रेस्ट हाउस के आगें जैसे ही फारेस्ट आँफिसर गजेन्द्र सिंह की जीप रुकी तो रेस्ट हाउस का चौकीदार मलखान जीप के पास आकर बोला....
"नमस्ते साहब!"
तभी जीप का ड्राइवर सुखवीर जीप से उतरा और मलखान से बोला...
"कैसें हो मलखान"?
"अच्छा हूँ ड्राइवर साहब",मलखान बोला...
"ये हैं हमारे नए साहब,ये इस इलाके का दौरा करने आए हैं और दो चार दिन यहीं रुकेगें",सुखवीर बोला...
"बहुत अच्छी बात है",मलखान बोला...
"तो साहब का सामान जीप से उतारकर कमरें में पहुँचा दो",सुखवीर बोला...
"जी!साहब!",
और ऐसा कहकर मलखान ने फारेस्ट आँफिसर गजेन्द्र सिंह का सामान जीप से उतारा और रेस्ट हाउस के कमरें में रखकर बाहर आ गया और फिर उसने पूछा...
"साहब! आप लोंग चाय वगैरह लेंगे",?
"मैं तो चाय नहीं लूँगा,तुम साहब को चाय पिलवाओ,मैं तो अब चलूँगा,क्योंकि मुझे वापस भी लौटना है",सुखवीर बोला....
"ठीक है सुखवीर! तो अब तुम जाओ और शनिवार को मुझे वापस लेने आ जाना",फारेस्टर आँफिसर गजेन्द्र सिंह बोलें...
"ठीक है!साहब! तो अब मैं चलता हूँ",
और ऐसा कहकर सुखवीर जीप में जा बैठा और फिर जीप स्टार्ट करके वो चला गया,उसके जाते ही मलखान ने गजेन्द्र सिंह जी से पूछा...
"साहब! चाय के साथ कुछ पकौड़े-अकौड़े लेगें तो तल दूँ",
"नहीं! मैं सिर्फ़ चाय लूँगा",गजेन्द्र सिंह बोले...
"ठीक है साहब",
और ऐसा कहकर मलखान रसोईघर की तरफ चला गया और फारेस्ट आँफिसर गजेन्द्र सिंह रेस्ट हाउस के बरामदे में पड़ी कुर्सी पर जा बैठे,मलखान कुछ ही देर में चाय लेकर हाजिर भी हो गया,तब गजेन्द्र सिंह जी ने उससे पूछा...
"तुम यहाँ अकेले रहते हो?"
"हाँ! हूजूर!",मलखान बोला...
"बीवी बच्चे कहाँ रहते हैं तुम्हारे"?,गजेन्द्र सिंह ने पूछा...
"साहब! क्या बताऊँ?,बीवी दो बच्चों को छोड़कर किसी के संग भाग गई",मलखान बोला...
"तो बच्चों की देखभाल कौन करता है क्योंकि तुम तो यहाँ अकेले रहते हो"?,गजेन्द्र सिंह ने पूछा...
"जी! मेरी माँ करती है",मलखान बोला...
"तुम्हारी पत्नी क्यों भाग गई",?,गजेन्द्र सिंह ने पूछा....
"साहब! अब क्या कहूँ? औरत जात का क्या भरोसा? कोई शहरी बाबू आया था तो उसकी लच्छेदार बातों में आकर मुझे छोड़कर उसके साथ चली गई",ये कहते कहते मलखान रुआँसा सा हो गया...
मलखान से बातें करते करते गजेन्द्र सिंह की चाय खतम हो चुकी थी तो वें मलखान से बोलें....
"मैं जरा इलाके का चक्कर लगाकर आता हूँ",
"ठीक है साहब! लेकिन झील किनारे जो बंगला है उस ओर मत जाइएगा,वो जगह ठीक नहीं है,आप यहाँ नए हैं इसलिए कह रहा हूँ"मलखान बोला....
"क्यों?वो जगह ठीक क्यों नहीं है"?,गजेन्द्र सिंह ने पूछा....
"लोग कहते हैं कि वो जगह भुतहा है,वहाँ आत्माएँ भटकती हैं",मलखान बोला....
"ये सब बेकार की बातें हैं,मैं ये सब नहीं मानता",गजेन्द्र सिंह बोलें....
"अगर आप इन सब बातों को नहीं मानते तो भी अन्धेरा होने से पहले यहाँ लौट आइएगा",मलखान बोला...
फिर गजेन्द्र सिंह घूमने निकल गए और आखिरकार उस झील की ओर भी पहुँचे जहांँ पर एक पुराना बंगला था,अब गजेन्द्र सिंह मलखान की बातों को दरकिनार करते हुए उस बंगले की ओर बढ़ चले,सूरज अभी ढ़ला नहीं था,इसलिए उन्होंने सोचा बंगले के भीतर जाने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि अभी अन्धेरा नहीं हुआ है और वें उस पुराने बंगले के दरवाजे खोलकर भीतर घुस गए और उन्होंने देखा कि वहाँ चमगादड़ों का बसेरा है और अब उन्हें उसके भीतर ठण्ड का एहसास होने लगा,उन्हें इतनी जोर की ठण्ड लगी कि वें ठण्ड से काँपने लगे,तभी उन्हें किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने पूछा....
"कौन...कौन है?"
वें उस रोने वाले इन्सान को ढूढ़ते हुए दूसरे कमरें में पहुँचे लेकिन उन्हें वहाँ भी कोई नहीं दिखा,लेकिन अवाज़ अब भी आ रही थी,वें धीरे धीरे बंगले के और भी कमरों में गए लेकिन तब भी उन्हें वहाँ कोई ना दिखा,लेकिन बच्चों के रोने की आवाज़ अब भी आ रही थी,अब धीरे धीरे रोने वालों की संख्या की आवाज़ बढ़ने लगी और वो आवाज़ पूरे बंगले में गूँजने लगी फिर वें रोने वाले बच्चों की आवाज़े इतनी तेज़ हो गई कि गजेन्द्र सिंह को लगा कि उनका सिर फट जाएगा और वें अपने दोनों कान अपने दोनों हाथों से बंद करके वहाँ से पूरा दम लगाकर भागे और रेस्ट हाउस पहुँचकर ही दम लिया,वें बहुत डरे हुए थे तो मलखान ने पूछा....
"साहब! क्या हुआ"?
"कुछ नहीं ,बहुत थक गया हूँ,मुझे अब आराम की जरूरत है,मैं अब अपने कमरें में जा रहा हूँ,हाथ मुँह धुलकर थोड़ा आराम करूँगा और जब रात का खाना तैयार हो जाएं तो मुझे जगा लेना",गजेन्द्र सिंह बोलें....
"जी! साहब"
और ऐसा कहकर मलखान अपने काम में लग गया और इधर गजेन्द्र सिंह हाथ मुँह धोकर कपड़े बदलकर बिस्तर पर लेट गए,थके हुए थे इसलिए उनकी फौरन ही आँख लग गई और तभी उन्हें फिर से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी तो उनकी आँख खुल गई,उन्हें वो आवाज़ खिड़की के बाहर से आ रही थी तो वें डरे सहमे से अपने बिस्तर से उठे और खिड़की के पास गए और उन्होंने खिड़की से झाँककर देखा तो उन्हें कोई नहीं दिखा सिवाय अँधेरे के और वें फिर अपने बिस्तर की ओर आने लगे तो खिड़की के बाहर से सर्र से दो घिनौने हाथ अन्दर आएं और उन हाथों ने उनकी गर्दन को जोर से दबोच लिया,वें अब चिल्ला नहीं पा रहे थे और उनका दम घुटा जा रहा था,उन्होंने अपनी गर्दन को उन घिनौने हाथों से छुड़ाने की बहुत कोशिश की और आखिरकार कामयाब हो गए और फिर उनकी आँख खुल गई ,तब उन्होंने सोचा मतलब ये एक भयानक सपना था सच्चाई नहीं.....
गजेन्द्र जी खुद को सम्भालने की कोशिश कर ही रहे थे कि इतने में मलखान ने उनके कमरें के बाहर से आवाज़ लगाई....
"साहब! खाना तैयार है",
"आ रहा हूँ",
और फिर ऐसा कहकर गजेन्द्र जी ने अपने चेहरे का पसीना पोछा और बिस्तर से उतरकर उन्होंने अपनी स्लीपर पहनी और बाहर बैठक में आएं,जहाँ मलखान पहले ही टेबल पर खाना लगा चुका था,गजेन्द्र जी ने वहीं लगे वाशबेसिन में अपने हाथ धुले और खाने की टेबल पर आ बैठें,तब मलखान ने उनकी प्लेट में खाना लगा दिया और गजेन्द्र जी खाना खाने लगे,वें खाना तो खा रहे थे लेकिन उनका ध्यान तो कहीं और ही था इसलिए मलखान ने पूछा.....
"क्या हुआ साहब! खाना आपके मन मुताबिक नहीं बना क्या"?
"नहीं! ऐसी बात नहीं है मलखान! मेरा ध्यान किसी और चींज पर लगा हुआ है,आज जो मैनें महसूस किया,वैसा शायद कभी भी महसूस नहीं किया",गजेन्द्र सिंह जी बोलें....
"क्या हुआ साहब? कहीं आप झील के किनारे वाले बंगले पर तो नहीं चले गए थे",मलखान ने पूछा...
"हाँ! मैं वहीं चला गया था",गजेन्द्र सिंह बोले....
"मैंने मना किया था ना साहब! कि वहाँ मत जाइएगा,अब आपने खुद के लिए मुसीबत खड़ी कर ली ", मलखान बोला....
"ऐसा कौन सा रहस्य है उस बंगले में",गजेन्द्र सिंह जी ने पूछा....
"साहब!पहले आप खाना खा लीजिए,फिर मैं आपको उस बंगले की कहानी सुनाता हूँ", मलखान बोला...
"ठीक है",
और फिर ऐसा कहकर गजेन्द्र सिंह जी ने शान्त मन से खाना खाया और उनके खाना खाने के बाद जब मलखान भी खाना खाकर फुरसत हो गया तो उनसे बात करते हुए बोला.....
"साहब! वो सौ साल पुराना बंगला है,वहाँ एक अँग्रेज अफसर रहा करता था जो कि वो भी आप ही की तरह फारेस्ट आँफिसर था",
"फिर क्या हुआ था उस आँफिसर के साथ"?,गजेन्द्र सिंह ने पूछा.....
तब मलखान ने उस अंग्रेज फारेस्ट आँफिसर की कहानी सुनानी शुरू की....
ये उस समय की बात है जब भारत पर अंग्रेजों का राज था,इस इलाके में भी राबर्ट नाम का गोरा अफसर फारेस्ट आँफिसर बनके आया था और वो यहाँ के इलाकों में रहने वाले लोगों पर बहुत जुल्म करता था,यहाँ के लोगों की रोजी रोटी का साधन यहाँ के जंगल हुआ करते थे,इन जंगलो से उन्हें शहद,जड़ीबूटियांँ और पेड़ो की छाल मिल जाती थी जो उनके काम आती थी और उसे बेचकर वो अपना गुजारा करते थे,लेकिन राबर्ट को ये मंजूर नहीं था,जिसे भी वो इस जंगल के कानून को तोड़ता हुआ देख लेता तो उसकी कोड़ो से पिटाई करवाता था,लकड़ियों से भरी बैलगाड़ियाँ खिंचवाता था और वो ना जाने कितने ही लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतार चुका था,पूरे इलाके में उसकी दहशत थी......
इसी तरह एक बार एक बुढ़िया उसे इस जंगल में लकड़ी काटती दिख गई,उस बुढ़िया के साथ उसके दोनों पोते भी थे जो पांँच और सात साल के थे,तो उस गोरे अफसर ने उस बुढ़िया की कोड़ो से इतनी पिटाई करवाई कि वो मर गई और उसके दोनों पोतो को उस बंगले के तहखाने में बाँध दिया और उन बच्चों ने रो रोकर भूख प्यास के कारण दो ही दिन मे अपने प्राण त्याग दिए और फिर उस गोरे अफसर के जुल्म से तंग आकर उस बुढ़िया के बेटे ने एक रात उस बंगलें में घुसकर गोरे अफसर और उसकी पत्नी मारिया की गरदन कुल्हाड़ी से उड़ाकर अलग कर दी और उसके बच्चों को भी उसी तरह मारा जैसे कि उसने उसके बच्चों को मारा था ,फिर अँग्रेजी पुलिस ने उस बुढ़िया के बेटे को गिरफ्तार कर लिया और उसी बंगले के बगल में लगे पेड़ पर इलाके के लोगों के सामने फाँसी लगा दी,ताकि इस इलाके के लोग दहशत में रहें और फिर कोई अँग्रेजी हूकूमत के खिलाफ आवाज़ ना उठा सकें,
यही है उस बंगले का रहस्य,मलखान बोला.....
"तो फिर वें मेरे पीछे क्यों पड़ गए",?गजेन्द्र सिंह ने पूछा...
"साहब!वहाँ सौ सालों से रुहें रहतीं हैं और आपने उन्हें छेड़ दिया है,इसलिए वें आपके पीछे पड़ गए हैं", मलखान बोला....
"तो अब क्या होगा"?,गजेन्द्र सिंह ने पूछा...
"कुछ नहीं होगा! आप उस जगह चलना जहाँ उस बुढ़िया के लड़के को फाँसी लगी थी,वो पेड़ इतने साल बाद भी सही सलामत है जहाँ उसे फाँसी लगी थी,वहाँ उस पेड़ के पास जाकर उससे माँफी माँग लेना,फिर आपको कोई रुह परेशान नहीं करेगी",मलखान बोला....
और अब गजेन्द्र सिंह जी को उस बंगले का रहस्य पता चल चुका था और उन्होंने वैसा ही किया जैसा मलखान ने कहा था, उसके बाद गजेन्द्र सिंह जी उस इलाके में दो चार दिन और रहे लेकिन उन्हें किसी रुह ने परेशान नहीं किया....
समाप्त.....
सरोज वर्मा....
ये एक काल्पनिक कहानी है और केवल मनोरंजन हेतु लिखी गई है,इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है.....