Wo Maya he - 23 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 23

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

वो माया है.... - 23



(23)

अपनी बेटी दिशा की खबर सुनकर मनीषा कुछ पलों तक सन्न रह गई थीं। वह समझ नहीं पा रही थीं कि अचानक यह क्या हो गया ? कुछ देर पहले उन्होंने दिशा से बात की थी। उसने बताया था कि वह और पुष्कर घर आ रहे हैं। रास्ते में एक ढाबे पर चाय नाश्ते के लिए रुके हैं। वह बहुत खुश थीं। अपनी बेटी और दामाद के स्वागत की तैयारियां करने लगी थीं कि खबर मिली कि पुष्कर की लाश ढाबे के पास झाड़ियों के पीछे से मिली। दिशा की तबीयत खराब है। उसे वहीं पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
मनीषा खबर मिलने के बाद कुछ देर तक तो बस सर पकड़े बैठी रहीं। अभी तो बेटी की शादी की थी। उसका वैवाहिक जीवन शुरू भी नहीं हो पाया था कि यह हो गया। लेकिन वह दुख में डूबकर बैठ नहीं सकती थीं। उन्हें अपनी बेटी की मदद के लिए जाना था। अपने दुख को सीने में दबाकर वह उठीं। सबसे पहले अपने शुभचिंतक दोस्त शांतनु घोष को फोन करके सारी बात बताई। सब सुनते ही शांतनु ने कहा कि वह उनकी मदद के लिए आ रहे हैं।

मनीषा शांतनु के साथ उनकी कार में दिशा के पास जा रही थीं। बहुत कोशिश करने के बावजूद भी वह खुद को रोक नहीं पाईं। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे। उन्हें रोता हुआ देखकर शांतनु ने कहा,
"मनीषा अपने आप को संभालो। हिम्मत रखने से ही काम होगा।"
"कैसे हिम्मत रखूँ शांतनु.....अभी पाँच दिन पहले ही तो दिशा की शादी हुई और आज उसके....."
कहते हुए वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगीं। शांतनु ने कार किनारे ले जाकर रोक दी। वह भी दिशा के साथ जो कुछ हुआ सुनकर दुखी थे। उन्होंने कहा,
"क्या किया जाए मनीषा ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा घटता है जो हम नहीं चाहते हैं। फिर भी सहना पड़ता है। दिशा के बारे में सोचकर मेरा भी कलेजा फट रहा है। मैंने भी उसे सुखी जीवन का आशीर्वाद दिया था। पर भगवान को यही मंज़ूर था। पर अब हमें धैर्य रखकर दिशा को संभालना होगा। इसलिए कह रहा हूँ कि हिम्मत रखो। नहीं तो दिशा और टूट जाएगी।"
उन्होंने मनीषा को पानी की बोतल दी। मनीषा ने नीचे उतरकर मुंह धोया और थोड़ा पानी पिया। कार में बैठकर बोलीं,
"ठीक कह रहे हो शांतनु। अभी मुझे दिशा को संभालना है। इसलिए खुद को संभालना ज़रूरी है।"
शांतनु ने भी थोड़ा पानी पिया और कार आगे बढ़ा दी।

मनीषा और शांतनु अस्पताल पहुँचे। मनीषा ने अपना परिचय देकर बताया कि वह दिशा की मम्मी हैं। उन्हें बताया गया कि दिशा अभी सो रही है। दिशा जब अस्पताल लाई गई थी तब उसकी हालत ठीक नहीं थी। वह सदमे की हालत में थी। बार बार पुष्कर का नाम लेकर पुकार रही थी। डॉक्टर ने उसे दवाई दी थी जिसके बाद वह सो गई थी। मनीषा और शांतनु ने डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने बताया कि दिशा सदमे की हालत में है। सामान्य होने में कुछ वक्त लगेगा।
मनीषा दिशा के बिस्तर के पास बैठी थीं। वह सोती हुई दिशा के चेहरे को निहार रही थीं। इस समय तो उनकी बेटी दवा के असर से सो रही थी। वह सोच रही थीं कि जब नींद टूटेगी तो वह अपने दर्द को कैसे बर्दाश्त कर पाएगी। उसे तड़पता देखकर वह भी खुद पर काबू नहीं रख पाएंगी।
पुष्कर से शादी करने के बाद दिशा बहुत खुश थी। उनके साथ मिलकर अपनी शादी की सारी तैयारियां की थीं। शादी से एक रात पहले वह यह सोचकर दुखी हो रही थीं कि उनकी बेटी शादी करके अपनी ससुराल चली जाएगी। पता नहीं उस नए माहौल में कैसे रहेगी ? ससुराल वाले उसके साथ ना जाने कैसा व्यवहार करेंगे ? उन्हें परेशान देखकर दिशा ने उन्हें समझाते हुए कहा था,
"मम्मी.....आप किसी भी बात की चिंता मत करिए। वैसे तो मैं खुद अपने आप को संभाल सकती हूँ। पर मुझे उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। पुष्कर मुझे बहुत चाहता है। वह मेरा पूरा खयाल रखेगा। मुझे फर्क नहीं पड़ता है कि ससुराल का माहौल कैसा होगा। ससुराल वाले मेरे साथ किस तरह पेश आएंगे। मुझे पुष्कर पर पूरा भरोसा है।"
दिशा की उस बात को याद करते हुए मनीषा फिर रोने लगीं। उसी समय शांतनु कमरे में आए। उनके एक हाथ में चाय और दूसरे हाथ में ग्लूकोज़ बिस्कुट का पैकेट था। उन्होंने चाय मनीषा की तरफ बढ़ा दी। मनीषा ने कहा,
"अभी कुछ भी खाने पीने का मन नहीं है शांतनु।"
शांतनु ने दूसरे स्टूल पर बैठते हुए कहा,
"मुश्किल जितनी बड़ी हो उससे निपटने के लिए हमें उतना ही मज़बूत बनना पड़ता है। यह समय बहुत कठिन है। इससे निपटने के लिए शरीर में ताकत ज़रूरी है।"
मनीषा ने चाय का कप पकड़ लिया। शांतनु ने बिस्कुट निकाल कर दिए। मनीषा चाय के साथ खाने लगीं। शांतनु ने कहा,
"पुष्कर के घरवालों को भी सूचना दे दी गई होगी।"
"दे ही दी गई होगी। मुझे कुछ पता नहीं है शांतनु एक पुलिस इंस्पेक्टर का फोन आया था। मुझे उन्होंने ही सारी सूचना दी। मैं बदहवास सी हो गई थी। कुछ और समझ ही नहीं आया। उन्होंने मेरे नंबर पर अस्पताल का पता वॉट्सऐप कर दिया था। नहीं तो यहाँ आना भी कठिन होता।"
"पुष्कर एकदम ठीक था। फिर अचानक उसकी लाश झाड़ियों में मिली। यह तो बड़ी विचित्र बात है। ज़रूर उसके साथ कुछ हुआ है।"
मनीषा फिर उदास हो गईं। शांतनु ने कहा,
"पुष्कर की बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया होगा। बॉडी उसके घरवालों को मिलेगी। अंतिम संस्कार के लिए तो उसके घर से ही ले जाएंगे। दिशा को भी वहाँ होना चाहिए।"
"दिशा तो इस हालत में है। वह कैसे जाएगी ?"
"अभी डॉक्टर से बात हुई थी। कह रहे थे कि कुछ देर में होश में आ जाएगी। तब उसे संभालना होगा।"
"पता नहीं कैसे हो पाएगा ?"
"करना पड़ेगा मनीषा। जो सर पर आया है उससे निपटना है।"
मनीषा ने अपनी चाय खत्म की। शांतनु ने खाली कप उनके हाथ से ले लिया। उन्होंने कहा,
"तुम कह रही थी कि किसी इंस्पेक्टर ने तुम्हें सारी सूचना दी थी। क्या नाम था उनका ?"
मनीषा ने याद करते हुए कहा,
"कोई यादव थे। उस समय खबर सुनते ही मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था।"
"कोई बात नहीं है मनीषा। उनका नंबर होगा।"
"हाँ उन्होंने ऐड्रेस भी वॉट्सऐप किया था।"
मनीषा ने अपना फोन निकाल कर मैसेज दिखाया। शांतनु ने नंबर बताने को कहा। नंबर बताने के बाद मनीषा ने कहा,
"उनसे क्या बात करोगे ?"
"पूछता हूँ कि पुष्कर की बॉडी को कहाँ ले गए हैं। उसके घरवालों को कोई सूचना दी गई या नहीं।"
यह कहकर शांतनु बाहर चले गए। शांतनु ने इंस्पेक्टर हरीश यादव से बात की। उन्होंने बताया कि पुष्कर की बॉडी को किस अस्पताल में लाया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि पुष्कर के घरवालों को खबर मिल गई है। वह लोग वहाँ पहुँच रहे हैं।


विशाल ने इंस्पेक्टर हरीश यादव से बात करके पता कर लिया था कि पुष्कर की बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए कहाँ ले जाया गया है। सब लोग उसी अस्पताल में पहुँच गए थे। वहाँ पता चला कि कुछ देर में पुष्कर की बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया जाएगा। उसके बाद कुछ घंटे लगेंगे। कहा नहीं जा सकता है कि बॉडी कब तक मिलेगी। बद्रीनाथ की हालत अच्छी नहीं थी। विशाल को उनकी फिक्र थी। उसने केदारनाथ से बात की। उसने कहा,
"चाचा जी पता नहीं कितना समय लगेगा। पापा की हालत अभी से इतनी पस्त है। यहाँ कोई ऐसी जगह भी नहीं है जहाँ पापा आराम कर सकें।"
केदारनाथ ने अपने भाई की तरफ देखकर कहा,
"इस उम्र में इतना बड़ा दुख मिला है। सहना आसान नहीं है। हमें तो लगता है कि इन्हें किसी डॉक्टर को दिखाना होगा।"
विशाल ने बद्रीनाथ की तरफ देखा। उसे अपने चाचा की बात सही लगी। उसने कहा,
"चाचा जी दिशा यहाँ से कुछ दूर दूसरे अस्पताल में है। वहीं चलते हैं। दिशा को भी देखना है। पापा को भी वहीं किसी डॉक्टर को दिखा लेंगे।"
केदारनाथ को उसकी बात ठीक लगी। उन्होंने कहा,
"तुम ठीक कह रहे हो बेटा। बहू को भी तो देखना है। पता नहीं किसी ने उसकी माँ को खबर दी की नहीं।"
"इंस्पेक्टर हरीश ने बताया था कि उन्होंने खबर दे दी है। अब पता नहीं खबर सुनकर यहाँ आने की हालत में होंगी कि नहीं। हम लोग भी कोई खबर नहीं ले पाए।"
"बेटा अभी अस्पताल चलते हैं। भइया को भी दिखा लेंगे और बहू के हालचाल भी ले लेंगे।"
विशाल ने बद्रीनाथ को कहा कि उन्हें दिशा से मिलने चलना है। वह भी तैयार हो गए। कल शाम जो हुआ था उसके कारण उनके मन में अपराधबोध था। उन्हें अपना बेटा खोने का दुख था। पर वह जानते थे कि दिशा पर बहुत बड़ा दुख पड़ा है। जिसके साथ जीवन बिताना था वह अचानक साथ छोड़कर चला गया। वह दिशा को तसल्ली देना चाहते थे।
जबसे बद्रीनाथ ने उमा की बात सुनी थी वह सोच रहे थे कि उमा ने कुछ गलत नहीं कहा। उस समय अगर वह और किशोरी ज़िद में ना आ गए होते तो विशाल माया के साथ खुश रहता। उनका परिवार बढ़ता। पर आज तो परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग गया है। यही सब सोचकर उनकी तबीयत बिगड़ रही थी।
कार में बैठते ही बद्रीनाथ की तबीयत और बिगड़ गई। विशाल घबरा गया। उन्हें दूसरे अस्पताल ले जाने की जगह उसी अस्पताल में भर्ती कराया गया।