दतिया-एक आकर्षक पर्यटन स्थल
राज बोहरे
दतिया एक मध्य कालीन नगर रहा है, जिसके बाजार व सड़कों पर टहलते हुए पुरानी इमारतों के कंगूरे,गुम्बद, रर, महल आदि दिख जाते हैँ। यहाँ पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहां की पुरानी इमारतें, विभिन्न वास्तु शिल्प, हस्त शिल्प की चीजें, ताल – तलैयें , विश्राम स्थल, नये विकसित पिकनिक स्पॉट आदि के साथ यहां की एक ऐसी तस्वीर सामने आती है, जिनसे यह एक उपयुक्त पर्यटन केंद्र के रूप में दतिया उभर सकता है।
मध्य प्रदेश का जिला मुख्यालय वाला कस्बा है यह दतिया, जो झांसी व ग्वालियर के बीच में स्थित है, और इसके 30- 30 किलोमीटर दूरी पर चारों ओर लगभग इसी श्रेणी के कस्बे- डबरा, भांडेर, इंदरगढ़,दिनारा व बड़ा शहर झाँसी मौजूद है।
वर्तमान मध्य प्रदेश के एक जिले के मुख्यालय के रूप में स्थित दतिया लोकसभा में भिंड के साथ जुड़े निर्वाचन क्षेत्र में आता है। दतिया में कुल मिलाकर तीन तहसील दतिया सेवड़ा व भाण्डेर हैं, और तीन उप तहसील इंदरगढ़, बरौनी और बसई है ।
दतिया को सदा ही एक धार्मिक नगरी के रूप में देखा जाता रहा। इस कारण यहां विकास की गति धीमी रही। धार्मिक नगरी का अर्थ होता है "तीर्थ " और तीर्थ की जो तस्वीर जन मानस में है, वह है देहाती कपड़ों में सजे धजे, तिलक मुद्रा लगे, पूजा करने को आतुर घुट सिर वाले दर्शनार्थी ; और यहां-वहां सजी तुलसी माला,पीतल मूर्तियां, धार्मिक किताबें,ठाकुर जी की पोशाक, चंदन गंगोटी जैसी चीजों को रखे हुए छोटी-छोटी दर्जनों गुमटीनुमा दुकान। न दर्शनार्थी ऐसे कस्बे को बदले रूप में देखना चाहते हैं, न राजनेता। सब इसे उ 18 वीं सदी के तीर्थ और धार्मिक नगरी के रूप में देखना चाहते हैं। पिछले 20-22 बरस से दतिया को पर्यटन नगरी के रूप में स्थापित करने के लिए दतिया का जिला प्रशासन सक्रिय हुआ और इस आशय की तैयारी आरंभ हुई। केन्द्र सरकार द्वारा भी शुरू में दतिया महाराज के किले के एक हिस्से को एक होटल के रूप में तैयार करने हेतु पर्यटन विभाग द्वारा बनाया गया।। यह बात सन 2001 से पहले की है जब केंद्र में ग्वालियर के प्रभावशाली मंत्री श्रीमंत माधवराव सिंधिया के पास बड़े महत्वपूर्ण मंत्रालय थे, केंद्र सरकार के ग्वालियर-झांसी टूरिस्ट सर्किट को ग्वालियर- दतिया- झांसी बनाया गया। अनेक पर्यटकों के ट्रिप दतिया आते रहें,महल के एक हिस्से में बनाए गए रेस्ट हाउस में ठहरते भी रहे ।
दतिया की प्रास्थिति और पहुंचने के साधन
दतिया को भौगोलिक स्थिति में हम ग्वालियर से झांसी जाते समय 75 किलोमीटर दूर और झांसी से ग्वालियर जाते समय 27 किलोमीटर दूर पाते हैं। यानी दतिया ग्वालियर और झांसी के बीच में मुख्य सड़क और स्थित है। दतिया एन.सी.आ.र उत्तर मध्य रेलवे का एक छोटा स्टेशन है । यहां पर इन्दौर श्री वैष्णोदेवी कटरा मालवा एक्सप्रेस, दिल्ली जबलपुर महाकौशल एक्सप्रेस,पुणे जम्मू तवी झेलम एक्सप्रेस, अमृतसर मुम्बई पठानकोट, हरिद्वार-पुरी उत्कल एक्सप्रेस, आगरा झांसी पैसेंजर, फिरोजपुर मुम्बई पंजाब मेल, अमृतसर बिलासपुर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस, गवालियर बरौनी छपरा एक्सप्रेस,ग्वालियर हावड़ा चंबल एक्सप्रेस, उदयपुर खजुराहो इंटरसिटी एक्सप्रेस,ग्वालियर बनारस बुंदेलखंड एक्सप्रेस,इटावा झाँसी लिंक एक्सप्रेस जैसी गाड़ियां रूकती हैं। ग्वालियर से सवा घंटे तथा झांसी से 35 मिनट के रेल सफर के बाद यहां पहुंचा जा सकता है।
ग्वालियर से रीवा, दमोह, सागर, झांसी, खजुराहो, जबलपुर, ललितपुर की तरफ जाने वाली बसें दतिया रुकती हैं । जबकि झांसी से ग्वालियर,आगरा, दिल्ली, बरेली, इटावा जाने वाली बसें यहां रुकती हैं ।यह बस दिनभर चलती रहती हैं । उत्तर प्रदेश के सड़क परिवहन निगम की बसें भी इस रूट पर चलती हैं। रात को वीडियो कोच डीलक्स बसें 2वाई 2 की बसें और स्लीपर कोच भी यहां से निकलते हैं।
इतिहास
दतिया के बारे में यह धारणा है कि यह महाभारत कालीन नगरी है, इसे दन्तवक्र द्वारा बसाया गया स्थापित किया गया नगर कहा जाता है। दतिया में पुरातात्विक पाषाण कालीन अवशेष भी मिले हैं। ईसा से 300 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक यहां से अपने सैन्य बल के साथ निकला था, इसका प्रमाण दतिया से 10 - 12 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम गुर्जर्रा में मिला अशोक का शिलालेख है, जिसमें अपने प्रवास की 286 भी रात उस स्थान पर गुजरने का जिक्र है। इस शिलालेख को काफी बर्बाद हो जाने के बाद केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने चारों ओर की एक चार दिवारी और छत बनाकर ढक दिया है। यहां चौकीदार के रूप में एक व्यक्ति भी रहता है। हालांकि इस पर लिखी इबादत अब उतनी पढ़ने योग नहीं है । इस शिला पर लिखे लेख की लिपि की शिरोरेखा आपस में मिली हुई है और अक्षर भी खरोष्ठी लिपि के बताए जाते हैं। यद्यपि इस विषय में भी इतिहासकारों में मतभेद है। इलाहाबाद और पटना के पास मिले शिलालेखों में भी अशोक के प्रवास की 286 भी रात लिखी गई है, तो इतिहासकारों का ऐसा मत है कि सम्राट अशोक स्वयं इस मार्ग पर नहीं आए थे , बल्कि उनके सिपाहसालार, मंत्री, विशेष दूत , धर्मदूत इन पथों पर गुजर रहे थे और उन्होंने जगह-जगह जहां रुके वहां जमीन में जमी हुई चट्टानों पर ही अपने संदेश खुदवा दिए थे, इनमें अशोक का नाम देवानां प्रियदर्शी लिखा गया है जो अनूठा संबोधन है।
बुंदेला शासकों के समय में 16वीं शताब्दी के आरंभ में बरौनी में इस क्षेत्र के क्षत्रप रहा करते थे। राजा वीर सिंह जू देव को दतिया में असंख्य इमारतें बनवाने का श्रेय जाता है, न केवल दतिया बल्कि वृंदावन और बनारस सहित भारतवर्ष के अनेक स्थानों पर कुल 52 इमारतें शुरू करने का काम वीर सिंह जूदेव के नाम इतिहास में दर्ज है । वीर सिंह देव महत्वाकांक्षी शासक थे, उन्होंने शहजादा सलीम से दोस्ती की और अकबर के खिलाफ बगावत कर रहे सलीम का साथ दिया। फिर सलीम की मंशा के मुताबिक अकबर के अति विश्वासी सेनापति अबुल फजल का 9 अगस्त 1602 को सराय की बर नामक स्थान (वर्तमान आंतरी )में सिर काट लिया था । प्रसन्न सलीम जब अक्टूबर 1605 में सम्राट बना तो जहांगीर के नाम से जाना गया और उसने वीर सिंह देव को बड़ा सम्मान दिया। जहांगीर इस क्षेत्र में यात्रा पर भी आया। वीर सिंह जुदेव उस युग में ताकतवर राजा और योद्धा वन के उभरे और उन्होंने समूचे बुंदेलखंड को हस्तगत कर लिया ।
दतिया में क्या देखें
पर्यटकों को देखने के लिए दतिया में तमाम ऐतिहासिक, पुरातात्विक व धार्मिक स्थान मौजूद है-
(अ)ऐतिहासिक स्थान
(1) सतखंडा महल
लाला के लाल के पास बने एक टीले पर यह भव्य महल स्थित है, जिसे सतखंडा महल कहा जाता है। जिसकी 3 मंजिल नीचे व 4 मंजिल ऊपर होने की किवदंती प्रचलित है। यह दतिया का सर्वाधिक आकर्षक स्थापत्य है । यह महल चौकोर आकृति में शुक्राचार्य के वास्तु शास्त्र पर बनाया गया बताया जाता है। पत्थर की उम्दा कटाई,शानदार गुंबद,छत की चित्रकला तथा चौड़े चौड़े आंगनों के कारण यह महल आज भी दर्शनीय है।एक स्थान ऐसा भी बताया जाता है कि यहां विश्व प्रसिद्ध विश्व चैम्पियन पहलवान गामा अभ्यास करता था। पुरातत्व विभाग ने इसकी देखरेख व मरम्मत आरंभ कर दी है। कहा जाता है कि 19 नवंबर 1635 ई. को शाहजहां भी दतिया आया था। तत्कालीन इतिहासकार अब्दुल हमीद ने लिखा है कि इस महल पर 35 लाख रुपए खर्च हुए थे । यह महल 84 गज लंबा व इतना ही चौड़ा है। कहा यह भी जाता है कि इस जहांगीर महल नाम दिया गया क्योंकि जहांगीर की प्रस्तावित बुंदेलखंड यात्रा को दृष्टिगत रखते हुए ओरछा और दतिया में एक से महल बनाना आरंभ हुआ। ओरछा में लगभग इस नक्शे का एक महल है ,जो दतिया के महल से छोटा है, और उसकी पत्थर की प्रतिकृतियां आदि भी दतिया की तुलना में उतनी महत्वपूर्ण नहीं है।
(2) दतिया का किला
दतिया के राज परिवार के निवास के रूप में प्रयोग किया जाने वाला यह परकोटेदार किला परिसर कई मंदिरों, सभा भवन, बुर्जों,बावड़ियों, निवासीय भवनों तथा शानदार सिंहद्वार से सुशोभित है जिसमें से अधिकांश भवन अभी सुरक्षित व दर्शनीय हैं । जिनमें दरबार हॉल का तो कोई सानी ही नहीं है।
(3) राजगढ़ महल
राजगढ़ नाम से जाना जाने वाला यह महल पीतांबरा पीठ के सामने वाली पहाड़ी पर स्थित है । यह महल दतिया महाराज द्वारा राजकाज के लिए प्रयुक्त किया जाता था इसलिए राजगढ़ इसका नामकरण हुआ । आजादी के बाद कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक व जिला जज के न्यायालय भी इसमें स्थापित किए गए । राजगढ़ का दरबार हाल, चौड़े व हरेभरे आंगन , मेहराबदार सहन देखने योग्य है। काफी दिनों तक यहां दतिया का संग्रहालय रहा। अब यह इमारत खाली पड़ी है। यद्यपि बीच में इसमें होटल खोलने की बात चली थी, लेकिन बाद में वह योजना भी धराशाई हो गई।
(4) लाला का ताल
उम्दा घाटों से सुसज्जित यह ताल दतिया के सैयर गेट के बाहर उस सड़क पर स्थित है, जो पुरानी बडोनी रोड भी कहलाती है। जलविहार के लिए पैदल बोट की उपलब्धता वाला लाला का ताल अथाह जल राशि वाला ऐसा एक मात्र ताल है, जहां से दतिया के सतखंडा महल, उडनू की टोरिया , पंचम कवि की टेकरी, राजगढ़, दत्तात्रेय मंदिर आदि दर्शनीय स्थल दिखाई देते हैं।
(5) छतरी या मुकरवा- दतिया नगर का सर्वाधिक आकर्षक व वास्तु शिल्पकरण सागर स्थित मुकरवा है जो मकबरा का तद्भव रूप है। यहां बुंदेला राजाओं की खूबसूरत छतरियां /समाधिया हैं, जिन्हें इन दिनों पुरातत्व विभाग मरम्मत करके संरक्षित कर रहा है। राजा परीक्षित की छतरी में हजारो की संख्या में पोस्टकार्ड साइज़ से लेकर पांच फिट तक के आकार में बड़े मनोरम लघु चित्र बनाए गए हैं, इन चित्रों में भागवत में कहे गए श्री कृष्ण कथा के दृश्य, विभिन्न विष्णु के अवतार,अर्थात वामन अवतार , नृसिंह अवतार ,श्रीराम विवाह आदि के मनोरम दृश्यों के, दतिया के राजाओं के जुलुस व दरबार के चित्र हैं, वन्य पशु, श्रृंगार रत रानी ,गांव के दुर्लभ चित्र भी यहां बने हैं, तो आम आदमी द्वारा किए जा रहे श्रमदान के चित्र भी यहां स्थित हैं। एक चित्र में यहां राम और सीता का विवाह बताया गया है और ताज्जुब की बात यह है कि राम को वैसा ही मौर या मुकुट पहराया गया है जैसा खजूर का बना मुकुट मौर दतिया में आम दूल्हा पहनते हैं। लघु चित्र ज्ञाता विशेषज्ञ श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने इन चित्रों को संरक्षित कर वेबसाइट www. indian miniature.com पर लॉन्च किया है ।
(5) अन्य स्थल
दतिया नगर चारों ओर से परकोटे से घिरा हुआ था। इसके चार दरवाजे थे और चार ही खिड़कियां थी। पुरानी बस्ती इसी के अंदर थी, पुरानी जेल, शिवगिर मंदिर, बिहारी जी मंदिर, भरतगढ़, ठंडी सड़क, बग्घी खाना, गोविंद निवास, ठण्डी सड़क , रिसाला मन्दिर ,अवध बिहारी मन्दिर आदि स्थान दतिया की शहरपनाह के भीतर बाहर दर्शनीय स्थल के रूप में थे। दतिया के परकोटे को विगत कुछ वर्षों पूर्व तोड़कर उस पर एक सड़क बनाई गई है जो दतिया की रिंग रोड कहीं जाती है। एक आश्चर्य की बात यह है कि दतिया की इस शहरपनाह यानी परकोटे के अंदर जितने तालाब और हैंडपंप है, वे सब खारा पानी देते हैं और परकोटे के बाहर के सारे कुएं, बावड़ी और नलकूप मीठा पानी देते हैं
दतिया से बाहर के दर्शनीय स्थल
(1)सोनागिर
दतिया जिले में सर्वाधिक महत्व सोने के जैन मंदिर का है। जो संख्या में 101 कहे जाते हैं कहा जाता है कि यहां 56 करोड़ जैन मुनि तपस्या करके मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं । यह स्थान दतिया से 13 किलोमीटर दूर है और यहां जाने के लिए ऑटो, तांगा, मिनी बस के अलावा, किराए से चलने वाली टेक्सी उपलब्ध हैं । यहाँ स्टेशन भी है जिस पर 2 ट्रेन पैसेंजर व छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस रूकती है।
(2) सेंवड़ा
दतिया से 65 किलोमीटर दूर दतिया का तहसील मुख्यालय सेंवड़ा है। सेंवड़ा का प्राचीन नाम शिव धाम था जैसा कि डॉक्टर शफी अल्लाह कुरैशी ने लिखा है। कुछ लोग कहते हैं कि सेहुड के फूलों के कारण इसे सेंहुड़ा कहा गया, जो बाद में सेंवड़ा बना। यह तो ज्ञात नहीं कि यहाँ का असली नाम क्या था, पर कई स्थान दर्शनीय है, जिनमे एक सेंवड़ा का किला है । सेंवड़ा में किला बहुत खुबसुरत है, जिसकी देखरेख अभी भी की जाती है। इसमें कुछ परिवार निवास भी करते हैं। प्राचीन चित्रों, प्राचीन शिल्पो और ऊंची पहाड़ी पर बना होने के कारण दूर-दूर तक सिंध के भरका और बीहड़ों को निकट से दर्शाने वाला सेंवड़ा किला पुरातत्व की दृष्टि से एक बहुत मुकम्मल पर्यटन स्थल है । इस किले के पास में ही सिंध नदी अपने चौड़े पाठ में बहती है, जिसका बड़ा खूबसूरत नजारा है। यही स्थल सनकुआ के नाम से पर्यटन स्थल है, नदी के किनारे पर कभी डूब जाने वाली, कभी उभरने वाली शानदार बारादरिया हैं, कुछ गुफाएं हैं, झरने हैं! सनकुआ ऐसा मनोरम स्थल है, जहां लंबे समय तक आसपास के स्थानीय सैलानी व्यक्ति समय बिताते हैं, पिकनिक बनाते हैं और प्रकृति का आनंद लेते हैं। जुझार पुर में सुन्दर प्रतिमाएं और भवन भी बने हुए हैं ।
(3)इंदरगढ़
इंदरगढ़ दतिया सेंवड़ा रोड पर दतिया से 30 किलोमीटर इंदरगढ़ नाम का कस्बा है। यहां लोक निर्माण विभाग का रेस्ट हाउस है। इंदरगढ़ कस्बा अब पुराने किले के कोट से बाहर आ गया है। पहले परकोटे के भीतर ही इंदरगढ़ का किला और उसके आसपास के इलाके में सारी इंदरगढ़ की बस्ती हुआ करती थी। यद्यपि देखरेख के भाव में इंदरगढ़ के किले का बुरा हाल है। लोग उसे सार्वजनिक शौचालय के रूप में प्रयोग करते हैं, तो वहां के पत्थरों और दूसरी चीजों को तोड़फोड़ कर अपने घरों में लगने लगते रहते हैं । इसलिए खंडहर हो चुका यह किला अब पुनर्निर्माण के तौर पर भी बड़ा खर्चीला होगा। फिर भी ऐतिहासिक महत्व से इंदरगढ़ जाट राजाओं का बड़ा महत्वपूर्ण किला रहा है।
(4)बड़ोनी
एक समय दतिया का सत्ता केंद्र था वहां से जागीरदार की हवेली बड़ोनी की गड़ी मध्यकाल की है जो दर्शनीय है। दतिया से ग्वालियर की दिशा में आगे बढ़ने पर 7 किलोमीटर के बाद ही एक रास्ता बायीं तरफ बड़ोनी के लिए जाता है। बड़ोनी पहले दतिया में रियासती समय आरंभ होने के पहले लगभग 500 वर्ष पूर्व इस क्षेत्र का सनी मुख्यालय और प्रशासनिक मुख्यालय होता था। वीर सिंह जू देव बड़ोनी के ही जागीरदार थे। अपने पिता से ओरछा साम्राज्य द्वारा उन्हें यही जागीर प्राप्त हुई थी और उन्होंने ही बरौनी के बाद दतिया को विकसित किया था दतिया में निर्माण कराए थे। बड़ोनी की गड़ी में 16वीं शताब्दी के तमाम निर्माण अच्छी बारादरी, कोट, मेहराबदार सहन मौजूद हैं।
(5)भांडेर
दतिया से 30 किलोमीटर दूर भांडेर के लिए एक अलग सड़क गई है, जो आगे चिरगांव को चली जाती है। भांडेर में विश्रामगृह है लोक निर्माण विभाग का विश्राम गए हैं भांडेर में पहाड़ी पर संत लिया है यह देखने योग्य है । लगभग 200 साल पुराना देवी का मंदिर रामगढ़ मंदिर है। भांडेर में ही भर्रौली के नाम से एक गांव है, जिसके कलात्मक मन्दिर को राधा रमन जी वैद्य ने भारहुतों का मन्दिर बताया है। पत्थरों पर की गयी खुदाई और नागर शिल्प कीं शिखर वाला यह मंदिर कलात्मक रूप से बहुत भव्य और शानदार है।
(6)उनाव
दतिया से झांसी का एक दूसरा रास्ता उनाव होकर है। उनाव में पहुज नदी के किनारे पर सूर्य बालाजी का मंदिर है।दतिया से 17 किलोमीटर दूर उनाव बालाजी है है। उन्नाव गांव में चारों ओर दरवाजे बने हुए हैं- दतिया दरवाजा, झांसी दरवाजा, भाण्डेर या सरसई दरवाजा है। उनाव सूर्य मंदिर को उनाव बालाजी मंदिर कहा गया है।बुंदेला राजाओं ने यहाँ बड़े निर्माण कार्य कराए- बड़ा आंगन, तमाम कमरे, सूरज मंदिर और मंदिर से लगा हुआ बड़ा कुआं, है। बताते हैं कुशवाहा परिवार की एक गाय एक स्थान पर खड़ी होकर दूध बहाया करती थी, बाद में कुशवाहों द्वारा वह स्थान चिन्हित कर उनाव के पंडा परिवार के एक बुजुर्ग को बताया तो उनके निर्देशन में उस जगह खुदाई किए जाने पर वहां किसी देवता का एक जंतर नुमा चेहरा निकल कर आया, यह जन्तर या चेहरा सूर्यदेव का था , इस जन्तर को बुंदेला राजाओं ने मंदिर में स्थापित किया और उसके पास में एक विशाल कुआं बनवाया जिसमें घी का प्रचुर भंडार मौजूद रहता है, वर्तमान में भी लोग दान किया जाने वाला घी उसमें डालते हैं तो इसमें देसी घी का भंडार हमेशा भरा रहता है। लोग बताते हैं कि सैकड़ो साल पुराना घी भी आज मौजूद है। शासन द्वारा यहां ट्रस्ट स्थापित किया गया है, जिसका प्रशासक नायब तहसीलदार/ तहसीलदार या एसडीएम होता है, वह कुशवाहा परिवार जिनकी गाय वहां दूध देती थी और उन्होंने स्थान को पहचान और वे पंडा जिन्होंने सबसे पहले सूर्य देव के इस मूर्ति को पहचान कर पूजा आरंभ की उन परिवारों को आज भी शासकीय ट्रस्ट में की प्रबंधक द्वारा मंदिर की चढोत्री का एक निश्चित हिस्सा प्रदान किया जाता है । उनाव से झांसी 12 किलोमीटर है और यहां से झांसी का रास्ता भी ठीक है ।
(ब ) धार्मिक स्थान पर्यटन –
दतिया सदा से तांत्रिक स्थान रहा है , पंचम कवि की टोरिया व परकोटा के चारों दरवाजा पर भैरव मंदिर की उपस्थिति यही दर्शाती है , उड़नू की टोरिय भी एक रहा है, शहर में दर्जनों कृष्ण मंदिर हैं जो वृंदावन की तर्ज पर अलग-अलग नाम से विभूषित है , पीतांबरा पीठ इस नगर का सर्वाधिक चर्चित स्थल है जो पूर्व में बनखंडी के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में स्वामी जी के आगमन के बाद यहां बगलामुखी के विग्रह की स्थापना हुई और यह चमत्कारी पीतांबरा पीठ के नाम से जाना जाने लगा -
(1) दतिया में पीताम्बरा पीठ पूर्व से ही एक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में मौजूद है, लेकिन पिछले 25 वर्ष से देवी धूमावती माँ के दर्शनार्थ यहां शनिवार और रविवार को एक लाख तक की भीड़ इकट्ठा होने लगी है, सुबह और शाम 5:00 बजे से 7:30 बजे तक धूमावती माँ के दर्शन होते हैं। मन बांछित देने वाले देवू के रूप में जन सामान्य में तेजी से इस स्थान का प्रसार हो रहा है , और तो दर्शनार्थ बढ़ते जा रहे हैं। पीतांबरा जयंती के दिन साल में एक बार यहां रथ यात्रा का नया प्रचलन आरंभ किया गया है। पीतांबरा पीठ स्थान का प्रशासन और व्यवस्था ट्रस्ट देखा है, जिसे माननीय पूज्यपद स्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया था। यह स्थान 1929 तक केवल एक शिव मंदिर के रूप में प्रचलित था, अज्ञात नाम धारी स्वामी जी जब यहां आए तो उन्होंने यह स्थान अपने लिए उपयुक्त समझा और एक कुटिया बनाकर निवास करने लगे। बाद में यहां बगलामुखी की प्रतिमा स्थापित की गई और श्रीमायी का यंत्र भी स्थापित किया गया। अंत में धूमावती देवी का मंदिर भी बनाया गया। अब यह केंपस बहुत बड़े स्थान के रूप में बन चुका है और मध्यप्रदेश सरकार यहां पर्यटन विभाग के मार्फत पीतांबर लोक बनाने की तैयारी में है। आने वाले दर्शकों के लिए यहां काफी सुविधा स्थापित की गई हैं।
(2) असनई मंदिर - दतिया की ठंडी सड़क से चलकर पीली कोठी नामक दतिया नरेश के दूसरे महल के पास असनई नामक स्थान है , यहां से एक छोटी सी नदी निकलती है, जिसका छोटा सा बाँध है और बांध के ठीक किनारे रामलला का मंदिर है। मंदिर के पास का पुल बहुत खूबसूरत है और मंदिर के चारों ओर हरा-भरा वातावरण मंदिर का कैंपस बड़ा मनोरम लगता है। यहां लोग पिकनिक मनाने के लिए हर रविवार को इकट्ठा होते हैं ।
(3) भैरव मंदिर -दतिया के चार दरवाजे हैं और चारों दरवाजा पर भैरव के मंदिर हैं, कार्तिकेय की प्रतिमाएं बड़ी मनोहारी है।
(4) पंचम कवि की टोरिया – दतिया ग्वालियर मार्ग पर दतिया मोटेल के सामने रेल पत्री के पार टोरिया पर स्थित भैरव मंदिर महत्वपूर्ण स्थान है। यहां एक शिवलिंग भी स्थापित है , जिनके साथ नन्दी नहीं है तो यह माना जाता है कि यह किसी संत की समाधि है। अद्भुत बात यह है कि यहां एक चट्टान पर हनुमान जी की ऐसी प्रतिमा उतारी गई है जिनके हाथ में गदा की बजाय तलवार है और दूसरे हाथ में ढाल भी है तथा उनकी कमर में एक छोटी कटारी लटकी हुई है। यह विलक्षण प्रतिमा भी दर्शनीय है। शनिवार की रात और रविवार के दिन यहां भारी मात्रा में दर्शनार्थी आते हैं। भैरव जयंती पर माघ महीने में यहां काफी लोग इकट्ठा होते हैं, कलेक्टर अशोक शिवहरे के कार्यकाल में पहाड़ी पर ऊपर तक जाने के लिए सड़क मार्ग बनवा दिया गया है।
(5) सोनागिर मंदिर- जैन समाज के 56 लाख मुनियों द्वारा समाधि संबंसरण करने वाले और मोक्ष ग्रहण करने वाले स्थान के रूप में प्रसिद्ध सोनागिर में वर्तमान में 101 जैन मंदिर हैं जिनमें अलग-अलग तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान है। सबसे बड़ा मंदिर ऋषभदेव का है, जहां कि सोना, चांदी, कांच से मंदिर की दीवारों पर काम किया गया है। यह बड़ी विशाल प्रतिमा खडगासन में विद्यमान है। यद्यपि कहा यह भी जाता है कि यह गोसाईयों और गिरियों के स्थान है जिसका विस्र्तुत जिक्र ऐ असफल के उपन्यास ‘ नमो अरिहंता ‘ में किया गया है । इन मंदिरों के बीच में एक शिव मंदिर है, जहां से डोल ग्यारस के दिन विमान निकाल कर तालाब तक आता है और लौट कर वापस नहीं जाता है। देशभर के जैन समाज के लोग होली के 5 दिन यहां रंग गुलाल तथा व्यर्थ के प्रदर्शनों से दूर रहकर यहां आनंद के साथ मेले के रूप में बनाते हैं ।
(6) उड़नू की टोरिया- दतिया ग्वालियर रोड पर लगभग 3 किलोमीटर पर बाए हाथ में एक सीधी खड़ी पहाड़ी पर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर है, जिसके लिए नीचे से सीधी खड़ी सीढ़ियां बनाई गई है ।लगभग 200 साल पुरानी यह सीढ़ियां आज भी मजबूत है, जिनकी समय-समय पर भक्तगण मरम्मत भी किया करते हैं। हिम्मत वाले लोग ही इन सीड़ियों द्वारा चढ़कर जाते हैं और हिम्मत वाले ही उतरते हैं, क्योंकि ऊपर से देखने पर सीढ़ियां सीधी खड़ी हुई दिखाई देती हैं और नीचे की खाई भाई पैदा करती है। लेकिन साहसी लोग न केवल सीड़ियों से चढ़ते हैं, बल्कि पहाड़ियों पर चढ़ाई के शौकीन इस पर चढ़ाई करते हैं। दतिया के प्रसिद्ध आधुनिक गामा कृष्ण गोपाल श्रीवास्तव जिन्होंने अपने दांतों से हवाई जहाज और पानी का जहाज खींचा था, उन्होंने वर्षों तक यहां इस पहाड़ी पर नए छात्रों को पहाड़ी की चढ़ाई की प्रशिक्षण भी दिया है। मंदिर पर जाने के लिए पहाड़ी का दूसरा रास्ता भी है इसमें सीधी चढ़ाई नहीं है।
(7) चैतन्य दास आश्रम दतिया एक धार्मिक बात तांत्रिक स्थान रहा है चैतन्य दास जी महाराज की तपस्थली हनुमानगढ़ इन दोनों चैतन्य आश्रम के ही जाती है यह स्थान तालाब बा हरियाली से प्रभावित है भवन जी की तपस्त्री गोहोई वाटिका के नाम से चर्चित है कटरा वाले बाबा का प्रिया स्थान परशुराम के मंदिर मनोरंटल करण सागर के किनारे स्थित है गोपाल दास जी की टोरिया बच्चों की तोर की माता भी धर्म में रुचि रखने वालों को आत्मा शांति देते हैं
दतिया में कहां ठहरें
दतिया में शासकीय उच्च विश्रांति गृह , विश्रांति गृह और राजघाट सिंचाई परियोजना का विश्रामगृह है, जो सरकारी अधिकारियों को ही उपलब्ध होता है। नगर पालिका द्वारा भी एक विश्राम रहे बनवाया गया है जो सामान्य जन के लिए उपलब्ध है। इसके अलावा यहां पर्यटन विभाग की मोटेल मौजूद है, जिसका विस्तार होकर अब कई कमरे हो गए हैं । यह लाला के ताल किनारे स्थित है। इसके अलावा अब दतिया में अनेक होटल और लॉज स्थापित हुए हैं, जहां ठहरने की हर बजट के व्यक्ति की अपने बजट के अनुकूल व्यवस्थाएं हैं। दतिया की कृषि उपज मंडी द्वारा भी गोविंद धर्मशाला के नाम से दो धर्मशालाएं स्थापित की गई हैं, जिनमें एक धर्मशाला स्टेशन के पास में है, दूसरी बड़े बाजार में है। पूर्व में अनेक धर्मशालाओं में ठहरने की यहां व्यवस्था होती थी, अब वे सब धर्मशालाएं यात्रियों के लिए तो नहीं, लेकिन शादी विवाह के लिए उपलब्ध रहती हैं। दतिया के बाहर सोनागिर में रेस्ट हाउस है, गोराघाट 20 किलोमीटर दूर पर रेस्ट हाउस है, झांसी में भी मध्य प्रदेश का कभी रेस्ट हाउस हुआ करता था, जिसे मध्य प्रदेश शासन द्वारा बेच दिया गया है। दतिया में साफ सुथरे लॉज भी हैं और धर्मशालाएं भी हैं।
घूमने के साधन
दतिया में स्थानीय जगह पर जाने के लिए ऑटो व तांगे उपलब्ध हो जाते हैं, तो आसपास की जगह पर प्राइवेट टैक्सियां उपलब्ध हैं, जो सही किराए पर घुमा देते हैं।
पधारो म्हारे देश
एक मुकम्मल पर्यटन केंद्र के लिए जरूरी सारी सुविधाओं से युक्त दतिया एक उम्दा और सस्ता पर्यटन केंद्र है प्रतीक्षा है कि देसी विदेशी पर्यटक एवं पधारे और आनंद लें।