बात बहुत पुरानी हैं,मैं वृंदावन में बाँके बिहारी के दर्शन करने के लिये अकेला ही जा रहा था,सामने से आ रही एक बहुत सुंदर सी गाड़ी जिसको एक महिला चला रही थी,अचानक मेरे पास आ कर रुकी, शीशा नीचे करके बोली आप पीयूष हैं ना, मैं बोला,हाँ मैं पीयूष हूँ.उसने गाड़ी किनारे लगाकर मेरे पास आई और बोली पहचाना मुझे,मैं बोला नहीं मैं पहचान नहीं पाया, उसने कुछ समय दिया मुझे पहचानने के लिये,मैं फिर भी नहीं पहचान पाया,वो बोली चल मैं तेरे को कुछ हिंट देती हूँ, हम साथ-साथ पढ़े थे, उसने मुझे दो तीन मित्रों के नाम बतायें,मैं पहचान गया, उसने मुझे गले से लगा लिया,मेरी आँखों में आँसू थे उसकी आँखों में भी,आपस में बहुत सारी बातें हुई,वो मेरी से बोली बाँके बिहारी के दर्शन करने जा रहे हो,चलो मैं भी चलती हूँ दुबारा तुम्हारे साथ,वैसे मैं दर्शन कर आई, पर तेरे साथ दर्शन करना अच्छा लगेगा, उसने गाड़ी एक सुरक्षित स्थान में खड़ी की और साथ-साथ चल दिये आपस में बातें करते हुए, पीयूष तेरे को याद हैं सन् १९८४ की बात तू मुझ से नाराज़ था,और मुझे पता चला था कि तू जा रहा हैं,मैं तेरे घर पर आई थी,तेरे जाने से दो दिन पहले,तूने मुझे माफ़ नहीं किया था और तुझे वो भी याद होगा जब तू बस मैं बैठ गया था,मैंने तुझकों जाते हुए भी देखा था,बस जब दूर चली गई थी तुनें पीछे मुड़कर भी देखा था,तूने कोई जवाब भी नहीं दिया था,मुझे पीयूष ये बता तू मुझ से किस बात पर नाराज़ था, हाँ मैं नाराज़ था, तुझे भी पता हैं किस बात से नाराज़ था.चल छोड़ ये सब बातें.यें बता तू आजकल क्या कर रहा हैं. मैं एक प्राइवेट नौकरी में हूँ.दो बेटे व एक बेटी का बाप हूँ,अभी पढ रहे हैं,अच्छा,मैं दो बेटों की माँ हूँ,तीन-तीन कम्पनियों को देख रही हूँ,बातों में पता ही नहीं चला मंदिर कब आ गया, दोनों ने दर्शन किए प्रसाद चढ़ाया,प्रसाद लिया,चल दिये वापिस.रास्ते में बहुत सी बातें हुई,लेकिन पीयूष मैं खुश नहीं हूँ.मेरे पति बहुत नशा करते हैं बड़ी मेहनत की पर अब तीनों कंपनियों को मैं अकेले ही देखती हूँ,दोनों बेटे अभी पढ़ रहे हैं,समझदार हैं पर अभी उनको कुछ पता नहीं दोनों बाहर पढ़ रहे है.बात करते-करते कब गाड़ी तक वापिस आ गये पता ही नहीं चला. पीयूष तू ये बता कहा ठहरा हुआ हैं,दर्शन हो गये वापस जा रहा हूँ,नहीं पीयूष तू आज वापस नहीं जाएगा, उसने ज़बरदस्ती मेरा हाथ पकड़ कर अपनी गाड़ी में बैठा लिया, बात करते-करते जहां वो ठहरी हुई थी वहाँ पहुँच गये.होटल की बालकनी पर बातें व चाय का आनंद लेते रहें, इसी बीच उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहाँ,पीयूष ईश्वर ने मेरी सुन ली मैं कहाँ करती थी वो दिन कब आएगा जब मैं पीयूष से मिलूँगी,आज देख मिल ही गये.पीयूष अब मैं थक गई हूँ इतनी मेहनत करते-करते,दोनों बेटे पढ़ने के लिए बाहर गये हुए हैं. मेरा तेरे से एक अनुरोध हैं मेरी तीनों कंपनियों की ज़िम्मेदारी तू ले लें, ये सुनकर मैं एक दम आश्चर्य में पड़ गया, ठीक हैं मुझे कुछ समय दे सोचने के लिये,विदा लेते हुए हमनें आपस में एक दूसरे के मोबाइल नंबर शेयर किए,देख मुझे अब जाने दें.पीयूष तू मेरा एक बहुत अच्छा मित्र था और जिसको मैं बहुत प्यार करती थी,लेकिन कुछ कारण वस मैं तेरे को बता नहीं पाई और इसी वजह से तू नाराज़ था मुझे पता हैं,लेकिन आज हम ईश्वर की कृपया से वृंदावन में मिल गये,गले लगकर उसने मुझे विदा किया.समय अपनी गति से चलता रहा बातें होती रहती थी.एक दिन सुबह फ़ोन आये,इनका निधन हो गया हैं,तू आ जा मुझे कुछ नहीं पता,मैं पहुँच गया .इसी बीच मेरी नौकरी भी चली गई. सब कुछ संपन्न होने के बाद एक दिन फ़ोन आया.एक बार मिलने तो आ जा. मैं बोला ठीक हैं मैं आ रहा हूँ अपने परिवार के साथ, बड़ी ही खुश हुई वो हम सब एक साथ बैठेंगे और बहुत सी बातें करेंगे आपस में बच्चें भी मिल लेंगे.हम सब दुपहरी का ख़ाना खा रहे थे. वो बोली पीयूष देख सब कुछ हैं पर शांति नहीं हैं,मैं थक गई हूँ अब इतना काम नहीं होता, तुझे याद हैं मैंने तेरे से वृंदावन में एक बात कही थी.हाँ मुझे याद हैं,और तूने कहा था मुझे कुछ समय दे सोचने के लिए, तभी उसका बड़ा बेटा बोला, हाँ अंकल अभी हमारी पढ़ाई बाक़ी हैं और मम्मी भी अकेली हैं आप मम्मी के साथ तीनों कम्पनियों को देख लो,प्लीज़. मैंने हाँ कर दी. मैं आज भी उनकी कम्पनियों को देख रहा हूँ और उनके बग़ल के बंगले के साथ ही मेरा मकान भी ख़रीद कर दे दिया, दोनों परिवार ख़ुशी से रह रहें हैं. मेरे बिना पूछे कोई काम नहीं होता, मेरे परिवार को अपना परिवार मानती हैं सच में बहुत प्यार करती हैं मेरे परिवार को.एक दिन उसने मेरे पूरे परिवार को रात के खाने पर बुलाया,जैसे ही हम सब घर पर पहुँचे दरवाज़े पर ही उसने मेरे पैर पकड़े और सभी को गले लगाकर बोली पीयूष मैं तेरे से ही प्यार नहीं करती,मैं अब तेरे परिवार से भी प्यार करती हूँ.हम सबकी आँखों में आंसू थे.