hari krushn hari in Hindi Book Reviews by शैलेंद्र् बुधौलिया books and stories PDF | अवध की बात - हरिकृष्ण हरि

Featured Books
Categories
Share

अवध की बात - हरिकृष्ण हरि

लोकसंस्कृति को समर्पित कवि –हरिकृष्णहरि

 दिनांक तेरह दिसम्बर दो  हजार उन्नीस  को ‘साहित्य एक्सप्रेस’ का डॉक्टर मानस विश्वास पर केंद्रित विशेषांक लोकार्पित हुआ तो उसमें यह पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हुई ,कि साहित्य एक्सप्रेस अपना आगामी विशेषांक बुंदेली भाषा के यशस्वी कवि ‘श्री हरि कृष्ण हरि ‘ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाशित करने जा रहा है।

 वैसे तो बुंदेलखंड की लोक संस्कृति में साहित्य के संस्कार पूर्णत: रचे-बसे, घुले- मिले हैं। साहित्य अनुराग में इस धरती के साधारण से लेकर विशिष्ट जन तक मानो पूरे देश में अग्रगण्य हैं। साहित्य और उसके रचना कर्म के प्रति जैसा आदर सनेह , सम्मान, समर्पण, लगन और एक अलग तरह की ललक का भाव बुंदेलखंड में और उसमें भी दतिया के रचनाधर्मी  साहित्यकारों में दिखाई देता है वैसा अन्यत्र और कहीं दुर्लभ ही  है।

श्री हरि कृष्ण ‘हरि’ बुंदेलखंड की माटी के एक ऐसे ही रचनाकार हैं। दिनांक 2  जून 1954 को दतिया जिले के उनाव रोड पर बसे एक छोटे से गांव सिरसा हुआ है। उस गांव के एक साधारण से किसान परिवार में जन्म लेने वाले  हरि कृष्ण की प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा सेरसा और कारागृह में पूरी हुई। बाद में उन्होंने दतिया के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक 2 से हायर सेकेंडरी की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष क्षेत्र में शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय दतिया से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

 प्रजापति परिवार में जन्मे हरि कृष्ण जी की बचपन से ही मूर्तिकला और माटी कला के प्रति विशेष अभिरुचि रही, बाद में वे उन्होंने उसी कला में पारंगत हुए । स्नातक की शिक्षा प्राप्त उपरांत 3 जुलाई 1980 को आप टीकमगढ़ जिले के ओरछा में मध्य प्रदेश शासन के जल संसाधन विभाग में सेवारत हो गए। सन् 1980 से सन् 1987 तक आपने ओरछा में रहकर जल संसाधन विभाग राजघाट परियोजना को संपूर्ण स्टाफ के साथ अपनी सेवाएं दी। इसी सेवाकाल के दौरान वर्ष 87 में आप का स्थानांतरण दतिया हो गया। जहां आपका परिचय विभाग में ही सेवारत कवि  डॉक्टर राज किशोर गोस्वामी ‘राज’ से हुआ। श्री हरि ने अपने प्रकाशित खंडकाव्य ‘अवध की बात’खंडकाव्य ‘अवध की बात’अवध  में अपनी बात के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि ‘मेंरे जीवन में कविता लिखने का बीज दतिया के कवि डॉक्टर राज गोस्वामी की कविताओं के प्रभाव से पड़ा। बाद में अपने काव्य अनुराग, स्वाध्याय और निरंतर अभ्यास से ने इसे उत्तरोत्तर सरल सरल और संवर्धित किया।‘

 और अब वह  अपनी रचनाशीलता, निरंतर साहित्य सर्जना और बुंदेली भाषा व संस्कृति के साथ हिंदी की सतत सेवा के कारण न केवल दतिया अपितु संपूर्ण मध्यप्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं ।

साहित्यिक आयोजनों में आप की सक्रिय भागीदारी होती है चाहे वह काव्य हो, कहानी विषयक हो इतिहास विषयक हो अन्य किसी भी विषय के   साहित्य से संबंधित कोई भी कार्यक्रम हो और हरि कृष्ण जी को इसकी सूचना दी गयी हो तो उनकी उपस्थिति वहां सुनिश्चित होती है।  

श्री हरि कृष्ण हरि को अपनी सतत साहित्य साधना, सृजनशीलता और सक्रिय संलग्नता से अल्पकाल में ही जो उपलब्धियां हासिल हुई हैं, प्राप्त हुई है वे  निश्चित ही सराहनीय और अनुकरणीय हैं । उनकी उपलब्धियों कविताओ  और सतत सृजन कर्म के कारण ही श्री हरि को अनेक साहित्य  संस्थान द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। अभी हाल ही में माह दिसंबर 2019 में जबलपुर मध्य प्रदेश में आपको ‘कादंबरी सम्मान’ से अलंकृत किया गया है। आपके मन में उत्साह , सर्जन की चाह और श्रमजन्य  क्रियान्वयन को देखते हुए आपको सन् 2008 में मध्यप्रदेश लेखक संघ की जतिया इकाई के सचिव पद पर नियुक्त किया गया ।जिनका आपने सफलतापूर्वक निर्वाह किया। बाद में आपकी रचनात्मक क्रियाशीलता को देखते हुए मध्य प्रदेश लेखक संघ ने सन् 2011 में आपको दतिया इकाई के अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपा इसका भी पूरे मनोयोग से निर्वाह कर रहे हैं।
 दिनांक तीस चार डॉ हजार चार  को शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त होने के पश्चात साहित्य सर्जना में अपनी सतत गति बनाए हुए हैं।

 आपकी अभी तक 8 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप अपने सकारात्मक चिंतन में काव्य कला की कमनियता के साथ-साथ सामाजिक साहित्य और लोक कल्याणकारी दृष्टि को संजोये  हुए हैं। आपने अपनी कविताओं में मानव जीवन के मूल्यों को विशेष ध्यान देकर साहित्य की उपादेयता को बनाए रखा है। लोकोपयोगी आपकी साहित्य सेवा, श्लाघनीय एवं सराहनीय है। मैं उनके स्वस्थ, सुखी, सफल और सुदीर्घ  जीवन की कामना करता हूं।