एक गाव था जिसका नाम था । कैलास पुर ।
उस गाव मे एक जंगल पड़ता था ।
शाम के ७ बजे के बाद वहा कोई भी आदमी नहीं जाता था ।
कहते है शाम के बाद जो वहा गया ।
वो फिर पलट के कभी नहीं लौटा ।
जो गया सो गया ।
कहते उस जंगल मे एक सड़क है ।
सायद एक किलोमीटर जितनी ।
बस उस सड़क का ही सब खेल है ।
दिवाली की छूटी हो चुकी वो घर के लिए रवाना हो गया था ।
वो जब उस जंगल वाली सड़क तक पहुचा तो शाम को ७.०० बज चुके थे ।
अब देखते है क्या होता है ।
हाजी तो हम बात कर रहे है पार्थ की ।
जो आज दिवाली की छूटी के लिए गाव आ रहा था ।
वैसे तो उसे इस सड़क के बारे मे सब कुछ पता था फिर भी क्यू उसे डर नहीं लगा ।
सायद शहर से आ रहा था इसलिए ।
पर वो अंदर से थोड़ा सा तो डर भी रहा था ।
अगर वो डोली सामने आ गई तो ।
वो क्या करेगा ।
वो थोड़ा ही आगे चला था की ।
उसकी नजर अपनी घड़ी पे गई ।
७ बजकर १० मिनिट हो चुकी थी ।
ओर दिन भी बहुत छोटा था ।
क्योंकि सर्दी की सरुआत हो चुकी थी ।
तो अंधेरा भी बहुत घना था ।
आस - पास कोई दिखाई नहीं दे रहा था ।
तभी उसे पीछे से गानों की आवाज सुनाई दी ।
उन दिनों सगाई या बारात मे गानों का रिवाज था ।
ये बात बहुत साल पहले की है ।
उस वक्त की जब टू -विलर ओर गाड़ी नहीं थी ।
उन दिनों जान पहुच ने मे ओर लौट ने मे कई दिनों लग जाते थे ।
उन दिनों बैल-गाड़ी से यात्रा ए हुवा करती थी ।
हातो हम कहा थे ।
की राज को पीछे से गानों की आवाज सुनाई दी ।
उसने पलट कर देखा तो एक डोली थी ओर कई सारे बाराती ।
सब ओरतों ने घूँघट पहन रखा था ।
ओर आदमीओ को देखकर लग रहा था की ये सारी बारात प्रेतों की है ।
धीरे - धीरे बारात आगे चलती गई ।
ओर वो ये सब देखकर डरने लगा ।
एका - एक सब बाराती पार्थ मे से साये की तरह गुजर गए ।
ये देखकर वो सहम गया ।
पर जब डोली चली गई ।
तो उसने देखा की उसे वहा कुछ पड़ा हुआ दिखाई दिया ।
वो फट से नजदीक गया ओर देखा तो वहा एक पोटली थी ।
उसने वो हाथ मे उठाली ओर जल्दी से अपने बेग मे रख दिया ।
फिर सड़क पार करके अपने घर चला गया ।
घर जाके उसने अपने मम्मी - पापा से सब बात की ।
बस उस पोटली वाली बात को कहना भूल गया ।
वह जब अपने कमरे मे गया ।
तो उसे वह याद आया ।
जैसे ही उसने पोटली खोली तो उसकी आंखे फटी की फटी रहे गई ।
उसमे सोने के गहने थे ।
आखिर क्यू उस बारात ने उसे कुछ नहीं किया ।
ओर क्यों उसे वह पोटली मिली ।
क्या इन सबके पीछे कोई गहेरे राज जुड़े हुए है ।
जानने के लिए पढे - डोली अरमानों की - भाग - २