Musafir Jayega kaha? - 9 in Hindi Thriller by Saroj Verma books and stories PDF | मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(९)

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(९)

जमींदार वीरभद्र सिंह जितने अय्याश थे ,जमींदारन कौशकी जी उतनी ही करूणामयी,ममतामयी और धार्मिक थीं,इसलिए जब जमींदार साहब की आवारागर्दी हद से ज्यादा बढ़ गई तो जमींदारन कौशकी सिंह हवेली छोड़कर लक्ष्मीनारायण मंदिर से कुछ दूर बने एक पुश्तैनी मकान में चलीं गईं जिसका नाम शांतिनिकेतन था,उस समय ओजस्वी दस साल की थी और तेजस्वी आठ साल की थी,जब जमींदारन साहिबा हवेली छोड़कर शांतिनिकेतन चलीं गईं तो तब जमींदार साहब को रोकने टोकने वाला कोई ना रह गया था,इसलिए अब जमींदार साहब बिलकुल आजाद थे इसलिए उनकी अय्याशियांँ और भी बढ़ गईं थीं और उनकी इस अय्याशी में उनका सबसे बड़ा साथी था धानी का बाप लक्खा सिंह,उनके हर मामले का राजदार,उनका सबसे बड़ा हितैषी....
और ये कहते कहते रामस्वरूप जी रूक गए तो कृष्णराय जी बोले....
"इसका मतलब है कि वो तो सब कुछ जानता होगा अब वो ही मेरी मदद कर सकता है",
"ये क्या कह रहे हैं आप? आप सरपंच लक्खा सिंह के पास जाऐगें",रामस्वरूप जी बोले....
"क्यों नहीं!, मुझे अपने दोस्त के बारें में जो जानना है,आप तो मुझे उसके बारें में ज्यादा कुछ नहीं बता पाए, शायद सरपंच लक्खा सिंह ही कुछ बता दे",कृष्णराय जी बोले...
तब रामस्वरूप जी बोलें...
"कृष्णराय बाबू! वो आपको जमींदार साहब के बारें कुछ भी नहीं बताएगा,ऊपर से कहीं वो आपके लिए कोई मुसीबत खड़ी ना कर दे",रामस्वरूप जी बोलें...
"मुसीबत के डर से क्या मैं अपने दोस्त की खोज करना छोड़ दूँ"?,कृष्णराय जी गुस्से से बोलें...
"लक्खा सिंह को अभी आप जानते नहीं कि वो कैसा इन्सान है?,जमींदार साहब अब तो इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन लक्खा सिंह के लिए अभी भी वो भगवान की तरह ही हैं,जब लक्खा सिंह को ये पता चलेगा कि आप जमींदार साहब के बारें में कुछ जानना चाहते हैं तो वो आपकी जान का दुश्मन बन जाएगा", रामस्वरूप जी बोले...
"मैं जमींदार साहब के बारें में पता करने नहीं आया हूँ ,मैं तो अपने दोस्त को ढूढ़ने आया हूंँ",कृष्णराय जी बोले...
"एक ही बात है,बल्कि इसमें तो आपके लिए और भी खतरा है,आप लक्खा से कुछ भी मत पूछिए", रामस्वरूप जी बोले...
"आप फिक्र ना करें रामस्वरूप जी!मुझे कुछ नहीं होगा,मेरा उद्देश्य है अपने दोस्त को ढूढ़ना और इसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ",कृष्णराय जी बोले...
"अच्छा! तो मैं अब चलता हूँ,कहीं सरपंच घर से ना चला जाए तो फिर मैं उससे किशोर के बारें में कुछ भी नहीं पूछ पाऊँगा",कृष्णराय जी बोलें...
"अच्छा ठीक है! मैं आपको बताता हूँ कि अगर आपको अपने दोस्त के बारें में जानना है तो आपको किसके पास जाना चाहिए" रामस्वरूप जी बोलें...
"कहाँ जाना चाहिए मुझे?",कृष्णराय जी ने पूछा...
"शांतिनिकेतन"रामस्वरूप जी बोलें..
"जहाँ जमींदारन साहिबा कौशकी रहतीं हैं",कृष्णराय जी बोले..
"नहीं!अब जमींदारन साहिबा कौशकी इस दुनिया में नहीं हैं,लेकिन वहाँ अब एक साध्वी रहतीं हैं,उन्हें सब पता है,,बस आप उनसे कुछ मत पूछिएगा,वें खुदबखुद आपको सब बता देगीं",रामस्वरूप जी बोलें....
"ये क्या बात हुई भला!मैं उनसे कुछ पूछूँगा नहीं तो वें मुझे बताऐगीं कैसें",?,कृष्णराय जी बोले....
"मैनें कहा ना! वें सब जानती हैं,वें सच्ची साध्वी हैं उन्हें सबके बारें में सब पता रहता है,उन्होंने अपने गुरू से बहुत कम उम्र में दीक्षा ले ली थी,उन्हें बहुत ज्ञान है इसलिए वें सबके बारें में जान जातीं हैं",रामस्वरूप जी बोले...
"तो अब मुझे किशोर को ढूढ़ने लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास बने शांतिनिकेतन में जाना होगा,उन साध्वी के पास",कृष्णराय जी बोले...
"हाँ! बिल्कुल!ठीक समझे आप!" रामस्वरूप जी बोलें...
"वहाँ जाने के लिए मुझे कहाँ से साधन मिलेगा",कृष्णराय जी ने पूछा...
"अभी मेले का समय है तो वहाँ जाने के लिए आपको ताँगा या बैलगाड़ी तो मिल ही जाएगी,कभी कभी कभार प्राइवेट बस भी चलीं आतीं हैं जब मेले की भीड़ ज्यादा होती है तो,क्योंकि इस समय ही लोग लक्ष्मीनारायण मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं,लेकिन आपको वो साधन उमरिया गाँव से ही मिलेगा",रामस्वरूप जी बोले...
"तो फिर मुझे वापस उमरिया गाँव जाना होगा",कृष्णराय जी बोले...
"हाँ! वहीं से आपको साधन मिलेगा",रामस्वरूप जी बोलें...
"तो फिर अब मुझे यहाँ से निकलना चाहिए,उमरिया गाँव पहुँचकर पहले अपना सामान उठाऊँगा फिर वहीं से शांतिनिकेतन के लिए निकलूँगा",कृष्णराय जी बोले...
"ठीक है !ईश्वर आपकी इच्छा पूरी करे़,आपका दोस्त आपको जल्दी मिल जाए",रामस्वरूप जी बोलें....
दोनों के बीच बातें चल ही रहीं थीं कि तभी धानी वहाँ आ पहुँची और कृष्णराय जी बोली...
"आप जा रहे हैं शहरी बाबू"!
"हाँ! धानी!अब तो जाना पड़ेगा,जिस काम के लिए यहाँ आया था वो तो पूरा करना ही है",कृष्णराय जी बोलें...
"तो क्या आप वापस उमरिया गाँव जा रहे हैं"?,धानी ने पूछा...
"हाँ! और फिर वहाँ से शांतिनिकेतन के लिए निकलूँगा,",कृष्णराय जी बोले...
"तो क्या आप वहाँ साध्वी जी से मिलने जा रहें हैं"? धानी ने पूछा...
"तो तुम भी जानती हो साध्वी जी को" कृष्णराय जी ने पूछा...
"उन्हें कौन नहीं जानता,वें तो सबका भला करतीं हैं",धानी बोली...
"अच्छा!तो ये बात है",कृष्णराय जी बोलें...
"हाँ!आप वहाँ जाकर मेरे और रमेश के बारें में भी बात करना,तो वें जरूर मेरे बाबा को समझाएगीं ताकि वो मेरी और रमेश की शादी के लिए मान जाएं",धानी बोली...
"हाँ!,अगर वें मुझे मिली तो मैं जरूर उनसे ये बात कहूँगा",कृष्णराय जी बोले...
"शहरी बाबू!आप सच में बहुत अच्छे हैं,आपकी बेटी आपसे बहुत खुश रहती होगी",धानी बोली...
"वही तो रोना है धानी कि मुझे भगवान ने बेटी नहीं दी,केवल दो बेटे दिए हैं",कृष्णराय जी बोले...
"तो आज से आप मुझे ही अपनी बेटी मान लीजिए",धानी बोली...
"धानी तुम्हारे जैसी प्यारी बेटी किसे नहीं चाहिए,लो भाई तो आज से तुम मेरी बेटी और तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ",कृष्णराय जी बोले...
"सच ! शहरी बाबू!" धानी ने पूछा...
"हाँ!" तो फिर अब मैं चलूँ",कृष्णराय जी बोले...
"ठीक है ! अब कब मिलना होगा? शहरी बाबू!",धानी ने पूछा..
"मैं ये तो नहीं बता सकता",कृष्णराय जी बोले...
"तो ठीक है जब भी इस ओर आना तो मुझसे जरूर मिलकर जाना",धानी बोली...
"हाँ! कोशिश करूँगा",कृष्णराय जी बोले...
"तो अब मैं चलूँ",
और फिर उनके पूछने पर धानी ने हाँ के जवाब में अपना सिर हिला दिया और धानी ने उन्हें रूआँसे मन से विदा किया,फिर कृष्णराय जी ने रामस्वरूप जी को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और चल पड़े साइकिल में बैठकर उमरिया गाँव की ओर और एक दो घण्टों के सफर के बाद वें वहाँ पहुँच भी गए,वहाँ पहुँचकर उन्होंने शाम तक आराम किया और फिर शाम को उनसे मिलने रामविलास चौरिहा जी आए और उनके कमरें में आकर उनसे बोले...
"कैसें हैं कृष्णराय बाबू?आपकी रामस्वरूप अग्रवाल जी से मुलाकात हुई"
"मैं अच्छा हूँ! हाँ! मेरी उनसे मुलाकात भी हुई,बड़े ही अच्छे इन्सान हैं और कहने लगे कि जाते समय लक्ष्मीनारायण मंदिर के दर्शन जरूर करते जाइएगा",
"हाँ!ये तो उन्होंने बिल्कुल ठीक कहा,वहाँ के लिए तो लोग दूर दूर से आते हैं",रामविलास चौरिहा जी बोले...
"अच्छा! लगता है बहुत प्रसिद्ध मंदिर है",कृष्णराय जी बोले...
"जी! हाँ बहुत पुराना और प्रसिद्ध मंदिर है,तो फिर आप वहाँ जाने का कब सोच रहे हैं?,रामविलास चौरिहा जी ने पूछा...
"सोचता हूँ कि कल ही वहाँ के लिए निकल जाऊँ",कृष्णराय जी बोले...
"तो अभी तो मेला चल रहा है काफी भीड़ होगी वहाँ,आपको वहाँ जाने का साधन तो शायद नहीं मिलेगा,इसलिए आप ऐसा कीजिए ,मेरे आँफिस की जीप से वहाँ चले जाइए",रामविलास चौरिहा जी बोले...
"नहीं...नहीं..आप तकलीफ़ ना उठाएं,मैं कोई ना कोई इन्तजाम कर लूँगा",कृष्णराय जी बोले...
"इसमें तकलीफ़ की क्या बात है कृष्णराय बाबू! कल जीप इन्सपेक्शन के लिए उस तरफ जा ही रही है तो आप भी उसी में बैठकर चले जाइए",रामविलास चौरिहा बोले...
"तो क्या आप भी मेरे साथ वहाँ तक चलेगें ? ",कृष्णराय जी बोले...
"जी! मैं भी चलूँगा आपके साथ वहाँ तक",रामविलास चौरिहा जी बोले...
"बहुत बहुत शुक्रिया चौरिहा जी!",कृष्णराय जी बोले...
"शुक्रिया किस बात का कृष्णराय बाबू! आप हमारे मेहमान हैं तो इतना फर्ज तो बनता है ना हमारा",रामविलास चौरिहा बोले....
"जी!तो फिर कल मैं कब तक तैयार हो जाऊँ"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"सुबह नौ बजे के लगभग",रामविलास चौरिहा जी बोले...
"जी!ठीक है"कृष्णराय जी बोले...
और फिर रामविलास जी कुछ देर तक कृष्णराय जी से बातें करते रहें और फिर चले गए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....