स्मृति ग्रँथ डॉ हरिहर गोस्वामी
सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेकर और सहज सामान्य रूप में पल बढ़कर कैसे महानता और सरलता के शीर्ष को छुआ जा सकता है, यह डॉ हरिहर गोस्वामी मानस विश्वास के आचार, विचार, व्यवहार, व्यक्तित्व , कृतित्व और उनकी जीवनशैली से जाना जा सकता है । बड़ी सुंदर सूक्ति है कि 'सज्जनों के जीवन और उनके लोक कल्याण के लिए होते हैं ।ज्ञान, भक्ति और योग इन तीनों मूल्यवान भावों की उपस्थिति श्रेष्ठ जनों में तेजी देखी जा सकती है । तुलसी, मीरा, कबीर, रहीम अथवा जितने भी लोक कल्याण कारी प्रवृत्ति के संत महापुरुष हुए हैं , उन्होंने इस जगत को एक श्रेष्ठ दिशा और उत्तम दशा प्रदर्शित की है। यह उनकी श्रेष्ठ साधना का उन्मेष है। ऐसे ही साधक महानुभावों में परम आदर्श महा मनीषी सद्गुणों के समुच्चय डॉ हरिहर गोस्वामी' मानस विश्वास' जी एक उल्लेखनीय व्यक्तित्व के रूप में मेरे स्मृति पटल पर अपना अमित स्थान बनाए हुए हैं ।
रामचरितमानस में उल्लिखित परहित सरिस धर्म नहीं भाई यह सूक्ति श्रद्धेय डॉक्टर मानस विश्वास जी ने अपने जीवन का अंग बना ली थी और इसी को आधार बनाकर उन्होंने अपने जीवन का अनुभव संचालन किया ।
डॉ हरिहर गोस्वामी मानस विश्वास जी हिंदी के प्राध्यापक के रूप में प्रतिष्ठित थे, उनके ज्ञान के भंडारण की समृद्धि में उनका अत्यंत प्रिय गोस्वामी तुलसीदास जी का रामचरितमानस परम प्रिय बन चुका था। उन्होंने मानस के सौहार्दपूर्ण प्रश्नों को अपना लिया था और उन्हें व्यवहारिक जीवन में पूरी तरह आत्मसात कर लिया था ।
मानस के उत्कृष्ट पात्रों की तरह वे भी उदार मना हो गए थे।
उनका चिंतन केवल सैद्धांतिक नहीं वरन व्यावहारिक धरातल पर भी प्रतिष्ठित था ।
डॉ हरिहर गोस्वामी मानस विश्वास से संबंधित एक दो आदर्श पूर्ण एवं अनुकरणीय संस्मरण आज भी मुझे याद है। स्मृति के मार्ग पर पीछे लौटने से कुछ ऐसी घटनाएं सामने उपस्थित हो जाती हैं जिन्हें कभी भुलाया भी नहीं जा सकता ।
डॉ हरिहर गोस्वामी जी शासकीय महाविद्यालय में आए ही थे कि उन्होंने मानस के प्रभाव से दतिया को सिक्त करना शुरू कर दिया।
एक मानस सम्मेलन के आयोजन के कुछ समय बाद उन्होंने एक स्कूटर क्रय किया। कुछ लोगों के साथ मेरे सहपाठियों ने भी दबे स्वर में यह प्रश्न उठाया कि क्या गोस्वामी जी ने यह स्कूटर इस आयोजन के लिए एकत्र की गई चंदे की राशि से क्रय किया है?
गोस्वामी जी उस समय तक महाविद्यालय में शिक्षण के अलावा एक और नवाचार कर चुके थे उन्होंने महाविद्यालय में ही एक कक्षा को 'चिंतन वर्तुल कक्ष' नाम दिया था और छात्र-छात्राओं को विविध विषयों व समस्याओं पर विचार करने की प्रेरणा दी। वे स्वयं ही छात्रों के प्रश्नों के समाधान करता के रूप में प्रस्तुत रहते थे।
मेरे सहपाठियों ने उनसे स्कूटर के क्रय संबंधी प्रश्न करने का भार मुझ पर डाला था। उनका व्यक्तित्व इस तरह की अनैतिकता से कोसों दूर था ,पर मैंने यह बात उनसे पूछ ही ली थी। वे न सहमे, न झिझके, न डरे , न ही उत्तर देने में हड़बड़ाए, अत्यंत शांत गंभीर और सच्चाई को साथ लिए एक आकर्षक मुस्कुराहट के साथ उन्होंने अपनी स्वाभाविक सरगम जैसी आवाज में कहा 'हां हां, जिसने यह शंका की है वह सच है वह स्कूटर मुझे रामचरितमानस ने ही दिया है ! और मानस संपदा,यश, और विभूति का भंडार है जो सबको कुछ ना कुछ देता ही है। तुम लोग भी मानस प्रवचनो का आयोजन करो, मानस में डूब उसका मर्म समझो। तुम्हें भी रामचरितमानस स्कूटर देगा । न्यायालय में जैसे किसी वकील ने मानो अपनी दलील रख दी हो, ऐसा लगा उनका यह कथन अतः स्पष्ट था कि उन्होंने ये स्कूटर चंदे की राशि से नहीं लिया था। पर वह इतने कोमल स्वभाव के थे कि इस आरोप का कठोर शब्दों में खंडन करके हम लोग छात्रों को दुखी नहीं करना चाहते थे।
एक और संस्मरण उनकी उदारता और परित का परिचायक है, अक्टूबर 2001 की बात है , एक दिन गोस्वामी जी ने मुझे अपने आवास पर बुलाकर विंध्य कोकिल पंडित भैया लाल व्यास जी के सम्मान और अभिनंदन के प्रकाशन का दायित्व नरेंद्र सरवरिया, श्री मोहन सुहाने, dr नीरज जैन सहित हम तीन चार छात्रों को सौंपा। इस कार्य के संपादन में लगा हुआ मैं पैदल ही कार्य कर रहा था औऱ गोस्वामी जी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने नया बजाज सुपर स्कूटर मुझे दे दिया। मेरी असहमति उनकी उदारता के सामने बौनी पड़ गई और बाद में भी उन्होंने न तो वे स्कूटर वापस लिया न मेरे द्वारा स्कूटर के बदले प्रस्तुत की गई धनराशि स्वीकार की ।
जाने कितने लोग हैं जो उनके ज्ञान दान और दूसरों को दिए गए सम्मान से संपन्न हुए ।
उनकी यह सदस्यता सदस्यता आत्मीयता और स्नेह मेरे द्वारा कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
किसी भी बुराई से दूर रहकर डॉ हरिहर गोस्वामी मानस विश्वास जी ने सद्गुणों का ही आश्रय लिया। धैर्य , क्षमा,विद्वत्ता, समर्पण आदि जैसे अनेक सदगुण डॉक्टर मानस विश्वास जी के आदर्श थे जो सदैव आदरणीय और अनुकरणीय है।