you made me brothel in Hindi Moral Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | मुझे कोठे वाली आपने बनाया

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मुझे कोठे वाली आपने बनाया

फारौली गांव में 22 वर्षों में ऐसा नहीं हुआ था, कि किसी गरीब मां बाप की बेटी की शादी पैसों की कमी की वजह से ना हुई हो।

गांव के गरीब परिवारो की बेटी के जन्म के बाद कम से कम बेटी की शादी की चिंता तो खत्म हो गई थी।

जब भी किसी गरीब मां बाप की बेटी की शादी होती थी, तो गुप्त दान उस गरीब मां बाप के घर पहुंच जाता था और बिना पैसोंं की अड़चन के वह गरीब मां-बाप अपनी बेटी की शादी धूमधाम से कर देते थे।

लेकिन पूरे गांव को आज तक यह नहीं पता था, कि गरीब बेटियों की शादी में यह गुप्त दान देने वाला कौन है क्योंकि गांव का एक सज्जन बुजुर्ग बाबूलाल उस गुप्त दानी से गुप्त दान लेकर उस गरीब मां बाप को चुपचाप दे देता था।

गांव के लोगों ने जब भी बाबूलाल से उस गुप्त दानी का नाम पता जानना चाहा तो बाबूलाल सबको एक ही जवाब देता था, "अगर तुमने उससे मिलने की कोशिश की तो वह गुप्त दान देने वाला उसी दिन से गुप्त दान देना बंद कर देगा।"

इसलिए गांव के लोग डर कर चुप हो जाते थे, गांव के लोगों का डरने का एक बहुत बड़ा कारण गांव का साहूकार भी था, 22 बरस पहले भूरा नाम के गांव के एक व्यक्ति की छोटी बेटी तुलसी को गांव का साहूकार पूरे गांव के सामने अपनी दबंगई दिखाकर यह कहकर उठाकर कोठे पर बेचने ले गया था, कि "तुलसी के पिता भूरा ने इसकी बड़ी बहन की शादी के लिए मुझ से कर्जा लिया था, अब यह मेरा कर्जा देने में आनाकानी कर रहा है, इसलिए मैं इसकी छोटी बेटी तुलसी को कोठे पर बेच कर अपना कर्जा वसूल करूंगा।"

इसलिए गांव के लोग उस साहूकार से कर्जा लेने से डरते थे और जो गांव के लोग साहूकार की असलियत जानकर भी उससे कर्जा लेते थे, तो साहूकार उन्हें बर्बाद कर देता था।

गांव में महामारी फैल जाती है, हैजा डायरिया से घर-घर मौतें होने लगती है। इस महामारी में बाबूलाल घर-घर जाकर एक-एक मरीज की मदद करता है और उसकी मदद से बहुत से लोग इस महामारी से बच जाते हैं, परंतु हैजे डायरिया की चपेट में आकर स्वयं बाबूलाल के प्राण निकल जाते हैं।

सज्जन बुजुर्ग बाबूलाल की मृत्यु के बाद गांव में गुप्त दान आना बंद हो जाता है, इसलिए गांव का एक गरीब पिता अपनी बेटी की शादी के लिए उसी निर्दई बेरहम साहूकार से कर्जा लेता है।

और जिस दिन उस गरीब पिता की बेटी की शादी थी, उसी रात एक महिला बुर्का पहन कर उस गरीब पिता के हाथ में नोटों के दो तीन बंडल रखकर कहती है कि "पहले उस वहसी दरिंदे साहूकार का कर्ज उतारो फिर कर्ज मुक्त होकर खुशी से अपनी बेटी की शादी करो।

उस गरीब पिता की बेटी अपने पिता से एक बुरखे वाली महिला को बात करते हुए और नोटों के बंडल देते हुए देखकर गरीब पिता की बेटी दुल्हन के कपड़े पहने वहां आकर उस मदद करने वाली महिला के चेहरे से बुर्का हटाकर उसका चेहरा देखती है।

बुरखे वाली महिला का चेहरा देखकर बेटी का गरीब पिता उस बुरखे वाली महिला के पैरों में गिरकर कहता है "तुलसी बहन पुरे गांव को लगता था, कि गांव की बेटियों की गुप्त दान से मदद करने वाली कोई गांव की बेटी ही है।"

गरीब पिता की बेटी अपने पिता से पूछती है? "यह तुलसी जी कौन है।"

तब तुलसी उसके पिता को चुप करा कर उसकी बेटी को बताती है कि मैं कौन हूं।

इतने में रोने पीटने का शोर सुनकर गांव के बाकी लोग भी वहां इकट्ठा हो जाते हैं।

तुलसी सबके सामने कहती है कि "जिस दिन गांव का साहूकार मेरे पिता से अपना कर्जा वसूल करने के लिए मुझे कोठी पर बेचने जा रहा था उस दिन बाबूलाल चाचा को छोड़कर मेरी मदद किसी ने नहीं की थी, अगर उस दिन पूरा गांव मिलकर मेरी मदद करता तो आज मैं कोठे वाली नहीं कहलाती। मैं भी किसी की पत्नी मां बेटी कहलाती और अगर मर्द कोठे पर जाना छोड़ दे, तो कोई भी बहन बेटी पत्नी मां को कोठे वाली नहीं कहलाएगी और मैं गांव की गरीब लड़कियों की मदद इसलिए करती थी, कि जैसा मेरा जीवन बर्बाद हुआ है, वैसा गांव की किसी भी बेटी का जीवन बर्बाद ना हो।"

यह कह कर तुलसी रिक्शे में बैठकर वहां से चली जाती है। तुलसी की इस बात से पूरा गांव शर्मिंदा हो जाता है।