Goswami Tulsidas in Hindi Spiritual Stories by Saroj Verma books and stories PDF | गोस्वामी तुलसीदास

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गोस्वामी तुलसीदास

भारतीय संस्कृति के अमर गायक गोस्वामी तुलसीदास जी के सम्बन्ध में ये दोहा प्रचलित है....

पन्द्रह सौ चौवन बिसे,कालिन्दी के तीर
श्रावण शुक्ला सप्तमी,तुलसी धरयो शरीर

इस आधार पर उनका जन्म वर्ष सम्वत १५५४ विक्रमी माना जाता है,अधिकतर विद्वान उनका जन्म स्थान बाँदा जनपद के राजापुर गाँव को बताते हैं,कुछ लोग सोरों(एटा) को भी इनका जन्मस्थान मानते हैं,इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसीबाई था, इनके पिता का इनके बाल्यकाल में ही निधन हो गया था,नरहरि दास के आश्रम में इनका पालन पोषण हुआ था,स्वाध्याय से इन्होंने ज्ञानार्जन किया ,इनका विवाह दीनबन्धु की बेटी रत्नावली से हुआ था,

अस्थि -चर्म-मय देह मम्,तामैं ऐसी प्रीति
तैसी जो श्रीराम में,होतितौ भव भीति

इस कथन के द्वारा रत्नावलि ने तुलसीदास जी की आसक्ति को समाप्त कर दिया था और वें देह-गेह, धरा-धाम छोड़कर रामभक्त हो गये,"रामचरित मानस" के इस अमर गायक का देहावसान सम्वत १६८० विक्रमी में हुआ था...

संवत सोलह सौ असी,असी गग के तीर
श्रावण शुक्ला तीज शनि,तुलसी तज्यो शरीर

साहित्यिक परिचय...रामभक्ति का परमाश्रय लेकर तुलसीदास महाकवि बन गए,पत्नी के उद्बबोधन ने उन्हें सांसरिक माया मोह से मुक्त कर वैराग्य पथ पर बढ़ाया,ईश्वर भक्ति में लगाया,राम सीता के गुणगान हेतु अभिप्रेरित किया,तुलसीदास राम के अनन्य उपासक एवं अमर गायक बन गए,रामभक्ति तुलसीदास की काव्य साधना का आधार बनी,कृष्ण भक्ति ,कृष्ण गीतावली तथा अन्य देवी देवताओं की भक्ति स्तुतियाँ उन्होंने अपनी पुस्तक "विनय पत्रिका",में लिखीं,ब्रज तथा अवधी भाषाओं के साथ उन्हें संस्कृत साहित्य का भी आधिकारिक ज्ञान उनकी काव्य रचना सौष्ठव का मूल बना....
उनकी रचनाएँ...रामचरित मानस,विनयपत्रिका,कवितावली,गीतावली,कृष्ण गीतावली,दोहावली,बरवै रामायण,पार्वती मंगल,जानकी मंगल,रामलला नहछू,वैराग्य संदीपनी,रामाज्ञा प्रश्नावली,हनुमान बाहुक आदि थीं...

तुलसीदास के भावपक्ष की विशेषताएँ...
१-वर्णन का क्षेत्र-- तुलसीदास जी की रचना का विषय मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के लोक पावन चरित्र का वर्णन करना है,इन्होंने राम के सम्पूर्ण जीवन का चित्रण किया है,जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जो तुलसीदास जी की दृष्टि से बच गया हो,मानव जीवन के विविध पहलुओं और मानव हृदय की कोमल ,कठोर तथा स्वाभाविक भावनाओं का सजीव चित्रण तुलसीदा जी की विशेषता है...
२-उदात्त आदर्शों की स्थापना--इनके राम परम ब्रह्म होते हुए भी गृहस्थ हैं,वे राजपुत्र होते हुए भी राजघरानों की कुटिल राजनीति का शिकार हुए,वन में भी उनके समक्ष अकथनीय आपत्तियांँ आईं,उनकी पत्नी हर ली गई,जिसके फलस्वरूप उन्हें युद्ध करना पड़ा,विश्व विजयी रावण से तरह तरह के संघर्ष करने पड़े,अन्त में अग्नि में तपाए सोने की तरह खरे निकले,तुलसी दास जी की लेखनी भी इन सभी परिस्थितियों में अपने राम के समान ही समर्थ रही,तुलसीदास जी ने इन विविध चित्रों में लोक संग्रह का ध्यान रखते हुए उन आदर्शों की स्थापना की है ,जो सार्वभौमिक और सार्वदेशिक हैं और इन सबके साथ तत्कालीन परिस्थितियों में भक्ति का ऐसा समन्वय है जो आज भी जनजाति के मार्ग-दर्शन का कार्य करता है...
३--भक्ति की भावना--तुलसीदास जी की भक्ति दास्यभाव की थी,जिसमें स्वामी को पूर्ण समर्पित एवं अनन्य भाव से देखा गया है,तुलसी के राम शक्ति,शील,और सौन्दर्य तीनों के चरम उत्कर्ष हैं,तुलसी ने चातक को प्रेम का आदर्श माना है....

एक भरोसा एक बल,एक आस बिस्वास
एक राम घनस्याम हित,चातक तुलसीदास

४--समन्वय की भावना--समन्वय की भावना तुलसीदास जी की सर्वश्रेष्ठ विशेषता है,धार्मिक ,सामाजिक एवं दार्शनिक उन्होंने तीनों ही क्षेत्रों में समन्वय की भावना का प्रसार किया है,धर्म के क्षेत्र में ,ज्ञान,भक्ति और कर्म का समन्वय है,सामाजिक क्षेत्र में भी चारों वर्णों एवं चारों आश्रमों का समन्वय है,इनके काव्य एक दूसरे के विरोधी ना होकर एक दूसरे के पूरक हैं,निर्गुण और सगुण में समन्वय स्थापित करते हुए वें कहते हैं कि....

अगुणहि सगुणहि नहिं कछु भेदा
उभय हरय भव संकट खेदा

५-प्रेम का आदर्श--चातक प्रेम इनके लिए आदर्श प्रेम है,राम रूपी घनश्याम के लिए तो वें चातक बने हैं,चातक प्रेम को ही उन्होंने अपने जीवन का आदर्श माना है....

"एक भरोसो,एक बल,एक आस विश्वास
एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास॥"

६--मनोभावों का चित्रण--- भावुकतापूर्ण मानसिक भावनाओं के चित्रण में तुलसीदास जी अद्वितीय हैं,राम के वन चले जाने पर भरत का दीनता से हृदय की पीड़ा को प्रकट करना...
"दीनबन्धु कारुण्य सिन्धु बिनु,कौन हियै की बूझै।"

लंका दहन का चित्रण...
बालधी बिसाल बिकराल जवाल-जाल मानौ,
लंक लीलिवे को काल रसना पसारी है
कैधों व्योम वीथिका भरे भूरि धूमकेतु,
वीररस वीर तलवारि-सी उघारी है

तुलसीदास जी की कलापक्षीय विशेषताएंँ....तुलसीदास काव्य का भावपक्ष जितना मार्मिक और हृदयस्पर्शी है,उसका कलापक्ष उतना ही सशक्त और कलापूर्ण है....
१-भाषा-- तुलसीदास जी का अवधी और ब्रज दोनों पर पूर्ण अधिकार था,वें भाषा के प्रकाण्ड पंडित थे,शब्द चयन लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों का प्रयोग ,रसानुकूल,भावान्तरण ,बोधगम्य तथा संस्कृत शब्दावली का प्रयोग उन्होंने प्रचुर मात्रा में किया,प्रकरण के अनुसार भाषा को कोमल तथा ओजपूर्ण बनाने में तुलसीदास जी सिद्धहस्त थे....

चली संग लै सखी सयानीगावत गीत मनोहर बानी
सोइ नवल तन सुन्दरसारीजगत जननि अतुलित छवि भारी

२-शैली-- तुलसी की रचनाओं में हमें उस समय की सभी शैलियों के दर्शन होते हैं,सभी शैलियाँ 'रामरय' हो गईं,उनकी शैलियाँ स्वाभाविक अभिव्यंजाना से परिपूर्ण हैं,तुलसीदास की शैलियाँ समन्यवादी थीं...
रामचरितमानस-- अपभ्रंश के चरति -काव्य दोहा-चौपाई की प्रबन्धात्मक शैली।
दोहावली-- कबीरदास जी की साखी रुप में मुक्तक शैली।
विनय पत्रिका-- विद्यापति और सूरदास की भावुकतापूर्ण गीत शैली।
कवितावली-- कवि गंग की सवैया पद्धति तथा वीरगाथा काल की छप्पय पद्धति शैली।
बरवै रामायण-- रहीम की बरवै पद्धति की कथात्मक शैली।

३-अलंकार-- तुलसी का अलंकार प्रयोग भाषा और भावों के अनुकूल है,वह स्वाभाविक है और उसमें जबरदस्ती कुछ ठूँसा नहीं गया है,अवसर के अनुसार उन्होंने अलंकारो का प्रयोग किया है,ज्यादातर उन्होंने रुपक,उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग किया है...

साहित्य में उनका स्थान.... विविध वर्णनों ,चित्रण तथा अपने समय में प्रचलित काव्य भाषाओं, शैलियों , विभिन्न रसों , अलंकारों आदि के द्वारा तुलसीदास जी ने हिन्दी साहित्य में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है,वें हिन्दी साहितय के अप्रतिम कलाकार थे,अयोध्या प्रसाद 'हरिऔध' ने इनके बारें में कहा है....

"कविता करके तुलसीलसे,कविता लसी पा तुलसी की कला।"

अतः भाषा,भाव,विषय एवं शैली इत्यादि की दृष्टि से तुलसी हिन्दी साहित्य के सूर्य कहे जाते हैं....

समाप्त....
सरोज वर्मा...