बिजली और राजा की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ने लगीं। लेकिन कभी - कभी दोनों इस संयोग के याद आने पर चिंतित ज़रूर हो जाते थे कि ऐसा क्यों होता है कि कभी कोई बिजली को, तो कभी कोई राजा को, एक दूसरे से मिलने से रोकता है। आश्चर्य तो इस बात का था कि ऐसा कहने वाले ये जानते तक न थे कि वे दोनों कब मिलते हैं और कहां मिलते हैं। क्या लोगों को वो बहुत छोटे लगते हैं?
आज जब मैडम ने बिजली से पूछा कि उसकी शादी कब होगी तो वो यही सोच कर उनके सामने बैठ गई कि शायद उसे शादी से जुड़ी कोई बात सुनने को मिलेगी।
ऐसा ही हुआ। मैडम उससे बोलीं - लड़कियों को इतनी जल्दी शादी नहीं करनी चाहिए।
- क्यों?
- जल्दी की शादी आगे चलकर जी का जंजाल बन जाती है।
- वो कैसे?
- जिन लोगों की शादी जल्दी छोटी उमर में हो जाती है वो जल्दी ही एक दूसरे से ऊब भी जाते हैं। और फिर एक दूसरे के मन से छिटक भी जाते हैं। मैडम ने किसी महान संत की तरह प्रवचन देने के से अंदाज़ में कहा।
लेकिन बिजली का दिमाग़ उनकी बात से जुड़ा नहीं। वो अब तक तो उन्हें बहुत पढ़ी - लिखी और ऊंचे पद पर काम करने वाली महिला समझ कर उनकी हर बात को आंख बंद करके स्वीकार कर लेती थी मगर आज उसने उनसे दो- दो हाथ करने की ठानी। उसने सोचा, हम छोटे लोग हैं तो क्या, पर ऐसी बात क्यों मानें जो हमारे दिल को स्वीकार न हो।
बिजली बोल पड़ी - देखो मैडम जी, वो सामने टेबल पर सेब रखा है न, कितना ताज़ा और लाल सुर्ख है।
मैडम चौंक गईं, उन्होंने सोचा ये सेब की बात बीच में कहां से आ गई। उन्हें लगा कि शायद बिजली को भूख लगी है और उसका मन डाइनिंग टेबल पर रखे फलों को देख ललचा गया। ठीक भी तो है, बिजली काम पूरा करके निकल जाती है तब अपने घर जाकर खाना ही खाती होगी। आज उन्होंने उसे बातों में उलझा कर बेवजह रोक लिया। तो भूख लग आई होगी बेचारी को। कुछ आत्मीयता से बोलीं - हां- हां, रखा तो है, खायेगी तू? जा धोकर उठा ला।
बिजली चौंक गई। तपाक से बोली - अरे नहीं मैडम, मैं तो ये बोल रही हूं कि यह ताज़ा सेव चार दिन बाद खाने से आपको बासा और फीका सा लगेगा। तो इसे खाने में देर क्यों करनी? आज जो इसका स्वाद है वो कुछ दिन बाद थोड़े ही रहेगा। हो सकता है ये सड़ भी जाए।
- ओह! मैडम के दिमाग़ की बत्तियां जलीं। उन्होंने दांतों तले अंगुली दबा ली। देखो तो, ये छुटकी सी लड़की, जिसे वो अर्ध- शिक्षित बच्ची समझ रही हैं, कितनी गहरी बात कर गई? ये शादी की बात से जोड़ कर सेव की बात कर रही है।
लेकिन प्रौढ़ गंभीर अनुभवी महिला होकर वो उस नादान लड़की से कैसे हार जातीं! वो बोलीं - तू क्या कहना चाहती है मैं समझ गई। लेकिन शादी केवल ताज़ा- ताज़ा फल खाने जैसा नहीं होता। ये ठीक है कि ताज़े फल पर सबके मुंह में पानी आ जाता है और इसे गड़प कर जाने की इच्छा भी होती है, लेकिन शादी करने का मतलब इससे कुछ ज़्यादा होता है। फल को खाकर तो हम छिलके और बीज तुरंत फेंक देते हैं पर शादी के फल को खाकर हमें इसके सारे कड़वे मीठे असर अपने रोज के जीवन में साथ रखने होते हैं। फिर हम इनसे छूटने के लिए कसमसाने लगते हैं।
बिजली मुंह बाए उनकी शक्ल ताकने लगी।