Sabaa - 4 in Hindi Philosophy by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सबा - 4

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सबा - 4

आज लड़का नहीं आया। लड़की पेड़ के नीचे अपनी साइकिल लिए बहुत देर तक खड़ी रही। बार- बार उस सड़क की ओर देखती जिससे लड़का आया करता था पर लड़के का कहीं कोई नामोनिशान नहीं था।
कभी - कभी कोई आता- जाता अजनबी अकेली लड़की को इस तरह खड़ी देख कर गहरी नज़र से उधर देखने लग जाता तो लड़की झल्ला जाती। वह अपने को किसी तरह व्यस्त बताने के लिए अपनी साइकिल में ही किसी नुक्स को टटोलने लग जाती।
लेकिन फ़िर अचानक लड़की को याद आ जाता कि इसी तरह एक दिन साइकिल की चेन उतर जाने से तो ये लड़का उसे मिल गया था। वह अचकचा कर फ़ौरन संभल जाती। कहीं ऐसा न हो कि इसी बीच लड़का आ जाए और उसके लिए साइकिल की चेन के बहाने फ़िर किसी मददगार की तलाश करने का संदेह मन में पाल ले। लड़की को अपने इस खयाल पर हंसी भी आ गई। सच ही तो है, लड़के ऐसे ही तो होते हैं।
लड़की को अब यह सोच कर अपने पर ही झुंझलाहट होने लगी कि आज वो मोबाइल क्यों नहीं लाई! हो सकता है कि लड़का सचमुच किसी काम में फंसा हो और ये बात फ़ोन पर लड़की को बताना भी चाह रहा हो, पर फ़ोन उसके पास है ही नहीं। बेचारा!
लड़की को अब यकीन होने लगा कि शायद लड़का अब नहीं आयेगा।
उसने अब इंतज़ार करना फिजूल समझा। वह घर चल दी।
आज शाम को उसे अपनी दीदी के साथ बाज़ार जाना था। काम उसे नहीं, दीदी को ही था। पर किसी को बाज़ार जाने को कोई बहाना थोड़े ही चाहिए। जब चाहे चल दो। हां, अंटी में धन होना चाहिए। उसने दीदी को हां कह दिया।
ये दीदी भी न ... देखो एक चुन्नी रंगने के लिए एक रंगरेज के पास डाल दी। उसने कहा एक घंटे बाद देगा। सूखने में वक्त लगता है। बस, अब बैठे रहो एक घंटा। और एक की जगह डेढ़ घंटा ही लगाएगा। लड़कियां इंतज़ार में सामने बैठी हों तो काम निपटाने की जल्दी थोड़े ही होती है इन बूढ़ों को। एक- एक रेशा छूकर देख रहा है - अभी नहीं सूखी मोहतरमा!
तभी दीदी को अचानक कुछ याद आया। सिर खुजाती हुई सहसा बोल पड़ी - तू उस राजा से मिलना छोड़ दे।
- राजा, कौन राजा? लड़की ने आश्चर्य से पूछा।
- बन मत ज़्यादा। मिलती नहीं है तू उस लड़के से?
- कसम से दीदी, मुझे तो ये भी नहीं पता कि उसका नाम राजा है? लड़की को खुद अपने पर अचंभा हो रहा था कि उसने सचमुच अब तक लड़के से उसका नाम भी नहीं पूछा था। पर दीदी को कैसे पता चला कि उसका नाम राजा है और मैं उससे मिलती हूं, क्या कभी इसने हम दोनों को घूमते हुए कहीं देख लिया? अगर देख भी लिया तो अब तक बात को पेट में छिपाए कैसे रही? अब तक क्यों नहीं पूछा। आज अचानक बैठे- बैठे...वो भी यहां इस तरह!
चुन्नी सूख गई थी और अखबार में लपेट कर दे भी दी गई थी। मगर अब सिलवटें चुन्नी में नहीं, लड़की के दिमाग़ में थीं। दीदी ने क्या देखा, कब देखा, और अब मना क्यों कर रही है उससे मिलने को। यही सब सोच रही थी।
रिक्शे से उतर कर घर में घुसी तब तक कुछ नहीं बोली लड़की!