पांच बरस के शम्मी को और तीन बरस की रक्षा को जब उनका पिता परिवार की जिम्मेदारियों से घबराकर साधु बनने के लिए हिमालय भाग जाता है, तो तब रक्षा शम्मी की मां मजबूर होकर बड़े घर को बेचकर एक छोटा घर खरीदती है और बड़ा घर बेचने के बाद उसे जो पैसे बचते हैं उनसे अपने नए घर के पास ही घरेलू सामान बेचने की के लिए किराए पर दुकान ले लेती है।
शम्मी जब दस बरस का हो जाता है तो उसका नए घर में बिल्कुल भी मन नहीं लगता है क्योंकि उनके पड़ोस का मकान खाली पड़ा हुआ था, उसे अब तक किसी ने खरीदा नहीं था।
शम्मी अपनी मां से लगातार कहता था "मां ऐसी जगह मकान खरीदो जहां पड़ोसी हो और मेरे बराबर के बच्चे हो जिनके साथ में दोस्ती कर सकूं।"
शम्मी की मजबूर मां हर बार शम्मी की यह बात सुनकर उसे किसी न किसी तरह टाल देती थी।
मां से अपनी इस इच्छा को पूरी करने के लिए कहते कहते शम्मी पांचवी कक्षा से 12वीं कक्षा में पहुंच जाता है।
शम्मी दिन में या रात में जब भी अपनी छत पर जाता था, तो पड़ोस की छत का सन्नाटा देखकर उसे बहुत बुरा लगता है। पिता के घर छोड़कर जाने के बाद उनके परिवार में जो अकेलापन बढ़ गया था, पड़ोस की सुनसान छत को देखकर शम्मी का वह अकेलापन और बढ़ जाता था।
गर्मियों की एक रात खाना खाने के बाद जब उसे अपनी बहन रक्षा घर बाहर कहीं नजर नहीं आती है, तो वह रक्षा के लिए चिंता करने लगता है और ढूंढते ढूंढते उसे जब रक्षा छत पर अकेले खाना खाकर टहलते हुए नजर आती है, तो शम्मी भी उसके साथ छत पर टहलने लगता है, लेकिन अपनी बहन रक्षा के साथ छत पर टहलते टहलते शम्मी की बार-बार नजर पड़ोस की उस सुनसान छत पर जा रही थी और उस सुनसान छत को देखकर शम्मी को दहशत और घबराहट होने लगती है।
उस रात के बाद शम्मी अपनी छत पर जाना ही छोड़ देता है, परंतु दिवाली की रात जब शम्मी की मां बहन उसे छत पर ले जाकर दीपक मोमबत्ती जलने के बाद बम पटाखे फोड़ने की कहती है, तो शम्मी उनके कहने से बम पटाखे अनार फुलझड़ी आदि चलने और फोड़ता तो है। लेकिन पड़ोस की छत के सन्नाटे को देखकर उसको बहुत बुरा लग रहा था।
उस पड़ोस की छत के सन्नाटे की वजह से उसका दिवाली मनाने का पूरा आनंद ही खत्म हो जाता है।
पड़ोस के खाली मकान की वजह से अपने बेटे को बहुत ज्यादा दुखी देखकर पहले तो शम्मी की मां उसे हिम्मत देने की कोशिश करती है, कि "एक दिन जब यह मकान बिक जाएगा, तो नए पड़ोसी आने के बाद यहां बहुत रौनक हो जाएगी, लेकिन जब शम्मी कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं होता है, तो उसकी मां अपना मकान बेचकर दूसरी जगह मकान खरीदने के लिए तैयार हो जाती है।
और उन्हीं दिनों शम्मी के पड़ोस का मकान भी बिक जाता है, उसके पड़ोस में जो परिवार उस मकान को खरीदते है, उस परिवार में शम्मी की हम उम्र दीपा नाम की लड़की थी और दीपा का एक छोटा भाई था।
अब शम्मी जब भी अपनी छत पर जाता था, तो पड़ोस के मकान की छत पर उसे कभी दीपा के माता-पिता बैठे हुए दिखते थे या दीपा का भाई खेलते हुए या फिर खुद दीपा पढ़ाई करते हुए दिखाई देती थी।
शम्मी 12वीं कक्षा में पढ़ा कर रहा था और दीपा 11वीं कक्षा इसलिए शम्मी पढ़ाई के बहाने दीपा से कभी-कभी बात कर लिया करता था।
एक रात सर्दियों के मौसम में जैसे ही शम्मी अपने दरवाजे से बाहर आकर देखता है, कि बाहर कितनी धुंध पड़ रही है, तो उसी समय उसकी नजर एक सफेद रंग के छोटे से कुत्ते के पिल्ले पर जाती है, वह कुत्ते का पिल्ला ठंड से ठिठुर रहा था।
शम्मी को उस कुत्ते के पिल्ले को देखकर उस पर बहुत तरस आता है और वह कुत्ते का पिल्ला देखने में भी बहुत खूबसूरत था, इसलिए शम्मी उसे उसी समय घर में पालने के लिए उठा कर ले आता है।
जब शम्मी अपनी बहन रक्षा के साथ सर्दियों में छत पर बैठकर धूप में तपता था और छोटा सा सफेद कुत्ते का पिल्ला वहां उछल कूद करके खेलता रहता था उस कुत्ते के पिल्ले की वजह से दीपा भी अपनी छत पर खड़े होकर उस कुत्ते के पिल्ले को प्यार करने के बहाने शम्मी से बात कर लेती थी।
और दीपा प्यार से उस कुत्ते के पिल्ले का नाम मोती रखती है। धीरे-धीरे शम्मी और दीपा के परिवार के संबंध बहुत मधुर हो जाते हैं।
दिवाली से पहले दीपा शम्मी शम्मी की बहन रक्षा शम्मी की मां और दीपा की मां बाजार दिवाली का सामान खरीदने साथ जाते हैं।
वह सब मोती को भी अपने साथ लेकर जाते हैं, तो बाजार में कोई बड़ा धमाकेदार दीवाली का बम फोड़ देता है, बम की आवाज से डर कर मोती दीपा की गोदी में सर छुपा कर छुप जाता है, उस दिन दीपा शम्मी दोनों को समझ आ जाता है, कि मोती बड़े धमाकेदार बमों से डरता है, इसलिए वह बम की जगह अनार फुलझड़ी चकरी आदि पटाखे खरीदते हैं और दिवाली वाली रात शम्मी शम्मी की बहन रक्षा दीपा दीपा का छोटा भाई और उनके साथ मोती अपनी-अपनी छत पर मोमबत्ती दीपक जलने के बाद जब अनार फुलझड़ी चलते हैं, तो दीपा का छोटा भाई मोती रक्षा दीपा शोर मचा मचा कर खुश होते हैं।
उसी समय शम्मी की मां एक आदमी के साथ छत पर आती है और वह आदमी छत पर आते ही शम्मी रक्षा को गले लगा कर कहता है कि "मैं तुम्हारा पिता हूं, मुझे मेरे बच्चों माफ कर दो, मैं अपने परिवार को अकेला छोड़कर भाग गया था, इस बात का मुझे बहुत पछतावा है, अब जब तक मैं जिंदा रहूंगा अपने परिवार की पूरी जिम्मेदारी उठाऊंगा। मैं दो वर्षों से तुम्हें खोज रहा हूं, अगर तुम यह मकान बेचकर चले जाते तो, मैं जीवन भर तुम्हें नहीं ढूंढ पाता।"
दिवाली की उस रात शम्मी सोचता है। कभी यह छत मुझे बहुत बुरी लगती थी, आज इस छत पर मुझे दुनिया की सब खुशियां मिल गई है।
और शम्मी दीपा अपनी अपनी पढ़ाई पूरी करके दोनों परिवार की मर्जी से आपस में शादी कर लेते हैं।