
घोड़े आगे पीछे दौड़े जा रहे थे। अचानक उसने आदिल को तेज आवाज में कहते सुना ।
"गुफाओं की ओर-"
और फिर थोड़ी ही देर बाद राजेश को मालूम हो गया कि यात्रा स्थगित कर दी गई है। ठहरने के लिये जिस गुफा का चयन किया गया स्थिति यह बता रही थी कि इधर से गुजरने वाले इसी में रात व्यतीत था। वह इतना विस्तृत था कि उसमें दसों घोड़े भी खप गये थे। गुफा की करते रहते है।
अलाव लिये एक ओर अलग स्थान था और उसमें आग भी मौजूद थी । बस थोड़ी सी सूखी लकड़ियां डाल कर उसे भड़काने की देर थी।
इस काम में भी अधिक समय नहीं व्यतीत हुआ था। मन्द सी पीली रोशनी चारों ओर फैल गई और आदिल ने अलाव के निकट राजेश को लेकर उसे इस प्रकार देखना आरम्भ किया जैसे वस्ती में भर नजर देखने का अवसर न मिला हो।
"सब ठीक है-" राजेश सिर हिला कर बोला।
"क्या ठीक है?" आदिल ने कुछ न समझते हुये कहा।
आदिल अट्टहास लगा कर बोला ।
“सूरमा के भेस में कोई भूत शैतान नहीं है-" दारावने अट्टहास लगाया फिर बोला ।
"बिल्कुल नहीं बदले हो भाई सूरमा बैठ जाओ। मैं तो तुमको इस तरह इसलिये देख रहा था कि अपनी आंखों को तुम्हारी मौजूदगी का विश्वास दिला सकू।"
राजेश अलाव से जरा हट कर बैठ गया—फिर आदिल उसके निकट बैठता हुआ बोला। "मुझे विश्वास है कि बड़े उपासक की दुआ ही तुम्हें यहां ले आई।"
"और शायद बड़े उपासक की दुआ ही से मेरे साथी की पिटाई भी हुई है-" राजेश ने कहा।
"उस मूर्ख को बस्ती में अकेला जाना ही नहीं चाहिये था— आदिल ने कहा।
“या तो न जाता या जाना ही था तो तुम्हें साथ ले लिये होता । शकराली की हर बस्ती में तुम्हारी जान पहचान वाले मौजूद हैं-"
"खैर छोड़ो इसे और यह बताओ कि मामिला क्या है?" राजेश ने पूछा।
आदिल कुछ क्षणों तक मौनवत अलाव पर नजरें जमाये रहा फिर कहने लगा ।
"पन्द्रह दिन पहले की बात है। गुलतरंग के मेले की अन्तिम रात थी। बड़ा उपासक शकराल की हर बस्ती के सरदार को बारी बारी चबूतरे पर बुला बुला कर उसे अपना यह प्रश्न दुहराने को कह रहा था जो उसने अपने सरदार बनने से पहले किया था। जब उनमें रजवानी सरदार लाहुल या उसका कोई प्रतिनिधि दिखाई नहीं दिया तो बड़े उपासक को चिन्ता हुई। शकराल में यह पहला अवसर था जन किसी बस्ती के किसी सरदार ने प्रश्न दुहराने वाली रात को बड़े उपासक के सामने हाजिरी न दी हो। अन्त में एक औरत आगे बढ़ी। उसने कहा कि वह सरदार लाहुल की बीवी है और लाहुल का प्रतिनिधत्व करने आई है। जब बड़े उपासक ने लाहुल की गैर मौजूदगी का कारण पूछा तो उस ने उत्तर में एक विचित्र कहानी सुनाई।"
आदिल मौन होकर अलाव की ओर देखने लगा और राजेश उस के बोलने की प्रतीक्षा करता रहा फिर आदिल ने अलाव पर से नजरें हटाई और राजेश की ओर देख कर कहने लगा ।
"उस औरत ने बताया कि उसके शौहर लाहुल ने अपने दस साथियों समेत पीले रेगिस्तान की यात्रा की थी मगर उन ग्यारहों की वापसी दूसरे की अनभिज्ञता में हुई और वह सब के सब अपने अपने घरों की कोठरियों में बन्द हो गये। उनमें सरदार लाहुल भी शामिल है। किसी ने उस समय से उनकी शक्लें नहीं देखी । उनसे जब दरवाजा खोलने को कहा जाता है तो वह धमकियां देते हैं कि अगर किसी ने भी उन्हें देखने की कोशिश की तो वह उसे गोली मार देंगे — जीवित नहीं छोड़ेगे-बहरहाल वह औरत लाहुल के न आने का भी कारण बता कर चली गई—मगर मेरे भाई सरदार बहादुर ने दावा किया है कि वह बाहुल की बीवी नहीं थी—”
"किस आधार पर दावा किया था?" राजेश ने पूछा ।
"वह लाहुल की बीवी को देख चुका था उसे अच्छी तरह जानता पहचानता था—और फिर किसी औरत को किसी मर्द का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार भी नहीं है—यह बातें हर शकराली औरत भी जानती। है—अगर वह लाहुल की बीबी हो रही होती तो वहां प्रतिनिचित्व करने कैसे जाती-?" "ठीक कहते हो अब आगे कहो- " राजेश ने कहा ।
"बस इन्हीं कारणों से सरदार बहादुर को उस पर सन्देह हुआ था और उसने उस औरत का पीछा किया था । वह खेमों की ओर जाने के बजाय गुफाओं की ओर गई थी और यहां से इस तरह गायब हुई थी कि फिर उसका सुराग नहीं मिल सका था। सरदार बहादुर ने इस घटना की सूचना बड़े उपासक को दे दी और बड़े उपासक ने इस मामले की छान बीन करने का काम सरदार बहादुर को सौंप दिया— सरदार बहादुर दूसरे ही दिन छः लड़ाकों के साथ रजवान की ओर रवाना हो गया था। पांच दिन व्यतीत हो जाने पर भी जब उनकी वापसी नहीं हुई तो हम सब परेशान हो उठे - फिर मैं खुद कुछ लोगों को साथ लेकर रजवान की ओर रवाना हो गया था। वहीं पहुँचने पर यह मालूम हुआ कि लाहुल की बीबी गुलतरंग मेले में नहीं गई थी बीवी ही नहीं बल्कि --रजबान का कोई भी आदमी गुलतरंग नहीं गया था । यही कारण था कि न तो सरदार लाहुल मेले में गया था और न उसने किसी को अपना प्रतिनिधि हो नियुक्त किया था-मगर वह बात सच साबित हुई थी जिसका उल्लेख उस औरत ने किया था— अर्थात लाहुल सहित ग्यारह आदमियों ने पीले, रेगिस्तान की यात्रा की थी रात में किसी समय वापस आये थे और कोठरियों में बन्द हो गये थे— और यह बात सच भी है कि अब तक किसी ने उनकी शक्लें नहीं देखीं—बस उनकी आवाजें सुनी जाती हैं—उनसे जब भी बाहर निकलने को कहा जाता है। वह गोली मार देने की धमकी देते हैं ।"
"मगर तुम्हारा भाई सरदार बहादुर ?" राजेश ने पूछा।
"उसका क्या हुआ ?" उसके और उसके साथियों के बारे में कुछ न मालूम हो सका-?"
आदिल ने ठन्डी सांस खींच कर कहा, "उन लोगों को रजवान के किसी भी आदमी ने नहीं देखा । आस्मान वाला ही जाने कि उन पर क्या बीती।"
"बड़ी विचित्र बात है—" राजेश ने कहा ।
"फिर मैंने बहुत कोशिश की थी सरदार लाहुल अपनी कोठरी का दरवाजा खोल दे। बड़े उपासक का भी हवाला दिया था मगर सफलता नहीं मिली थी। इसी तरह उसके साथियों के भी दरवाजे खुलवाने की कोशिश की थी।"
"तो किसी ने भी अपनी शक्ल नहीं दिखाई?" राजेश ने पूछा।
"नहीं-।"
कोठरियों के दरवाजे तोड़ देने चाहिये थे--"
"मैं यही करता मगर चूंकि यह काम बड़े उपासक की ओर से सरदार बहादुर को सौंपा गया था इसलिये बड़े उपासक की आज्ञा प्राप्त करना आवश्यक था-" आदिल ने कहा ।
"तो फिर तुम आज्ञा लेने गये थे?" राजेश ने पूछा। "हां में बाहर ही बाहर गुलतरंग गया था मगर बड़े उपासक भी अपनी उपासना कोष्ठ में बन्द हो गये थे। गुलतरंग के मेले के बाद वह सात दिनों तक अपनी उपासना कोष्ठ में बन्द रह कर उपासना करते है तो वह किसी से मिलते हैं और न कोई उनकी आवाज सुनता है--- यहां तक कि किसी तरह का सन्देश भी उन तक नहीं भिजवाया जा सकता। यह प्रथा भी प्राचीन काल से चली आ रही है।"
वह मौन हो गया । राजेश भी कुछ नहीं बोला। थोड़ी देर तक
दोनों अलावे को घूरते रहे थे फिर राजेश ने पूछा था।
"कुछ अनुमान है कि वह लोग कोठरियों में क्यों बन्द हो गये हैं?"
"क्या बताऊं भाई सूरमा । कुछ समझ में नहीं आता कि मामिला क्या है-" आदिल ने कहा। "उन लोगों के बारे में एक अफवाह भी है- किसी ने उन लोगों में से किसी का हाथ देख लिया था। उन लोगों के दरवाजों पर खाना पानी रख दिया जाता है। खाना उठाने के लिये जो हाथ कोठरी से बाहर निकला था वह बित्ते बित्ते भर लम्बे और घने बालों से ढका हुआ था ।"