Musafir Jayega kaha? - 10 in Hindi Thriller by Saroj Verma books and stories PDF | मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१०)

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१०)

फिर सुबह के लगभग नौ बज चुके थे और कृष्णराय जी अपना बोरिया-बिस्तर बाँधकर एकदम तैयार थे और तभी रेस्ट हाउस पर रामविलास चौरिहा जी जीप में बैठकर आएं,जीप रेस्टहाउस के सामने खड़ी हुई तो रामविलास चौरिहा जी उस से उतरकर बाहर आएं और रेस्ट हाउस के दरवाजे पर आकर बोले....
"कृष्णराय बाबू!आप तैयार हो गए",
"जी! हाँ! अभी आया",कृष्णराय जी ने भीतर से आवाज दी...
और फिर कृष्णराय जी बाहर आएं तो रामविलास जी ने जीप के ड्राइवर से जीप में सामान रखने को कहा,तब रामविलास जी ने कृष्णराय जी से पूछा...
"अरे! बंसी कहाँ है,दिखाई नहीं दे रहा",
"पड़ा होगा कहीं पीकर,आज तो सुबह से ही नहीं दिखा मुझे,मुझे रमेश ने चाय बनाकर दी,वो नाश्ता बनाने के लिए भी कह रहा था लेकिन मैनें मना कर दिया,अगर नाश्ते के लिए रूकता तो फिर मुझे देर हो जाती ", कृष्णराय जी बोलें....
तब रामविलास चौरिहा बोले...
"कोई बात नहीं कृष्णराय बाबू! रास्ते में एक बहुत अच्छा ढ़ाबा पड़ता है,वहाँ की चाय और आलू के पराँठों के साथ तीखी चटनी बहुत ही मशहूर है,आप वहीं नाश्ता कर लीजिएगा,वैसे रास्ता ज्यादा लम्बा नहीं है लेकिन चढ़ाई बहुत है ऊपर से रास्ता बहुत सँकरा है,तो दो वाहन एक साथ बड़ी मुश्किल से निकल पाते हैं इसलिए वहाँ पहुँचने में दुगुना समय लग जाता है",
"ओह...तो ये बात है",कृष्णराय जी बोलें...
"जी",चौरिहा जी बोले...
और फिर दोनों जीप में बैठकर लक्ष्मीनारायण मंदिर की ओर चल पड़े,रास्ता सच में बहुत घुमावदार और सँकरा था,इसलिए ड्राइवर जीप को धीरे धीरे ले जा रहा था,अब तक वें आधे से ज्यादा रास्ता पार कर चुके थे,तभी कृष्णराय जी को ऊँची पहाड़ी पर बहुत पुरानी और बहुत बड़ी हवेली दिखी तो उन्होंने रामविलास चौरिहा जी से पूछा...
"चौरिहा जी! वो क्या है?"
तब चौरिहा जी बोले...
"कृष्णराय बाबू ! वो जमींदार वीरभद्र सिंह की हवेली है",
"ओह...तो ये है जमींदार वीरभद्र सिंह की हवेली",कृष्णराय जी बोले....
" आप जमींदार साहब को कैसें जानते हैं",?,रामविलास चौरिहा जी ने पूछा...
"मुझे उनके बारें में रामस्वरूप जी ने बताया था",कृष्णराय जी बोले....
और ऐसे ही बाते करते करते ढ़ाबा आ गया तो रामविलास चौरिहा जी बोले...
"लीजिए!कृष्णराय बाबू! आ गया पंडित गंगाराम का ढ़ाबा,चलिए यहाँ चलकर चाय और आलू के पराँठों का आनन्द उठाते हैं"
"जी!चलिए",कृष्णराय जी बोले...
और फिर तीनों ढ़ाबे पर चाय पीने और पराँठे खाने रूक गए,वें ढ़ाबे के भीतर पहुँचे तो पंडित गंगाराम ने चौरिहा जी को पहचानते हुए कहा...
"अरे...आइए चौरिहा साहब! यहाँ बड़े दिनों बाद आना हुआ,कहिए कैसें हैं",?
"मैं बिल्कुल ठीक हूँ,इस तरफ बहुत दिनों से इन्सपेक्शन के लिए नहीं आया इसलिए आपके ढ़ाबे पर भी ना आ सका और आप सुनाइए कि कैसें हैं"?,चौरिहा जी ने पूछा...
"मैं भी ठीक हूँ और ये साहब तो शायद यहाँ पहली बार आएं हैं",पंडित गंगाराम ने कृष्णराय जी की ओर इशारा करते हुए कहा...
"हाँ! आपने ठीक समझा! ये यहाँ लक्ष्मीनारायण मंदिर के दर्शन करने आए हैं और कुछ दिन लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास वाले रेस्ट हाउस में भी ठहरेगें ", रामविलास चौरिहा जी बोलें...
"तब तो बड़ी अच्छी बात है,कहिए आप सब की खिदमत में क्या पेश करूँ,",?,पंडित गंगाराम ने पूछा...
"वही आपकी इलायची वाली चाय और स्पेशल वाले आलू के पराँठे",रामविलास चौरिहा जी बोले...
"जी! आप सभी वहाँ बैठिए,मैं अभी चाय और पराठें भिजवाता हूँ",पंडित गंगाराम ने एक चारपाई की ओर इशारा करते हुए कहा...
और फिर वें सभी वहाँ बैठ गए और थोड़ी ही देर में उनकी चारपाई के पाटे पर एक लड़के ने गरमागरम चाय और आलू के पराँठे रख दिए,फिर सभी ने चाय और आलू के पराँठों का आनन्द उठाया और फिर सभी चाय पीकर और पराँठे खाकर पंडित गंगाराम के पास आएं और कृष्णराय जी ने अपनी पोकेट से अपना बटुआ निकालते हुए पंडित गंगाराम से पूछा...
"कितना बिल हुआ"?
"अरे! आप क्यों बिल देने का कष्ट कर रहे हैं,मैं दे देता हूँ ना!",रामविलास चौरिहा जी बोले...
"अरे! नहीं! इसमें कष्ट की क्या बात है"?,कृष्णराय जी बोले...
"अरे! आप हमारे मेहमान है,आपकी थोड़ी खिदमत हमें भी करने दीजिए",रामविलास चौरिहा बोले...
"और कितनी खिदमत करेगें आप,जब से मैं यहाँ आया हूँ तो तब से आप मेरी खिदमत ही तो कर रहें हैं", कृष्णरायजी बोले...
"ठीक है! आप इतनी जिद कर रहे हैं तो आप ही बिल चुका दीजिए",रामविलास चौरिहा बोले...
और फिर कृष्णराय जी ने बिल चुकाया और फिर सब जीप की ओर जाने लगे तो पंडित गंगाराम बोलें...
"सम्भाल कर गाड़ी चलाइएगा ड्राइवर साहब!,अभी तीन दिन पहले एक कार खाई में गिर गई थी,वें लोंग दर्शनों के लिए आए थे,शायद उनमें से कोई भी नहीं बचा"
" ओह...ये तो बड़ी दुखद घटना हो गई",रामविलास चौरिहा जी बोले...
"हाँ! ऐसा ही हादसा बहुत सालों पहले हुआ था,वो कार जमींदार वीरभद्र सिंह की थी,जो जो उस कार में थे,उनमें से कोई नहीं बचा था ", पंडित गंगाराम बोले...
"क्या आप बता सकते हैं कि उस कार में कौन कौन था"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"ये सवाल आप मुझसे मत पूछिए,मैं बता नहीं पाऊँगा",पंडित गंगाराम बोलें...
"लेकिन क्यों"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"यहाँ उन लोगों के बारें में कोई बात नहीं करता",पंडित गंगाराम बोलें...
"ये क्या बात हुई भला"?,कृष्णराय जी बोले....
"आप लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास बने शांतिनिकेतन में चले जाइएगा,वहाँ आपको शायद सब बता चल जाएं",पंडित गंगाराम बोलें...
"ऐसे कौन से राज छुपे हैं शांतिनिकेतन में जो हर कोई मुझसे वहाँ जाने की बात करता है", कृष्णराय जी बोलें....
"ये तो आपको वहीं जाकर पता चलेगा",पंडित गंगाराम बोलें...
"ठीक है तो अब हम चलते हैं",
और ऐसा कहकर रामविलास चौरिहा ड्राइवर और कृष्णराय जी के साथ जीप में बैठकर चल पड़े और कुछ ही देर में वो रेस्ट हाउस भी पहुँच गए,रेस्ट हाउस के सामने रामविलास चौरिहा जी ने अपनी जीप रूकवाई और वहाँ के अधेड़ उम्र के नौकर दयाराम को आवाज लगाई,उनकी आवाज़ सुनकर दयाराम बाहर आया और रामविलास जी से बोला....
"साहब!आप ! बड़े दिनों बाद आए यहाँ ।",
"हाँ! आज इस इलाके के इन्सपेक्शन के लिए आया हूँ,आज रात हम सभी यहीं ठहरेगें,सबके रहने का इन्तजाम कर दो,ये साहब और कुछ दिन रूकेगें यहाँ लेकिन हम दोनों सुबह ही चले जाऐगें,इनका सामान इनके कमरें में रखवा दो",रामविलास चौरिहा जी बोले....
"ठीक है साहब!" दयाराम बोला...
और फिर दयाराम कृष्णराय जी का सामान उनके कमरें में रखकर आया और फिर सबसे बोला....
"साहब ! क्या लेगें आप लोंग"?
"बस ! गरमागरम चाय पिलवा दो,और सुनो चाय पिलवाने के बाद जो वो लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास हाट लगती है ना तो वहाँ से रात के खाने का सामान और साग सब्जी ले आना,ये रहे रूपए", रामविलास जी ने दयाराम की ओर कुछ रूपए बढ़ाते हुए कहा...
फिर दयाराम सबके लिए चाय लेने चला गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....