Musafir Jayega kaha? - 11 in Hindi Thriller by Saroj Verma books and stories PDF | मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(११)

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(११)

फिर चाय पीकर रामविलास चौरिहा जी ड्राइवर के साथ इन्सपेक्शन के लिए निकल गए और कृष्णराय जी अपने कमरें में आकर अपने बिस्तर पर लेट गए तो दयाराम उनके पास आकर बोला......
"साहब! और कुछ लाऊँ आपके लिए क्योंकि फिर मुझे हाट जाना है सामान लेने",
"नहीं! अभी कुछ नहीं चाहिए,यहाँ पानी का जग भरकर रख दो बस",कृष्णराय जी बोले...
और फिर दयाराम ने कृष्णराय जी के पास रखें टेबल पर जग भरकर रखा तो कृष्णराय जी ने उससे पूछा.....
"अच्छा! दयाराम! ये बताओ कि यहाँ से शान्तिनिकेतन कितनी दूर है?",
"बस यही कोई दो तीन कोस होगा,पहले यहाँ से लक्ष्मीनारायण मंदिर पड़ता है,फिर उसके बाद शान्तिनिकेतन पड़ता है,कहीं आप यहाँ शान्तिनिकेतन की साध्वी से तो मिलने नहीं आए",दयाराम बोला...
"हाँ! मैं यहाँ उन्हीं से मिलने आया हूँ,क्यों उनसे मिलना मुश्किल है क्या?",कृष्णराय जी बोले...
तब दयाराम बोला...
"मुश्किल काहें का हुजूर ! उनसे मिलना तो बहुत आसान है,सुबह सुबह साध्वी जी,लक्ष्मीनारायण मंदिर के दर्शन के लिए आतीं हैं,फिर शांतिनिकेतन के पास खुले छोटे से अस्पताल में मरीजों से मिलने जाती हैं,फिर वहाँ से अनाथालय चलीं जातीं हैं बच्चों से मिलने,वो अनाथालय भी उन्हीं ने ही खोला था,वहाँ बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने कई मास्टरों को रख रखा है,आप चाहें उनसे जहाँ भी जिस वक्त मिल सकते हैं,वें तो साध्वी है हुजूर,किसी को खुद से मिलने से मना नहीं करतीं",
"तो चलो इसी वक्त शान्तिनिकेतन चलते हैं,तुम चलोगे मेरे साथ", कृष्णराय जी बोले...
"मैं तो चला चलता आपके साथ लेकिन फिर साहब इन्सपेक्शन से वापस आ जाऐगें तो मुझे उनके खाने पीने का इन्तजाम भी करना होगा,क्योंकि वहाँ अभी गए तो लौटते में रात हो जाएगी और रास्ते में जंगली जानवरों का भी बहुत खतरा रहता है",दयाराम बोला...
"तो ठीक है फिर सुबह ही चलेगें",कृष्णराय जी बोले...
"साहब! आप ऐसा कीजिएगा,सुबह सुबह ही स्नान करके लक्ष्मीनारायण मंदिर चले जाइएगा आपको वहाँ भगवान के दर्शन भी हो जाऐगें और साध्वी जी के भी दर्शन हो जाऐगें,फिर वहाँ से यहाँ रेस्ट हाउस आकर नाश्ता वगैरह कीजिएगा और फिर जब साहब चले जाऐगें तो फिर मैं आपको शान्तिनिकेतन ले चलूँगा", दयाराम बोला...
"हाँ! मेरे ख्याल से यही ठीक रहेगा,कल ही शान्तिनिकेतन चलेगें,मैं भी सफर से अभी आया हूँ,थक भी गया हूँ,तो थोड़ा आराम कर लेता हूँ",कृष्णराय जी बोले...
"जी! हुजूर!आप आराम कीजिए,मैं तब तक हाट से सामान लेकर आता हूँ"
और ऐसा कहकर दयाराम वहाँ से चला गया,फिर एक दो घंटे बाद दयाराम हाट से लौटा तो उसने कृष्णराय जी को जगाया और फिर रामविलास चौरिहा जी के आने पर उसने सबके लिए शाम की चाय बनाई और फिर रात का खाना बनाने चला गया और करीब रात के आठ बजे तक दयाराम ने खाना बनाकर सबको परोस भी दिया,दयाराम ने खाने में मसूर की दाल,आलू-परवल की भुजिया और रोटियांँ बनाईं थीं, दयाराम ने खाना बड़ा ही स्वादिष्ट बनाया था,सबने पेट भर कर खाना खाया और आराम करने चले गए और सुबह भोर होते ही रामविलास चौरिहा सुबह की चाय पीकर ड्राइवर के साथ उमरिया गाँव की ओर चल पड़े और फिर कृष्णराय जी ने उनके जाने के बाद स्नान किया और वें भी लक्ष्मीनारायण मंदिर की ओर चल पड़े,
वहाँ रास्ते में जो भी लोग मिले तो कृष्णराय जी उन सभी से लक्ष्मीनारायण मंदिर का रास्ता पूछते पूछते वहाँ पहुँच गए और वें कुछ ही देर में मंदिर के सामने थे और मंदिर के भीतर से किसी महिला के आरती गाने की आवाज आ रही थी,वें आरती सुनकर मंदिर के और पास गए तो उन्होंने दूर से देखा कि वहाँ महिलाएं और पुरूष बड़े ध्यान से आरती में लीन थे और कोई महिला सफेद साड़ी में आरती गा रही थी,वें भी वहीं बैठकर आरती सुनने लगे,कुछ देर में आरती खतम हुई और सब लोग उठ उठकर जाने लगे तो कृष्णराय जी भी अपनी जगह से उठे और तभी वें आरती गाने वाली महिला मंदिर से बाहर निकलकर आईं तो उन्होंने बड़ी हैरत बड़ी निगाहों से कृष्णराय जी को देखा,जैसे कि वें उन्हें पहले से जानती हों और फिर वें कृष्णराय जी से बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गई और कृष्णराय जी उन्हें अचरज भरी निगाहों से जाते हुए देखते रहे,फिर वें उदास होकर वापस रेस्ट हाउस आ गए और उन्हें रेस्ट हाउस में आता देखकर दयाराम ने उनसे पूछा...
"क्यों हुजूर ! साध्वी जी के दर्शन हुए या नहीं"?
"हाँ! उनके दर्शन तो हो गए लेकिन मैं ये ठीक से कह नहीं सकता कि वें वहीं थीं या नहीं", कृष्णराय जी बोले...
"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं हुजूर"?,दयाराम ने पूछा...
"वो हुआ यूँ कि जिनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने मुझे देखकर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी,तो मैं ये कैसें कह सकता हूँ कि वें वही थीं,क्योंकि तुम तो कह रहे थे कि बड़ी उदार प्रवृत्ति की हैं,लोगों को देखकर उनके मन का हाल जान जातीं हैं",कृष्णराय जी बोले...
"अच्छा! ये बताइए कि उनकी उम्र यही कोई तीस पैतीस के करीब थी या नहीं",दयाराम बोला...
"हाँ! इतनी तो रही होगी",कृष्णराय जी बोले...
"और उनका रंग गोरा था,सफेद साड़ी और माथे पर चन्दन का टीका था या नहीं",दयाराम ने पूछा...
"हाँ! ये सब भी था", कृष्णराय जी बोले...
"तब तो वें साध्वी जी ही थीं,उनका स्वरूप तो लाखों में एक है हुजूर! जैसे कि कोई साक्षात् देवी हों,उन्हें देखकर मन एकदम शान्त हो जाता है,उन्हें देखकर आपको ऐसा नहीं लगा",दयाराम बोला...
"ऐसा लगा तो लेकिन उन्होंने मुझसे कोई बात ही नहीं की, मुझे तो उनसे बहुत जरुरी बात करनी थी,उन्होंने मुझे एक नजर देखा और चलीं गई", कृष्णराय जी बोले...
"साध्वी जी को बहुत काम रहते हैं हुजूर!,इसलिए वो जल्दबाजी में होगीं,आप नहीं जानते वें सारा दिन जनसेवा के कार्यों में व्यस्त रहतीं हैं और उन्हें क्या मालूम कि आप उनसे बात करना चाहते हैं,आपने उनसे कुछ कहा भी तो नहीं",दयाराम बोला...
"उन्होंने मौका दिया होता तब ना कुछ कहता! वें तो यूंँ निकल गईं",कृष्णराय जी बोले...
"अच्छा! अब ये सब सोचना बंद कर दीजिए, कभी ना कभी तो उनसे आपकी बात हो ही जाएगी,वो ऊपरवाला सबके मन की बात जानता है,," दयाराम बोला...
"ऐसा ही हो,मेरी उनसे मुलाकात जल्द ही हो जाए", कृष्णराय जी बोले...
"अच्छा! अब चलिए! नाश्ता तैयार है,नाश्ता कर लीजिए",दयाराम बोला...
"ठीक है तो चलो",कृष्णराय जी बोलें...
"नाश्ता करने के बाद मैं आपको शान्तिनिकेतन ले चलूँगा,साध्वी जी आपको वहाँ नहीं मिली तो फिर हम दोनों अनाथालय और अस्पताल भी चलेगें,कहीं ना कहीं तो आपकी भेट उनसे हो ही जाएगी",दयाराम बोला...
"अच्छा! चलो पहले नाश्ता करता हूँ",
और ऐसा कहकर कृष्णराय जी ने नाश्ता किया फिर इसके बाद वो दयाराम के साथ शान्तिनिकेतन की ओर चल पड़े,रास्ता बड़ा ही ऊबड़ खाबड़ था और कृष्णराय जी को ऐसे रास्ते पर चलने की आदत नहीं थी, दयाराम उन्हें उस इलाके की जगहें दिखाता हुआ चलता चला जा रहा था और फिर कुछ देर के सफर के बाद वें दोनों शान्तिनिकेतन पहुँच गए और वहाँ जाकर पता चला कि साध्वी जी तो अस्पताल में हैं तो फिर वेँ दोनों अस्पताल की ओर चल पड़े और अस्पताल पहुँचकर आखिरकार कृष्णराय जी को साध्वी जी के दर्शन हो ही गए,उन्होंने उन्हें दूर से ही नमस्ते की तो वें उनकी नमस्ते का जवाब दिए बिना ही अस्पताल के भीतर चलीं गईं और वहाँ की नर्स को कृष्णराय जी के पास ये कहलवाकर भेज दिया कि वें उनसे नहीं मिल सकतीं उन्हें कोई जरूरी काम है,ये बात वहाँ की नर्स को भी समझ नहीं आई कि साध्वी जी ऐसा क्यों रहीं हैं,ऐसा तो वें किसी के साथ नहीं करतीं....
लेकिन कृष्णराय जी वहीं अस्पताल के पास बहुत देर तक बैठे रहे लेकिन साध्वी उनसे ना मिली और उसी नर्स से फिर से उन्होंने कहलवा भेजा कि साध्वी जी आपसे नहीं मिलना चाहतीं,कृपया आप यहाँ से चले जाएं और फिर ये बात कृष्णराय जी ने दयाराम को बताई तो वो भी बड़े आश्चर्य में पड़ गया...

क्रमश....
सरोज वर्मा....