Wo Maya he - 26 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 26

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वो माया है.... - 26



(26)

इस समय सभी सो रहे थे। बहुत देर तक अकेली सिसकने के बाद उमा भी उस चटाई पर सो रही थीं जिस पर दिनभर बैठी रही थीं। सोनम और अनुपमा के बीच लेटी मीनू भी सो गई थी। सारे घर में अजीब सा सन्नाटा पसरा था।
सोती हुई मीनू की आँख खुली। उसे पेशाब करने जाने की ज़रूरत महसूस हो रही थी। वह उठकर बैठ गई। कमरे में ज़ीरो पावर का बल्ब जल रहा था। उसकी हल्की पीली रोशनी और डरावना माहौल पैदा कर रही थी। मीनू ने देखा कि उसके आसपास सब गहरी नींद में सोए हुए थे। उसने सोचा कि सोनम को जगा लेती है। उसने सोनम को हिलाकर जगाया। सोनम आँखे मलते हुए उठी। उसने कहा,
"क्या हुआ ?"
मीनू ने कहा,
"पेशाब करना है...."
सोनम ने गुस्से से कहा,
"तो चली जाती। हमें क्यों उठाया ?"
मीनू ने रुआंसी आवाज़ में कहा,
"डर लग रहा है।"
सोनम को भी अब प्यास लगने लगी थी। उसने कहा,
"ठीक है चलो...."
दोनों बहनें धीरे से खड़ी हुईं। दरवाज़े के पास आईंं। दरवाज़ा बंद था। सोनम ने दरवाज़ा खोला और बाहर झांका। आंगन में दूधिया बल्ब जल रहा था। उसकी मद्धम रोशनी में सबकुछ बहुत अजीब सा लग रहा था। सोनम ने मीनू का हाथ पकड़ा और आंगन में चली‌ गई। वॉशरुम के पास पहुँच कर बत्ती जलाई। मीनू से बोली,
"जाओ कर लो...."
मीनू अंदर चली गई। दरवाज़ा बंद कर लिया। सोनम ने सोचा कि तब तक पानी पी लेती है। वह रसोई की तरफ बढ़ गई। वह रसोई में पानी पीने लगी। मीनू डरी हुई थी। अपना काम करके वह जल्दी से बाहर आने लगी। दरवाज़ा खोल रही थी तभी अचानक लाइट चली गई। घुप अंधेरा हो गया। सोनम भी पानी पीकर आंगन में आई ही थी। चारों तरफ घुप अंधेरे से वह भी डर गई। उसकी नज़र अचानक छत की तरफ गई। उसे अंधेरे में एक काले साए जैसी आकृति दिखी। उसके मुंह से चीख निकल गई। मीनू दरवाज़ा खोल रही थी तभी उसे सोनम की चीख सुनाई पड़ी। वह बुरी तरह डर गई। डर की वजह से उससे दरवाज़ा भी नहीं खुल रहा था। वह और ज़ोर से चिल्लाने लगी। मीनू के चिल्लाने से सोनम का डर और बढ़ गया। वह कमरे की तरफ भागी लेकिन गिर पड़ी।
लड़कियों की चीख सुनकर सब जाग गए। बिजली ना होने की वजह से अंधेरा था। सुनंदा ने अपने फोन की टॉर्च जलाई और आंगन की तरफ भागीं। मनोहर भी मोबाइल की टॉर्च जलाए आंगन में आ गए। सोनम जमीन में पड़ी चिल्ला रही थी। सुनंदा ने उसके पास जाकर पूछा,
"क्या हुआ ? चिल्ला क्यों रही थी ?"
सोनम ने डरते हुए कहा,
"मम्मी छत पर कोई है....."
सुनंदा ने छत की तरफ देखा। उन्हें अंधेरे के सिवा कुछ नहीं दिखा। मीनू अंदर से चिल्ला रही थी। मनोहर भागकर वॉशरूम तक गए। उन्होंने पुकारा,
"क्या हुआ मीनू ?"
मीनू बस चिल्ला रही थी। किशोरी भी आंगन में आ गई थीं। सुनंदा सोनम को उनके पास छोड़कर मीनू की तरफ भागीं। उन्होंने दरवाज़े को धक्का दिया। दरवाज़ा अंदर से बंद था। मीनू चिल्ला रही थी। वह घबरा गईं। उन्होंने मनोहर से कहा,
"मनोहर दरवाज़ा तोड़ दो। मीनू किसी मुश्किल में है।"
मनोहर सोच में पड़ गए कि दरवाज़ा कैसे तोड़ें। तभी लाइट आ गई। रोशनी होने से माहौल कुछ ठीक हुआ। मनोहर ने दरवाज़े पर दस्तक देकर कहा,
"मीनू दरवाज़ा खोलो....डरो नहीं....हम सब बाहर हैं।"
अंदर रोशनी होने से मीनू कुछ शांत हुई थी। मनोहर की बात सुनकर उसे कुछ हिम्मत मिली। उसने दरवाज़ा खोला। भागकर बाहर आई और सुनंदा से लिपट गई। नीलम जाग गई थी। पर जानबूझकर लेटी थी। अनुपमा को भी उठने नहीं दे रही थी। बिजली आने पर वह उठी। कमरे के दरवाज़े के पास आकर बोली,
"आंगन में ना रहो। कुछ है तभी लड़कियां चिल्ला रही थीं।"
सब लोग कमरे में चले गए। सोनम ने बताया कि उसने छत पर खड़े किसी काले साए को आंगन में झांकते देखा था। मीनू से पूछा गया तो उसने कहा कि बत्ती जाने के बाद अंधेरे में उसे ऐसा लगा जैसे कि कोई पीछे खड़ा है। डर के कारण उससे दरवाज़ा नहीं खुल रहा था। उसे लग रहा था कि दो आँखें उसे घूर रही हैं। जब बत्ती आई और उजाला हुआ तो उसे कुछ हिम्मत मिली और उसने दरवाज़ा खोल दिया। सब उसी विषय में बात करने लगे। किसी को भी होश नहीं था कि उमा बाहर कमरे में अकेली हैं।
चीखना चिल्लाना सुनकर उमा की आँख खुल गई थी। मनोहर और किशोरी को जाते हुए देखकर वह भी उठने लगीं। लेकिन दिनभर की भूख प्यास ने उन्हें कमज़ोर कर दिया था। वह एकदम से नहीं उठ पाईं। वहीं चटाई पर बैठी रहीं। बेटे की मौत का सदमा था‌। उन्हें इस सबके कारण डर लगने लगा था। वह डरकर इधर उधर देख रही थीं। अचानक उन्हें लगा जैसे कि माया दरवाज़े से अंदर आई और उनके सामने पालथी मारकर बैठ गई। ठीक वैसे ही जैसे पहले करती थी। वह उनकी तरफ देखकर बोली,
"तब आप क्यों चुप्पी साधे रही थीं ? क्यों आपने हमारे और विशाल के रिश्ते के लिए कोशिश नहीं की थी ?"
उमा डरी हुई बैठी थीं। उन्होंने देखा कि माया की आँखें लाल हो गई हैं। वह कह रही है,
"हमने कहा था कि इस घर में कभी खुशियां नहीं आएंगी। हम कभी आने नहीं देंगे।"
उमा की आँखों से आंसू बहने लगे। माया गायब हो गई। उमा चिल्लाने लगीं,
"पुष्कर ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा..... गलती हमने की थी..... हमें मार देती.... उसे क्यों ले गई...."
वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगीं।

दूसरे कमरे में भी माया की बातें चल रही थीं। सबको लग रहा था कि सोनम और मीनू को डराने वाली माया ही थी। सब डरे हुए थे। उमा की आवाज़ सुनाई पड़ी तो सबको लगा कि माया उनके पास है। अब सब डर के कारण कांपने लगे। सबको लग रहा था कि उमा खतरे में हैं। लेकिन किसी की हिम्मत उनके पास जाने की नहीं पड़ रही थी। उमा रोते रोते बेहोश होकर चटाई पर गिर पड़ीं।
कोई भी सो नहीं रहा था। सब जाग रहे थे। एक दो बार मनोहर ने उमा के पास जाने का प्रयास किया तो नीलम ने रोक लिया। सब डरे हुए थे और इंतज़ार कर रहे थे कि सुबह हो। जैसे तैसे रात कटी। मनोहर ने उठकर दरवाज़े के बाहर झांका तो उजाला हो गया था। वह हिम्मत करके आंगन में आए। अब उतना डरावना नहीं लग रहा था। वह उमा के पास गए। वह बेहोश पड़ी थीं। उन्होंने रसोई से पानी ले जाकर मुंह पर छींटे मारे। उन्होंने आँखें खोल दीं। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि उनकी स्थिति ठीक नहीं है। मनोहर ने आवाज़ देकर सुनंदा और नीलम को बुलाया। उनके साथ किशोरी और तीनों लड़कियां भी आ गईं। मनोहर ने कहा,
"दीदी की हालत ठीक नहीं है।"
नीलम ने कहा,
"ठीक कैसे होंगी। वह जो मंडरा रही है।"
मनोहर ने कहा,
"चुप करो। जाकर रसोई से एक गिलास में चीनी घोलकर ले आओ।"
नीलम रसोई में चली गई। मनोहर ने सुनंदा से कहा,
"कल से कुछ खाया नहीं है। इसलिए यह हाल है। चीनी पीने से कुछ अच्छा महसूस करेंगी। हम जाकर देखते हैं कि कोई डॉक्टर आ सके तो ठीक रहेगा।"
सुनंदा ने कहा,
"अभी तो साढ़े छह बजे हैं। दो ही डॉक्टर हैं यहाँ। आठ बजे से पहले दवाखाना नहीं खोलते हैं।"
मनोहर सोचने लगे कि तब तक इंतज़ार करते हैं। उसके बाद डॉक्टर को दिखाएंगे। नीलम चीनी घोलकर ले आई थी। मनोहर ने उमा को वह पिलाया। कुछ देर बाद उमा कुछ चैतन्य हुईं। मनोहर ने कहा,
"दीदी को चाय नाश्ता करवा दो। बिना खाए पिए ही इनका यह हाल हुआ था। खाएंगी तो ठीक हो जाएंगी।"
पड़ोस से चाय और नाश्ता आया था। नीलम और सुनंदा ने ज़िद करके उमा को नाश्ता कराया। नाश्ता करने के बाद उनकी हालत में बहुत सुधार हुआ। मनोहर ने विशाल को फोन करके वहाँ के हालचाल पूछे। विशाल ने बताया कि वह केदारनाथ के साथ बॉडी लेने जा रहा है। सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद जब चलेंगे तो फोन कर देंगे।

बद्रीनाथ रोए जा रहे थे। बार बार यही कह रहे थे कि उनके जैसा अभागा कोई नहीं होगा। जवान बेटे की मौत हो गई। अब उसके अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सकते हैं। विशाल और केदारनाथ उन्हें समझा रहे थे कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए उनका साथ चलना ठीक नहीं है। डॉक्टर ने उन्हें कुछ दिन आराम करने को कहा है। उन लोगों को भी दुख है कि इस मौके पर वह साथ नहीं होंगे। दोनों बड़ी मुश्किल से उन्हें रुकने के लिए राज़ी कर पाए।
विशाल और केदारनाथ उसी गाड़ी से जा रहे थे जिसमें पुष्कर की बॉडी जानी थी। मनीषा और दिशा विशाल के दोस्त की कार में थे। शांतनु ने फैसला किया था कि वह बद्रीनाथ के साथ अस्पताल में रुकेंगे।
सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद पुष्कर की बॉडी लेकर विशाल और केदारनाथ भवानीगंज के लिए निकल गए। मनीषा और दिशा की कार भी पीछे पीछे चल रही थी।

भवानीगंज में पुष्कर की बॉडी आने का इंतज़ार हो रहा था। दीनदयाल अपने दामाद रविप्रकाश के साथ आए थे। उन्होंने बताया कि कल खबर सुनते ही वह संध्या के साथ निकले। बस स्टैंड पर एक रिक्शेवाले ने संध्या को टक्कर मार दी। उनके पैर में फ्रैक्चर हो गया। पूरा दिन एक्सरे कराने और प्लास्टर चढ़वाने में चला गया। उन्होंने विशाल से बात की तो पता चला कि बॉडी कल मिलेगी‌। इसलिए आज सुबह वह रविप्रकाश के साथ यहाँ के लिए निकले।
पुलिया पर पहुँच कर विशाल ने फोन किया था कि पहुँचने वाले हैं। आस पड़ोस के लोग घर में एकत्र हो गए थे। सारा माहौल उदासी और दुख से भरा था‌।