Sathiya - 1 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 1

Featured Books
  • उजाले की ओर –संस्मरण

    मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है ल...

  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

Categories
Share

साथिया - 1

दिल्ली की एक शानदार सोसाइटी का एक आलीशान बंगला। यह बंगला है जाने माने बिजनेस में अरविंद चतुर्वेदी का जहां पर अरविंद चतुर्वेदी अपनी पत्नी साधना और दोनों बेटे अक्षत और ईशान के साथ रहते हैं।

ईशान ने नेशनल यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनेजमेंट का कोर्स किया है और अरविंद के साथ बिजनेस ज्वाइन कर लिया है।
जबकि अक्षत लॉ करने के बाद मजिस्ट्रेट की तैयारी कर रहा है और उसे पूरी उम्मीद है कि इस बार वह सेलेक्ट हो ही जाएगा।



इसी घर में अरविंद के दोस्त की बेटी मानसी भी रहती है। जिसके पेरेंट्स की सालों पहले डेथ हो गई थी और जिसकी जिम्मेदारी अरविंद और साधना ने ले ली थी। वह उसे भी अक्षत और ईशान की तरह ही प्यार करते हैं।

मानसी देखने मे बेहद खूबसूरत है और अक्षत की खास दोस्त भी।


*अक्षत का घर सुबह सुबह*

साधना की आरती की आवाज सुनाई दी और एक एक कर सब मंदिर के बाहर आकर खड़े हो गए।

आरती पूरी हुई तो साधना ने आरती की थाली आगे कर दी। सब ने आरती ली और प्रसाद लेकर डायनिंग हॉल की तरफ बढ़ गए ला।

मेड ने नाश्ता लगा दिया।


"ईशान आज तुमको दिवाकर जी के ऑफिस में जाना है...! उनके साथ मीटिंग है। " अरविंद जी ने कहा।

"जी पापा मैं चला जाऊंगा डोंट वरी..!" ईशान बोला।


"और सुना है कि नील भी ऑफिस जॉइन कर रहा है।" अक्षत बोला।


" हाँ कर चुका है और आखिर में उसके सिर से वकालत का भूत उतर गया और उसने दिवाकर अंकल का ऑफिस ज्वाइन करने का निर्णय लिया है साथ ही वो अब हमारा और उनका लीगल एडवाइजर भी है। " ईशान ने कहा तो अरविंद ने अक्षत की तरफ देखा।

" तुमने भी वकालत करने और मजिस्ट्रेट की तैयारी के लिए जो समय मांगा था वो अब पुरा होने को है। बस यह साल आखिरी है तुम्हारा? अगर इस बार तुम्हारा सिलेक्शन नहीं होता है तो तुम भी बिजनेस जॉइन करोगे मेरे साथ समझे। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम वकालत में अपना वक्त जाया करो।" अरविंद बोले।


"पर पापा मजिस्ट्रेट बनना मेरा सपना है..! बिजनेस से मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है पर ईशान ने तो ज्वाइन कर लिया है। मुझे आप मेरे ड्रीम जॉब को करने की परमिशन दे दीजिए ना।" अक्षत बोला।

"परमिशन दे तो रखी है। मुझे तुम्हारे जज बनकर कानून के साथ काम करने के फैसले से कोई भी प्रॉब्लम नहीं है पर अगर तुम मजिस्ट्रेट का एग्जाम क्लियर नहीं कर पाए तो तुम मेरे साथ ऑफिस ज्वाइन करोगे क्योंकि वकालत तो नही चलेगी। और मैं नहीं चाहता कि तुम वकालत करो। इतना स्ट्रगल क्यों करना जब तुम्हारा जमा जमा या बिजनेस है।" अरविंद जी बोले।

"जी पापा आप निश्चिंत रहिए मैं एग्जाम क्रेक कर लूंगा। मुझे पूरा विश्वास है।" अक्षत बोला।


"और अगर नहीं कर पाए तो?" तभी ईशान बोला।


"तू चुप कर जब भी बोलता है उल्टा ही बोलता है..! क्यों नहीं कर पाएगा? वह जरूर कर लेगा।" साधना ने कहा।

"क्यों नहीं जरूर कर लेगा । मुझे भी विश्वास है। बस मैं इसलिए बोला जिससे मेंटली प्रिपेयर रहे। बाई चांस नहीं होता है सिलेक्सन तो इस बार इसे ऑफिस ज्वाइन करना ही होगा। इसकी यह आवारागर्दी नहीं चलेगी।" ईशान बोला।


" क्या बोला तूने? मैं आवारागर्दी करता हूं।" अक्षत ने आँखे छोटी कर उसे घुरा।

"सब पता है मुझे कि तू मनु को छोड़ने के बहाने रोज आज भी कॉलेज जाता है ना जाने किस को ताड़ने के लिए।" ईशान ने मस्ती करते हुए कहा तो अक्षत ने उसे घूर कर देखा।


" तू सब जानता है फिर भी।" अक्षत धीरे से बोला।


"वो किसी को ताड़ने नहीं जाता। मेरा दोस्त है और मुझे लेने और छोड़ने जाता है। अब तुमसे तो कोई उम्मीद है नहीं। तुम तो ऑफिस का बहाना बना लेते हो। यह नहीं कि एक अकेली मासूम अबला लड़की कॉलेज जाएगी आएगी तो कभी उसे पिक एंड ड्रॉप कर दो।" मानसी ने कहा।

"तू और अकेली अबला...? तू अकेली 4 के बराबर है। तेरा बस चले तो दिल्ली के आधे लड़कों के बेच खाये और बन रही है एकदम भोली अबला नारी।" ईशान ने छेड़ते हुए कहा।

" देखो न ऑन्टी यह मुझे फिर से तंग करने लगा। तभी तो मेरी इसके साथ नहीं बनती है और फिर इसे जलन होती है कि मेरी दोस्ती अक्षत के साथ क्यों है इतनी गहरी। अभी जो मुझे समझेगा, मेरा साथ देगा दोस्ती भी तो उसी से होगी ना, जो पूरे टाइम सताएगा उससे दोस्ती कौन करेगा?" मनु बोली।



"ईशान क्यों तंग करते रहते हो? यह तुम्हारी छेड़ने की आदत ना जाने कब जाएगी। मनु से तो तुम बड़े हो समझ में आता है पर अक्षत से तो तुम छोटे हो। बड़े भाई को भैया कहना या सम्मान देना तो दूर की बात है हर समय उसकी टांग खींचते रहते हो। यह अच्छी बात नहीं है बेटा।" साधना ने कहा।


अरविंद चुपचाप सुन रहे थे। ये बच्चे उनकी जान थे और इस घर की रौनक। वो जताते नही थे कभी पर बच्चो का यूँ मस्ती करना उन्हे बेहद भाता था।

"चिल करो मम्मी...! इन सब बातों से ही तो घर में रौनक रहती है। वरना सब एक दम बोर हो जाता है। यह जो मस्ती है ना हम तीनों करते हैं यह मस्ती ही तो तो इस घर की जान है। कभी अगर हम तीनों साइलेंट हो गए ना तो आपको यह घर काटने को दौड़ेगा।" ईशान बोला तो साधना से चेहरे पर गुस्सा आ गया।

"तू बोलते समय कभी सोचता है...; क्यो होगे तुम तीनों साइलेंट? मेरे बच्चे हमेशा बस यूं ही हँसते खिलखिलाते रहे और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।" साधना ने कहा।



" अरे खिलखिलाते और चहचहाते रहेंगे पर सिर्फ मैं और अक्षत। इस मोटी मन्नू को तो शादी कर के विदा हो जाना है ना तो इससे कम से कम पीछा छूटेगा मेरा।" ईशान बोला।


"मैं कभी नहीं छोड़ने वाली तेरा पीछा...समझा तू..! बहुत परेशान करता है और मैं मोटी नही हूँ समझा तू।" मनु बोली।


" मोटी मन्नू।" ईशान फिर से बोला।

आंटी इसको समझा लो आप वरना मैं भूल जाऊंगी कि ये मुझसे बड़ा है और इसको और अक्षत को भाई मानती हूँ मैं। किसी दिन इसको दो चमेट मार दुंगी तो बुरा मान जाएगा।" मनु बोली।


" मनु बेटा उसमें बचपना है पर तुम तो समझदार हो यूँ बुरा नही मानते है। " साधना बोली तो तीनो मुस्करा उठे।

"अच्छा मैं निकलता हूं...! इशान तुम टाइम से मीटिंग के लिए चले जाना।" अरविंद बोले।

" जी पापा मैं चला जाऊंगा।" इशान ने कहा तो अरविंद ने एक नजर तीनों को देखा और फिर निकल गए।


" अक्षत मैं अपना बैग लेकर आती हूं..! तुम मुझे छोड़ते हुए फिर निकल जाना अपनी एकेडमी। " मनु बोली और अपने कमरे की तरफ चल दी।

उसके जाते ही इशान ने अक्षत के कंधे पर धोल जमाई।

"कब तक यूं ही ताड़ते रहने का इरादा है? अब तो उसको अपने दिल की बात बोल दो।" इशान बोला।

"बस एक मजिस्ट्रेट बन जाऊं फिर उसे अपने दिल की बात कहूंगा, शुरू से ही सोचा था जब अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा तभी उसे अपना बनाऊंगा ।" अक्षत ने कहा।

देखना बिडू कहीं सोचने समझने में ही देर ना हो जाए ।" इशान बोला।

"नहीं अभी उसके भी कुछ महीने बकाया है स्टडी के और तब तक मेरा भी एग्जाम हो जाएगा। एक बार रिजल्ट आए वैसे ही मैं उसे अपने दिल की बात बता दूंगा उसके बाद ही ट्रेनिंग पर जाऊंगा।" अक्षत बोला।

"ठीक है भाई और मुझे लगता है कि वह तुम्हारा प्रपोजल जरूर एक्सेप्ट करेंगी..! आखिर मेरा भाई लाखों में एक है। कोई भी उसे मना नहीं कर सकता।" इशान बोला तो अक्षत के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई।

थोड़ी देर बाद ईशान मीटिंग के लिए दिवाकर जी के ऑफिस निकल गया तो वही अक्षत मनु को लेकर यूनिवर्सिटी निकल गया।

क्रमश:

डॉ शैलजा श्रीवास्तव।