ठाकुर वीरभद्र सिंह ने गुस्से में आकर लक्खा से कहा....
"अब इस किशोर का कुछ ना कुछ इन्तजाम करना ही पड़ेगा,ये अपनी हदें भूल रहा है,शायद इसे मालूम नहीं कि हम कौन हैं इसलिए शायद इसने हमारी इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की है,वन विभाग में शिकायत करने वाली धमकी तक तो ठीक था लेकिन अब इसने हमारे घर में सेंध लगा दी है, जिसे हम कभी बरदाश्त नहीं कर सकते",
"तो मेरे लिए क्या हुकुम है सरकार!",लक्खा ने पूछा...
"पहले ओजस्वी को लौटने दो,देखते हैं कि वो क्या जवाब देती है,तभी हम अपना फैसला तुम्हें बताऐगे़",ठाकुर वीरभद्र सिंह बोलें....
और तभी हवेली के दरवाजे खुलने की आवाज़ आई और ओजस्वी ने हवेली के भीतर अपने कदम रखें ही थे कि ठाकुर वीरभद्र सिंह ने गुस्से से ओजस्वी से पूछा....
"इतनी रात को कहाँ से लौट रही हो"?
"जी! मैं ....",
इसके आगें ओजस्वी कुछ ना बोल सकी तो ठाकुर वीरभद्र बोले...
"हमें मालूम है कि तुम किशोर से मिलने गई थी,इसका मतलब है कि तुम्हें अपने बाप की इज्ज़त का जरा भी ख्याल नहीं है,हमारी एक बात कान खोलकर सुन लो ,हमने तुम्हारा रिश्ता जमींदार अष्टबाहु सिंह के बेटे के साथ तय कर दिया है,जल्द ही वें तुम्हें यहाँ देखने आऐगें और रही किशोर की बात तो अब वो हमसे ज्यादा दिनों तक बच नहीं पाएगा,उसने हमसे दुश्मनी लेकर अच्छा नहीं किया",
"लेकिन बाबू जी! प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं है",ओजस्वी बोली...
"चुप कर बतमीज! हमसे जुबान लड़ाती है,अब देखना हम तेरे प्यार की बोटियाँ बोटियाँ करके कैसें चील कौओं को खिलाते हैं",ठाकुर साहब बोले...
"आप ऐसा कुछ नहीं करेगें बाबूजी",ओजस्वी बोली...
"हम ऐसा ही करेगें,तू और वो किशोर दोनों ही देखेगें की हमारे खिलाफ़ जाने का अन्जाम क्या होता है"?,ठाकुर साहब बोले...
"नहीं!बाबूजी! ऐसा मत कीजिए,किशोर को छोड़ दीजिए",ओजस्वी गिड़गिड़ाई....
लेकिन ठाकुर साहब को ओजस्वी के गिड़गिड़ाने से कोई फरक नहीं पड़ा और उन्होंने लक्खा से कहा....
"उस किशोर को ढूढ़कर जल्द से जल्द उसका काम तमाम कर दो",
इस बात से ओजस्वी परेशान हो उठी और उसने फौरन ही एक खत लिखकर नारायन के हाथों मेरे पास भिजवाया,जिसमें लिखा था कि......
किशोर बाबू! माँ यहाँ होतीं तो आपकी मदद करतीं,लेकिन जब वो यहाँ नहीं हैं तो आप फौरन फूलपुर गाँव के रामस्वरूप अग्रवाल के यहाँ चले जाइए,वें आपको एक महफूज जगह छुपा देगें क्योंकि अब बाबूजी और लक्खा आपकी जान के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं और जब तक मैं खुद आपको लेने ना आऊँ,आप तब तक वहीं छुपे रहिए",
और फिर क्या था,ओजस्वी के कहने पर मैं पहले फूलपुर गाँव गया, वहाँ मैंने रामस्वरूप जी से सब कुछ बता दिया और वें तो ठाकुराइन कौशकी जी के वफादार थे इसलिए उन्होंने मुझे दो दिन के लिए अपने घर में पनाह दी और फिर उन्हें लगा कि लक्खा और ठाकुर साहब मुझे वहाँ आकर ढूढ़ लेगें तो फिर मुझे रातोंरात उमरिया के रेस्ट हाउस लेकर गए और तब उन्होंने वहाँ बंसी से कहा....
"बंसी! ये किशोर बाबू हैं,ये ठाकुराइन के मेहमान हैं,इन्हें तुम्हें रेस्ट हाउस में छुपाकर रखना होगा क्योंकि ठाकुराइन जी यहीं चाहतीं हैं,वें अभी बाहर गईं हैं नहीं तो ये तो शान्तिनिकेतन में ही रह लेते",
"हाँ...हाँ...रामस्वरूप जी! क्यों नहीं! मैं भी तो दो बार आपसे मदद माँगने आया था और दोनों बार आपने मेरी और बेला की मदद की थी,बहुत एहसान हैं हम दोनों पर ठाकुराइन के ,भला मैं इन बाबूजी की मदद के लिए कैसें मना कर सकता हूँ और फिर ये तो हमारे फाँरेस्ट आँफिसर भी हैं,लेकिन इन्होंने किया क्या है जो ठाकुर साहब इनके पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं",बंसी ने पूछा....
"प्रेम किया है इन्होंने भी तुम्हारी और बेला की तरह",रामस्वरूप जी बोलें....
"कहीं आप छोटी मालकिन की बात तो नहीं कर रहे हैं",बंसी ने पूछा...
"हाँ! मैं ओजस्वी बिटिया की ही बात कर रहा हूँ",रामस्वरूप जी बोलें....
"लेकिन रामस्वरूप जी !ये रेस्टहाउस तो सबका जाना माना है,कहीं वें इनको ढूढ़ने यहीं आ गऐ तो,",बंसी बोला....
"बस! आज रात भर कैसें भी करके इन्हें कहीं भी छुपा दो,सुबह ओजस्वी बिटिया इन्हें खुद यहाँ से ले जाएगीं क्योंकि कल तक शायद ठाकुराइन भी ऋषिकेश से लौट आऐगीं",रामस्वरूप जी बोलें....
"जी!ठीक है रामस्वरूप जी! आप बिल्कुल भी चिन्ता ना करें,इनका यहाँ कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता",बंसी बोला...
"रख लोगे ना इन्हें,डरोगे तो नहीं",रामस्वरूप जी ने पूछा....
"डरना कैसा रामस्वरूप जी! भला अब किसके लिए जिऊँगा?अब तो ना बेला रही और रमेश को भी लक्खा ले गया है,उसे मुझसे मिलने ही नहीं देता तो फिर मौत से क्या डरना",बंसी बोला....
"अच्छा! ठीक है तो अब मैं चलता हूँ,मैं अभी ही रात के अँधेरे में अपने गाँव निकल जाता हूँ,किसी ने हम दोनों को साथ देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी",रामस्वरूप जी बोलें...
"हाँ! और मैं इन्हें कहीं छुपाने का बंदोबस्त करता हूँ",बंसी बोला...
और उस रात रामस्वरूप जी फूलपुर लौट गए और मुझे बंसी ने रेस्ट हाउस के स्टोररूम में छुपने को कहा,उसने वहाँ मेरे लिए एक साफ बिस्तर का इन्तजाम किया और मेरे लिए खाना भी बनाया,मैं रातभर वहीं छुपा रहा और बंसी सारी रात रेस्ट हाउस के बाहर पहरा देता रहा,सुबह भोर हुई तो मुझे ओजस्वी नारायन के साथ लेने आई और हम दोनों शान्तिनिकेतन आ गए,तब तक ठाकुराइन जी भी ऋषिकेश से वापस आ चुकीं थीं और उन्होंने हम दोनों को शादी करने को कहा,तब ओजस्वी बोली....
"माँ!शादी !वो क्यों भला?",
तब ठाकुराइन बोलीं...
"तभी किशोर की जान बच सकती है,ठाकुर साहब और उनके लठैत सभी जगह किशोर को ढूढ़ते फिर रहे हैं,अगर तू शादी कर लेगी तो शायद तेरी माँग में लगे सिन्दूर को देखकर ठाकुर साहब को कुछ रहम आ जाए और वें किशोर को छोड़ दे,वरना बेटी वें कुछ भी कर सकते हैं,उनके सिर पर तो खून सवार है",
"लेकिन माँ ! बाबूजी के आशीर्वाद के बिना हम दोनों शादी कैंसे कर सकते हैं",ओजस्वी बोली...
"ये सब मत सोच बेटी! क्योंकि ये सब सोचने का अब वक्त नहीं रहा,वें कभी भी किशोर को ढूढ़ते हुए यहाँ आ सकते हैं,कहीं गुस्से में वें कोई ऐसा कदम ना उठा लें जिसकी वजह से हम सबको जिन्दगी भर पछताना पड़े,ठाकुराइन जी बोलीं....
"माँ! किशोर जी को कुछ भी नहीं होना चाहिए,मैं उनके लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार हूँ",ओजस्वी बोली...
"इसलिए तो कह रही हूँ कि दोनों जल्द से जल्द शादी कर लो",ठाकुराइन जी बोलीं...
"जी! माँ!मैं तैयार हूँ",ओजस्वी बोली...
फिर आननफानन में मेरी और ओजस्वी की शादी शान्तिनिकेतन के आँगन में हो गई,उस शादी में रामस्वरूप जी,ठाकुराइन जी और बंसी बस इतने ही जन मौजूद थे और जैसे ही शादी की रस्म खतम ही हुई थी कि ठाकुर साहब वहाँ अपनी बंदूक लेकर आ पहुँचे फिर ओजस्वी मेरे आगें खड़ी होकर बोली....
"बाबूजी! आप मेरी लाश पर होकर ही किशोर तक पहुँच सकते हैं",
तब ठाकुर साहब चीखे...
"हट जा! उसके सामने से ,मैं आज उसे नहीं छोड़ूँगा",
"नहीं हटूँगी",ओजस्वी बोली...
"मैंने कहा ना कि हट जा सामने से!",ठाकुर साहब दोबारा बोले...
"नहीं हटूँगी",ओजस्वी दोबारा बोली...
"नहीं हटेगी तू....नहीं हटेगी",ठाकुर साहब फिर से बोले...
"मैंने कह दिया ना कि नहीं हटूँगी,इन तक पहुँचने के लिए पहले आपको मुझ पर गोली चलानी होगी", ओजस्वी बोली....
और फिर ठाकुर साहब को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गोली चला दी और गोली की आवाज़ से सारा वातावरण गूँज उठा....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा....