Musafir Jayega kaha? - 15 in Hindi Thriller by Saroj Verma books and stories PDF | मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१५)

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१५)

लेकिन फिर कृष्णराय जी को एक दिन के लिए ही अस्पताल में रखा गया और फिर उन्हें साध्वी जी ने अपने निवास स्थान शांतिनिकेतन में बुलवा लिया,शाम के वक्त जब कृष्णराय जी अपने बिस्तर पर बैठें कमरें की खिड़की से बाहर का नजारा देख रहे थे तो तभी साध्वी जी उनके कमरें में आई और उनसे पूछा....
"अब कैसा है आपके पाँव का दर्द "?
"डाक्टर साहब की कृपा से अब ठीक है,उनकी दवाइयों से बहुत आराम लग गया",कृष्णराय जी बोले...
"आप कभी पहाड़ पर नहीं चढ़े क्या जो ऐसे बच्चों की तरह फिसल गए",साध्वी जी ने पूछा...
"हाँ! नहीं चढ़ा कभी पहाड़ पर और ये सब तो दयाराम का किया कराया है,उसके कहने पर ही मैं वहाँ गया था", कृष्णराय जी बोले...
"आप दयाराम का इत्ता कहा मानते हैं",साध्वी जी ने अपनी आँखें बड़ी करते हुए पूछा...
तब साध्वी जी की बात पर कृष्णराय जी पहले तो हँसे और फिर बोलें....
"उसने कहा था कि चन्द्रिका माई के दर्शन करने से आप मुझसे बात करने लगेगी"
"अच्छा! तो ये बात है",साध्वी जी बोलीं....
"जी! हाँ! और देखिए दयाराम की बात मानने से आपसे मुलाकात हो ही गई",कृष्णराय जी बोलें....
"अच्छा! तो ये बात है और बताइए क्या करते हैं आप?",साध्वी जी ने पूछा...
"जी! इन्जीनियर हूँ",कृष्णराय जी बोलें....
"अच्छा!आप अपने घर का पता बता दीजिए,मैं तार भिजवा देती हूँ कि अभी आप कुछ दिन यहाँ और रहेगें", साध्वी जी बोलीं....
"जी! ठीक है",कृष्णराय जी बोलें...
"अभी आपकी एक्सरे रिपोर्ट के बाद ही पता चलेगा कि चोट ठीक होने में कितना वक्त लगेगा",साध्वी जी बोलीं...
"हाँ! मैं भी जल्द से जल्द यहाँ से जाना चाहता हूँ,बहुत दिन हो गए हैं घर से निकले हुए",कृष्णराय जी बोलें....
"हाँ! एक बार एक्सरे रिपोर्ट आ जा और डाक्टर साहब जाने की इजाज़त दे दे तो चले जाइएगा",साध्वी जी बोलीं...
"लेकिन जिस काम के लिए मैं यहाँ आया था तो वो काम अभी तक हुआ ही नहीं",कृष्णराय जी बोलें...
"ठीक है तो मैं अब चलती हूँ",
और ऐसा कहकर साध्वी जी वहाँ से चली गईं,फिर रात को वें भोजन के बाद कृष्णराय जी के कमरें में दोबारा आईं ,कृष्णराय जी भोजन करने के बाद सोने की तैयारी कर रहे थे,साध्वी जी जब उनके कमरें में आईं तो उनके हाथ में कुछ था,तब कृष्णराय जी ने उनसे पूछा....
"ये क्या है"?
"जी! चूना हल्दी है,मेरा मन कहता है कि आपको केवल मोच आई है जो कि चूना हल्दी लगाने से ठीक हो जाएगी",
और ऐसा कहकर वें कृष्णराय जी के पाँव पर चूना हल्दी लगाने लगी तो कृष्णराय जी बोलें....
"अरे! साध्वी जी! रहने दीजिए,ये क्या कर रहीं हैं आप"?
"मैं साध्वी से पहले सेविका भी हूँ,इसलिए मुझे मेरा काम करने दीजिए",साध्वी जी बोलीं....
"आपसे एक बात कहनी थी",कृष्णराय जी बोले..
"जी ! कहिए!"साध्वी जी कुछ परेशान सी होकर बोलीं...
"किसी ने मुझसे कहा था कि यदि आपसे मुलाकात हो जाए तो मैं उसकी फरियाद आप तक पहुँचा दूँ" कृष्णराय जी बोलें....
"लगता है कि बहुत सी फरियादें एक साथ लेकर आए हैं आप,अच्छा कहिए कौन फरियादी है वो",साध्वी जी बोलीं....
"आप धानी को जानती हैं ना!,लक्खा सिंह की बेटी,वो चाहती है कि आप उसके बाप को समझा दे ताकि वो उसकी और रमेश की शादी के लिए मान जाए",कृष्णराय जी बोले...
"हाँ! मुझे मालूम है कि लक्खा उन दोनों के ब्याह के लिए राजी नहीं है",साध्वी जी बोलीं....
"लेकिन आपको कैसें मालूम ये सब"?,कृष्णराय जी ने आश्चर्य से पूछा...
"मैंने कहा ना कि मैं साध्वी हूँ,मुझे सब कुछ मालूम है,अरे! मुझे रामस्वरूप जी ने बताया था उन दोनों के बारें में सब कुछ",साध्वी जी बोलीं...
"ओह....लेकिन क्या कारण है कि लक्खा सिंह उन दोनों के ब्याह के लिए मान नहीं रहा है",कृष्णराय जी ने पूछा....
"इसके पीछे बहुत लम्बी कहानी है",साध्वी जी बोलीं....
"तो फिर मुझे भी सुनाइए दोनों की कहानी",कृष्णराय जी बोलें....
"सुनना चाहते हैं तो सुनिए",साध्वी जी बोलीं....
और फिर साध्वी जी ने मुखिया और बंसी के बीच हुई दुश्मनी की कहानी सुनानी शुरू की.....
मुखिया लक्खा सिंह और रेस्ट हाउस का चौकीकर बंसी बहुत अच्छे दोस्त थे,बंसी बेचारा तब गरीब मजदूर हुआ करता था और मुखिया लक्खा सिंह जमींदार वीरभद्र सिंह का दाहिना हाथ,उनके सभी बुरे कामों का हिस्सेदार और उनके सभी राजों का राजदार,दोनों में दोस्ती का केवल एक ही कारण था शराब और गाना,दोनों ही शराब के शौकीन थे ,बंसी बहुत अच्छी ढ़ोलक बजाता था और गाता भी बहुत अच्छा था और मुखिया गाना सुनने का बहुत शौकीन था....
गाँव में एक मास्टर साहब रहा करते थे जिनका नाम प्रभुचिन्तन था,वें गाँव के लोगों को बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते थे लेकिन जमींदार वीरभद्र नहीं चाहते थे कि मास्टर साहब बच्चों को शिक्षा देकर योग्य बनाएं,वें तो चाहते थे कि गाँव के लोग अनपढ़ रहें ताकि उन्हें उनकी जमीन हड़पने का मौका मिल जाएं, लेकिन जमींदार वीरभद्र सिंह को मास्टर साहब का गाँव के लोगों को पढ़ाना फूटी आँख ना सुहाता था,इसलिए उन्होंने उन्हें गाँव से बाहर निकालने की योजना बनाई और एक रोज उन्होंने मुखिया लक्खा सिंह को मास्टर प्रभुचिन्तन के घर भेजा,लक्खा सिंह उनके घर पहुँचा और बोला....
"मास्टर साहब! जमींदार साहब की बात मानते नहीं हैं आप"
"लक्खा! क्या तुम्हें पढ़ने लिखने का मन नहीं होता जो तुम ऐसी बात कर रहे हो",मास्टर साहब बोले...
"इस मुई पढ़ाई में रखा क्या है मास्टर! अपनी हालत देखो और मेरी हालत देखो",लक्खा सिंह बोला...
"ये तो परोपकार का काम है,कोई मेरे कारण साक्षर होता है तो इसमें बुराई ही क्या है",मास्टर साहब बोलें....
"मास्टर!गरीब होना सबसे बड़ी बुराई है जो कि तुम हो",लक्खा सिंह बोला...
"मैं इस हाल में भी खुश हूँ लक्खा!",मास्टर प्रभुचिन्तन बोले...
"अच्छा!ठीक है वो सब छोड़ो,चलो मुद्दे की बात पर आते हैं",लक्खा सिंह बोला....
"कहना क्या चाहते हो लक्खा"?,मास्टर साहब प्रभुचिन्तन ने पूछा...
"यही कि जमींदार साहब तुम्हारी वो जमीन खरीदना चाहते हैं जो तालाब के किनारे हैं,वें उसके मुँह माँगे दाम देने को तैयार हैं,बस तुम उसे बेचने के लिए एक बार हाँ कर दो",लक्खा सिंह बोला...
"नहीं! लक्खा! मैं वो जमीन नहीं भेज सकता,वो तो मेरे पुरखों की निशानी है और फिर साल भर के लिए हमारे अनाज का वही साधन है,अगर मैं वो जमीन जमींदार साहब को बेच दूँगा ,तब तो मैं और मेरी बेटी भूखे मरने लगेगें",मास्टर प्रभुचिन्तन बोलें...
"ये क्या कह रहा है मास्टर! दो कौड़ी का मास्टर होके जमींदार साहब को मना कर रहा है,इसका अन्जाम अच्छा नहीं होगा",लक्खा सिंह बोलें...
"कुछ भी हो जाएं,मैं वो जमीन नहीं बेचूँगा लक्खा!",मास्टर प्रभुचिन्तन बोलें...
"तो फिर मास्टर ! अब तो तू अपनी खैरियत समझें रहना,जमींदार साहब को नाराज़ करके कोई भी इस इलाके में चैन से नहीं रह पाया है",लक्खा सिंह बोला....
"जो होगा सो देखा जाएगा,मुझे किसी का डर नहीं है",मास्टर प्रभुचिन्तन बोलें...
"अब जैसी तेरी मर्जी,ठीक है तो अब मैं चलता हूँ....जय राम जी की"!
और ऐसा कहकर लक्खा सिंह वहाँ से चला गया ,उन दोनों की बातें सुनने के बाद मास्टर साहब की सोलह वर्षीय बेटी निर्मला उनके पास आकर बोलीं....
"बाबू जी! ये लक्खा सिंह क्या कह रहा था"?
"कुछ नहीं बेटी!",
और ऐसा कहकर मास्टर प्रभुचिन्तन चिन्ता में डूब गए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....