Musafir Jayega kaha? - 7 in Hindi Thriller by Saroj Verma books and stories PDF | मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(७)

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(७)

फिर कृष्णराय जी ने नहाकर मैथी के पराँठों और टमाटर की चटनी का नाश्ता किया और चल पड़े साइकिल लेकर फूलपुर गाँव की ओर वहाँ के साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल से मिलने,वें ऊबड़ खाबड़ रास्तों में चले जा रहे थे और एक दो घण्टों के सफर के बाद वें लोगों से रास्ता पूछते पूछते फूलपुर गाँव पहुँच भी गए,तभी उन्हें वहाँ के कुएंँ पर वहाँ के सरपंच की बेटी धानी दिखी ,जो कि अपनी सहेलियों के साथ वहाँ पानी भरने आई थी तभी कृष्णराय जी उस कुएँ के पास पहुँचे और पनिहारिनों से बोलें....
"कोई पानी पिला देगा मुझे,बहुत प्यास लगी है"
तभी धानी अपनी मटकी उठाकर वहाँ से जाने लगी तो कृष्णराय जी बोलें...
"ऐ...कहाँ जा रही हो? पहचाना नहीं क्या मुझे"?
तब धानी बोली...
"कौन हो तुम और यूँ ही बिना जान पहचान के पीछे क्यों पड़ते हो?,कोई गाँव वाला देख लेगा तो बेवजह पिट जाओगे"
"अरे!तुम भूल गई क्या मुझे",?,कृष्णराय जी बोले...
"जब जानती ही नहीं तो भूलने का सवाल ही नहीं उठता ,खबरदार! जो अब मुझसे बात करने की कोशिश भी की",
और ऐसा कहकर धानी वहाँ से चली गई,धानी की बात सुनकर कृष्णराय जी जरा मायूस से हो गए,फिर वहीं कुएँ के पेड़ के पास अपनी साइकिल खड़ी करके थोड़ी देर सुस्ताने लगें,अब कुएँ पर भी कोई भी पनिहारी नहीं बची थी,धानी का जवाब सुनकर फिर उनकी किसी और पनिहारी से पानी माँगने की हिम्मत ना पड़ी,बेचारे प्यासे ही रह गए,इतनी दूर से साइकिल चलाकर आए थे इसलिए उन्हें और भी ज्यादा प्यास लग रही थी ,फिर तभी कुछ देर में धानी पानी से भरा लोटा लेकर उनके सामने हाजिर हुई और लोटा धरती पर रखकर अपने दोनों कान पकड़कर उनसे बोली....
"मुझे माँफ कर दो शहरी बाबू! वें सब पनिहारिनें यहाँ थी इसलिए मैनें तुम्हें अनदेखा कर दिया,अगर उनमें से कोई मुझे तुमसे बात करते देख लेता तो मेरी तो जैसे शामत ही आ जाती आज,किसी को पता चल जाता कि आप उमरिया गाँव से आएँ हैं और आपकी जान पहचान रमेश से है और कहीं ये खबर मेरे बाबा तक पहुँच जाती तो फिर मेरी जान पर बन जाती,वें लठैत लेकर फौरन उमरिया गाँव जाते और रमेश को मार मारकर लहुलुहान कर देते",
"ओह....इसलिए तुमने उस समय मुझसे बात नहीं की",कृष्णराय जी बोलें...
"हाँ! शहरी बाबू!इसलिए बात नहीं की मैनें",धानी बोली...
"कोई बात नहीं ,मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ,बस तुम्हारा रूखा व्यवहार देखकर थोड़ा बुरा जरूर लगा था",कृष्णराय जी बोले....
"ठीक है अब बात बाद में करना,पहले ये मटके का ठण्डा ठण्डा पानी पीकर अपनी प्यास बुझा लो",धानी बोली...
और फिर कृष्णराय जी ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई फिर पानी पीकर वें धानी से बोलें...
"तुम साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल जी को जानती हो"?
"हाँ! साहूकार दादा को कौन नहीं जानता? उनकी ही दुकान से तो पूरा गाँव सौदा खरीदता है,बेचारे!",धानी बोली...
"बेचारे!क्यों?" कृष्णराय जी ने पूछा..
तब धानी बोली...
"बेचारे इसलिए कि उनका अपना कहने के लिए कोई नहीं है,दो साल पहले अन्धी दादी भी गुजर गई,खुद से बनाते खाते हैं,मैं कभी कभी उन्हें खाना दे आती थी लेकिन बाबा मना करते हैं,मुझे किसी से भी बात करने को,मेरे बाबा को तो सब रमेश के खबरी ही नजर आते हैं क्योंकि रमेश दादा के यहाँ कभी कभी सौदा लेने आता है इसलिए",
"ओह...तो ये बात है",कृष्णराय जी बोले...
"लेकिन आप क्यों साहूकार दादा के बारें में पूछ रहे हैं",धानी ने पूछा...
"क्योंकि मैं उनसे ही मिलने यहाँ आया हूँ",कृष्णराय जी बोलें...
"सच! तो क्या वें आपके रिश्तेदार हैं"?,धानी ने पूछा...
"नहीं! मैं यहाँ किसी को खोजने आया हूँ,काश वो मुझे यहाँ मिल आएँ",कृष्णराय जी बोले...
"वो आपको जरूर मिलेगें जिन्हें आप खोजने आएं,ईश्वर अच्छे लोगों की फरियाद जरूर सुनता है",धानी बोली...
"तो क्या मैं अच्छा इन्सान हूँ",कृष्णराय जी ने धानी से पूछा...
"और क्या शहरी बाबू! तुम बहुत अच्छे इन्सान हो",धानी बोली...
फिर धानी की बात पर कृष्णराय जी हँसने लगें और उससे बोलें....
"तो फिर मुझे साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल जी का पता बता दो,ताकि मैं जल्दी से वहाँ पहुँच सकूँ", कृष्णराय जी बोलें...
तब धानी बोली....
"वो जो आप उस बैलगाड़ी के पास इमली का पेड़ देख रहे हैं ना! तो उसके बाँयी ओर एक सँकरी गली गई है,उस गली में हनुमानजी का मंदिर है,तो आप उस मंदिर के पीछे वाली गली में चले जाना,वहाँ दो चार खपरैल वाले घर छोड़कर साहूकार दादा का पक्का मकान बना है,वहीं सामने के कमरें में उन्होंने अपनी दुकान खोल रखी है और पीछे के कमरें में वें रहते हैं,उनके आँगन में एक छोटा मंदिर है और एक नीम का पेड़ भी लगा है,उनके आँगन में कुआँ भी है,मैं तो बहुत बार वहाँ से पानी भरकर ले जा चुकी हूँ,मैं भी आपके साथ वहाँ चलती लेकिन किसी ने देख लिया तो बाबा से शिकायत कर देगा,फिर बाबा छड़ी से मेरी पिटाई करेगें",
"तुम्हारे बाबा तुम्हें बहुत मारते हैं",कृष्णराय जी ने पूछा....
"ऐसे नहीं मारते लेकिन जब मैं रमेश से मिलने जाती हूँ और उन्हें खबर लग जाती है तब मारते हैं", धानी बोली...
"रमेश से उन्हें इतनी नफरत क्यों है?",कृष्णराय जी ने पूछा...
"वो तो बाबा ही जाने",धानी बोली...
"अच्छा! तो अब मैं चलूँ",कृष्णराय जी बोले...
"हाँ!मैं भी चलती हूँ,अगर किसी ने मुझे आपके साथ देख लिया तो फिर मेरी खैर नहीं",
और फिर ऐसा कहकर धानी वहाँ से भाग गई और कृष्णराय जी धानी के बताए पते पर चल पड़े और वें कुछ ही देर में वहाँ पहुँच भी गए और वें साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल से मिले और उनसे बोलें...
"मैं उमरिया गाँव के फाँरेस्ट आँफिसर रामविलास चौरिहा जी का दोस्त हूँ,मेरा नाम कृष्णराय निगम है और किसी जरूरी काम से आपसे मिलने आया हूँ"
"ओह....तो आप चौरिहा जी के मित्र हैं...आइए....आइए भीतर आइए", साहूकार रामस्वरूप जी बोले...
और फिर साहूकार रामस्वरूप कृष्णराय जी को बैठक में ले गए और फिर नौकर से उनके लिए पेड़े और पानी लाने को कहा,नौकर फौरन उनके लिए पानी और पेड़े लेकर आया और तब रामस्वरूप जी ने कृष्णराय जी से जलपान ग्रहण करने को कहा,कृष्णराय जी ने एक पेड़ा खाया और दो घूँट पानी पीकर गिलास रख दिया क्योंकि पानी ने उन्हें पहले ही धानी ने पिला दिया था,तब रामस्वरूप अग्रवाल जी ने कृष्णराय जी से पूछा...
"जी! आप किस काम के सिलसिले में मुझसे मिलने आएं हैं",?
तब कृष्णराय जी ने उनसे पूछा....
"आप किसी किशोर जोशी को जानते हैं"
ये नाम सुनकर रामस्वरूप अग्रवाल जी के चेहरे का रंग उड़ गया और वें कृष्णराय जी से बोले...
"जी! नहीं! ये नाम तो मैं पहली बार सुन रहा हूँ",
"याद कीजिए,दिमाग पर जोर डालिए,शायद कुछ याद आ जाएँ",कृष्णराय जी बोलें...
"नहीं!जानता मैं किसी किशोर जोशी को", साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल जी सख्त लहजे में बोले...
"भगवान के लिए अगर आपको कुछ पता है तो बता दीजिए",कृष्णराय जी ने विनती की..
लेकिन साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल ने उन्हें कुछ नहीं बताया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...