Wo Maya he - 28 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 28

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वो माया है.... - 28



(28)

खबर रोज़ाना अखबार की रिपोर्टर अदीबा सिद्दीकी लकी ढाबे पर आई थी। अदीबा खबर रोज़ाना के लिए शहर और उसके आसपास हुए हादसों को कवर करती थी। उसे शाहखुर्द पुलिस स्टेशन से पुष्कर की हत्या के मामले के बारे में पता चला था। यह ढाबा शाहखुर्द पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता था।
अदीबा ने इंस्पेक्टर हरीश यादव से केस के बारे में बात की थी। उन्होंने बताया था कि पुष्कर की लाश ढाबे के सामने सड़क के दूसरी तरफ मिली थी। उस तरफ खाली मैदान है जिस पर झाड़ियां और पेड़ उगे हुए हैं। लाश झाड़ियों से कुछ दूर एक पेड़ के पास थी। आसपास खून था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पुष्कर पर किसी पंजेनुमा धारदार हथियार से वार किया गया था। उसकी गर्दन के पास तेज़ प्रहार का निशान भी था। जख्मों के निशान उसकी छाती पर थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर के पंजे से निशान बने हों। आसपास के इलाके से कभी किसी जंगली जानवर के होने की शिकायत नहीं आई। इससे पहले ऐसा कोई केस भी नहीं आया था।
इंस्पेक्टर हरीश यादव से मिली जानकारी के बाद अदीबा लकी ढाबे पर आई थी। वह वहाँ के मालिक और काम करने वालों से बात करना चाहती थी। वह ढाबे में बने एक टीन शेड कमरे में बैठी थी। उसके हाथ में चाय का कप था। ढाबे का मालिक सूरज पाल उसके सामने बैठा था। चाय का सिप लेकर अदीबा ने कहा,
"आप उस वक्त ढाबे पर ही थे जब यह सब हुआ।"
"मैडम हम तो यहीं रहते हैं। दिनभर ढाबे में काम करते हैं। रात को इसी कमरे में सो जाते हैं।"
सूरज ने दोनों हाथों से कमरे के चारों तरफ इशारा करते हुए कहा। अदीबा ने आगे कहा,
"दोनों पति पत्नी चाय नाश्ते के लिए रुके थे। उनके व्यवहार से कुछ अजीब लग रहा था आपको।"
"मैडम दोनों ढाबे के बाहरी हिस्से में पड़ी टेबल पर बैठे थे। हम ढाबे के अंदर वाले भाग में थे। जब चेतन उनका ऑर्डर लेकर आया था तो बाहर झांककर उनकी एक झलक देखी थी। उसके बाद बिजी हो गए। उस टाइम रोज ही बहुत भीड़ रहती है। उसके बाद तो जब वह औरत बिना बिल दिए जाने लगी तो चेतन ने उसे टोंका। वह यह कहकर चली गई कि अपने पति को लेकर आ रही है। चेतन ने हमको बताया तो हम बाहर गए। पता चला कि उसका पति मिल नहीं रहा है। फिर झाड़ियों के पास लाश मिलने की बात सुनाई पड़ी।"
अदीबा ने बची हुई चाय पीकर कप नीचे रख दिया। उसने कहा,
"चेतन को बुलाइए। मैं उससे बात करती हूँ।"
सूरज ने कहा,
"इस समय बिजी होगा....."
अदीबा ने कहा,
"और लोग भी तो काम करते हैं ना ढाबे में। फिर मुझे बस दो चार बातें पूछनी हैं। इसके बाद मुझे भी अपने अखबार के दफ्तर जाना है।"
सूरज ने अपना मोबाइल उठाया। किसी को कॉल लगाकर चेतन को भेजने को कहा। कुछ देर बाद एक लड़का अंदर आया। वह मझोले कद का दुबला पतला लड़का था। उम्र कोई बीस इक्कीस होगी। उसने अंदर आकर सूरज से कहा,
"भइया जी आपने बुलाया था..."
"हाँ....अखबार वाली मैडम को तुमसे कुछ पूछताछ करनी है।"
चेतन ने अदीबा की तरफ देखा। हाथ जोड़कर नमस्ते किया‌। अदीबा ने कहा,
"चेतन.....पुष्कर और उसकी पत्नी दिशा का ऑर्डर तुमने लिया था।"
चेतन ने सूरज की तरफ देखा। सूरज ने कहा,
"अरे जिसकी लाश मिली थी उसकी बात कर रही हैं।"
चेतन ने अदीबा की तरफ देखकर कहा,
"जी मैडम मैडम हमने ही ऑर्डर लिया था। उन्होंने आलू के पराठे मंगाए थे। उसके बाद दो चाय मंगाई थीं।"
"तुम उनके आसपास ही थे।"
"उधर जितनी टेबल हैं उन्हें हम ही देख रहे थे।"
"तुमने उनकी हरकतों में कुछ अजीब देखा था। मतलब उनके बीच कोई कहासुनी हुई हो। कुछ भी जो तुम्हें अजीब लगा हो।"
चेतन सोच में पड़ गया। उसे सोचते हुए एक तीस चालीस सेकेंड हो गए थे। सूरज ने खीझते हुए कहा,
"अरे कुछ अजीब लगा था तो बताओ नहीं तो मना करो।"
उसके बाद अदीबा की तरफ देखकर बोला,
"थोड़ा पगला सा है यह....."
अदीबा ने कहा,
"सोच लेने दीजिए। हो सकता है कुछ याद आए।"
"कुछ नहीं है मैडम। पुलिस भी तो पूछ चुकी है। यह है ही ऐसा।"
चेतन ने धीरे से कहा,
"नहीं मैडम कुछ अजीब नहीं लगा।"
"याद कर लो। हो सकता है कि आसपास की टेबल पर कोई हो जो उन दोनों पर नज़र रखे हो।"
"नहीं मैडम ऐसा तो कुछ याद नहीं है। उस समय ढाबे पर बहुत लोग थे। सबका ध्यान रखना पड़ रहा था।"
अदीबा सोच रही थी कि अपनी स्टोरी के लिए उसे ठीक ठाक मैटीरियल मिल गया है। उसे केस तो सॉल्व करना नहीं है। इंस्पेक्टर हरीश ने टैक्सी ड्राइवर का नंबर दिया है। उससे बात करके थोड़ा और मसाला मिल जाएगा। वह उठकर खड़ी हो गई। उसने कहा,
"शुक्रिया चेतन। अब चलती हूँ।"
अपनी जींस की जेब से वॉलेट निकाल कर बोली,
"चाय का कितना हुआ ?"
सूरज ने कहा,
"उसका कुछ नहीं हुआ। आप बस खयाल रखिएगा। हमारे ढाबे का नाम खराब ना हो।"
अदीबा ने मुस्कुरा कर कहा,
"अखबार में नाम आने से फ्री पब्लिसिटी मिलेगी।"
उसने वॉलेट वापस रखा और चली गई।

अपने ऑफिस आकर अदीबा ने टैक्सी ड्राइवर से बात की। उसका नाम इस्माइल था। इस्माइल अपने चाचा की ट्रैवेल एजेंसी में टैक्सी चलाने का काम करता था। उसने वह सब बता दिया जो वह जानता था। उसने कहा कि पुलिस की पूछताछ से छूटने के बाद उसने अपने चाचा को फोन करके सब बताया। उन्होंने कहा कि उन लोगों का सामान पुलिस स्टेशन में जमा करा दे और वापस आ जाए। उसने वैसा ही किया। अदीबा ने उसे कुछ ऐसा बताने को कहा जो अजीब लगा हो। इस्माइल ने कहा कि दिशा किसी सोच में थी। पुष्कर के पूछने पर उसने कहा कि वह उसके घरवालों के बारे में सोच रही है। लेकिन उसके वहाँ होने की वजह से खुलकर बात नहीं की। इस्माइल ने बताया कि वह दोनों किसी ताबीज़ के खो जाने की बात कर रहे थे। टैक्सी जब ढाबे पर रुकी थी तो पुष्कर ने टैक्सी में खोजा भी था पर मिला नहीं। तबीज़ वाली बात अदीबा को कुछ अजीब लगी। उसके बाद उसने अपनी रिपोर्ट तैयार करके अखबार के संपादक अखलाक अहमद को दिखाई। अखलाक ने उसे पढ़कर छापने के लिए कह दिया।

बद्रीनाथ की हालत में सुधार हुआ था। डॉक्टर का कहना था कि अब उन्हें घर ले जाया जा सकता है। विशाल को भी घर की फिक्र थी। पुष्कर का दसवां होने में सिर्फ तीन दिन ही बचे थे। उसने एकबार फिर डॉक्टर से सलाह ली। डॉक्टर ने कहा कि अब चिंता की कोई बात नहीं है। बद्रीनाथ को घर ले जाए। बस उनकी दवाओं और आराम का खयाल रखे। विशाल आते समय अपना कार्ड ले आया था। उसने अस्पताल का बिल चुकाया और बद्रीनाथ को लेकर भवानीगंज चला गया।

मनीषा शांतनु के साथ घर वापस चली गई थीं। उन्हें पुष्कर की तेरहवीं होने का इंतज़ार था। उन्होंने तय किया था कि उसके बाद दिशा को वापस ले आएंगी। अपनी बेटी को अपने पास रखेंगी। उसे उसके दुख से बाहर निकालने की कोशिश करेंगी। जब वह सामान्य हो जाएगी तब सोचेंगी कि आगे उसकी ज़िंदगी में क्या करना है।
शाम का समय था। कुछ देर पहले ही मनीषा ने दिशा से बात की थी। दिशा अब पहले से कुछ संभल गई थी। उसने बताया था कि वह ठीक है। दिनभर अपने कमरे में रहती है। ना कोई नीचे बुलाता है ना ही उसे नीचे जाने की ज़रूरत महसूस होती है। उसका नाश्ता और दो वक्त का खाना ऊपर ही आ जाता है। वह अपनी कुछ हल्की साड़ियां जाते समय यहीं छोड़ गई थी। वही अब उसके काम आ रही थीं।
मनीषा दुखी बैठी थीं। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी बेटी के नसीब में इतना बड़ा दुख आएगा। डोरबेल बजी। वह समझ गईं कि शांतनु होंगे। उन्होंने दरवाज़ा खोला तो शांतनु ही थे। शांतनु अंदर आकर बैठे तो मनीषा ने कहा,
"आज ऑफिस से जल्दी निकल लिए।"
शांतनु ने कहा,
"मन नहीं लग रहा था। इसलिए चला आया। वैसे भी अब अनिर्बान ने ज्यादातर काम संभाल लिया है। मैं तो बस इसलिए ऑफिस जाता हूँ कि इतने सालों की आदत है।"
मनीषा शांतनु के सामने बैठ गईं। उन्होंने कहा,
"तुमने अपने भांजे को साथ रखकर अच्छा किया था। आज वह तुम्हारी मदद के लायक हो गया है। नहीं तो अकेले कैसे संभालते।"
शांतनु को दिशा की चिंता थी। इसलिए वह मनीषा से उसका हालचाल पूछने आए थे। उन्होंने कहा,
"डिम्पी कैसी है ?"
"पहले से ठीक है। कुछ देर पहले ही बात हुई थी।"
शांतनु गंभीर हो गए। कुछ देर चुप रहने के बाद बोले,
"बहादुर है डिम्पी। उस माहौल में रहना इतना आसान नहीं होगा। घरवालों को सही तरीके से जान भी नहीं पाई थी और यह हो गया।"
"सच कह रहे हो। मैंने सोचा था पहले कि वहीं रहूँगी। बाद में दिशा को लेकर ही लौटूँगी। लेकिन मुझे कुछ सही नहीं लगा इसलिए चली आई।"
शांतनु और मनीषा बहुत देर तक दिशा के बारे में बात करते रहे। दोनों को ही दिशा के भविष्य की चिंता थी। सोच रहे थे कि दिशा को किस तरह से सहारा दिया जाए जिससे वह इस चुनौती को सही तरीके से स्वीकार कर सके।
इसके अलावा शांतनु के मन में एक बात और थी कि आखिर कौन था जिसने पुष्कर को मारा ? उससे भी बड़ा सवाल था कि क्यों ? उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जानकारी थी। उसके मुताबिक बड़ी बेरहमी से उस पर वार किए गए थे।
फिलहाल वह इस विषय में मनीषा से बात नहीं करना चाहते थे।