Lockdown, a unique example of unity in Hindi Motivational Stories by Sanju Sharma books and stories PDF | लॉकडौन, एकता की अनूठी मिसाल

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लॉकडौन, एकता की अनूठी मिसाल




तेईस जून 2020 , डेढ़ साल पहले, आज ही का दिन , सुबह सुबह आंख खुलते ही मोबाइल पर हाथ पड़ी और क्या देखता हूं कि, तिस से पैतिस मिस कॉल मेरे मोबाइल पर जो कि साइलेंट मोड पर रखा था,

सारे मिस कॉल, एक ही बंदे के थे और उनका नाम राधे श्याम तिवारी,रिटायर्ड हो चुके थे, लौकडौन के पहले वे हमारे कुछ दोस्तों के साथ जॉगिंग किया करते थे, तभी सुनने में आया था कि उनकी सेहत खराब थी,
मुझे डर सा लगा जब मैंने इतने मिस कॉल देखें, बुरे खयाल आने लगे कि कहीं तिवारी जी निकल तो नही लिए पर हिम्मत करके मैंने उन्हें कॉल किया तो उन्होंने ही फ़ोन उठाया, उनकी आवाज़ सुनके जान में जान आयी, उनकी आवाज़ थोड़ी बदली हुई थी जैसे कि किसी बीमार इंसान की हो

उनसे बात करके पता चला कि मुझे कॉल करने से पहले उन्न सारे दोस्तों को फ़ोन किये जो उन्हें जॉगर्स पार्क में मिलते थे, उनका इलाज चल रहा था एक प्राइवेट हॉस्पिटल में कोविद को लेकर, बिल कुछ ढाई लाख रुपए हुए, और मेडिक्लेयम कोविद को उस समय मान्यता नही दे रहा था सो तिवारी जी काफी परेशान थे क्योंकि रिश्तेदारों और दोस्तों ने हाथ खड़े कर दिए थे, उसमें उनकी भी कोई गलती नही थी, कइयों के जॉब नही थे, या जॉब थे तो सैलरी आधी मिल रही थी

मेरे सामने भी यही सवाल था कि क्या मैं तिवारी जी की मदत कर सकता हु ?? क्योंकि मुझे पूरे दो महीने की सैलरी नही मिली थी, घर चलाने के लिए मुझे मेरी बचत के रुपए खर्च करने पड़ रहे थे पर ढाई लाख रुपए वो भी एक साथ, बहुत मुश्किल था मेरे लिए सो बाकियों की तरह मैंने भी तिवारी जी को मना कर दिया

पर पूरे दिन मुझे उनका खयाल सताता रहा, कहते है ना जो चीज़ तुम्हारे ज़ेहन में घूमते रहे तो ऊपर वाला कुछ न कुछ हल निकालता ही है

मेरी छे साल की बेटी, कहानी की किताब लेकर आई , कहने लगी पापा मुझे इस किताब से कहानी पढ़कर सुनाईये तो मैं हैरान रह गया, मेरा भगवान जैसे साक्षात मुझे रास्ता दिखा रहा हो

पहली कहानी उन्न कबूतरों की थी जो अपनी जान शिकारी से बचाने के लिए बिछाए गए पूरी जाल समेत उड़ जाते है और अपनी रक्षा करते है।

दूसरी कहानी एक शिक्षक अपने एक विद्यार्थी को एकता में कितनी बल है सिखाने के लिए पहले एक लकड़ी देता है जिसे बच्चा आसानी से तोड़ देता है, फिर मास्टरजी उसे लकड़ी का गुच्छा देते है जिसे वो तोड़ नही पाता है

इन् दो कहानियों से मुझे एक आईडिया मिला कि मैं अकेला तो तिवारीजी की मदत नही कर सकता पर अगर कई लोग मिल जाये और थोड़ी ही रक्कम का योगदान हर एक इंसान करें तो शायद ढाई लाख का इंतज़ाम हो सकता है

मुझे नही पता कि यह आईडिया कितना कारगर है पर मुझे लगा एक बार अमल करना चाहिए,

सो मैने अपने व्हाट्सअप ग्रुप में एक निवेदन लिखा तिवारीजी का पे टी एम नंबर डाला और सारे मेंबर्स से कम से कम 500 सौ रुपये योगदान देने की बात कही और यह भी कहा कि अगर आज हम तिवारीजी की मदत करते है तो कल हम से किसी पर विपदा आती है तो हम इस तरीके से एक दूसरे के लिए खड़ा रह सकते है

पंद्रह मिनटों में ही तिवारी जी का कॉल आता है कि बेटा अब व्हाट्सएप्प ग्रुप पर मैसेज डाल दो कि बिल का भुगतान हो चुका है अब कोई पैसे ना भेजे और उन्होंने मुझे धन्यवाद कहा और तारीफों के पुल बांधने लगे, मैं हैरान था कि उन्हें कैसे पता चला??

मैंने सिर्फ इतना ही कहा कि नहीं तिवारी जी एकता में बहुत ताक़त है, मेरे अकेले से कुछ नही हो सकता था

सच्च में इस विपदा की घड़ी में सभी को एकजुट रहना जरूरी था, इससे हर एक का मनोबल भी बढ़ा हुआ था और इम्युनिटी भी