Life Without Luck in Hindi Drama by Brajesh sharma books and stories PDF | Life Without Luck

Featured Books
  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

  • સંઘર્ષ જિંદગીનો

                સંઘર્ષ જિંદગીનો        પાત્ર અજય, અમિત, અર્ચના,...

  • સોલમેટસ - 3

    આરવ રુશીના હાથમાં અદિતિની ડાયરી જુએ છે અને એને એની અદિતિ સાથ...

Categories
Share

Life Without Luck

                                                                                                                                                                       writer by Brajesh sharma

 

 

सुबह होने वाला ही था अचानक मेरे पेत मे दंद होने लगा अब बेदाश नहीं हो रहा है। तो अपनी पत्नी को अवाज दी तो बोली हल्ला क्यों कर रहे हो हमे सोने दो फिर वे सो गई। मे चुप चाप से बाहर निकर कर कार चालु कर के Hospital की ओर चल दिय सुबह हो चुका है। लोग

सड़क के किनारे टहल रहे हैं। कुछ दूर पर दर्द काफी बढ़ने लगा। एक चाय के दुकान के बगल में कार को लगा कर चाय वाले से चाय भी कुछ समय के लिय अराम मिला

फिर दर्द बढ़ने लगा । अब कुछ समझ नही आ रहा है मे बिकुल होस मे नही था हमारे पास एक जवान

लड़का था उसी ने मुझे Hospital ले गया।

अब इलाज होने लगा कुछ देर के बाद होस मे आ गया

doctor- अब आप बिलकुल थिक है में नर्स को भेजता हु आप अपना पता लिखवा दिजियगा | Doctor चले गय।

वह लड़का आया मेरा हाल पुछा मे अब थिक हु आप क्या करते हो और अपने बारे मे बताव मेरा नाम Brajesh में कुछ करता नहीं हु नौकरी के तलास में हु

आज से तुम मेरा कार चलाना अब घर चलो । थिक चलिए

मे अपना पता लिखवा रहा था जब तक Brajesh ने कार ली। दिया फिर घर के ओर चल दिए

कुछ देर के बाद घर पहुंच गय घर के अन्दर गय तो पत्नी बोली आप इतना देर कहा थे।

में चुप था लेकिन Brajesh बोला था का तबियत खराब था जो अभी Hospital] से आ रहे है मीरा चोली आप अब चिक तो है हा मे बिलकुल थिक हु और इसी लड़का के कारण मे आ जिदा हु

आज से यही रहेगा और मेरा कार चलाएग

रोज घर से office और office से घर लाने लगा कुछ दिन बितने के बाद|

हमारे जिन्दगी मे एक तरफ खुशी और एक तरफ तकलिफ भी हम किसी बता भी नही सकता हु मेरी पत्नी गर्भवती है दुसरी और मुझे blood cancer हैं जो आखरी stage पर है हमारी बहुत खुशी है

उसे तकलिफ नही देना चाहा। रविवार के दिन है हम और हमारी पत्नी बैठ कर TV देख रहे है कुछ देर बाद उसके पेट में दर्द होने

लगा।

तुरंत Hospital ले गये । मीरा को जाँच करने के बाद डॉक्टर बोले opretion करना पड़गा इस फॉर्म sing कर दिजिए । मेने sing कर दि फिर opretion होने लगा।

मे बाहर परशन होकर घुम रहा हु जिjesh बोला कुछ नही होगा परशन मत होखिय

कुछ मंझे सुकून मिला तब तक बच्चे की रोने की आवाज सुनाई देने लगा

डाक्टर साहब बोले sharmap बधाई हो आपका लड़का हुआ है। मे बहुत खुश हुआ

कुछ देर बाद hospital से छुट्टी मिल गया फिर घर आ गये।

ऐसे ही दिन बितने लगे अब मेरा शरीर कमजोर होने लगा जिससे गुसा हर बात आने लगी जिसके कारण मेरे पत्नी हर वक्त लड़ाई होने लगा ।

अब मेरा लडका पाँच साल का हो चुका है जिसका नाम श्याम है श्याम को एक अच्छा स्कूल मे नाम

लिखवाने के सोच रहा तभि तबियत खराब होने लगी और हमारी मौत हो गई।

श्याम हमारे पापा के जाने के बाद मेरी जिन्दगी से खुशी ही समाप्त हो गई। मेरी मां और Driver दोनो मंदिर जा कर शादि कर ही में बहुत अपनी मां से नराज हु और अगले दिन मुझे अनाथ स्कूल डाल दिय

यही अनाथ स्कुल मेरा घर हो गया वही पर 12 साल रहने के बाद जब मे अपने घर गया तो मेरी मां पहचान के भी पहचानना नही चाहती। वहा से चल कर मे सासाराम शहर मे आ गया। दो दिन से न खाने के वजह से मुझे चक्कर आने के कारण मे जमीन पर गिर गया।

एक सरदार चाचा आय और मुझे अपने होटल मे से गय मुझे खाना खिलाए और बोले बेटा अपने बारे में

बतायो ।

सरदार चाचा को अपनी कहानी बताई सरदार चाचा के आखे में पानी आ गई ।

बोले बेटा तुम अनाथ नहीं हो आज से यही पर रहो।

अब सरदार के घर रहने लगा और उनके Business जो गाडी बनाने कि काम होता है उसमे काम करने

लगा और रोज सुबह-सुबह newspaper बचने लगा। ऐसे हि दिन बितने लगा एक दिन के बात है कि रोज कि तरह घरे घरे paper रहा था एक बुढा व्यक्ति आए हम से एक paper मागे

और बोले बेटा कल से रोज बगल वाले मकान में दे देना ।

ठिक है हम उस बुढा व्यक्ति को पहचान गए लेकिन उसने हमे नही पहचाना। फिर हम आगे paper देने के लिए निकल गए

दूसरे दिन जब paper देने गया तो यह बुढा व्यक्ति नहीं था बल्कि उसकी पत्नि है जो हमारी मां है

हम अपनी मां को प्रणाम किए मां ने आशिवाट भी दि मगर पहचान न पाई और हम से paper माग कर

दरवाजा बंद कर दी अब यहा हम चल दिए ।

एक महिने होने के बाद आज सोचा कि अपनी मां से बात करेंगे और अपने बारे में बताएंगे जिसे मेरी मां पहचान सके । यही सोच सोच कर अपनी मा के घर के ओर तमि मेरी नजर मां के ओर पड़ा जो दरवाजा पर खड़ी है में बहुत खुश हुआ तनि पिछे से गाडी मुझे धक्का मार दि जिससे हमारी यही पर मौत हो गई