Musafir Jayega kaha? - 12 in Hindi Thriller by Saroj Verma books and stories PDF | मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१२)

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१२)

तब दयाराम बोला....
"साध्वी जी ऐसा तो किसी के साथ नहीं करतीं,पता नहीं वो आपके साथ ऐसा क्यों कर रहीं हैं,कोई भी फरियादी उनके द्वार से कभी यूँ नहीं लौटाया जाता जैसा कि उन्होंने आपको लौटा दिया,हुजूर! इस के पीछे जरूर कोई गहरी बात छुपी है,तभी तो उन्होंने ऐसा किया",
"अब उनके मन की तो वें ही जाने,मैं कैसें उनके मन की बात जान सकता हूँ कि क्या चल रहा है उनके मन में",? कृष्णराय जी बोले...
"तो चलिए फिर रेस्ट हाउस चलते हैं,उनसे मुलाकात की उम्मीद करना बेकार है",दयाराम बोला...
"हाँ! अब मुझे भी यही लगता है,",कृष्णराय जी बोले...
फिर दोनों रेस्ट हाउस लौट आए और फिर उस दिन के बाद कृष्णराय जी ने दोबारा शान्तिनिकेतन जाने की बात नहीं सोची,ऐसे ही तीन चार दिन और गुजर गए और कृष्णराय जी अब भी रेस्ट हाउस में ही रह रहे थे,लेकिन अब उनका वहाँ मन नहीं लग रहा था इसलिए उन्होंने वहाँ से जाने का मन बना लिया था लेकिन उन्हें अभी भी अपने दोस्त किशोर के बारें में कुछ भी पता नहीं चला था,इसलिए उनका मन बहुत उदास था तभी दयाराम उनके लिए शाम की चाय लाया और उनसे बोला....
"हुजूर! इतना उदास काहे बैठे हैं"?
"क्या बताऊँ दयाराम ?,मैंने सोचा था कि मेरी मुलाकात साध्वी जी से हो जाएगी लेकिन यहाँ तो सब उल्टा ही हो गया",कृष्णराय जी बोले...
"अरे! हुजूर! साध्वी जी ने किसी बात के लिए ना कर दी तो ना ही समझिए,आपके चिन्ता करने से वें मानने वाली नहीं हैं",दयाराम बोला...
"मैंने भी कभी ना के सामने अपने घुटने नहीं टेके हैं,मैं भी बहुत अड़ियल किस्म का इन्सान हूँ,मैं ना को हाँ करवा के ही मानूँगा",कृष्णराय जी बोले...
"आपका ये अड़ियलपना साध्वी जी के सामने नहीं चलेगा हुजूर!"दयाराम बोला....
"मैं भी ये देखना चाहता हूँ कि वें ज्यादा अड़ियल हैं या मैं",कृष्णराय जी बोलें....
"अरे!हुजूर! वो सब छोड़िए,अच्छा ये बताइए चन्द्रिका माई के दर्शन किए आपने या नहीं,कहते हैं कि वहाँ जाने से सारे काम सफल हो जाते हैं,आप एक बार वहाँ के दर्शन करके देख लीजिए,आपने वहाँ के दर्शन नहीं किए इसलिए साध्वीजी के मन में आपसे मिलने की इच्छा नही हो रही है",दयाराम बोला...
"मैं इन सब बातों को नहीं मानता दयाराम!",कृष्णराय जी बोले...
"आप पढ़े लिखें हैं ना हूजूर इसलिए ऐसा कह रहे हैं,लेकिन एक बार बस एक बार आप चन्द्रिका माई के दर्शन कर लेगें तो फिर देखिएगा उनका चमत्कार,फिर देखिए कि साध्वी जी के मन में कैसें आपके लिए दया आती है और उनके मन में आपसे मिलने की इच्छा खुदबखुद जाग जाएगीं",दयाराम बोला...
"पहले मैं शान्तिनिकेतन जाऊँगा,एक बार वहाँ जाकर फिर से साध्वी जी से मिलने की कोशिश करता हूँ", कृष्णराय जी बोले...
"हूजूर! शान्तिनिकेतन जाने का रास्ता भी चन्द्रिका माई से होकर जाता है ,पहले आप चन्द्रिका माई के दर्शन कीजिएगा फिर शान्तिनिकेतन चले जाइएगा",दयाराम बोला...
"तुम कहते हो तो ठीक है",कृष्णराय जी बोलें...
"तो फिर सुबह नाश्ता करके वहाँ के लिए निकलते हैं और आप चाय पी लीजिए,फालतू में ठण्डी हो रही है",दयाराम बोला...
और फिर दूसरे दिन कृष्णराय जी और दयाराम चन्द्रिका माई के दर्शनों के लिए चल पड़े,रास्ता बहुत ही ऊबड़ खाबड़ था और बहुत चढ़ाई थी वहाँ लेकिन तब भी कृष्णराय जी दयाराम के साथ चले जा रहे थे,तभी उन्हें दूर से ही साध्वी जी का ताँगा दिखा जो कि सड़क के किनारे खड़ा था तो दयाराम कृष्णराय जी से बोला...
"देखा हूजूर! वो ताँगा साध्वी जी का है,अभी तो आपने चन्द्रिका माई के दर्शन किए भी नहीं और आपको साध्वी जी का ताँगा दिख गया,इसका मतलब है वो यहीं कहीं आस पास हैं,वो देखिए हूजूर उस पहाड़ी पर एक आश्रम है जिसे कोई महात्मा चलाते हैं ,वहाँ कुष्ठ रोग के रोगियों का इलाज होता है,साध्वी जी शायद वहीं आई होगीं",दयाराम बोला....
"हाँ तो चलो यहीं बैठकर उनका इन्तज़ार करते हैं",कृष्णराय जी बोले...
और फिर दोनों वहीं एक पेड़ की छाँव में बैठकर साध्वी जी का इन्तज़ार करने लगे और फिर कुछ देर बाद साध्वी जी वहाँ आईं तो कृष्णराय जी उनके सामने जाकर खड़े हो गए,तभी साध्वी जी के साथ आई वहीं नर्स जो उस दिन भी मिलीं थीं,वो कृष्णराय जी के पास आकर बोलीं....
"आप फिर आ गए,मैने आपसे उस दिन भी कहा था ना कि साध्वी जी आपसे नहीं मिलना चाहतीं,तो फिर आप उनके पीछे क्यों पड़े हैं"?
"क्यों नहीं मिल सकती साध्वी जी मुझसे,क्या अपराध किया है मैनें ,एक साध्वी होकर अपने दरवाजे पर आए हुए मेहमान से आँखें बचाकर क्यों निकल जातीं हैं यें,क्या इसका कारण भी जानने का अधिकार नहीं है मुझे",कृष्णराय जी बोले...
तभी साध्वी जी चीखकर कृष्णराय जी से बोलीं...
"हट जाइए मेरे रास्ते से",
और ऐसा कहकर साध्वी जी अपने ताँगें में बैठने लगी तो कृष्णराय जी बोलें....
"अब मुझे लगता है कि आप साध्वी नहीं है ,साध्वी होने का केवल ढ़ोग कर रहीं हैं,तभी तो आप मुझे देखकर आँखें चुराकर निकल जातीं हैं,सच्ची साधिका कभी किसी के साथ ऐसा नहीं करती",
और फिर साध्वी जी ने कृष्णराय जी की बात का कोई भी जवाब नहीं दिया और उन्होंने ताँगेवाले से कहा...
"चलो जल्दी यहाँ से",
फिर साध्वी जी और वो नर्स ताँगें में बैठकर चलीं गईं और कृष्णराय जी उन्हें जाते हुए देखते रहे,तभी दयाराम उनसे बोला...
"गुस्ताखी माँफ हूजूर! लगता है साध्वी जी आपसे बहुत नाराज हैं तभी वो आपके साथ ऐसा व्यवहार कर रहीं हैं,लेकिन साध्वी जी आपसे नाराज क्यों हैं ? क्योंकि वो तो कभी किसी से नाराज़ नहीं होतीं"
तब कृष्णराय जी बोले....
"वो क्यों नाराज़ हैं मुझसे,इसका कुछ कुछ मतलब समझ में आ रहा है मुझे,रामस्वरूप जी ने मुझे गलत जगह नहीं भेजा",
"क्या कहा आपने रामस्वरूप जी,वो फूलपुर वाले रामस्वरूप जी ,उन्होंने आपको यहाँ भेजा है",दयाराम बोला...
"तुम जानते हो उन्हें",कृष्णराय जी ने पूछा...
"हाँ! हुजूर!आपके यहाँ आने के तीन चार दिन पहले ही वो यहाँ आएं थे ,दिनभर वें साध्वी जी के साथ यहाँ वहाँ घूमते फिरते रहते थे,मैने खुद अपनी आँखों से उन्हें साध्वी जी के साथ घूमते फिरते देखा है",दयाराम बोला...
अब कृष्णराय जी ने मन में सोचा कि इसका मतलब रामस्वरूप जी ने पहले ही यहाँ आकर साध्वी जी को ये खबर पहुँचा दी है कि मैं यहाँ आने वाला हूँ,लेकिन हर बात इतनी रहस्यमयी क्यों है? लेकिन लगता है अब मुझे इस रहस्य से पर्दा उठाना ही पड़ेगा....
तब कृष्णराय जी ने दयाराम से पूछा...
"आप किसी किशोर जोशी को जानते हैं",
"जी! नहीं ! हुजूर!",दयाराम बोला...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....