(2)
"हमारे बम से बाहर है-" शहवाज ने ऊंची आवाज में कहा ।
"तुन लोगों के लिये हवाई जहाज भिजवा रहा हूँ" राजेश ने हाथ हिलाकर वहा था और फिर कदाचित ढलान में उतर गया था। क्योंकि अब वह उन तीनों को दिखाई नहीं दे रहा था।
"वैज्ञानिक ही नहीं मदारी भी " सानम ने कहा । प्रोफेसर दम साधे खड़ा रहा- थोड़ी देर बाद उन्हें राजेश का सिर नजर आया था और फिर वह उसी चट्टान पर उसी जगह दिखाई दिया था जहां पहले खड़ा था ।
"पहले साथरन" उसने कमर से रेशम को मजबूत डोर का लच्छा खोलते हुये कहा ।
"मगर हम कैसे ऊपर पहुँचेंगे?" जानम ने पुराना सवाल दुहराया। "बस चुप चाप देखती जाओ" दारा ने कहा ।
शहबाज के नेत्रों में उलझन के लक्षण थे— इतनी देर में राजेश ने डोर नीचे लटका दी थी। डोर के सहारे एक एक करके सारे थैले और सूटकेस ऊपर पहुँच गये ।
"अब तुम लोग इस डोर को गाड़ी से बांधो और तीनों गाड़ी में बैठ जाओ ।" राजेश ने कहा ।
"दया कह रहे हो" शहबाज दहाड़ा |
"ठीक कह रहा हूँ खान —– इस तरह गाड़ी समेत तुम तीनों ऊपर पहुँच जाओगे"
"कया तुम वहां पहुंच कर हम लोगों की हंसी उडाना चाहते हो?" शहबाज दहाड़ा।
"क्या तुम वहां पहुँच कर हम लोगों की हंसी उड़ाना चाहते हो ।" शहबाज दहाड़ा |
“न मैं नीचे पहुँच सकता हूँ और न तुम लोग ऊपर पहुँच सकते हो। ऐसी सूरत में हंसी उड़ाने के अलावा और कर ही क्या सकता हूँ" राजेश ने कहा
"तुमसे किसने कहा था कि ऊपर जा चढ़ो―" खानम चिल्लाई ।
"मेरे पागलपन ने " ऊपर से राजेश ने कहा।
“और तुमने हमारे सारे सामान भी ऊपर ही समेट लिये—आखिर चाहते क्या हो ?"
"कुछ भी नहीं - जिस चीज की जरूरत हो—आवाज दे लेना- राजेश ने कहा । "क्या यह पागल हो गया है?" शहबाज ने प्रोफेसर दारा से पूछा।
"मैं कुछ नहीं कह सकता — " दारा ने कहा "अधिक दिनों से नहीं जानता ।"
"क्या मतलब ?” शहवाज ने आश्चर्य से पूछा । "कुछ दिनों पहले शक्ल तक नहीं देखी थी—"
"समझ गया लेकिन सवाल तो यह है कि लो फिर गायब हो गया ।" शहबाज ने कहा ।
उन्होंने ऊपर नजरें दौड़ाई । राजेश अब वहां नहीं था । "आखिर यह क्या हो रहा है।" खानम ने कहा
दोनों मौन रहे । अब तो दारा के चेहरे पर भी कुछ अच्छे लक्षण नहीं थे । बड़ा क्रोध आ रहा था राजेश पर । क्रोध को दबाने के सिलसिले में उसकी आँखें लाल हो गई थीं और नथने फूलने पचकने लगे थे।
लगभग बीस मिनिट व्यतीत हो गये मगर राजेश न दिखाई दिया।
"कहीं हम चूहों की तरह मार न लिये जायें- " शहवाज ने झलमाहट के साथ कहा
"क्या किसी दूसरी ओर निकल चलने के लिये गाड़ी की टंकी में पेट्रोल होगा ?" दारा ने प्रश्न किया ।
"पता नहीं- मैं नहीं जानता--" शहबाज ने उखड़े हुये स्वर में कहा।
"तो फिर हमें सब से काम लेना चाहिये-" दारा ने कहा । "प्रोफेसर ! तुम सब करने के लिये कह रहे हो―" खानम ने बुरा मान जाने वाले भाव में कहा। "और हम अपना सब कुछ गंवा बैठे हैं। सत्र करने की राय तो उन लोगों को दी जाती है जिनके पैरों तले कम से कम जमीन तो हो । "
“मुझे इसका अफसोस है खानम―" दारा ने कहा "मगर गलती हमारी नहीं है । हम ने 'तो तुमको हर तरह से समझाया था कि तुम हमारे साथ सफर न करो मगर तुम खुद नहीं मानी दीं।"
खानम कुछ नहीं बोली। वह दूसरी ओर देखने लगी भी ।
"सवाल यह है कि अब हम क्या करें?" शहबाज ने कहा । दारा कुछ कहने हो जा रहा था कि राजेश की आवाज सुनाई पड़ी वह कह रहा था ।
"आखिर मेरे च्युगम के पैकेट कहां गये –?'
वह सब चौंक पड़े ---चौंकने का कारण यह था कि आवाज ऊपर से नहीं आई थी बल्कि उस ओर से आई थी जहां उन्होंने जीप लड़ी की थी। और फिर उनकी आँखें आश्चर्य वण फैल गई । राजेश जीप में कुछ तलाश कर रहा था। वह सब लगभग दौड़ते हुये जीप के पास पहुँचे थे । हवन्नकों के समान मुंह खोले उसे देखते रहे थे और वह इतनी संलनग्ता से कुछ तलाश कर रहा था कि उनकी ओर आकृष्ट तक नहीं हुआ ।
"तत 'तुम यहां किस तरह आ पहुँचे।" शहबाज ने भर्राई हुई आवाज में पूछा।
"मेरे थैले से च्युगम के पैकेट शायद गाड़ी में गिर गये थे— लेकिन आखिर गाड़ी से कहां गये" राजेश ने कहा ।
"मैं पूछ रहा हूँ कि तुम नीचे कैसे आये?" शहबाज ने पूछा ।
"एमरजेन्सी- " राजेश ने कहा ।
दारा ने शहबाज को मौन रखने का संकेत किया । खानम कभी मुड़ कर दर्रे की ऊंचाई को देखती थी और कभी राजेश को देखने लगती थी।
"अब मैं क्या करू---?" राजेश ने निराशजनक भाव में जैसे अपने आप से प्रश्न किया।
"हम पूछ रहे हैं कि नीचे कैसे आये?" खानम झल्ला कर बोली !
"आदमी अगर चूहा बनना पसन्द कर ले तो सब कुछ हो सका है-" राजेश ने कहा
"क्या मतलब?"
"अभी मतलब भी बता दूंगा मगर पहले च्युगम..."
"मैं कहता हूँ कि जल्दी करो- "शहबाज ने कहा, इस रास्ते को बन्द कर देने का मतलब ही यह है कि वह इसकी निगरानी के लिये जरूर इधर आयेंगे ।"
"और इस जीप को यहां देख कर समझ जायेंगे कि हम सरहद पार कर गये-" राजेश ने खुश होकर कहा ।
“ओहो—” अचानक दारा बोल पड़ा "च्युनम के पैकेट मेरे सूटकेस में थे ।"
"तब तो हमें जल्दी ही करनी चाहिये-बड़ी देर से च्युगम् के लिये तड़प रहा हूँ ।" राजेश ने कहा । और गाड़ी से उतर कर बाई ओर चल पड़ा। उसने उन तीनों को भी अपने पीछे आने का संकेत किया था ।
थोड़ी दूर चल कर वह रुक गया और उनकी ओर मुड़ कर बोला ।
"मैं पहले ही कह चुका है कि चूहा बनना पड़ेगा ।"
"वह तो हमने सुन लिया था— अब इसका मतलब भी बता दो-" दारा ने कहा ।
उत्तर में राजेश ने उन्हें वह सुराख दिखाया जिससे गुजर कर जीप तक पहुँचा था ।
दारा हंस कर बोला ।
"एक एक करके हम आसानी से गुजर सकेंगे मगर चूंहो की तरह---" दारा हंसकर बोला।
फिर सब से पहले राजेश ही उस सुराख में दाखिल हुआ था। सुराख किसी लोमड़ी के भद का मुख मालूम होता था ।
अन्दर गहरा अंधेरा था। राजेश ने पेन्सिल टार्च जला ली। उसके प्रकाश में वह कुछ दूर तक सीनों के बल रेंगते रहे - फिर उस दरें में दाखिल हो गये जिस का एक ओर का मुख बन्द कर दिया गया था।
"अब कुछ देर आराम भी किया जायेगा या लगातार चलते ही रहना है-?" दारा ने पूछा ।
"मेरी जिम्मेदारी खत्म हो गई । मैंने तुम तीनों को सरहद पार करा दिया अब खान शहवाज से पूछो कि क्या करना है।” राजेश ने कहा।
"मगर मेरे एक सवाल का जवाब तो तुम्हें देना ही पड़ेगा-" खानम ने कहा ।
"सवाल अर्थमेटिक का नहीं होना चाहिये-" राजेश ने कहा ।
"तुम प्रोफेसर के मातहत हो या तुम्हारे मातहत प्रोफेसर हैं ?"
"यह प्रोफेसर ही से पूछ लो - " राजेश ने कहा ।
"मैं तुमसे पूछ रही हूँ।"
"हम दोनों एक दूसरे के दोस्त हैं-मातहती का सवाल ही नहीं पैदा होता क्योंकि मैं चीनी मिलों का फोरमैन हूँ और पोलेट्री फार्मिंग करते हैं।"
"दुनिया को दिखाने के लिये।"
"नहीं— दुनिया को हलुआ— अन्डा और मुर्गा खिलाने के लिये – ” राजेश ने झल्ला कर कहा ।
"बेकार बातें होने लगीं ना-" शहवाज ने आंखें निकाल कर कहा। "तो तुम्हीं काम की बातें करो" खानम ने मुंह फुला कर कहा ।
शहबाज ने घूर कर खानम को देखा फिर बोला । "यहां से हमें तीन मील चलना पड़ेगा-फिर हम एक बस्ती में पहुँचेगे। वहां दो एक जान पहचान वाले हैं—-वह हमें राजेश के देश की सरहद तक पहुँचा देंगे "
"कहीं देखते ही हमें गोली न मार देंगे ।" राजेश ने कहा ।
"वह क्यों?” खानम ने पूछा ।
“वह लोग अपनी बस्तियों में किसी अजनबी को देखना पसन्द नहीं करते।"
"यह सब कुछ तुम मुझ पर छोड़ दो-" शहबाज ने कहा ।
"छोड़ दिया- " राजेश ने लापरवाही से कहा -
फिर तीनों ने सामान उठाये थे और चल पड़े थे । खानम खाली हाय थी । उसने भी सामान उठाने चाहे थे मगर उसकी यह इच्छा पूरी नहीं की गई थी। अभी वह दरें में ही चल रहे थे ।
"पता नहीं यह दर्रा कितना लम्बा है-" खानम ने पूछा ।
"दर्रा पार करने के बाद भी तीन मील पैदल चलना पड़ेगा-" राजेश ने कहा ।
दर्रा सचमुच लम्बा साबित हुआ । उसके दूसरे सिरे पर राजेश को एक गुफा का मुख दिखाई पड़ा उसने अपने साथियों को वहीं ठहरे रहने का संकेत किया और खुद उस गुफा में दाखिल हो गया ।
फिर वह शीघ्र ही गुफा के मुख पर दिखाई पड़ा और बोला । “बड़ी आरामदेह जगह है । अगर हम रात यहीं बसर करें तो क्या हर्ज है-"
"यह तो बड़ी अच्छी बात होगी—मैं बहुत थक गई हूँ–" खानम ने बन कहा।
फिर वह उसी गुफा में प्रविष्ट हो गये ।
"ऐसा लगता है जैसे यह पहले भी किसी के प्रयोग में रहा है- दारा ने टार्च का प्रकाश चारों ओर डालते हुये कहा ।
"इस गुफा को स्मगलर काम में लेते थे" माहवाज बोला ।
"भला शंकराल से उन्हें क्या मिलता रहा होगा" दारा ने कहा।
शकराल में अस्त्र शस्त्र तथा गोली और बारूद लाते और शकराल से मवेशी ले जाते थे ।"
उधर राजेश गुफा को देखता फिर रहा था-फिर एक कोने से उस ने उन तीनों को आवाज दी ।
"भाई इधर आओ यहां तो बहुत कुछ है— जलाने के लिये लकड़ियां - मिट्टी के तेल के दो कनस्टर —चार लालटेनें – वाह वा—।"
"और कबाब लगाने के लिये एक बकरी भी होगी" खानम ने कहा और हंस पड़ी ।
फिर सचमुच पास ही से कोई बकरी भी ममियाई थी और खानम उछल पडी।
"तो क्या सचमुच बकरी है?" शहबाज हर्षित होता हुआ बोला।
"थी मगर भाग गई" राजेश की आवाज सुनाई दी।
"कहाँ भाग गई— पकड़ो-" खानम ने कहा और बकरी तलाश करने लगी। दारा कुछ सोचता रहा फिर हंस पड़ा।
"क्या हुआ ?" खानम ने उसकी ओर मुड़ कर पूछा।
"अगर इस वक्त तुमने शेर का भी नाम लिया होता तो तुम्हें शेर की दहाड़ जरूर सुनाई दी होती ।"
"नया मतलब ?" खानम ने आश्चर्य से पूछा ।
"मेरा साथी ऐसा ही है--" दारा ने कहा और हंस पड़ा।
"मैंने तो उसे एक गम्भीर आदमी समझा था-" शहबाज ने मुंह बिगाड़ कर कहा “मगर अब मुझे अपनी यह राय बदलनी होगी ।"
"तुम मुझे जंगली रीछ भी समझ सकते हो खान- मुझे बिल्कुल बुरा मालूम होगा" राजेश की आवाज आई।
"शकराल में ऐसी हरकतें तुम्हें ले डूबेगी - " शहबाज ने कहा पहले से आगाह किये देता हूँ— ताकि यह न कह सको कि तुम्हें आगाह नहीं किया गया था ।"
इस बार राजेश की आवाज नहीं सुनाई दी ।
"मेरे लिये अब तो मर्दाना भेस जरूरी नहीं - " खानम ने ऊंची आवाज में कहा "भुझे इस भेस से बड़ी उलझन महसूस हो रही है 'तुम्हारी मर्जी ' राजेश की आवाज आई।
"वैसे डाढ़ी में अच्छी ही लगती हो ।
“उससे कहो कि खानम से छेड़ छाड़ न करे--" शहबाज ने धीरे से कहा।
“मैं समझा दूँगा–” दारा ने कहा और उसी ओर बढ़ गया जिधर से राजेश की आवाज आ रही थी वह आग जलाने के लिये लकड़ियाँ चुनता हुआ मिला ।
"खानम से छेड़ छाड़ न कीजिये तो अच्छा है" दारा ने उसके निकट बैठते हुये धीरे से कहा । शहवाज को बुरा लगता है---।" "तुम्हारा दिमाग तो नहीं चल गया-वह मुझे खुद ही छेड़ती रहती है-" राजेश ने कहा ।
"उसे छेड़ने दीजिये मगर आप चुप ही रहा कीजिये।”
"यह दोनों जबरदस्ती मेरे गले पड़ गये हैं–" राजेश ने मुंह बिगाड़ कर कहा।
"मुझे इन से तनिक भी दिलचस्पी नहीं ।"
"देखिये शकराल में क्या होता है—वह अब मर्दाना भेस में रहने के लिये तैयार नहीं ।"
"शकराल में मर्द मारे जा सकते हैं—औरतों पर कोई भी हाथ नहीं उठाता चाहे औरत किसी भी देश की हो— किसी भी जाति की हो―" राजेश ने कहा ।
"जो भी हो—मगर अब हम एक नई कठिनाई में पड़ गये हैं-" ने कहा।
"कैसी कठिनाई—?"
"शकराल-। " 'राजेश कुछ नहीं बोला- इतने में खानम और शहवाज भी वहीं आ गये ।
"खान ।" राजेश ने शहबाज की ओर देखे बिना सवाल किया "जिस वस्ती के बारे में तुमने कहा था उसमें तुम्हारी जान पहचान वाले कितने लोग हैं—?"